Nov ०३, २०२१ १९:२६ Asia/Kolkata
  • विज्ञान की डगर-75

यज़्द, तेहरान और मुदर्रिस टेक्निकल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने नैनो बायो सेन्सर बना लिया है जो अलज़ाइमर की बीमारी का तेज़ी से पता लगाते हैं, इस की एक विशेषता यह है कि यह कम ख़र्चीला होता है और चेक करने के आधुनिक यंत्रों की ज़रूरत नहीं होती। अल्ज़ाइमर रोग, 'भूलने का रोग' है।

इसका नाम अलोइस अल्ज़ाइमर पर रखा गया है, जिन्होंने सबसे पहले इसका विवरण दिया।

इस बीमारी के लक्षणों में याददाश्त की कमी होना, निर्णय न ले पाना, बोलने में दिक्कत आना तथा फिर इसकी वजह से सामाजिक और पारिवारिक समस्याओं की गंभीर स्थिति आदि शामिल हैं। रक्तचाप, मधुमेह, आधुनिक जीवनशैली और सर में कई बार चोट लग जाने से इस बीमारी के होने की आशंका बढ़ जाती है। अमूमन 60 वर्ष की उम्र के आसपास होने वाली इस बीमारी का फिलहाल कोई स्थायी इलाज नहीं है।

हालाँकि बीमारी के शुरूआती दौर में नियमित जाँच और इलाज से इस पर काबू पाया जा सकता है। मस्तिष्क के स्नायुओं के क्षरण से रोगियों की बौद्धिक क्षमता और व्यावहारिक लक्षणों पर भी असर पड़ता है।

हम जैसे-जैसे बूढ़े होते जाते हैं, हमारी सोचने और याद करने की क्षमता भी कमजोर होती जाती है। लेकिन इसका गंभीर होना और हमारे दिमाग के काम करने की क्षमता में गंभीर बदलाव उम्र बढ़ने का सामान्य लक्षण नहीं है। यह इस बात का संकेत है कि हमारे दिमाग की कोशिकाएं मर रही हैं। दिमाग में एक सौ अरब कोशिकाएं अर्थात "न्यूरॉन" होती हैं। हरेक कोशिका बहुत सारी अन्य कोशिकाओं से संवाद कर एक नेटवर्क बनाती हैं। इस नेटवर्क का काम विशेष होता है। कुछ सोचती हैं, सीखती हैं और याद रखती हैं। अन्य कोशिकाएं हमें देखने, सुनने, सूंघने आदि में मदद करती हैं। इसके अलावा अन्य कोशिकाएं हमारी मांसपेशियों को चलने का निर्देश देती हैं।

 

अपना काम करने के लिए दिमाग की कोशिकाएं लघु उद्योग की तरह काम करती हैं। वे सप्लाई लेती हैं, ऊर्जा पैदा करती हैं, अंगों का निर्माण करती हैं और बेकार चीजों को बाहर निकालती हैं। कोशिकाएं सूचनाओं को जमा करती हैं और फिर उनका प्रसंस्करण भी करती हैं। शरीर को चलते रहने के लिए समन्वय के साथ बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन और ईंधन की जरूरत होती है।

अल्ज़ाइमर रोग में कोशिकाओं की उद्योग का हिस्सा काम करना बंद कर देता है, जिससे दूसरे कामों पर भी असर पड़ता है। जैसे-जैसे नुक्सान बढ़ता है, कोशिकाओं में काम करने की ताकत कम होती जाती है और अंततः वे मर जाती हैं।

इस सेन्सर के बनाने वालों का कहना है कि यह यंत्र अलज़ाइमर के रोग का जल्दी से पता बता देती है और इस बीमारी को बढ़ने से रोकने में भी मदद करता है, क्योंकि अगर समय रहते हुए किसी बीमारी का इलाज शुरू हो जाए तो उसे ख़तरनाक हद तक बढ़ने से रोका जा सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि नैनो बायो सेन्सर के ज़रिए अलज़ाइमर के रोग और उसकी हद का पता लगाया जा सकता है और उसी समय इलाज शुरू करने से उस पर किसी हद तक नियंत्रण किया जा सकता है।

 

जब हमें यह एहसास हो कि कहीं हम अल्ज़ाइमर रोग की चपेट में तो नहीं आ रहे हैं तो अब सवाल यह पैदा होता है कि अलज़ाइमर रोग के लक्षण क्या हैं? यह बढ़ने वाला और खतरनाक दिमागी रोग है। अल्जाइमर से दिमाग की कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं, जिसके कारण याददाश्त, सोचने की शक्ति और अन्य व्यवहार बदलने लगते हैं। इसका असर सामाजिक जीवन पर पड़ता है। समय बीतने के साथ यह बीमारी बढ़ती है और खतरनाक हो जाती है।

यह याददाश्त खोने "डीमेंशिया" का सबसे सामान्य रूप है। अन्य बौद्धिक गतिविधियां भी कम होने लगती हैं, जिससे प्रतिदिन के जीवन पर असर पड़ता है।

 

 नैनो तकनीक के क्षेत्र में भी तेहरान के ज़हरा विश्व विद्यालय के शोधकर्ताओं ने हकीम सब्ज़वारी और टेक्सास टेक्नीकल कालेज के सहयोग से इलेक्ट्रोकैटलिटिक नैनोपोइलेक्ट्रिक बनाने में सफलता हासिल कर ली जो उच्च क्षमताओं के साथ सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पानी से हाइड्रोजन के उत्पादन की प्रक्रिया को सरल बनाते हैं। वर्तमान समय में दुनिया की 85 प्रतिशत से अधिक ऊर्जा उत्पादन, जीवाश्म ईंधन जैसे गैर-नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से हासिल होते हैं।

 

जीवाश्म ईंधन या फॉसिल फ्यूल ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत नहीं हैं। ये सीमित मात्रा में ही उपलब्ध है। मरे हुए जानवर और पेड़-पौधों के अवशेष लंबे समय में इस तरह के ईंधन में बदल जाते हैं। यह प्रक्रिया पूरी होने में लाखों साल लगते हैं। इसका उपयोग बहुत संयम से करने की जरूरत है, नहीं तो ये पूरी तरह समाप्त हो जाएंगे। पेट्रोलियम उत्पाद, कोयला और प्राकृतिक गैस जीवाश्म ईंधन के उदाहरण हैं।

ज़हरा विश्वविद्यालय के एकेडमिक ग्रुप के सदस्य के अनुसार हाइड्रोजन स्वच्छ ऊर्जा वाहकों में से एक है जो जीवाश्म ईंधन की जगह ले सकता है। ईंधन के रूप में उपयोग किए जाने के अलावा, इस स्वच्छ ईंधन का उपयोग ईंधन कोशिकाओं पर आधारित हाइड्रोजन और इलेक्ट्रिक वाहनों और बिजली उद्योग सहित अन्य उद्योगों में किया जा सकता है। हाइड्रोजन उत्पादन में सबसे महत्वपूर्ण बिंदु पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल तरीकों का उपयोग है ताकि हाइड्रोजन को एक स्वच्छ ईंधन माना जा सके। इन शैलियों में से एक शैली "फोटोइलेक्ट्रोकेमिकल" विधि है जिसका पता शोधकर्ताओं ने हाल ही में लगाया है।

प्राकृतिक गैस ,कोयला ,पेट्रोलियम, जीवाश्म ईंधन है | पृथ्वी के अंदर करोड़ो वर्षों तक मृत पेड़ पौधों और जानवरो का मिटटी , बालू एवं चट्टान की के बीच दबे रहने के फलसरूप जो पदार्थ बनते है उन्हें जीवाश्म कहते है और इनसे मिलने वाले ईधन को जीवाश्म ईंधन कहते है | रेडियो कार्बन डेटिंग तकनीक द्वारा जीवाश्म की आयु का आकलन किया जाता है।

जीवाश्म को अंग्रेजी में फ़ॉसिल कहते हैं। इस शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द "फ़ॉसिलस" से है, जिसका अर्थ "खोदकर प्राप्त की गई वस्तु" होता है। जीवाश्म ईधन ऊर्जा का अनवीकरणीय स्रोत हैं जो कि सीमित हैं। इसके ज्वलन से कार्बन, नाइट्रोजन और सल्फर के ऑक्साइड्स उत्पन्न होते हैं जो स्वस्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं।और ये हमारे पर्यावरण पर भी बुरा प्रभाव डालते है। 

 

तनावपूर्ण स्थितियों का सामना करते समय आमतौर पर व्यक्ति समस्या केंद्रित या मनोभाव केंद्रित कूटनीतियों को अपनाता है। समस्या केंद्रित नीति द्वारा व्यक्ति अपने बौद्विक साधानों के प्रयोग से तनावपूर्ण स्थितियों का समाधान ढूंढता है और प्रायः एक प्रभावशाली समाधान की ओर पहुंचता है। मनोभाव केंद्रित नीति द्वारा तनावपूर्ण स्थितियों का सामना करते समय व्यक्ति भावनात्मक व्यवहार को प्रदर्शित करता है जैसे चिल्लाना। यद्यपि, यदि कोई व्यक्ति तनाव का सामना करने में असमर्थ होता है तब वह प्रतिरोधक-अभिविन्यस्त कूटनीति की ओर रूझान कर लेता है, यदि ये बारबार अपनाए जाएं तो विभिन्न मनोविकार उत्पन्न हो सकते हैं। प्रतिरोधक-अभिविन्यस्त व्यवहार परिस्थिति का सामना करने में समर्थ नहीं बनाते, ये केवल अपनी कार्यवाहियों को न्यायसंगत दिखाने का ज़रिया मात्र है।

शारीरिक समस्याएं जैसे ज्वर, खांसी, जुकाम इत्यादि ये विभिन्न प्रकार के मनोविकार होते हैं। इन वर्गों के मनोविकारों की सूची न्यूनतम व्यग्रता से लेकर गंभीर मनोविकारों जैसे मनोभाजन या खंडित मानसिकता तक है। अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन द्वारा मनोविकारों पर नैदानिक और सांख्यिकीय नियम पुस्तक को प्रकाशित किया गया है जिस में विविध प्रकार के मानसिक विकारों का उल्लेख किया गया है। मनोविज्ञान की जो शाखा विकारों का समाधान खोजती है उसे असामान्य मनोविज्ञान कहा जाता है।

 

ये जान कर शायद आपको आश्चर्य हो कि बच्चे भी मनोविकारों का शिकार हो सकते हैं। डीएसएम, का चौथा संस्करण बाल्यावस्था के विभिन्न प्रकार के विकारों का समाधान ढूंढता है, आमतौर पर यह पहली बार शैशवकाल, बाल्यावस्था या किशोरावस्था में पहचान में आते हैं। इन में से कुछ सावधान-अभाव अतिसक्रिय विकार पाए जाते हैं जिसमें बच्चा सावधान या एकाग्र नहीं रहता या वह अत्यधिक फुर्तीला व्यवहार करता है। और स्वलीन विकार जिसमें बच्चा अंतर्मुखी हो जाता है, बिल्कुल नहीं मुस्कुराता और देर से भाषा सीखता है।

यदि कोई व्यक्ति बिना किसी विशेष कारण के डरा हुआ, भयभीत या चिंता महसूस करता है तो कहा जा सकता है कि वह व्यक्ति व्यग्रता विकार (Anxiety disorder) से ग्रस्त है। व्यग्रता विकार के विभिन्न प्रकार होते हैं जिसमें चिंता की भावना विभिन्न रूपों में दिखाई देती है। इनमें से कुछ विकार किसी चीज से अत्यन्त और तर्करहित डर के कारण होते हैं और जुनूनी-बाध्यकारी विकार जहां कोई व्यक्ति बारबार एक ही बात सोचता रहता है और अपनी क्रियाओं को दोहराता है।

वे व्यक्ति जो मनोदशा विकार (मूड डिसॉर्डर) के अनुभवों से ग्रसित होते हैं उनके मनोभाव दीर्घकाल तक प्रतिबंधित हो जाते हैं, वे व्यक्ति किसी एक मनोभाव पर स्थिर हो जाते हैं, या इन भावों की श्रेणियों में अदल-बदल करते रहते हैं। उदाहरण स्वरूप चाहे कोई व्यक्ति कुछ दिनों तक उदास रहे या किसी एक दिन उदास रहे और दूसरे ही दिन खुश रहे, उस के व्यवहार का परिस्थिति से कुछ संबंध न हो।

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