क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-903
सूरए फ़ुस्सेलत आयतें 49-54
आइए पहले सूरए फ़ुस्सेलत की आयत नंबर 49 की तिलावत सुनते हैं,
لَا يَسْأَمُ الْإِنْسَانُ مِنْ دُعَاءِ الْخَيْرِ وَإِنْ مَسَّهُ الشَّرُّ فَيَئُوسٌ قَنُوطٌ (49)
इस आयत का अनुवाद हैः
इंसान भलाई की दुआए मांगने से तो कभी उकताता नहीं और अगर उसको कोई तकलीफ पहुँच जाए तो (फ़ौरन) ना उम्मीद और मायूस हो जाता है। [41:49]
जिन इंसानों के पास ईमान नहीं होता या जिनका ईमान कमज़ोर होता है या जिनकी सोच खुली हुई नहीं होती या जो कमज़र्फ़ होते हैं वे दुनिया में अधिक से अधिक आसानी और सुविधा प्राप्त करने के लिए दौलत कमाने से कभी थकते नहीं। उन्हें जितना माल मिलता जाता है उनकी भूख उतनी ही बढ़ती जाती है उनका कभी पेट नहीं भरता।
मगर जब दुनिया उनसे दूर होने लगती है या उनसे मुंह मोड़ लेती है, या वे किसी मुसीबत में पड़ जाते हैं या उनका हाथ ख़ाली हो जाता है तो बहुत मायूस हो जाते हैं मानो अब दुनिया ही ख़त्म हो गई है। दरअस्ल इस तरह के लोग भौतिक दुनिया में बुरी तरह डूबे होते हैं। जब दुनिया उनकी तरफ़ रुख़ करती है तो बहुत ख़ुश और मग़रूर हो जाते हैं और जब उनसे मुंह मोड़ लेती है तो बहुत मायूस हो जाते हैं।
इस आयत से हमने सीखाः
इंसान प्राकृतिक तौर पर लालच और लोभ में फंसा होता है वो चाहता है कि जो भी अच्छी चीज़ है उसे मिल जाए। लेकिन पैग़म्बरों की महान शिक्षाओं से इंसानों का इस तरह प्रशिक्षण होता है कि वे दूसरों के लिए ख़र्च करें बल्कि दूसरों के लिए त्याग करें।
ज़िंदगी में मायूसी का एहसास इस बात की निशानी है कि इंसान की क्षमता कम है और उसका ईमान कमज़ोर है। अस्ली मोमिन वह है जो कभी मायूस नहीं होता।
अब आइए सूरए फ़ुस्सेलत की आयत नंबर 50 और 51 की तिलावत सुनते हैं,
وَلَئِنْ أَذَقْنَاهُ رَحْمَةً مِنَّا مِنْ بَعْدِ ضَرَّاءَ مَسَّتْهُ لَيَقُولَنَّ هَذَا لِي وَمَا أَظُنُّ السَّاعَةَ قَائِمَةً وَلَئِنْ رُجِعْتُ إِلَى رَبِّي إِنَّ لِي عِنْدَهُ لَلْحُسْنَى فَلَنُنَبِّئَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا بِمَا عَمِلُوا وَلَنُذِيقَنَّهُمْ مِنْ عَذَابٍ غَلِيظٍ (50) وَإِذَا أَنْعَمْنَا عَلَى الْإِنْسَانِ أَعْرَضَ وَنَأَى بِجَانِبِهِ وَإِذَا مَسَّهُ الشَّرُّ فَذُو دُعَاءٍ عَرِيضٍ (51)
इन आयतों का अनुवाद हैः
और अगर उसको कोई तकलीफ पहुँच जाने के बाद हम उसको अपनी रहमत का मज़ा चखाएँ तो यक़ीनन कहने लगता है कि ये तो मेरे लिए ही है और मैं नहीं ख़याल करता कि कभी क़यामत बरपा होगी और अगर (क़यामत हो भी और) मैं अपने परवरदिगार की तरफ़ लौटाया भी जाऊँ तो भी मेरे लिए यक़ीनन उसके यहाँ भलाई ही तो है, तो हम काफ़िरों को उनके उन आमाल से जिन्हें वे अंजाम देते रहे (क़यामत में) ज़रूर आगाह करेंगे और उनको सख़्त अज़ाब का मज़ा चख़ाएगें। [41:50] (वह अलग) और जब हम इंसान पर एहसान करते हैं तो (हमारी तरफ से) मुँह फेर लेता है और मुँह बदलकर चल देता है और जब उसे तकलीफ़ पहुँचती है तो लम्बी चौड़ी दुआएँ करने लगता है। [41:51]
पिछली आयत में उन लोगों की ख़ुशी और परेशानी के क्षणों के बारे में बताया गया जिनका ईमान कमज़ोर है और जो कम क्षमता वाले हैं। अब यह आयतें उसी बात को विस्तार से बयान करते हुए कहती हैं कि यह लोग धोखे में है जो उन्हें अपने जीवन में अल्लाह को देखने ही नहीं देता। उनके पास जो कुछ भी है अल्लाह का दिया हुआ है मगर फिर भी अल्लाह का शुक्र अदा करने के बजाए कहते हैं कि हमारे पास जो कुछ है वह हमारी अपनी योग्यता और क्षमता की वजह से है। अल्लाह या किसी और का इसमें कोई किरदार नहीं है।
इसी ग़ुरुर में पड़कर इंसान क़यामत का भी इंकार करने लगता है और क़यामत का इंकार करके बड़े इत्मीनान से कह देता है कि कोई क़यामत नहीं आने वाली है और अगर क़यामत हो भी तो हमारी यह योग्यता है कि वहां भी हमारी हालत बहुत अच्छी होगी और वहां भी हम बड़े सुकून और चैन से रहेंगे। मगर इस क़िस्म के लोगों के बारे में अल्लाह कहता है कि हम बहुत जल्द उन्हें उनके कर्मों से आगाह करेंगे और क़यामत में उन्हें सख़्त अज़ाब का मज़ा चखाएंगे।
आयत का अगला हिस्सा इसी क़िस्म के लोगों की कुछ अन्य विशेषताओं पर प्रकाश डालता है और कहता है कि जब संपन्नता और ख़ुशी का समय होता है जब ख़ूब नेमतें मिलती हैं तो वे अल्लाह को भूल जाते हैं और अल्लाह के दीन की शिक्षाओं को मानने से इंकार करते हैं मानो उन्हें अल्लाह के अस्तित्व का कोई अक़ीदा ही नहीं है और उनके जीवन में अल्लाह की किसी तरह की कोई भूमिका ही नहीं है। मगर जब उन पर मुसीबत पड़ती है तो अल्लाह से फ़रियाद करते हैं, ख़ूब दुआएं करते हैं और उसे इस तरह पुकारते हैं जैसे उनकी इन सारी मुसीबतों की वजह अल्लाह ही है।
इन आयतों से हमने सीखाः
गुमराह और वे लोग जिनकी सही तरबियत नहीं हुई मग़रूर और कमज़र्फ़ होते हैं। नेमत मिलते ही उनमें घमंड आ जाता है और मदहोश होकर केवल ख़ुद को देखते हैं।
अल्लाह की नेमतें उसके करम की निशानी हैं, इस बात की निशानी नहीं कि वाक़ई उस इंसान में इन नेमतों की भरपूर योग्यता है। अल्लाह पर हमारा कोई क़र्ज़ा नहीं है बल्कि हम अल्लाह के मक़रूज़ हैं। हमें उसका शुक्र अदा करते रहना चाहिए।
दुनियावी धन दौलत और सुविधाएं हासिल होने का यह मतलब नहीं है कि वो इंसान अल्लाह के बहुत क़रीब है जिसे यह चीज़ें मिली हैं। इन इंसानों को यह ग़लतफ़हमी नहीं पालनी चाहिए कि क़यामत में भी ज़रूर उन्हें यह सब कुछ हासिल होगा।
हमें ख़याल रखना चाहिए कि समृद्धि और ख़ुशहाली के समय अल्लाह से ग़ाफ़िल न हों और उसके आदेशों को न भूलें। वरना नेमतें दंड में बदल सकती हैं।
अब आइए सूरए फ़ुस्सेलत की आयत नंबर 52 से 54 तक की तिलावत सुनते हैं,
قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِنْ كَانَ مِنْ عِنْدِ اللَّهِ ثُمَّ كَفَرْتُمْ بِهِ مَنْ أَضَلُّ مِمَّنْ هُوَ فِي شِقَاقٍ بَعِيدٍ (52) سَنُرِيهِمْ آَيَاتِنَا فِي الْآَفَاقِ وَفِي أَنْفُسِهِمْ حَتَّى يَتَبَيَّنَ لَهُمْ أَنَّهُ الْحَقُّ أَوَلَمْ يَكْفِ بِرَبِّكَ أَنَّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدٌ (53) أَلَا إِنَّهُمْ فِي مِرْيَةٍ مِنْ لِقَاءِ رَبِّهِمْ أَلَا إِنَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ مُحِيطٌ (54)
इन आयतों का अनुवाद हैः
(ऐ रसूल) तुम कहो कि भला देखो तो सही कि अगर ये (क़ुरान) ख़ुदा की बारगाह से (आया) हो और फिर तुम उससे इन्कार करो तो जो (ऐसे) परले दर्जे की मुख़ालेफत में (पड़ा) हो उससे बढ़कर और कौन गुमराह हो सकता है। [41:52] हम बहुत जल्द अपनी (क़ुदरत) की निशानियाँ दुनिया में जगह जगह और ख़़ुद उनके अंदर भी दिखा देगें यहाँ तक कि उन पर ज़ाहिर हो जाएगा कि वही यक़ीनन हक़ है क्या तुम्हारा परवरदिगार इसके लिए काफी नहीं कि वह हर चीज़ पर क़ाबू रखता है। [41:53] देखो ये लोग (क़यामत में) अपने परवरदिगार के रूबरू हाज़िर होने के मसले में शक़ में (पड़े) हैं सुन रखो वह हर चीज़ पर हावी है। [41:54]
पिछली आयतों के ही क्रम में जिनमें काफ़िर और मुशरिक इंसानों की बात बताई गई अब यह आयतें कहती हैं कि क्या तुम्हारी नज़र में इस बात की मामूली सी भी संभावना नहीं है कि क़ुरआन अल्लाह की तरफ़ से हो कि इतनी सख़्ती से तुम उसका विरोध करते हो? अगर यह किताब अल्लाह की तरफ़ से हुई और जो कुछ जन्नत और दोज़ख़ के बारे में बताया गया है सही हुआ तो फिर तुम क़यामत के दिन क्या करोगे? तो ज़रा सोच विचार से काम लो और पूर्वजों के रास्ते पर अड़े रहने और बेजा ज़िद से बाज़ आ जाओ और हक़ीक़त तलाश करने की कोशिश करो।
इसके बाद यह आयतें आगे कहती हैं कि अल्लाह के वजूद की निशानियां दुनिया में हर जगह और खुद तुम्हारे वजूद के भीतर हैं, उन पर क्यों ध्यान नहीं देते कि तुम्हारे लिए यह साबित हो जाए कि अल्लाह हक़ है? अगर तुम्हें शरीयत की किताब में शक है तो क्या प्रकृति की किताब में भी तुम्हें शंका है कि इतनी महान कायनात क्या ज्ञानी व शक्तिशाली परवरदिगार के बग़ैर पैदा हो सकती है?
कायनात में अल्लाह के वजूद की निशानियां जैसे सूरज का पैदा होना, चांद और सितारों का पैदा होना, उनके संचालन का बेहद सटीक सिस्टम, इसी तरह भांति भांति की जानवरों, वनस्पतियों, पहाड़ों, समुद्रों या उनके भीतर पाए जाने वाले अनगिनत आश्चर्यों का पैदा होना यह सब अल्लाह के पाकीज़ा वजूद की निशानियां हैं।
इसी तरह अल्लाह की निशानियां ख़ुद इंसान के अस्तित्व के अंदर मौजूद हैं। क्योंकि इंसान के शरीर के भीतर अलग अलग अंग और सिस्टम जैसे श्वसन तंत्र, पाचन तंत्र, रक्त प्रवाह तंत्र, हृदय का व्यवस्थित काम, दिमाग़ का हैरतअंगेज़ प्रारूप इसी तरह शरीर के दूसरे अंग सब के सब कायनात को पैदा करने वाले अल्लाह के अस्तित्व की निशानियों की किताबें हैं।
क़ुरआन की आयत है कि हम अपनी निशानियों को दिखाते रहते हैं यानी यह सिलसिला जारी है। यानी भविष्य में भी निशानियां नज़र आती रहेंगी। इंसान जैसे जैसे ज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ेगा वह किसी नए हैरतअंगेज़ रहस्य से अवगत होगा और उसे अल्लाह की शक्ति और युक्ति की झलक नज़र आएगी और वह अल्लाह को और बेहतर तरीक़े से पहचानेगा।
मगर खेद की बात यह है कि यह लोग कायनात को पैदा करने वाले अल्लाह के बारे में भी शक में रहते हैं और कायनात के अंत पर अल्लाह से क़यामत में होने वाली मुलाक़ात के बारे में भी उन्हें शक ही रहता है। मगर उनका यह शक प्राकृतिक नहीं है कि शोध और अध्ययन से दूर हो जाए। वे बदगुमानी की वजह से शक में पड़े हैं और सत्य व हक़ीक़त को स्वीकार ही नहीं करना चाहते। वे गफ़लत और ग़ुरूर में हैं और अल्लाह से मुलाक़ात को भूले बैठे हैं। उन्हें हिसाब किताब और सज़ा व इनाम पर यक़ीन नहीं है। यही वजह है कि वे हर बुरा और शर्मनाक काम करने पर तैयार रहते हैं। मगर उन्हें याद रखना चाहिए कि अल्लाह का हर चीज़ पर कंट्रोल है उनका हर अमल अल्लाह के ज्ञान में है और उनके सारे कर्मों का रिकार्ड तैयार किया जा रहा है जिसका हिसाब लिया जाएगा।
इन आयतों से हमने सीखाः
अक़्लमंद इंसान को अगर यह अंदेशा हो कि बड़ा ख़तरा सामने है तो सतर्क रहता है कि संभावित नुक़सान से ख़ुद को बचाए। इसलिए क़यामत आने की संभावना भर से वह ख़ुद को गुनाह से दूर ही रखता है।
पूरी कायनात अल्लाह की शिनख़्त हासिल करने की पाठशाला है। इंसान और दूसरी चीज़ों का अस्तित्व, ज़मीन, आसमान सितारे, आकाशगंगा सब इसी श्रेणी में हैं।
अल्लाह के अस्तित्व और क़यामत का अक़ीदा एक दूसरे से अलग नहीं हैं क्योंकि दुनिया की शुरुआत और अंत दोनों अल्लाह के हाथ में हैं।