क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-916
सूरए ज़ुख़ुरुफ़, आयतें 11-15
आइए सबसे पहले सूरए ज़ुख़ुरुफ़ की आयत संख्या 11 और 12 की तिलावत सुनते हैं:
وَالَّذِي نَزَّلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً بِقَدَرٍ فَأَنْشَرْنَا بِهِ بَلْدَةً مَيْتًا كَذَلِكَ تُخْرَجُونَ (11) وَالَّذِي خَلَقَ الْأَزْوَاجَ كُلَّهَا وَجَعَلَ لَكُمْ مِنَ الْفُلْكِ وَالْأَنْعَامِ مَا تَرْكَبُونَ (12)
इन आयतों का अनुवाद हैः
और जिसने एक निर्धारित मात्रा में आसमान से पानी बरसाया फिर हम ही ने उसके (ज़रिए) से मुर्दा बस्ती को ज़िन्दा (आबाद) किया उसी तरह तुम भी (क़यामत के दिन क़ब्रों से) निकाले जाओगे। [43:11] और जिसने हर क़िस्म की चीज़े पैदा कीं और तुम्हारे लिए कश्तियां बनायीं और जानवर (पैदा किए) जिन पर तुम सवार होते हो। [43:12]
पिछले कार्यक्रम की आख़िरी आयत में प्रकृति में तौहीद की निशानियों का उल्लेख किया गया था। अब यह आयतें उसी विषय को आगे बढ़ाते हुए कहती हैं कि ज़मीन, वनस्पति और तुम इंसानों की ज़िंदगी बारिश पर निर्भर है। अगर धरती में किसी जगह पानी न बरसे तो सूखा पड़ जाएगा और इंसान भूख और प्यास से मर जाएंगे।
सवाल यह है कि क्या सूरज का समुद्रों और महासागरों पर चमकना और उनके पानी का भाप और भाप से बादल बनना इंसान के अख़तियार में है? क्या बारिश की पूरी प्रक्रिया में इंसान की कोई भूमिका है? इसी तरह क्या बादल बनने और हवाओं के चलने में जिससे बादल हरकत में आते हैं और सूखी ज़मीनों के ऊपर पहुंचते हैं इंसान का कोई रोल है?
सूखी ज़मीनें जिनके गर्भ में वनस्पतियों के बीज पड़े होते हैं बारिश होने के बाद हरकत में आ जाती हैं और मिट्टी से तरह तरह की वनस्पतियां उगती हैं। वनस्पतियों का बढ़ना उनमें रंग बिरंगे फूल खिलना और फ़सल देने वाली खेती का लहलहाना इसी बारिश की देन है। जिस तरह बारिश से मुर्दा पड़ी ज़मीनें जीवित हो जाती हैं तुम इंसान भी मरने के बाद जीवित किए जाओगे। पानी का बरसना और मुर्दा ज़मीनों का जीवित हो जाना अल्लाह की असीम शक्ति और इल्म को बयान करता है और किसी शक की गुंजाइश नहीं रह जाती कि क़यामत का बरपा होना और मुर्दा इंसानों को दोबारा जीवित किया जाना पूरी तरह मुमकिन है। यह दरअस्ल इंसानों की क़यामत की एक मिसाल है जिसका ज़िक्र क़ुरआन में किया गया है।
आयतें इसके बाद पति पत्नी के संयुक्त जीवन के विषय में बात करती हैं। अलग अलग तरह की प्राणियों का पैदा किया जाना दाम्पत्य जीवन के क़ानून पर निर्भर है। प्राणियों का जीवन बाक़ी रहना उनके बीच दाम्पत्य जीवन पर निर्भर है और यह सब कुछ अल्लाह के इरादे से ही मुमकिन है।
इन आयतों में इसी तरह सवारियों का ज़िक्र है कि अल्लाह ने ज़मीनी और पानी के रास्ते तय करने के लिए इंसानों को कुछ सवारियां दी हैं जो इंसान के लिए अल्लाह की बड़ी नेमतें हैं। बहुत प्राचीन काल से सामान और इंसानों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए नौकाओं का इस्तेमाल समाजों में प्रचलित रहा है। रोचक बात यह है कि नौकाओं का आकार बहुत विशाल होता है और उनका वज़न भी बहुत ज़्यादा होता है मगर भौतिक विज्ञान के नियमों के अनुसार नौकाएं पानी में नहीं डूबतीं। इन नियमों को अल्लाह के अलावा प्रकृति में कोई और रख ही नहीं सकता था।
आज के दौर में अलग अलग तरह की सवारियां हैं। विशेष रपू से तेज़ रफ़तार गाड़ियां, ट्रेनें र हवाई जहाज़ हैं जिनका इस्तेमाल किया जाता है और इससे इंसान का जीवन ही बदल गया। यह सब अल्लाह का एहसान है। क्योंकि यह तेज़ रफ़तार साधन भी अल्लाह के क़ानून के अनुसार काम करते हैं और अल्लाह ने कायनात में यह नियम निर्धारित कर दिए हैं।
इन आयतों से हमने सीखाः
कायनात की व्यवस्था निर्धारित नियमों के अनुसार चलती है और इसके हर भाग के लिए अल्लाह ने कुछ नियम निर्धारित कर दिए हैं।
अल्लाह कार्यों को कारक और कृया के रूप में अस्तित्व देता है। बारिश को ज़मीन और उस पर रहने वाले जीवों की ज़िंदगी का कारण और माध्यम क़रार देता है।
इंसानों के हाथों से बनाए गए अलग अलग उद्योग उन नियमों के अधीन हैं जो अल्लाह ने कायनात के लिए रखे हैं। इंसान ने बस यह किया कि उन नियमों की खोज कर ली और फिर उन्हीं के तहत रहते हुए उद्योगों को विकसित किया है।
आइए अब सूरए ज़ुख़ुरुफ़ की आयत संख्या 13 और 14 की तिलावत सुनते हैं:
لِتَسْتَوُوا عَلَى ظُهُورِهِ ثُمَّ تَذْكُرُوا نِعْمَةَ رَبِّكُمْ إِذَا اسْتَوَيْتُمْ عَلَيْهِ وَتَقُولُوا سُبْحَانَ الَّذِي سَخَّرَ لَنَا هَذَا وَمَا كُنَّا لَهُ مُقْرِنِينَ (13) وَإِنَّا إِلَى رَبِّنَا لَمُنْقَلِبُونَ (14)
इन आयतों का अनुवाद हैः
ताकि तुम उसकी पीठ पर चढ़ो और जब उस पर (अच्छी तरह) सीधे हो बैठो तो अपने परवरदिगार का एहसान माना करो और कहो कि वह (ख़ुदा हर ऐब से) पाक है जिसने इसको हमारा फ़रमांबरदार बनाया हालॉकि हम तो ऐसे (ताक़तवर) न थे कि उस पर क़ाबू पाते। [43:13] और हमको तो यक़ीनन अपने परवरदिगार की तरफ़ लौट कर जाना है। [43:14]
पिछली आयतों की बहस को आगे बढ़ाते हुए यह आयतें इंसान की ज़िंदगी में मवेशियों और नौकाओं की भूमिका का उल्लेख करती हैं। यह आयतें कहती हैं कि जब सवारी पर सवार होते हो चाहे वो सवारी इंसान की बनाई हुई हो जेसे नौका, हवाई जहाज़, कार या रेलगाड़ी या फिर पारम्परिक सवारियां जैसे घोड़ा, ऊंट, ख़च्चर। यह न भूलो कि अल्लाह ने सवारी के लिए इन चीज़ों को तुम्हारे अधिकार में दिया है।
तुम इंसानों ने अल्लाह की पैदा की हुई चीज़ों की विशेषताओं और गुणों का फ़ायदा उठाकर नौका, विमान और रेल जैसे साधन बना लिए हैं और उन्हें तुमने अपने कंट्रोल में कर लिया है। इसी तरह अल्लाह ने कुछ जानवारों को इंसानों के लिए समर्पित कर दिया है। हालांकि शारीरिक ताक़त की दृष्टो से वो तुमसे ज़्यादा शक्तिशाली हैं। स्वाभाविक रूप से तो उन्हें इंसानों के कंट्रोल में नहीं होना चाहिए था। अगर अल्लाह की आज्ञा न होती तो यह जानवर कदापि इंसान के सामने समर्पित न होते और इंसान के पास उन्हें कंट्रोल करने की ताक़त नहीं थी। जिस अल्लाह ने इन सारी चीज़ों को इंसान के कंट्रोल में कर दिया है उसे हम पूज्य मानें और उसका शुक्र अदा करें।
इन आयतों के आख़िर में इंसान की अल्लाह की तरफ़ वापसी का उल्लेख है ताकि कहीं यह न हो कि इन सवारियों पर बैठकर हम ग़ुरूर करने लगें और दुनिया की चकाचौंध हमें भ्रमित कर दे। हमें हर हाल में आख़ेरत और क़यामत को याद रखना चाहिए। बहुत से लोग अपनी सवारियों को दूसरों पर अपनी श्रेष्ठता का माध्यम समझ बैठते हैं। जब हम इन सवारियों पर बैठें और एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाएं तो इस सफ़र से हमें वह सफ़र याद आना चाहिए जो इस दुनिया से आख़ेरत की तरफ़ होने वाला है। क्योंकि आख़िरकार हमें अल्लाह की बारगाह में लौटकर जाना है।
इन आयतों से हमने सीखाः
भौतिक नेमतों से लाभान्वित होने के समय हम अल्लाह को भूलें नहीं। उसकी नेमतों का शुक्र अदा करें। यह अच्छा है कि हम अल्लाह की नेमतों के शुक्र को उसकी तसबीह और उसका गुणगान करते हुए संपूर्ण बनाएं।
अल्लाह के सामने हमें अपनी बेबसी और निर्बलता का इक़रार करना चाहिए। यह भी एक तरह की शुक्रगुज़ारी है, हमें घमंड और ग़ुरूर में नहीं पड़ना चाहिए।
दुनिया में जब हम सफ़र करें तो इससे अपने आख़ेरत के सफ़र को याद करें जो मौत से शुरू होता है।
अब आइए सूरए ज़ुख़रुफ़ की आयत संख्या 15 की तिलावत सुनते हैं
وَجَعَلُوا لَهُ مِنْ عِبَادِهِ جُزْءًا إِنَّ الْإِنْسَانَ لَكَفُورٌ مُبِينٌ (15)
इस आयत का अनुवाद हैः
और उन लोगों ने उसके बन्दों में से उसके लिए औलाद क़रार दी है इसमें शक़ नहीं कि इन्सान खुल्लम खुल्ला बड़ा ही नाशुक्रा है। [43:15]
कायनात और उसमें पायी जाने वाली चीज़ें और हर वजूद की रचना करने वाले और उनके अस्तित्व को बचाए रखने वाले अनन्य ईश्वर और एक अल्लाह के अक़ीदे के नमूने पेश करने के बाद यह आयत कुछ इंसानों के शिर्क की शिकायत करती है कि किस तरह संभव है कि कुछ मुशरिक यह समझ बैठते हैं कि फ़रिश्ते अल्लाह की औलाद हैं और अन्य इंसानों की संतान की तरह फ़रिश्ते भी अल्लाह के अस्तित्व का एक भाग हैं?
अल्लाह तो निराकार है। उसका भाग हो ही नहीं सकता, उसका कोई हिस्सा उससे कैसे अलग हो सकता है जबकि उसका कोई शरीर नहीं है। फ़रिश्ते भी अल्लाह की मख़लूक़ हैं। अल्लाह ने उन्हें पैदा किया है। वो कायनात की व्यवस्था चलाने वाले कारिंदों की हैसियत रखते हैं। वो अल्लाह के अस्तित्व का एक भाग नहीं हैं।
इस आयत से हमने सीखाः
इतिहास में अल्लाह के बारे में और उसकी पैदा की हुई मख़लूक़ से उसके संबंध बारे में बहुत सी भ्रामक बातें बयान की गई हैं जो सब की सब अज्ञानता से जन्मीं और इस तरह के विचार इंसानों के मन में तब आते हैं जब वो पैग़म्बरों की शिक्षाओं को नज़रअंदाज़ करने लगता है।
फ़रिश्ते अल्लाह की मख़लूक़ और उसके आदेशों के पाबंद हैं। वे अल्लाह की औलाद नहीं हैं।
ग़लत आस्थाएं और शिर्क पर आधारित अक़ीदा इंसान को अल्लाह से दूर और सीधे मार्ग से भ्रमित कर देता है और इंसान नाशुक्री करने लगता है।