Jun १५, २०२१ १४:०५ Asia/Kolkata
  • जल संकट-पानी के प्रबंधन की रचनात्मक शैली की ज़रूरत,  प्राचीन काल में ईरान में पानी का संरक्षण करने का अनोखा तरीक़ा

दुनिया में फैले जल संकट के एक अन्य आयाम की समीक्षा

जैसा कि इतिहास में मिलता है कि प्राचीन काल में ईरानी जनता उन ज़मीनों में जहां की जलवायु आज की तरह शुष्क होती थी, वहां की प्राकृतिक कमी की हैरत अंगेज़ तौर पर भरपायी करके अपने जीवन चक्र को आगे बढ़ाने में सफल हुई थी। ईरानी लोग इस रास्ते में काफ़ी हद तक कामयाब हुए और उन्होंने सफलता हासिल की और वे लोग अपने समकालीन लोगों, वर्तमान इतिहास और हालिया कुछ सदी पहले वाले लोगों के बीच चमकते हुए सितारों की भांति थे।

 

बढ़ती आबादी की वजह से गांव से लोग तेज़ी से शहरों में बस रहे हैं जिसकी वजह से प्रदूषण का स्तर बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। इन चीज़ों से मुक़ाबला करना जो पर्यावरण पर बाक़ी रहते हैं, बहुत कठिन है और इन प्रभावों में खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना और समान रूप से पानी के स्रोतों तक सब की पहुंच बनाना सबसे बड़ी चिंता का विषय है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि अगले 25 साल में दुनिया की आबादी का दो तिहाई भाग उन देशों में जीवन व्यतीत करेगा जहां पानी के संकट का सामना होगा।

 

स्वाभाविक सी बात है कि इस समस्या से निपटने के लिए नवीन शैलियों और विकसित तरीक़ों को इस्तेमाल किए जाने की आवश्यकता है और साथ ही अतीत के लोगों के अनुभवों से लाभ उठाते हुए इन शैलियों और तकनीकों की उपयोगिताओं को बढ़ा सकते हैं। पूरी दुनिया में पानी के प्रबंधन की शैली, दुनिया की सभ्यता के हिसाब से ही प्राचीन रही है। हर काल और हर दौर और हर सभ्यता अपने अपने हिसाब से पानी का भंडारण करती रही है।     

बहुत सी मानव सभ्यताएं, बड़ी नदियों के किनारे अस्तित्व में आईं जबकि पानी की कमी ने बहुत सी सभ्यताओं को तबाह व बर्बाद करके रख दिया। इन्हीं में से कुछ सभ्यताएं अपने चरम तक भी पहुंची जिन्होंने यह सीखा कि पानी को किस तरह जमा किया जाए और उन्होंने बहुत ही न्यायपूर्ण ढंग से पानी का प्रबंधन किया। इन सभ्यताओं को अच्छी तरह पता था कि पानी को किस तरह जमा किया जाए या पानी को एकत्रित करने की तकनीक क्या है? यह सभ्यताएं उन लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकती हैं जो पानी के प्रबंधन की रचनात्मक शैली की तलाश में हैं।

ساعت آبی که عموماً میراب ها از آن برای محاسبه زمان و تقسیم آب استفاده می کردند.

 

इस बात के दृष्टिगत कि ईरान एक सूखे व मरुस्थलीय इलाक़े में आबाद है और बारिश की मात्रा भी इतनी ज़्यादा नहीं है, अर्थात ईरान में जितनी बारिश होती है वह इस देश के लिए ही काफ़ी नहीं है और जलवायु भी एक समान नहीं होती। बताया जाता है कि दुनिया के सूखे हुए क्षेत्र का 1.1 प्रतिशत भाग ईरान के पास है जबकि दुनिया के सूखे क्षेत्र का 0.345 (शून्य दश्मलव तीन चार पाँच) प्रतिशत पानी ही ईरान के पास है। दूसरी ओर ईरान के अधिकतर भागों में बारिश एक समान तरीक़े से नहीं होती।

पिछली सहस्त्राब्दियों के दौरान ईरानियों ने देश में जल संकट को बहुत ही अच्छी तरह से समाप्त किया जिसकी वजह से पानी की एक बड़ी त्रासदी को नियंत्रित किया जा सका। प्रसिद्ध ईरानी लेखक मुर्तज़ा रावंदी "ईरान का सामाजिक इतिहास" नामक अपनी किताब में पिछली कुछ सहस्त्राब्दी के दौरान ईरानियों द्वारा पानी के प्रबंधन और सिंचाई की व्यवस्था के बारे में एक अध्याय लिखते हैं और ईरान की धरती पर पानी के कम स्रोतों पर प्रकाश डालते हैं।        

ईरानी लेखक मुर्तज़ा रावंदी अपनी किताब में कई सहस्त्राब्दी पहले इस क्षेत्र में ईरानियों द्वारा की गयी आश्चर्यजनक प्रगति के बारे में लिखते हैं कि सासानियों के काल में सिंचाई की कला, न केवल इस शासन श्रंखला के पश्चिमी भाग में बल्कि इस शासन श्रंखला के पूर्वी भाग में भी अर्थात मुरग़ाब और हेलमंद में भी बहुत अच्छी थी। मुरग़ाब के सिंचाई के प्रतिष्ठानों ने अरबों को इतना ज़्यादा प्रभावित किया कि आठवीं ईसवी में बसरा में खोदी गयी नहर का नाम ही मुरग़ाब रख दिया गया था। इसके अलावा पेयजल की व्यवस्था भी बहुत अच्छी थी और सातवीं ईसवी में पानी सीस्तान से मक्के तक पहुंचाया गया और इस शहर के आसपास के सिंचाई का काम इसी से लिया जाता था।

रूसी बुद्धिजीवी और ईरानी मामलों के विशेषज्ञ वैस्ली बारटोल्ड ने भी सासानी शासन काल में सिंचाई की कला और बांध निर्माण की परियोजनाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पानी के कम स्रोत के बावजूद ईरानियों को यह पता था कि किसी तरह पानी को जमा किया जाए और जमा पानी को किस तरह सिंचाई के लिए प्रयोग किया जाए। क़ाजारी शासन काल में जापान से ईरान भेजे गये पहले राजनैतिक प्रतिनिधि मंडल के सदस्य नोबोयोशी फ़ोरोकावा ईरान में पानी के मुद्दे और आबादी का ज़िक्र करते हुए लिखते हैं कि ईरान की आबादी, क्षेत्रफल के हिसाब से बहुत कम है क्योंकि पानी और सिंचाई का नेटवर्क बहुत ही कम है और यहां की बहुत सी ज़मीनें बिना पानी के ही हैं, जिन पर सिंचाई नहीं की जा सकती।

नोबोयोशी फ़ोरोकावा लिखते हैं कि इन सबके अलावा ईरान में नमक के मरुस्थल की भरमार है और देश का एक बड़ा भाग नमक के मरुस्थल से ढका हुआ है और इस तरह कहा जा सकता है कि ईरान की ज़मीन का केवल आधा हिस्सा ही इंसान और जानवरों के लिए ही बाक़ी बचता है, यानी ईरान के आधे हिस्से में ही इंसान और जानवर जीवन व्यतीत कर सकते हैं, यानी यह कहा जा सकता है कि ईरान का सबसे बड़ी आबादी वाला हिस्सा उसका पश्चिमोत्तरी भाग है।  

नोबोयोशी फ़ोरोकावा अपने यात्रा वृतांत में लिखते हैं कि ईरान में विशेषकर फ़ार्स और शीराज़ के क्षेत्र में कृषि अर्थव्यवस्था की समीक्षा करने से पता चलता है कि ईरानियों ने किस तरह से पानी का भंडारण किया और कितनी सूक्ष्मता के साथ उसका इस्तेमाल करते थे। उन्होंने इसी के साथ ईरान की जल प्रबंधन स्थानीय कला क़नात की ओर भी संकेत किया। वह लिखते हैं कि सिंचाई के लिए नदी के बहते हुए पानी या सोते को प्रयोग किया जाता है या क़नात के पानी से लाभ उठाया जाता है। क़नात भूमिगत छोटी छोटी नहरों को कहा जाता है जो किसी के भी मालेकाना हक़ में नहीं आतीं, लेकिन इन की रक्षा और इनकी देखभाल करने में बहुत ज़्यादा ख़र्चा आता है।

बारिश न होने और प्राकृतिक क़हर हमेशा से ही चाहे वह इस्लाम से पहले का काल हो या इस्लाम धर्म के बाद का काल हो, किसानों, सभी वर्गों और सरकारों की परेशानी का कारण रहा है। ईरान के इतिहास में बारिश की कमी इतनी ज़्यादा रही है कि इस्लामी काल में लोग बारिश के लिए नमाज़ और विशेष दुआएं करने पर मजबूर हो जाते थे। इतिहासकारों का कहना है कि बारिश कराने के लिए एक विशेष प्रकार की नमाज़ भी है जिसे नमाज़े इस्तेस्क़ा कहा जाता है।  

प्रसिद्ध इतिहासकार इब्ने ख़लदून अपनी किताब की भूमिका में भी इस बात की ओर संकेत करते हैं और पानी की कमी का यह सिलसिला, केवल ईरानियों तक ही सीमित नहीं रहता है। अमरीकी मूल के ईरानी मामलों के विशेषज्ञ रिचर्ड एन फ़्राइ जब सासानी शासन काल में बुख़ारा की सार्वजनिक स्थिति को बयान करते हैं तो वह ईरानियों की महत्वपूर्ण सिंचाई व्यवस्था और तीसरी सहस्त्राब्दी में इस बारे में उनके सहयोग की ओर इशारा करते हैं और लिखते हैं कि कुछ मामलों में सासानी काल के लोग अपने समय के लोगों से बहुत अधिक विकासित और समझदार लगते थे, इन्हीं मामलों में से एक पानी से सिंचाई और पानी का वितरण है क्योंकि इस क्षेत्र की जनता के लिए पानी का मामला जीने और मरने का मामला होता था।     

वह लिखते हैं कि बुख़ारा से मिला हुआ शहर अर्थात समरक़ंद का नाम, पानी की सप्लाई की पाइप लाइन की वजह से हमेशा से लोगों की ज़बान पर होता था और अब इस बात का अंदाज़ा अच्छी तरह लगा सकते हैं कि बुख़ारा भी इस लेहाज़ से कितना पिछड़ा था। बुख़ारा और उसके पास के इलाक़ों में सिंचाई व्यवस्था, पानी के प्रयोग में किसानों के हक़ के मामले से जुड़ी हुई थी, इस काल में भूमिगत छोटी नहरों का भी बहुत अधिक प्रयोग किया जाता था।

अमरीकी मूल के ईरानी मामलों के विशेषज्ञ रिचर्ड एन फ़्राइ लिखते हैं कि गेहूं, चावल, अनाज और अनेक प्रकार की रूईयां, इस क्षेत्र के कृषि उत्पादन समझे जाते थे, किताबों में मिलता है कि इस काल में बहुत से कर्मठ और मेहनती किसान उभर कर सामने आए जो सिंचाई और दीवार बनाने को सामूहिक रूप से ज़रूरी कार्य के रूप में अंजाम दिया करते थे।

इतिहास में मिलता है कि ईरानियों ने भूमिगत जल के भंडारों से लाभ उठाने के लिए क़नात या छोटी छोटी भूमिगत नहरों का इस्तेमाल किया और इस तरह से वह हज़ारों साल तक अपनी आजीविका, क़नात और बांध द्वारा चलाते रहे। ईरानी नागरिक इसी तरह नगरों और शहरों में पानी के प्रयोग विशेषकर पीने के पानी के लिए नवीन शैलियों का प्रयोग करते थे।

 

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