Nov २८, २०२४ १२:४७ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-900 

सूरए फ़ुस्सेलत आयतें 37-40

आइए पहले सूरए फ़ुस्सेलत की आयत नंबर 37 और 38 की तिलावत सुनते हैं,

وَمِنْ آَيَاتِهِ اللَّيْلُ وَالنَّهَارُ وَالشَّمْسُ وَالْقَمَرُ لَا تَسْجُدُوا لِلشَّمْسِ وَلَا لِلْقَمَرِ وَاسْجُدُوا لِلَّهِ الَّذِي خَلَقَهُنَّ إِنْ كُنْتُمْ إِيَّاهُ تَعْبُدُونَ (37) فَإِنِ اسْتَكْبَرُوا فَالَّذِينَ عِنْدَ رَبِّكَ يُسَبِّحُونَ لَهُ بِاللَّيْلِ وَالنَّهَارِ وَهُمْ لَا يَسْأَمُونَ (38)

 

इन आयतों का अनुवाद हैः

और उसकी (कुदरत की) निशानियों में से रात और दिन और सूरज और चाँद हैं तो तुम लोग न सूरज को सजदा करो और न चाँद को, तुम ख़ुदा ही उसी को सजदा करो जिसने इन चीज़ों को पैदा किया है। अगर तुम उसी की इबादत करने वाले हो। [41:37] तो अगर ये लोग सरकशी करें तो (ख़ुदा को भी उनकी परवाह नहीं) वे लोग (फ़रिश्ते) तुम्हारे परवरदिगार की बारगाह में हैं वे रात दिन उसकी तसबीह करते रहते हैं और वे लोग उकताते भी नहीं। [41:38]

पिछले कार्यक्रम में दूसरों को अल्लाह की इबादत की दावत देने के विषय में बात की गई। अब यह आयतें शिर्क की एक मिसाल पेश करती हैं जो तारीख़ के हर दौर में नज़र आती है। आयत कहती है कि सूरज और चांद तो अल्लाह कि पैदा किए हुए हैं तो क्या वजह है कि कुछ लोग इन दोनों को पैदा करने वाले अल्लाह की इबादत करने के बजाए चांद और सूरज की इबादत करते हैं?

हक़ीक़त यह है कि दिन रात, सूरज और चांद सब कायनात के परवरदिगार की निशानियां हैं। रात सुकून लेने का समय और दिन की रौशनी चलने फिरने और काम करने की संभावना पैदा करती है। यह दोनों मिलकर इंसानों की ज़िंदगी की गाड़ी को चलाते हैं और बहुत व्यवस्थित रूप से चलाते हैं। अगर दिन या रात बहुत लंबी होती तो प्राणियों के लिए जीवन कठिन हो जाता। ज़मीन पर ज़िंदगी गुज़ार पाना कठिन हो जाता।

सूरज सौरमंडल में मौजूद हर ग्रह की नेमतों और बरकतों का स्रोत है। निश्चित रूप से ज़मीन पर जीवन सूरज के अस्तित्व पर निर्भर है। रौशनी, ऊष्मा, हवाओं का चलना, बारिश होना, पौधों का उगना, फलों का तैयार होना, यहां तक कि फूलों के ख़ूबसूरत रंग सब कुछ सूरज की देन है। अगर सूरज न होता तो ज़मीन पर ज़िंदगी ही न होती। चांद भी बड़े व्यवस्थित रूप से अपनी मंज़िलों के बीच हरकत करता रहता है, रात के समय रौशनी देता है और रास्ता चलने वालों की मदद करता है।

यह सारी प्राकृतिक रचनाएं अल्लाह की पैदा की हुई हैं और उसकी खुली हुई निशानियां हैं। मगर इंसानों में कुछ लोग सूरज और चांद से मिलने वाले अनगिनत फ़ायदों की वजह से इन दोनों के सामने सजदा करने लगते थे और उनकी इबादत करते थे। जबकि कौन सी अक़्ल यह मानेगी कि चांद और सूरज ख़ुद ही पैदा हो गए होंगे?! इबादत तो उसकी करनी चाहिए जिसने सूरज और चांद को पैदा किया है और सारी नेमतों का पैदा करने वाला ही वही है। सूरज और चांद की इबादत करना तो इस तरह है जैसे आप कोई ख़ूबसूरत पेंटिंग देखें और कलाकार को भूलकर सम्मान में इसी पेंटिंग के सामने सिर झुका दें।

आयत आगे कहती है कि अल्लाह की इबादत की दावत पर कुछ इंसान जो सत्य के खोजी होते हैं इस दावत को स्वीकार कर लेते हैं और अल्लाह की इबादत करने लगते हैं। मगर कुछ लोग अपने पूर्वजों की मान्यताओं पर अडिग बने रहने की ज़िद में सत्य की दावत को ठुकरा देते हैं और सोचने समझने के लिए तैयार नहीं होते।

अगर बहुत से लोग अपनी ग़लत आस्थाओं पर अड़े रहते हैं तो आप इससे परेशान न हों क्योंकि अल्लाह की बारगाह में उसके क़रीबी फ़रिश्ते हैं जो उसकी इबादत करते हैं और उसका गुणगान करते रहते हैं और इस इबादत से वे कभी थकन का एहसास नहीं करते।

इन आयतों से हमने सीखाः

दिन और रात का आना जाना  और इंसानों तथा दूसरी रचनाओं को इस क्रिया से मिलने वाले फ़ायदे अल्लाह की शक्ति और युक्ति की निशानियां हैं।

प्रकृति को पहचानना और ज़िंदगी के महत्वपूर्ण तत्वों की जानकारी अल्लाह को पहचानने का सबसे अच्छा रास्ता है। अलबत्ता केवल उस के लिए जो इस हक़ीक़त को समझना चाहता है कि अस्तित्व की शुरूआत कहां से हुई है।

इबादत प्राकृतिक रुजहान है मगर बहुत सारे लोग यह समझने में किसकी इबादत करनी चाहिए ग़लती कर जाते हैं, पैग़म्बरों को इसलिए भेजा गया कि वे आकर इंसानों के इस प्राकृतिक रुजहान को सही दिशा की तरफ़ मोड़ें।

घमंड और ग़ुरूर सत्य और हक़ की पहचान और समझ के रास्ते की रुकावट है।

अल्लाह बंदों की इबादत का मोहताज नहीं है। अगर सारे इंसान अल्लाह को भूल जाएं तो भी फ़रिश्ते उसके लिए समर्पित हैं, दिन रात उसकी इबादत करते हैं और हरगिज़ नहीं थकते।

आइए पहले सूरए फ़ुस्सेलत की आयत नंबर 39 की तिलावत सुनते हैं,

وَمِنْ آَيَاتِهِ أَنَّكَ تَرَى الْأَرْضَ خَاشِعَةً فَإِذَا أَنْزَلْنَا عَلَيْهَا الْمَاءَ اهْتَزَّتْ وَرَبَتْ إِنَّ الَّذِي أَحْيَاهَا لَمُحْيِي الْمَوْتَى إِنَّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ (39)

 

इस आयत का अनुवाद हैः

उसकी क़ुदरत की निशानियों में से एक ये भी है कि तुम ज़मीन को ख़़ुश्क और निर्जल देखते हो फिर जब हम उस पर पानी बरसा देते हैं तो लहलहाने लगती है और फूल जाती है, जिस ख़ुदा ने (मुर्दा) ज़मीन को ज़िन्दा किया वह यक़ीनन मुर्दों को भी ज़िंदा करेगा, बेशक वह हर चीज़ पर सक्षम है। [41:39]

 

सूरज और चांद के बारे में बात करने के बाद अब यह आयत ज़मीन और सूखे इलाक़ों के बारे में बात करती है कि बारिश के जीवन दायक क़तरे उस पर पड़ते हैं तो उनमें हरकत पैदा हो जाती है और वे सब हरे भरे हो जाते हैं। सूखी और बेजान मिट्टी जिससे केवल ईंटे और मिट्टी के बरतन ही बनाए जा सकते हैं उसके भीतर से कोई पैदावार नहीं होती, जब पानी पा पा जाती है तो उसमें जीवन के लक्षण झलकने लगते हैं। बारिश आने से ज़मीन बहुत सारी वनस्पतियों और पेड़ पौधों को उगाने में सक्षम हो जाती है और वहां ज़िंदगी अंगड़ाइयां लेने लगती है।

वाक़ई कौन सी शक्ति है जो बारिश की बूंदें भेजकर सूखी और मुर्दा ज़मीन से इतनी हरियाली और ज़िंदगी की निशानियां बाहर ला सकती है। बेशक यह अल्लाह के असीम ज्ञान और शक्ति की निशानियां हैं। क्या यह ख़ुदा जिसकी शक्ति की निशानियां हर जगह फैली हुई हैं क़यामत के दिन इंसानों को दोबारा ज़िंदा नहीं कर सकता? क्या तुम्हें उसकी शक्ति के बारे में संदेह है?

 

इस आयत से हमने सीखाः

प्राकृतिक वस्तुएं जैसे हवा, बारिश, मिट्टी, वनस्पति यह सब अल्लाह की असीम शक्ति की निशानियां हैं तो जब  भी अल्लाह की शक्ति के बारे में शक होने लगे हमें इन प्राकृतिक हक़ीक़तों पर एक नज़र डाल लेना चाहिए।

अल्लाह की शक्ति के बारे में संदेह की वजह से कुछ लोग क़यामत का इंकार करने लगते हैं वरना उनके पास क़यामत के इंकार के लिए कोई ठोस तर्क नहीं है।

आइए पहले सूरए फ़ुस्सेलत की आयत नंबर 40 की तिलावत सुनते हैं,

إِنَّ الَّذِينَ يُلْحِدُونَ فِي آَيَاتِنَا لَا يَخْفَوْنَ عَلَيْنَا أَفَمَنْ يُلْقَى فِي النَّارِ خَيْرٌ أَمْ مَنْ يَأْتِي آَمِنًا يَوْمَ الْقِيَامَةِ اعْمَلُوا مَا شِئْتُمْ إِنَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ (40)

 

इस आयत का अनुवाद हैः

जो लोग हमारी आयतों में हेर फेर पैदा करते हैं वह हरगिज़ हमसे पोशीदा नहीं हैं भला जो शख्स दोज़ख़ में डाला जाएगा वह बेहतर है या वह शख्स जो क़यामत के दिन बेख़ौफ व ख़तर आएगा? जो चाहो सो करो (मगर) जो कुछ तुम करते हो वह (ख़ुदा) उसको देख रहा है। [41:40]

पैग़म्बर और ईमान वाले तो लोगों को सत्य के रास्ते और अल्लाह की निशानियों की तरफ़ बुलाते थे मगर उनके मुक़ाबले में कुछ लोग हैं जो लोगों को गुमराह करते हैं। उनकी कोशिश होती है कि दूसरों को भी अपनी तरह बे दीन बना दें और अल्लाह व पैग़म्बर के रास्ते से हटा दें।

इस समूह की कोशिश होती है कि ज़ाहिरी तौर पर रोचक मगर दरअस्ल भ्रामक बातों के ज़रिए अल्लाह के पैग़ाम और पैग़म्बरों की शिक्षाओं को इस रूप में पेश करें कि अक़्ल उन्हें क़ुबूल करने पर तैयार ही न हो और अल्लाह की किताब से दूर हो जाएं। आज भी इस तरह की विचारधाराएं और साधन, विशेष रूप से संचार माध्यम यह कोशिश करते हैं कि क़ौमों को दीन और क़यामत के अक़ीदे से दूर करें।

ज़ाहिर है कि इस क़िस्म के लोगों की सज़ा जो संदेह उत्पन्न करके लोगों को सत्य के रास्ते हटाते हैं क़यामत के दिन जहन्नम की आग होगी। जबकि सत्य और हक़ीक़त को पहचान कर उसे स्वीकर करने वाले अल्लाह की हिफ़ाज़त में होंगे और बड़े सुकून के साथ जन्नत में वक़्त गुज़ारेंगे।

इस आयत से हमने सीखाः

अगर अल्लाह गुमराह लोगों को मोहलत देता है तो यह उसकी ग़फ़लत या इस बात की निशानी नहीं है कि उसको जानकारी नहीं है बल्कि अल्लाह की परम्परा है कि मोहलत देता है ताकि लोग जो भी करें अपनी आज़ादी से करें र उनके पास तौबा करने और सही रास्ते पर लौटने का मौक़ा भी रहे।

आख़ेरत में इंसान के लिए सबसे बड़ी नेमत शरीर और आत्मा की सुरक्षा और सुकून है।

आज़ाद होने का यह मतलब नहीं है कि हर काम की छूट है। केवल वही काम किए जा सकते हैं जो अक़्ल और शीरयत के दायरे में हों।