Jan १९, २०२४ १९:३३ Asia/Kolkata

सूरा ग़ाफ़िर आयतें 48-52

आइए पहले सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 48 से 50 तक की तिलावत सुनते हैं,

قَالَ الَّذِينَ اسْتَكْبَرُوا إِنَّا كُلٌّ فِيهَا إِنَّ اللَّهَ قَدْ حَكَمَ بَيْنَ الْعِبَادِ (48) وَقَالَ الَّذِينَ فِي النَّارِ لِخَزَنَةِ جَهَنَّمَ ادْعُوا رَبَّكُمْ يُخَفِّفْ عَنَّا يَوْمًا مِنَ الْعَذَابِ (49) قَالُوا أَوَ لَمْ تَكُ تَأْتِيكُمْ رُسُلُكُمْ بِالْبَيِّنَاتِ قَالُوا بَلَى قَالُوا فَادْعُوا وَمَا دُعَاءُ الْكَافِرِينَ إِلَّا فِي ضَلَالٍ (50)

इन आयतों का अनुवाद हैः

तो घमंड करने वाले लोग कहेंगें (अब तो) हम सबके सब आग में पड़े हैं। ख़ुदा तो बन्दों के बारे में (जो कुछ) फ़ैसला (करना था) कर चुका। [40:48] और जो लोग आग में (जल रहे) होंगे जहन्नम के दरोग़ाओं से दरख़्वास्त करेंगे कि अपने परवरदिगार से कहो कि एक दिन तो हमारे अज़ाब को हल्का कर दे। [40:49] वह जवाब देंगे कि क्या तुम्हारे पास तुम्हारे पैग़म्बर साफ़ व रौशन चमत्कार लेकर नहीं आए थे? वह कहेंगे (हाँ) आए तो थे, तब फ़रिश्ते कहेंगे फिर तुम ख़़ुद (क्यों) न दुआ करो, हालाँकि काफ़िरों की दुआ तो बस बेकार ही है [40:50]

पिछले कार्यक्रम में हमने बताया कि कुफ़्र और शिर्क के सरग़ना तथा उनके अनुयायी जहन्नम में एक दूसरे से बहस और झगड़ा करेंगे। मातहत के रूप में काम करने वाले लोग अपने बड़ों को जहन्नम में डाले जाने का ज़िम्मेदार क़रार देंगे और उनसे मदद मांगेंगे कि जहन्नम से मुक्ति दिलाएं। यह आयतें कहती हैं कि कुफ़्र और शिर्क के सरग़ना जिनके पास अपने मातहतों को देने के लिए कोई जवाब नहीं होगा उनसे कहेंगे कि हम सब का एक जैसा अंजाम है और सब जहन्नम की आग में फंसे हैं क्योंकि अल्लाह ने अपने बंदों के बीच न्याय के साथ फ़ैसला किया और उसके फ़ैसले के अनुसार हम यहां जहन्नम में आ पड़े हैं। अगर हम निजात का रास्ता तलाश कर पाते तो तुम्हें निजात दिलाने से पहले ख़ुद अपनी निजात के बारे में सोचते। जान लो कि हमारे बस में अब कुछ भी नहीं है।

मातहत जब अपने सरग़नाओं से मायूस हो जाएंगे तो जहन्नम के पहरेदारों का रुख़ करेंगे और उनसे गिड़गिड़ाएंगे कि वे अल्लाह से कह कर उनके लिए कम से कम एक ही दिन के लिए अज़ाब में कुछ कमी करवा दें ताकि वे कुछ समय सुकून की हालत में गुज़ार सकें।

मगर वे फ़रिश्ते जो जहन्नम में पहरेदार के तौर पर तैनात होंगे उन्हें जवाब देंगे कि घमंडियों का अनुसरण करने के बजाए तुमने अल्लाह के पैग़म्बरों की बात क्यों नहीं मानी? क्या वे तुम्हारे लिए स्पष्ट तर्क और ठोस सुबूत लेकर नहीं भेजे गए थे? जहन्नम में जाने वाले लोगे इक़रार करेंगे कि हां पैग़म्बर आए थे और हमने उनका पैग़ाम भी सुना था। मगर हमने उनकी बात नहीं मानी बल्कि उनकी बातों का इंकार करते रहे।

अल्लाह के फ़रिश्ते कहेंगे कि तब तो ग़लती तुम्हारी ही है। जब यह स्थिति है तो तुम्हारा आज का इक़रार, पछतावा और अफ़सोस तुम्हें कोई फ़ायदा नहीं देगा। क्योंकि आज अल्लाह से लाख दुआ करो कुबूल नहीं होगी और तुम्हारे अज़ाब में कोई कमी नहीं की जाएगी।

 

इन आयतों से हमने सीखाः 

जो लोग दुनिया में घमंड और ग़ुरूर में पड़ जाते हैं और सत्य और हक़ बात स्वीकार नहीं करते क़यामत के दिन बड़ी ज़िल्लत और बेइज़्ज़ती का सामना करेंगे जिससे निजात पाने का कोई रास्ता नहीं होगा।

इंसानों के बीच बिल्कुल सही और न्यायपूर्ण फ़ैसला करना अल्लाह का काम है। हमें दूसरों के बारे में अकारण राय क़ायम करने से बचना चाहिए।

जहन्नम का अज़ाब न रुकेगा और न हल्का पड़ेगा। हम जब तक इस दुनिया में हैं हमें तौबा के मौक़े का फ़ायदा उठाना चाहिए ताकि आख़ेरत में अज़ाब और सज़ा से निजात मिल जाए।

जहन्नम में दुराचारी और काफ़िर इंसानों की हालत इतनी ख़राब होगी कि जहन्नम में सज़ा देने के लिए तैनात किए गए पहरेदारों से ही मदद मांगेंगे। मगर उनकी इस फ़रियाद का कोई असर नहीं होगा।

अल्लाह की परम्परा यह है कि जब तक किसी पर हुज्जत तमाम नहीं कर लेता उस वक़्त तक उसे सज़ा नहीं देता।

 

अब आइए सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 51 और 52 की तिलावत सुनते हैं,

إِنَّا لَنَنْصُرُ رُسُلَنَا وَالَّذِينَ آَمَنُوا فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَيَوْمَ يَقُومُ الْأَشْهَادُ (51) يَوْمَ لَا يَنْفَعُ الظَّالِمِينَ مَعْذِرَتُهُمْ وَلَهُمُ اللَّعْنَةُ وَلَهُمْ سُوءُ الدَّارِ (52)

इन आयतों का अनुवाद हैः 

हम अपने पैग़म्बरों की और ईमान वालों की दुनिया की ज़िन्दगी में भी ज़रूर मदद करेंगे और जिस दिन (क़यामत होगी और) गवाह उठ खड़े होंगे[40:51] (उस दिन भी) जिस दिन ज़ालिमों को उनकी माफ़ी कुछ भी फ़ायदा न देगी और उन पर लानत (बरसती) होगी और उनके लिए बहुत बुरा घर (जहन्नुम) है।[40:52]

कुफ़्र के सरग़नाओं के अनुयायी यह समझते थे कि यह सरग़ना ज़रूरत के वक़्त उनकी मदद कर सकेंगे लेकिन क़यामत में कुफ़्र और गुमराही फैलाने वाले सरग़ना किसी की भी मदद नही कर पाएंगे। ज़ालिम व काफ़िर इंसानों के विपरीत पैग़मबरों और नेक बंदों को अल्लाह की बड़ी मदद हासिल होगी। यह आयतें इस संदर्भ में कहती हैं कि अल्लाह पैग़म्बरों और नेक बंदों का सरपरस्त है और दुनिया और आख़ेरत में उनकी मदद करेगा। इस मौक़े पर अल्लाह पैग़म्बरों और मोमिन बंदों की दुनिया और आख़ेरत में भरपूर मदद करेगा।

अल्लाह दुनिया में परालौकिक मदद करके मोमिनों का हौसला बुलंद करेगा और दुश्मनों के दिलों में भय और ख़ौफ़ डाल देता है, सरकश दुश्मनों की साज़िशों को नाकाम करेगा और सच्चे मोमिन इंसानों को विरोधियों पर विजय दिलाएगा।

क़यामत का दिन काफ़िर ज़ालिमों के लिए बेइज़्ज़ती और रुसवाई उठाने का दिन होगा। जब सारी कायनात के इंसान एक साथ जमा होंगे उस समय गवाह उनके ख़िलाफ़ गवाही देंगे और उस महान दरबार में उन्हें अजीब बेइज़्ज़ती का सामना करना पड़ेगा। उस दिन गवाह मोमिन बंदों के हक़ में गवाही देंगे जिसके नतीजे में उन्हें घमंडी और मग़रूर लोगों पर प्राथमिकता हासिल होगी। ज़ालिमों और घमंडियों की माफ़ी का वहां कोई असर न होगा और क़यामत के दिन हाज़िर होने वाले लोग उन पर लानत भेजेंगे। यह ज़ालिम अल्लाह की रहमत से भी महरूम रहेंगे और अपने अनुयाइयों की लानत के भी पात्र बनेंगे। वे जहन्नम की आग में सबसे बुरी जगह पर होंगे और आत्मा और शरीर दोनों ही पहलू से वे बेहद कठिन हालात का सामना कर रहे होंगे।

यह क़ुरआन की शैली है कि बीते ज़माने के पैग़म्बरों की दास्तान बयान करके ज़ालिमों और सरकश ताक़तों से मुक़ाबले के दौरान मोमिन बंदों को अल्लाह से मिलने वाली मदद के वास्तविक नमूने पेश करता है। यह इसलिए होता है कि मोमिन बंदे अपने ज़माने के ज़ालिमों के मुक़ाबले में दृढ़ता और मज़बूत क़दमों से डटे रहें और उन्हें अल्लाह की मदद हासिल हो जिसके नतीजे में दुश्मनों पर उन्हें विजय प्राप्त हो।

इन आयतों से हमने सीखाः

यह अल्लाह की अटल परम्परा है कि मोमिनों और नबियों की मदद करता है और अंतिम विजय सत्य की ही होती है जबकि असत्य की हार होती है। अलबत्ता इसकी शर्त यह है कि मोमिन बंदे ईमान की राह पर और अल्लाह के पैग़म्बरों के रास्ते पर मज़बूत क़दमों के साथ डटे रहें।

ईमान का फ़ायदा और असर मोमिन बंदों को दुनिया में भी हासिल होगा और आख़ेरत में भी हासिल होगा। इससे उन्हें तसल्ली होगी। ख़तरों, कठिनाइयों और दुश्मनों की यातनाओं का सामना वे भरपूर उम्मीद और मज़बूती से करेंगे।

 

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