क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-901
सूरए फ़ुस्सेलत आयतें 41-44
आइए पहले सूरए फ़ुस्सेलत की आयत नंबर 41 और 42 की तिलावत सुनते हैं,
إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا بِالذِّكْرِ لَمَّا جَاءَهُمْ وَإِنَّهُ لَكِتَابٌ عَزِيزٌ (41) لَا يَأْتِيهِ الْبَاطِلُ مِنْ بَيْنِ يَدَيْهِ وَلَا مِنْ خَلْفِهِ تَنْزِيلٌ مِنْ حَكِيمٍ حَمِيدٍ (42)
इन आयतों का अनुवाद हैः
जिन लोगों ने क़ुरआन को जब वह उनके पास आया नहीं माना (वह अपना नतीजा देखेंगे) और ये तो यक़ीनन एक महत्वपूर्ण किताब है। [41:41] झूठ न तो उसके आगे फटक सकता है और न उसके पीछे से और खूबियों वाले ज्ञानी (ख़ुदा) की बारगाह से नाज़िल हुई है। [41:42]
पिछले कार्यक्रम में उन लोगों के बारे में बात हुई जो लुभावनी बातों और दीन में फेरबदल के ज़रिए आम जन को गुमराह कर देते हैं और उन्हें दीन व क़ुरआन से दूर कर देते हैं। अब यह आयतें कहती हैं कि यह क़ुरआन सचेत करने के लिए आया है ताकि इंसानों को ग़फ़लत की नींद से जगाए और पाकीज़ा प्रवृत्ति और स्वभाव की तरफ़ उसे पलटाए।
मगर दुर्भाग्य से कुछ लोग इसका इंकार कर देते हैं और दीनी तथ्यों का खंडन करने पर तुल जाते हैं। जबकि उनके इंकार और खंडन से इस आसमानी किताब के महत्व और उपयोगिता में कोई कमी आने वाली नहीं है। अल्लाह की किताब तो अमर व स्थायी है और उसे नाकाम नहीं किया जा सकता। वह किताब है जिसका तर्क बिल्कुल स्पष्ट, बहसें बहुत मज़बूत और शिक्षाएं बहुत गहरी होती हैं।
यह आयतें क़ुरआन की अज़मत को और भी विस्तार से बयान करते हुए कहती हैं कि यह किताब अल्लाह की तरफ़ से नाज़िल की गई है। जिसका हर काम तर्क और हिकमत के आधार पर होता है। ज़ाहिर है कि जो किताब अल्लाह की तरफ़ से नाज़िल होगी उसके आगे या पीछे किसी तरफ़ से भी कोई ग़लत चीज़ उसमें प्रवेश नहीं कर सकती। इसकी गुंजाइश ही नहीं होती। आयतों में कहीं विरोधाभास नहीं है। उसके क़ानून और उसकी शिक्षाएं हर तरह की ग़लती और भूल चूक से ऊपर होती हैं। फेरबदल करने वालों का इसमें कोई बस नहीं चलता। किसी के पास भी यह शक्ति नहीं कि इस किताब के तथ्यों में किसी तरह का बदलाव करे। भविष्य में भी इंसान का ज्ञान और विज्ञान चाहे जितना विकास कर ले इस किताब और उसकी बातों को ग़लत साबित नहीं कर सकता।
इन आयतों से हमने सीखाः
आज की तनाव भरी दुनिया में गुमराही और ग़फ़लत से बचने के लिए हमें क़ुरआन की तिलावत करनी चाहिए जो तथ्यों और सच्चाइयों की तरफ़ ध्यान केन्द्रित करवाता है।
क़ुरआन भविष्य की ख़बर देता है। साफ़ साफ़ कहता है कि इसमें किसी तरह की कमी नहीं निकाली जा सकती, कोई फेर बदल नहीं किया जा सकता और असत्य के लिए इसमें कोई गुंजाइश नहीं है।
क़ुरआन के ख़िलाफ़ की जाने वाली तरह तरह की साज़िशों का कोई असर पड़ने वाला नहीं है। क़ुरआन के दुश्मन चाहे जितनी कोशिशें कर लें उसे समाज की मुख्य धारा से हाशिए पर नहीं डाल सकते।
चूंकि क़ुरआन की आयतें अल्लाह के ज्ञान और तत्वदर्शिता की झलक पेश करती हैं इसलिए यह बिल्कुल दुरुस्त और तत्वदर्शिता से भरी हुई हैं और यह इस्लाम धर्म का मज़बूत आधार हैं।
अब आइए सूरए फ़ुस्सेलत की आयत नंबर 43 और 44 की तिलावत सुनते हैं,
مَا يُقَالُ لَكَ إِلَّا مَا قَدْ قِيلَ لِلرُّسُلِ مِنْ قَبْلِكَ إِنَّ رَبَّكَ لَذُو مَغْفِرَةٍ وَذُو عِقَابٍ أَلِيمٍ (43) وَلَوْ جَعَلْنَاهُ قُرْآَنًا أَعْجَمِيًّا لَقَالُوا لَوْلَا فُصِّلَتْ آَيَاتُهُ أَأَعْجَمِيٌّ وَعَرَبِيٌّ قُلْ هُوَ لِلَّذِينَ آَمَنُوا هُدًى وَشِفَاءٌ وَالَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ فِي آَذَانِهِمْ وَقْرٌ وَهُوَ عَلَيْهِمْ عَمًى أُولَئِكَ يُنَادَوْنَ مِنْ مَكَانٍ بَعِيدٍ (44)
इन आयतों का अनुवाद हैः
(ऐ रसूल) तुमसे से भी बस वही बातें कही जाती हैं जो तुमसे पहले और रसूलों से कही जा चुकी हैं बेशक तुम्हारा परवरदिगार बख़्शने वाला भी है और दर्दनाक अज़ाब वाला भी है। [41:43] और अगर हम इस क़ुरान को अरबी ज़बान के सिवा दूसरी ज़बान में नाज़िल करते तो ये लोग ज़रूर कह बैठते कि इसकी आयतें (हमारी ज़बान में) क्यों तफ़सील से बयान नहीं की गयीं? क्या अजीब बात है कि कलाम अजमी (ग़ैर अरबी) है और जिनको संबोधित किया गया है वे अरब हैं। इनसे कहो यह क़ुरआन ईमान लाने वालों के लिए तो मार्गदर्शन और शिफ़ा है। मगर जो लोग ईमान नहीं लाते उनके लिए यह कानों को बंद कर देने वाली डाट और आंखों की पट्टी है। उनका हाल तो ऐसा है जैसे उनको दूर से पुकारा जा रहा हो। [41:44]
पिछली आयतों में दीन के विरोधियों के इंकार का ज़िक्र किया गया अब यह आयतें कहती हैं कि वे क़ुरआन का तो विरोध करते ही थे साथ ही पैग़म्बरे इस्लाम के बारे में ग़लत बातें करते थे उन्हें जादूगर, शायर और पागल कहते थे। अल्लाह पैगम़्बरे इस्लाम को संबोधित करके कहता है कि पिछले ज़मानों के पैग़म्बरों के बारे में भी इसी तरह की ग़लत बातें की जाती थीं और उनको भी इसी तरह के लोगों का सामना करना पड़ता था। इसलिए आप उनकी बातों को छोड़िए और पूरे संयम और दृढ़ता के साथ अपना मिशन आगे बढ़ाते रहिए।
स्वाभाविक है कि अल्लाह अनभिज्ञ और अज्ञानी लोगों के बारे में क्षमाशीलता का बर्ताव करेगा लेकिन जो लोग जान बूझकर तोहमत लगाते हैं और क़ुरआन व पैग़म्बर के ख़िलाफ़ संघर्ष करते हैं उन्हें बहुत कठोर सज़ा देगा।
पैग़म्बरे इस्लाम के विरोधी जो बहाने करते थे उनमें एक बहाना यह था कि आपकी यह किताब हमारी ज़बान में क्यों उतरी है। अगर आप पैग़म्बर हैं तो आपका चमत्कार यह होना चाहिए कि ऐसी ज़बान में किताब लाइए जो हमारी ज़बान से अलग हो ताकि हम समझें कि आप अल्लाह के पैग़म्बर हैं।
अल्लाह इस समूह के लोगों की बहानेबाज़ी के जवाब में कहता है कि अगर हमने क़ुरआन को अरबी भाषा के अलावा किसी और भाषा में नाज़िल किया होता तो तुम यह बहानेबाज़ी करते कि हम तो अरबी ज़बान के लोग हैं। आप जो किताब लाए हैं वो हमारी समझ में ही नहीं आती। अब जब अरबी ज़बान में किताब आई है और तुम इसकी बातें समझ सकते हो तो बेबुनियाद बातें करके और शोर शराबा मचाकर लोगों को इसकी शिक्षाओं से दूर करते हो।
इन आयतों में आगे कहा गया है कि क़ुरआन ईमान लाने वालों के लिए हिदायत और शिफ़ा का ज़रिया है। उसका लक्ष्य दुनिया और आख़ेरत में पाक व पाकीज़ा ज़िंदगी की तरफ़ तुम्हे ले जाना है। वो तुम्हारे दिलों को शिफ़ा देकर तुम्हारे नैतिक बीमारियों का इलाज करना चाहती है ताकि तुम मानव परिपूर्णता की मंज़िल तक पहुंच सको। मगर कुछ लोग ऐसे हैं जो न तो सत्य को देखना चाहते हैं और न उसे सुनने के लिए तैयार हैं। मानो वे कुछ सुनते समझते ही नहीं और न ही उनकी आंखें कुछ देखती हैं। जैसे वे अंधे और बहरे हैं। अगर वे ईमान के भाव के साथ और सत्य की तलाश में क़ुरआन की तरफ़ आते तो क़ुरआन की नूरानी आयतों की रौशनी में उन्हें हिदायत मिल जाती और उनकी रूह की बीमारियां और उनके अख़लाक़ की ख़ामियां दूर हो जातीं। मगर वे तो जैसे अंधे और बहरे हैं जिन्हें मानो दूर से पुकारा जा रहा हो और वे कोई आवाज़ सुन ही न पा रहे हों।
इन आयतों से हमने सीखाः
दीन के उपदेशक और मार्गदर्शक के भीतर विरोधियों की उल्टी सीधी बातें और बेबुनियाद आरोप सुनने का संयम होना चाहिए।
अल्लाह की बख़्शिश और चेतावनी दोनों तत्वदर्शिता के मुताबिक़ है। इनसे भले लोगों को प्रोत्साहन मिलता है और बुरे लोगों को सचेत किया जाता है। अलबत्ता यह सच्चाई हे कि अल्लाह की रहमत उसके आक्रोश से ज़्यादा है।
दुश्मनों की बहानेबाज़ी का कोई अंत नहीं है। मुसलमान कुछ भी कर लें दुश्मन फिर भी कोई न कोई कमी तलाश कर लेंगे और ताने मारेंगे।
क़ुरआन हिदायत की किताब है, क़ुरआन रूह, नैतिकता और समाज की बुराइयों का इलाज पेश करता है। अलबत्ता जो लोग हिदायत के प्रकाश से लाभान्वित होना चाहते हैं और अपनी आंख और कान खुले रखते हैं।