Feb ०२, २०२५ १७:१६ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-913

सूरए शूरा ,आयतें 44 -47

आइए सबसे पहले सूरए शूरा की आयत संख्या 44 की तिलावत सुनते है

وَمَن يُضْلِلِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِن وَلِيٍّ مِّن بَعْدِهِ ۗ وَتَرَى الظَّالِمِينَ لَمَّا رَأَوُا الْعَذَابَ يَقُولُونَ هَلْ إِلَىٰ مَرَدٍّ مِّن سَبِيلٍ ﴿٤٤﴾‏

इस आयत का अनुवाद हैः

और जिसको खुदा (उसके बुरे कर्मों के कारण) गुमराही में छोड़ दे तो उसके बाद उसका कोई सरपरस्त नहीं और तुम ज़ालिमों को  देखोगे के जब (दोज़ख का) अज़ाब देखेंगे तो कहेंगे कि भला (दुनिया में) फिर लौट कर जाने का कोई रास्ता है? (42/44)

अल्लाह की परंपरा इंसानों की उनके विवेक और अपने खास संदेश वहि के माध्यम से हिदायत का रास्ता दिखाना है ताकि उन्हें सही और ग़लत रास्ते की जानकारी हो जाए और बाद में बहाना न बनाएं कि सही रास्ते की उन्हें जानकारी नहीं थी और उन्हें एहसास नहीं था कि उनके कर्म बुरे हैं।

लेकिन जिन लोगों को हिदायत का रास्ता मिल गया है और उसके बाद भी वो ग़लत रास्ते पर चल रहे हैं वो दरअस्ल अपनी मर्ज़ी से हिदायत का रास्ता छोड़ रहे हैं और गुमराही की तरफ जा रहे हैं यह गुमराही की तरफ जा रहे हैं। यह गुमराही उनके बुरे बर्ताव का स्वाभाविक और लाज़मी नतीजा है जो धीरे धीरे उनमें जड़ पकड़ गया और उसके चलते वे अपने बुरे कर्मों को भी अच्छा समझते हैं।

ज़ाहिर है कि न तो किसी को ज़बरदस्ती हिदायत के रास्ते पर पहूंचाया जाता है और नही गुमराही के रास्ते पर। बल्कि इंसान के अपने अमल के नतीजे में उसे हिदायत या गुमराही का रास्ता मिलता है। कभी इंसान बुरे काम करता है जिसके नतीजे में अल्लाह उसके दिल से हिदायत की रौशनी वापस ले लेता है और वो गुमराही के अंधेरं में भटकने लगता है। दरअस्ल इस तरह का व्यक्ति अपने ग़लत कर्मों और बर्ताव से अपनी गुमराही का रास्ता खोलता है।

अलबत्ता क़यामत के दिन सारी हक़ीक़त ख़ुल जाएगी और लोगों को अपनी ग़लती का अंदाज़ा हो जायेगा और वो शर्मिंदा होगें। लेकिन तब शर्मिंदा होने का कोई फ़ायदा नहीं होगा। ज़ालिम दुनिया में लौटने का आग्रह करेंगे मगर उन्हें मना कर दिया जाएगा क्योंकि उस समय दुनिया में लौटने का उनके पास कोई रास्ता नहीं होगा। जिस तरह इंसान बुढ़ापे से जवानी की तरफ़ नहीं लौट सकता और जवानी से बचपन की तरफ़ नहीं पलट सकता और बचपन से शिशुकाल की तरफ़ नहीं जा सकता, उसी तरह आख़ेरत से दुनिया में वापसी भी नामुमकिन होगी।

इस आयत से हमने सीख़ा –

कोई भी बिल्कुल शुरु से गुमराह नहीं होता, यानी अल्लाह किसी को शुरू से गुमराह नहीं करता बल्कि गुमराही बुरे कर्मों का नतीजा होती है। यानी ज़ुल्म,कुफ़्र और बुरे कर्मों की वजह से इंसान सच्चाई को समझने की सलाहियत खो देता है और गुमराही के अंधेरे में भटकने लगता है।

ज़ालिम और गुमराह लोग जान लें कि अल्लाह के इरादों के सामने कोई टिक नहीं सकता इसलिए कोई भी ताक़त उन्हें बचा नहीं सकती। तो फिर वो अल्लाह पर भरोसा करें और उसी से आस लगाएं।

अब आइए सूरए शूरा की आयत संख्या 45 और 46 की तिलावत सुनते हैं, 

وَتَرَاهُمْ يُعْرَضُونَ عَلَيْهَا خَاشِعِينَ مِنَ الذُّلِّ يَنظُرُونَ مِن طَرْفٍ خَفِيٍّ ۗ وَقَالَ الَّذِينَ آمَنُوا إِنَّ الْخَاسِرِينَ الَّذِينَ خَسِرُوا أَنفُسَهُمْ وَأَهْلِيهِمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ ۗ أَلَا إِنَّ الظَّالِمِينَ فِي عَذَابٍ مُّقِيمٍ ﴿٤٥﴾‏ وَمَا كَانَ لَهُم مِّنْ أَوْلِيَاءَ يَنصُرُونَهُم مِّن دُونِ اللَّهِ ۗ وَمَن يُضْلِلِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِن سَبِيلٍ ﴿٤٦﴾‏

 

इन आयतों का अनुवाद है-

और तुम उनको देखोगे कि दोज़ख़ के सामने लाए गये हैं(और) ज़िल्लत के मारे कटे जाते हैं (और) कनक्ख़ियों से देखे जाते हैं और मोमिनीन कहेंगे कि हक़ीक़त में वही बड़े घाटे में हैं जिन्होंने क़यामत के दिन अपने आप को और अपने घरवालों को घाटे में डाला देखो ज़ुल्म करने वाले स्थायी अज़ाब में रहेंगे।(42/45) और ख़ुदा के सिवा न उनके सरपरस्त ही होंगे जो उनकी मदद को आएं और जिसको ख़ुदा गुमराही में छोड़ दे तो उसके लिए (हिदायत की) कोई राह नहीं (42/46)

यह आयत क़यामत में ज़ालिमों की बदहवासी की चरम सीमा का द्दृष्य पेश कर रही है। जो लोग दुनिया में दूसरों को डराकर रखते हैं और लोग हमेशा उनके ज़ुल्म से डरते रहतें हैं क़यामत में वो इस तरह डरे सहमे होंगे कि उनके लिए सर उठाना भी मुश्किल होगा। वो सर झुकाए शर्मिदा खडे होंगे और जहन्नम में जाने के लिए तैयार होंगे। वो शर्मिंदगी और अपमान की हालत में कनखियो से जहन्नम की आग को देखेंगे और उनके पूरे अस्तित्व पर भय और डर तारी होगा और उन पर ज़िल्लत सवार होगी।

ज़िस्मानी तकलीफ़ों से ज्यादा उन्हें मोमिन बन्दो की तरफ से की जाने वाली मलामत की पीडा होगी जो कह रहे होगें कि तुम तो दुनिया में ताक़त और दौलत के दावे करते थे, अब देख लिया कि कितने बड़े घाटे में पड़ गए हो? वो घाटा जिसने तुम्हारे वजूद को ही बर्बाद कर दिया और आज तुम ख़ाली हाथ यहां खड़े हुए हो।

केवल तुम नहीं बल्कि तुम्हारे रास्ते पर चलने वाले और तुम्हारे आसपास के लोग भी भारी घाटे में चले गए हैं क्योंकि वो इस भ्रम में थे कि अगर तुम्हारे साथ रहेंगे  तो उनकी क़िस्मत संवर जाएगी लेकिन आज वो भी देख रहें हैं कि तुम्हारे पास कोई ताकत और क्षमता नहीं है तो फिर तुम उनका क्या भला कर पाओगे।

इस तरह देखा जाए तो इससे बड़ा घाटा क्या होगा कि इंसान ख़ुद को,अपनी पत्नी,बच्चों और रिश्तदारों को गलत रास्ते पर डाल दे और ख़ुद भी मुसीबत में पड़ जाए और उन्हें भी पीड़ा और दुख में ढकेल दे।

आयतों में इसके आगे दोबारा ज़ोर देकर कहा गया है कि बुरा अंजाम उन कर्मों का फल है जिनकी वजह से दुनिया में गुमराही मिली और उसी के नतीजे में जहन्नम में जाना पड़ा है। यह अज़ाब कभी समाप्त होने वाला नहीं है। वहां ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं होगा जो उन्हें अज़ाब से बाहर निकाले। उन्होंने पैग़म्बरों औ अल्लाह के खास बंदों से अपना रिश्ता तोड़ लिया है इसलिए वहां अकेले और बेसहारा है और अल्लाह का अज़ाब झेल रहे हैं।

इन आयतों से हमने सीखा –

अस्ली इज़्ज़त और ज़िल्लत क़यामत के दिन सामने आएगी। हो सकता है कि बहुत से वे लोग जो यहां बड़े इज्जतदार हैं क़यामत में अपमानित और रुसवा खड़े हों और इसके विपरीत जो लोग यहां अपमानित हैं उनका क़यामत में बड़ा सम्मान हो।

इंसान के लिए सबसे बड़ा नुकसान और घाटा जीवन को गवां देना और उसके बदले कोई इस तरह की चीज़ हासिल न कर पाना है जिसे क़यामत के दिन पेश किया जा सके।

ईमान से  इंसान को दुनिया और आख़ेरत दोनों जगहों पर इज़्ज़त मिलती है और क़यामत के दिन उसे निजात मिल जाएगी।

अब आइए सूरए शूरा की आयत संख्या 47 की तिलावत सुनते हैं,

اسْتَجِيبُوا لِرَبِّكُم مِّن قَبْلِ أَن يَأْتِيَ يَوْمٌ لَّا مَرَدَّ لَهُ مِنَ اللَّهِ ۚ مَا لَكُم مِّن مَّلْجَإٍ يَوْمَئِذٍ وَمَا لَكُم مِّن نَّكِيرٍ ﴿٤٧﴾‏

 

इस आयत का अनुवाद है –

(लोगो!) उस दिन के पहले जो ख़ुदा की तरफ़ से आयेगा और किसी तरह टाले न टलेगा, अपने परवरदिगार का हुक्म मान लो (क्योंकि) उस दिन न तो तुमको कहीं पनाह की जगह मिलेगी और न तुमसे (गुनाह का) इन्कार ही बन पडेगा।(42/47)

पैग़म्बरों ने लोगों को हमेशा अल्लाह के रासते की दावत दी है। अपनी तरफ़ नहीं बुलाया है। इसलिए यह आयत काफ़िरों,ज़ालिमों और गुनहगारों को संबोधित करते हुए कहती है दुनिया से जाने से पहले और क़यामत में पहुंचकर दुनिया में वापसी की हसरत में पडने से पहले अपने ग़लत रास्ते और गुमराही से वापस लौट आओ और अल्लाह के रास्ते पर चलो। क्योंकि क़यामत के दिन तुम्हारा वास्ता ख़ुदा से होगा और उसके इरादो के अलावा किसी की कोई इच्छा पूरी नहीं होगी। अपने कर्मों का इंकार करने की तुम्हारे पास कोई गुंजाइश नहीं होगी। उस दिन अल्लाह के अज़ाब से बचाने वाला भी कोई नहीं होगा।

इस आयत से हमने सीख़ा –

हमें स्थायी नुक़सान से जो चीज़ बचा सकती है और हमारी मुक्ति का ज़रिया और दुनिया व आख़ेरत में हमारे नेक अंजाम की गैरंटी है वो अल्लाह के आदेशों को मानना है।

अवसर हाथ से निकल जाने से पहले हमें चाहिए कि अपनी उम्र के ख़त्म हो जाने और आख़ेरत का सफ़र शुरू होने के बारें में सोचें क्योंकि वहां जाने के बाद वापसी का फिर कोई रास्ता नहीं है।