ईश्वरीय वाणी-८८
सूरए मआरिज पवित्र क़ुरआन का 70वां सूरा है जो मक्के में उतरा और इसमें 44 आयतें हैं।
सूरए मआरिज पवित्र क़ुरआन का 70वां सूरा है जो मक्के में उतरा और इसमें 44 आयतें हैं। इस सूरे में जिन विषयों पर चर्चा की गयी है वह इस प्रकार हैः प्रलय की विशेषताएं, उसके धटने की पृष्टिभूमि और उस दिन काफ़िरों की स्थिति, मनुष्यों की अच्छी और बुरी विशेषताएं जो उसे नरक और स्वर्ग वासी बनाती हैं, अनेकेश्वरवादियों और इन्कार करने वालों को चेतावनी और फिर प्रलय का विषय।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने अपने अंतिम हज में १७ ज़िलहिज्जा को ग़दीरे ख़ुम हज़रत अली को अपना उतराधिकारी नियुक्त किया। उन्होंने उनके बारे में कहा जिस जिस का मैं मौला अर्थात मालिक हूं उस उस के अली मौला अर्थात मालिक हैं। यह घटना बहुत जल्द ही शहरों और गांवों में फैल गयी। नोमान बिन हारिस फ़हरी यह समाचार सुनने के बाद बहुत क्रोधित हुआ, वह पैग़म्बरे इस्लाम की सेवा में उपस्थित हुआ और कहने लगाः आपने हमसे जो कहा हमने उसकी गवाही दी, आपने एकेश्वरवाद का आदेश दिया और कहा कि इसकी गवाही दो, हमने गवाही दी, आप ने कहा कि गवाही दो कि मैं ईश्वर की ओर से भेजा गया दूत हूं, हमने गवाही दी। उसके बाद आपने जेहाद, हज, रोज़ा, नमाज़ और ज़कात का आदेश दिया, हमने इन सबको स्वीकार किया, आप इस पर भी राज़ी नहीं हुए और इस युवा अली को अपना उतराधिकारी नियुक्त कर दिया।
क्या यह आदेश आप की ओर से है या ईश्वर की ओर से? पैग़म्बरे इस्लाम ने स्पष्ट रूप से कहा कि उस ईश्वर की सौगंध जिसके अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं है, यह आदेश ईश्वर की ओर से है।
नोमान अविश्वास की स्थिति में वहां से लौट आया, वह रास्ते में कहता जा रहा था कि यदि यह बात सत्य और तेरी ओर से है तो आसमान से मेरे ऊपर पत्थर गिरे, ताकि इस दिन का मैं साक्षी न रहूं, तभी आसमान से एक पत्थर उसके सिर पर गिरा और वह वहीं ढेर हो गया। उसी समय सूरए मआरिज की पहली आयत उतरी। सूरए मआरिज की पहली और दूसरी आयत में आया हैः एक मांगने वाले ने वास्तविक प्रकोप का सवाल किया, एसा प्रकोप जो काफ़िर के लिए विशेष है उसे कोल टाल नहीं सकता। आयत यह बयान करते हुए स्पष्ट करती है कि ईश्वरीय प्रकोप को आना ही है और यह काफ़िरों के लिए विशेष है और कोई भी इसके आने में रुकावट पैदा नहीं कर सकता।
इसी सूरे की तीसरी और चौथी आयत में आया है कि यह प्रकोप महान ईश्वर की ओर से है, जिसकी ओर उस एक दिन में जिस की संख्या पचास हज़ार साल के बराबर फ़रिश्ते और रूहुल अमीन जाते है। निसंदेह, फ़रिश्तों के ऊपर उठने से उद्देश्य, शारीरिक रूप से होना नहीं है बल्कि आत्मिक बुलंदी है अर्थात वे ईश्वरीय निकटता प्राप्त करने के लिए प्रतिस्पर्धा करेंगे, वह दिन जो प्रलय का दिन है, वे आदेश लेने और उसके क्रियान्वयन के लिए तैयार हैं।
यहां पर रूह का अर्थ है जिब्राइल और आयत में उनका वर्णन, फ़रिश्तों के बीच हज़रत जिब्राइल के विशेष स्थान के कारण है। इस आयत के अनुसार, प्रलय का दिन पचास हज़ार वर्ष जितना लंबा होगा। दूसरे शब्दों में उस दिन दुनिया के साल, पचास हज़ार साल जितने लंबे होंगे जबकि कुछ लोगों का कहना है कि बहुतायत को बयान करने के लिए पचास हज़ार साल का वर्णन हुआ है, संख्या की दृष्टि से नहीं। अर्थात वह दिन बहुत लंबा होगा।
इस सूरे की आयत संख्या 8 और 9 में आया है कि जिस दिन आकाश पिघले हुए तांबे की भांति हो जाएगा और पहाड़ टूट कर और धूत के कड़ो जैसे होकर हवा में बिखर जायेगे।
उस दिन आसमान पिघले हुए तांबे की भांति हो जाएगा और पहाड़ भी हुए टुकड़ों में दूटकर धूल के कणों की भान्ति हवा में फैले हुये होंगे, जैसे तेज़ हवाएं रूई को अपने साथ उड़ा ले जाती हैं। इस सब तबाही के बाद, नया संसार अस्तित्व में आएगा और मनुष्यों में नया जीवन फूंका जाएगा। आयत आगे बयान करती है कि जब दुनिया में प्रलय का दिन आएगा तो उस दिन कर्मों के इतने कठिन हिसाब किताब होंगे कि हर व्यक्ति अपनी मुक्ति के प्रयास में रहेगा। उस दिन पक्का मित्र अपने पक्के मित्र को पूछेगा तक नहीं, कोई किसी का साथ नहीं देगा, सब अपनी अपनी फ़िक्र में रहेंगे। ऐसा नहीं है कि दोस्त वहां पर एक दूसरे को नहीं पहचानेंगे बल्कि वह एक दूसरे को पहचानेंगे लेकिन पापी अपने कार्यों में इतना व्यस्त रहेगे, इतना बौखलाए रहेंगे कि कोई दूसरे के बारे में नहीं सोचेगा।
उस भय के वातावरण में पापी यह कामना करेगा कि ऐ काश उस दिन अपने पापों से मुक्ति के लिए अपनी संतान की बलि चढ़ा दे, इसी प्रकार अपनी पत्नी और भाई की। या उस क़बीले और जाति की जिसने उसे दुनिया में हमेशा शरण दी और धरती पर मौजूद समस्त लोगों को उस पर न्यौछावर कर दिया ताकि उसे मुक्ति मिल जाए लेकिन उसकी मुक्ति का कोई भी मार्ग नहीं होगा।
सूरए मआरिज की 19वीं आयत के बाद की आयतों में मनुष्य की कुछ विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है। निश्चित रूप से इंसान बहुत लोभी है, जब कष्ट में होता है तो मांगने पर ऊतारू रहता है और जब मालामाल हो जाता है तो कंजूस हो जाता है।
पवित्र क़ुरआन लोभ और कंजूसी सहित विभिन्न प्रकार की नैतिक बुराईयों से मनुष्यों की मुक्ति के लिए नमाज़ का नुस्ख़ा उसके लिए बयान करता है। नमाज़ और ईश्वर का गुणगान, शिफ़ा देने वाली दवा के रूप में इंसान को बुराईयों से दूर रखता है। इस सूरए की आयत संख्या 22 और 23 में आया है कि उन नमाज़ियों के अतिरिक्त जो अपनी नमाज़ों पर कटिबद्ध रहते हैं। यह शालीन मनुष्यों की विशेषताएं हैं जो सदैव ईश्वर के दरबार से जुड़े रहते हैं, और यह संपर्क नमाज़ के माध्यम से पूरा होता है। नमाज़ मनुष्यों को बुराईयों से दूर रखती है और इंसान की आत्मा को पाक साफ़ करती है और उसके मन में ईश्वर की याद को सदैव जीवित रखती है। संसार के करता धरता और स्वामी पर सदैव ध्यान, घमंड, निश्चेतना और आंतरिक इच्छाओं आत्मपूजा में डूबने से रोकता है।
आयत संख्या 24 और 25 में आया है कि अच्छे मनुष्यों की अन्य विशेषता यह है कि और जिन के माल में एक निर्धारित अधिकार सुनिश्चित है, मांगने वाले के लिए और वंचितों के लिए। वे ईश्वर से संपर्क के अतिरिक्त, ईश्वर की सृष्टि से भी अपने मज़बूत संबंध सुरक्षित रखते हैं। मांगने वाला उसे कहते हैं जो अपनी आवश्यकताओं को बयान करे और दूसरों से सहायता की गुहार लगाए किन्तु वंचित वह है जिसे ज़रूरत तो है किन्तु लज्जा के कारण अपनी आवश्यकता और वंचितता को बयान नहीं करता।
बाद की आयतें इंसान की अन्य अच्छी और शालीन विशेषताओं की ओर संकेत करती है। और जो लोग प्रलय के दिन की पुष्टि करने वाले हैं और जो अपने ईश्वर के प्रकोप से डरने वाले हैं, निसंदेह ईश्वर का प्रकोप भयमुक्त रहने वाली चीज़ नहीं है और जो अपनी गुप्तांगों की अपनी पत्नियों और दासियों के अतिरिक्त दूसरों से रक्षा करते हैं कि उस पर बुरा भला नहीं कहा जाता।
ज्ञात रहे कि, योनेच्छा मनुष्य की सबसे उदंडी इच्छा है जिसका सही और वैध मार्गों से जवाब दिया जाना आवश्यक है क्योंकि यह चीज़ मानवीय समाज की बहुत सी बुराईयों की जड़ है। इसीलिए उसको नियंत्रित रखना और उसकी सीमाओं का ध्यान रखना, ईश्वरीय भय की निशानी है। यही कारण है कि पवित्र क़ुरआन में नमाज़ और दीन दुखियों की सहायता, प्रलय के दिन पर ईमान लाने और ईश्वरीय प्रकोप से भय के वर्णन के बाद, इस इच्छा को नियंत्रित करने पर बल दिया गया है।
अन्य आयतें शालीन लोगों की अन्य विशेषताओं, अमानतदारी और अपने वचनों पर उनकी प्रतिबद्धता की ओर संकेत करती है। अलबत्ता अमानत के व्यापक अर्थ हैं जिसमें लोगों की भौतिक अमानतें तथा ईश्वरीय व अध्यात्मिक अमानतें भी शामिल हैं। ईश्वर की विभूतियां उसकी अमानतें हैं। पद और सामाजिक स्थान विशेषकर सत्ता प्राप्त करना, ईश्वर की महत्वपूर्ण अमानत है। सब से महत्वपूर्ण धर्म, ईश्वरीय नियम और उसकी पुस्तक क़ुरआन, ईश्वर की बड़ी अमानतें हैं जिसकी रक्षा के लिए प्रयास करने चाहिए।
सूरए मआरिज की आयत संख्या 33 शालीन मनुष्यों की विशेषता बयान करते हुए कहती है कि और जो अपनी गवाहियों पर बाक़ी रहने वाले हैं। न्यायपूर्ण गवाही देना और सत्य को न छिपाना, मानवीय समाज में न्याय की स्थापना के महत्वपूर्ण आधारों में है इसीलिए क़ुरआन अपनी विभिन्न आयतों में मुसलमानों को सत्य की गवाही का निमंत्रण देती है और सत्य को छिपाने को पाप बताती हैं। पवित्र क़ुरआन शालीन मनुष्यों की विशेषता बयान करते हुए एक बार फिर नमाज़ के विषय पर आता है और कहता है कि और वह जो अपनी नमाज़ों का पांबदी से ख़याल रखते हैं।
नमाज़ का ध्यान रखना, समाज और मनुष्य को पवित्र रखने का महत्वपूर्ण साधन है। यह आयत नमाज़ के संस्कार, उसकी शर्तों, उसके तरीक़े और उसकी विशेषताओं की ओर संकेत करती है। ऐसे संस्कार जो नमाज़ के विदित रूप को बर्बाद होने से, सुरक्षित रखते हैं और नमाज़ की आत्मा को मज़बूत करते है। नमाज़ की आत्मा, सच्चे मन व पूरी एकाग्रता से ईश्वर को याद करना है। इसी प्रकार थे संस्कार नमाज़ के स्वीकार होने के मार्ग में मौजूद रुकावटों को दूर करते हैं। सूरए मआरिज की आयत संख्या 35 में इन उदाहरणीय इंसानों की अंतिम स्थली को बहुत ही छोटे शब्द में बयान किया गया हैः यही लोग स्वर्ग में प्रतिष्ठित ढंग से रहने वाले हैं।
सूरए मआरिज की आयत संख्या 40 में पूरब और पश्चिम के स्वामी ईश्वर की सौगंध खाई गयी है। इस क़सम से एक बड़ी वैज्ञानिक वास्तविकता अर्थात अनेक पूरब और पश्चिम के होने की ओर संकेत किया गया हैं। साल के हर दिन में सूरज के लिए अलग अलग पूरब और पश्चिम हैं। हर दिन एक नये बिंदु से सूर्योदय होता है और हर दिन हर नये बिंदु पर सूर्यस्त होता है। इसी आधार पर साल के दिनों में अनेक पूरब और पश्चिम होता है।
आयत में समस्त पूरब और पश्चिम के ईश्वर की बात कह कर संभव है कि इस ओर संकेत किया गया हो कि वह महान ईश्वर जो हर दिन सूरज को एक नये पूरब और पश्चिम में क़रार दे सकता है और यह हिसाब किताब इतना सुव्यवस्थित है कि लाखों साल से यह प्रक्रिया व्यवस्थित ढंग से दोहराई जा रही है, वह इस बात पर सक्षम है कि मनुष्य को दोबारा जीवन दे और उसे नया जीवन प्रदान करे। आयत संख्या 41 में इस वास्तविकता की ओर संकेत किया गया है कि हम न केवल इस बात में सक्षम हैं कि काफ़िरों को मर कर पूरी तरह मिट्टी में मिल जाने के बाद, नया जीवन प्रदान करें बल्कि इस बात पर भी सक्षम है कि वह उससे अधिक शालीन और योग्य लोगों को उनके स्थान पर लाएं।