Nov २०, २०२१ १९:४० Asia/Kolkata
  • विज्ञान की डगर-80

एक नालेज बेस्ड कंपनी में ईरानी शोधकर्ताओं ने जीवाणुरोधी पॉलिएस्टर यार्न का उत्पादन करने में सफलता प्राप्त की।

पॉलिमरिक सामग्री बैक्टीरिया से आसानी से दूषित हो जाती हैं और गंभीर बीमारियों और संक्रमणों को प्रसारित करती हैं। पॉलिमर की सतह को रोगाणुओं द्वारा दूषित होने से रोकने के लिए नैनोकणों की तरह एक सक्रिय जीवाणुरोधी तत्व का उपयोग किया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने नैनो तकनीक के साथ जीवाणुरोधी पॉलिएस्टर यार्न का उत्पादन करने में सफलता हासिल की।

पॉलिएस्टर पॉलिमर का एक समूह है जिसमें उसकी श्रृंखला में "एस्टर" कार्यात्मक समूह होता है। पॉलिएस्टर फ़ाइबर में अन्य औद्योगिक फाइबर की तुलना में उच्च कठोरता, कम जल अवशोषण और स्केलिंग होती है। इस सामग्री का व्यापक रूप से वस्त्र उद्योग में उपयोग किया जाता है। शोधकर्ता चांदी के आयनों और उसके मिश्रण से इन जीवाणुरोधी धागे का उत्पादन करने में सक्षम थे जो बैक्टीरिया की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए अत्यधिक घातक हैं। नैनो पॉलिएस्टर यार्न में मानव शरीर की कोशिकाओं के लिए बहुत कम विषाक्तता होती है। इन धागों में चांदी के नैनोकणों का उपयोग किया जाता है और विभिन्न रूपों में चांदी का उपयोग बैक्टीरिया से बचाने का एक सामान्य तरीक़ा है। यार्न उत्पादन प्रक्रिया में चांदी के नैनोकणों के उपयोग से ये नैनोंकण यार्न के शरीर में फंस जाते हैं और अच्छे स्थायित्व के साथ जीवाणुरोधी गुण पैदा करते हैं।

अब यहां पर यह सवाल पैदा होता है कि नैनोंकण क्या है और सबसे पहले किसने इसका प्रयोग किया? नैनो तकनीक का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में हो रहा है। “नैनो” एक ग्रीक शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ सूक्ष्म या छोटा होता है। हर वो कण जिसका आकर 100 नैनोमीटर या इससे छोटा हो “नैनोकण” माना जाता है। किसी नैनोकण की सूक्ष्मता का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि मनुष्य के बालों का व्यास 60 हजार नैनोमीटर होता है।

 

नैनो-टेक्नोलॉजी शब्द का प्रयोग पहली बार वर्ष 1974 में नॉरियो तानिगुची द्वारा किया गया था। यह अणुओं और परमाणुओं की इंजीनियरिंग है, जो भौतिकी, रसायन, जैव-सूचना व जैव-प्रौद्योगिकी विज्ञान जैसे विषयों को आपस में जोड़ती है। धरती पर जीवन के आरंभ के समय से निरंतर प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों के साथ- विभिन्न नैनोकणों का निर्माण हो रहा है।

अत्यधिक सूक्ष्म आकार के कारण नैनोकणों के रसायनिक एवं भौतिक लक्षण बदल जाते हैं। उदाहरण के लिए जिंक धातु के नैनोकण बनने पर ये पारदर्शी हो जाते हैं। नैनोकणों का उपयोग उपभोक्ता उत्पादों से लेकर चिकित्सा उपकरणों, सौंदर्य प्रसाधन, रसायन, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं प्रकाशिकी, पर्यावरण, भोजन तथा पैकेजिंग, ईंधन, ऊर्जा, कपड़ा और पेंट, नई पीढ़ी की दवाएं और प्लास्टिक इत्यादि में हो रहा है। भारतीय शोधकर्ताओं ने रबड़ से बनी हाई-परफार्मेंस नैनो-कम्पोजिट सामग्री विकसित की है, जिसका उपयोग टायरों की भीतरी ट्यूब और इनर लाइनरों को मज़बूती प्रदान करने में किया जा सकता है। कृषि में नैनोकणों का उपयोग नैनो-उर्वरक, नैनो कीटनाशक या खरपतवारनाशी, भंडारण, संरक्षण, उत्पाद गुणवत्ता सुधार तथा फ़्लेवर इत्यादि में हो रहा है।

मोटे तौर पर नैनोकणों को कार्बनिक और अकार्बनिक पदार्थो में विभाजित किया जा सकता है। अकार्बनिक नैनोकण धातु (चांदी, एल्यूमीनियम, टिन, सोना, कोबाल्ट, तांबा, लोहा, मोलिब्डेनम, निकल, टाइटेनियम) एवं उनके धातु-ऑक्साइड का अत्यधिक प्रयोग हो रहा है।

उदाहरण के तौर पर सिल्वर नैनोकण रेफ्रीजरेटर, कपड़ों, सौंदर्य प्रसाधनों, टूथब्रशों, वाटर फिल्टरों आदि में प्रयोग होते है। वही, ज़िंक ऑक्साइड नैनोकणों का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन क्रीम में होता है। गोल्ड नैनोकणों की कोटिंग से ऊंची इमारतों या गाड़ियों के ग्लास आसानी से साफ किये जा सकते हैं। कॉपर के नैनोकण फफूंद तथा जीवाणुनाशक के रूप में चिकित्सा में प्रयोग हो रहे हैं। इनमें बैक्टीरिया तथा फफूंद को नष्ट करने की क्षमता होती है।

 

ईरानी शोधकर्ताओं की स्टार्टअप टीम "पाकाब" ने पाकेट में रखी जाने वाली स्वास्थ्य के परीक्षण के लिए एक बहुक्रियाशील किट डिजाइन करने में सफलता प्राप्त की। जनता की चिंताओं को दूर करना और पीने के पानी की स्वच्छता में विश्वास की भावना पैदा करना सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक है जिस पर हमेशा ध्यान दिया जाता रहा है, इसी वजह से इस शोध दल ने जिसके सदस्य काशान और इस्फ़हान विश्वविद्यालय के शोधकर्ता हैं, पानी की स्वच्छता और गुणवत्ता का परीक्षण करने के लिए आसान उपयोग और विशेषज्ञता और प्रशिक्षण की आवश्यकता के बिना एक सस्ता, सटीक और तेज़ सेंसर डिज़ाइन किया।

इस शोध दल के शोधकर्ताओं में से एक के अनुसार, आज ईरान और अधिकांश देशों में जल संसाधनों, कृषि और पीने के पानी की भारी कमी के कारण कम समय में पानी की गुणवत्ता और गुणों को नियंत्रित करने के लिए तरीक़ों और उपकरणों को बढ़ाए जाने की आवश्यकता है। किसी आपात या युद्ध की स्थिति में जिसमें किसी भी कारण से विश्वसनीय जल उपलब्ध नहीं हो पाता है, उपलब्ध जल संसाधनों के सापेक्ष स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए एक सरल और सामान्य तरीक़े की आवश्यकता होती है।

इन शोधकर्ताओं के अनुसार, प्रौद्योगिकी के विकास के कारण यह आवश्यक है कि क़ीमतों को कम करने, गति बढ़ाने, सटीकता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी के अनुरूप विश्लेषणात्मक तरीक़े विकसित किए जाएं। नमूने को डिटेक्शन साइट पर स्थानांतरित करने के लिए माइक्रोक्रोरेंट तकनीक का उपयोग, संवेदनशीलता का पता लगाने और बढ़ाने के लिए नैनोकणों का उपयोग, सेंसर की कम लागत, विश्लेषण की उच्च गति, आसान उपयोग और डेटा उपयोग करके मात्रा निर्धारित करने की क्षमता, इस डिजाइन के फ़ायदों में है।

जो लोग अपने पीने के पानी की स्वच्छता के बारे में चिंतित हैं और विशेष रूप से छोटे बच्चों वाली माताएं जो अपने बच्चे के स्वास्थ्य के बारे में चिंतित हैं, इस उत्पाद के मुख्य ग्राहक हैं। अब तक यह उत्पादन पाकाब ग्रुप द्वारा चार-एप्लिकेशन डायग्नोस्टिक किट के रूप में तैयार किया गया है और अनुसंधान की निरंतरता के साथ, इसकी क्षमताओं और अनुप्रयोगों में धीरे-धीरे वृद्धि होगी।

 

पहली बार, जापानी वैज्ञानिक स्टेम सेल से क्षतिग्रस्त हृदय के उपचार का परीक्षण कर रहे हैं। प्लुरोपुप्टन स्टेम सेल में विकसित सेल के साथ एकीकृत की क्षमता होती है और इसलिए दवा में काफी संभावनाएं होती हैं। इनमें से एक क्षमता क्षतिग्रस्त हृदय की मरम्मत कर रही है। जापानी वैज्ञानिकों ने पहली बार क्लीनिकल ट्रायल में इस पद्धति का परीक्षण करने का निर्णय लिया है। जापान में शिन्या यामानाका प्रयोगशाला में विभिन्न अध्ययनों में IPSC स्टेम सेल की क्षमता का अध्ययन किया गया है। पहले आंख की रोशनी बहाल करने इन कोशिकाओं को खरगोशों में इंजेक्ट किया गया और इसके साथ ही अंगों के लिए प्रगतिशील कोशिकाओं को भी तबदील किया गया।

इन कोशिकाओं का निर्माण करने के लिए, कोशिकाओं को पहले शरीर के ऊतकों में संवर्धित किया जाता है और फिर उनमें एक वायरस जोड़ा जाता है। इसके बाद शोधकर्ता अपनी अपरिपक्व अवस्था में लौटने के लिए उनमें चयनित जीन जोड़ते हैं। इस चरण के बाद शोधकर्ता शरीर में किसी भी प्रकार की कोशिका बना सकते हैं। इस क्षमता तक पहुंचने की वजह से यामानाका को 2012 का नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

ओसाका विश्वविद्यालय के एक हृदय सर्जन प्रोफेसर योशिकी सावा अब इन कोशिकाओं का उपयोग हृदय रोग के इलाज के लिए करते हैं। इस प्रक्रिया को "आईपीएससी थेरेपी" कहा जाता है। इस शैली में 100 मिलियन हृदय की मांसपेशियों की कोशिकाओं का उत्पादन करने और उन्हें हृदय में बदलने के लिए IPSC का उपयोग करना शामिल है। इस शैली में कोशिकाओं में वृद्धि करने और क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को पुन: उत्पन्न करने की क्षमता इनमें पायी जाती है। इस पद्धति का पिछले साल सूअरों पर परीक्षण किया गया था और हृदय की कार्यक्षमता में सुधार हुआ था। इसलिए प्रोफेसर सावा ने इंसानों पर एक प्रयोग करने का फ़ैसला किया। जापान के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कुछ शर्तों के तहत परीक्षण को करने की इजाज़त दे दी है।

 

दोस्तो आइये अब इम आंख की बीमारी के बारे में कुछ चर्चा करते हैं।

आंखें, हमारे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों में से एक हैं। ये बहुत नाजुक होती हैं, इसलिए उनकी पूरी देखभाल करें, थोड़ी सी भी परेशानी हो तो उसे नज़रअंदाज़ न करें। अगर आंखों से संबंधित समस्याओं को आप लंबे समय तक नज़रअंदाज़ करेंगे तो दृष्टि प्रभावित हो सकती है या हमेशा के लिए आंखों की रोशनी छिन सकती है।

गैजेट्स के बढ़ते चलन ने आंखों के स्वास्थ को लेकर खतरा बढ़ा दिया है, ऐसे में डिजिटल आई स्ट्रेन आंखों की एक बड़ी समस्या बनकर उभर रहा है। तो जानिए कि आंखों से संबंधित सामान्य समस्याएं कौन-कौनसी हैं, इन्हें स्वस्थ रखने के लिए कौन-कौनसे जरूरी उपाय किए जाएं और गैजेट्स का इस्तेमाल करते समय कौन-कौनसी सावधानियां रखना जरूरी हैं।

 

आंखों से संबंधित कईं समस्याएं होती हैं, जिनमें से कुछ बहुत मामूली होती हैं तो कुछ बहुत गंभीर। लेकिन आंखें बहुत संवेदनशील होती हैं, इसलिए समस्या मामूली भी हो तो खुद से आंखों का इलाज न करें, डॉक्टर से संपर्क करें। आंख की समस्याओं पर चर्चा अगले कार्यक्रम में करेंगे। कार्यक्रम का समय यहीं पर समाप्त होता है, हमें अनुमति दें। (AK)

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