क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-921
सूरए ज़ुख़रुफ़, आयतें 43-48
आइए पहले सूरए ज़ुख़रुफ़ की आयत संख्या 43 और 44 की तिलावत सुनते हैं,
فَاسْتَمْسِكْ بِالَّذِي أُوحِيَ إِلَيْكَ إِنَّكَ عَلَى صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ (43) وَإِنَّهُ لَذِكْرٌ لَكَ وَلِقَوْمِكَ وَسَوْفَ تُسْأَلُونَ (44)
इन आयतों का अनुवाद हैः
तो तुम्हारे पास जो वहि भेजी गयी है तुम उसे मज़बूत पकड़े रहो इसमें शक नहीं कि तुम सीधी राह पर हो। [43:43] और ये (क़ुरान) तुम्हारे लिए और तुम्हारी क़ौम के लिए नसीहत है और बहुत जल्द तुम लोगों से जवाब तलब किया जाएगा। [43:44]
पिछले कार्यक्रम में विरोधियों की ज़िद और अड़ियल रवैए की बात हुई और यह बताया गया कि वो पैग़म्बरों की बात सुनने के लिए तैयार नहीं होते थे। अब यह आयतें रसूले ख़ुदा से कहती हैं कि तुम्हारा रास्ता और मिशन सही है इसमें किसी तरह की कोई कमी और ख़राबी नहीं। अगर विरोधी तुम्हारी बात नहीं मानते तो इसका यह मतलब नहीं कि तुम्हारी बात सही नहीं है।
तुम अल्लाह के फ़रमान के अनुसार और जो वहि के रूप में संदेश भेजा गया है उसके मुताबिक़ अपने रास्ते पर संजीदगी से आगे बढ़ते रहो और उसे मज़बूती से पकड़े रहो। जान लो कि तुम सही रास्ते पर हो और सत्य का रास्ता यही है।
दरअस्ल क़ुरआन भेजने का मक़सद इंसानों को ग़फ़लत से जगाना और उन्हें उनके दायित्वों से अवगत कराना है। तुम्हारी उम्मत को भी चाहिए कि क़ुरआन को मज़बूती से पकड़े और उसकी शिक्षाओं को हमेशा याद रखे और उस पर अमल करे। क्योंकि यह क़ुरआन वो चीज़ें बताता और सिखाता है जो अक़्ल और इंसानी प्रवृत्ति के अनुरूप हैं। यह इंसानों को ग़फ़लत में पड़ने से बचाता है।
एक चीज़ जिसे आम तौर पर इंसान भूल जाता है क़यामत का दिन है। उस दिन सबसे सवाल पूछा जाएगा। उस दिन हर इंसान को अपने कर्मों के बारे में जवाब देना होगा। यह बताना होगा कि क़ुरआन और उसकी शिक्षाओं पर उसने कितना ध्यान दिया और कितना अमल किया।
इन आयतों से हमने सीखाः
विश्वस्नीय और हर संदेह से दूर रास्ता क़ुरआन और उसकी शिक्षाओं को अपनाना है। इनके सही होने की गैरेंटी अल्लाह ने ली है।
क़ुरआन के साथ ही पैग़म्बर की सीरत, उनके कथन और उनके अमल हमारे सामने ठोस दलील हैं। अल्लाह ने कहा है कि पैग़म्बर का रास्ता ही सही रास्ता है।
क़यामत में मुसलमानों से क़ुरआन के बारे में और क़ुरआन से उनका कितना रिश्ता रहा है इस बारे में सवाल किया जाएगा।
आइए अब सूरए ज़ुख़रुफ़ की आयत संख्या 45 की तिलावत सुनते हैं,
وَاسْأَلْ مَنْ أَرْسَلْنَا مِنْ قَبْلِكَ مِنْ رُسُلِنَا أَجَعَلْنَا مِنْ دُونِ الرَّحْمَنِ آَلِهَةً يُعْبَدُونَ (45)
इस आयत का अनुवाद हैः
और हमने तुमसे पहले अपने जितने पैग़म्बर भेजे हैं उन सब से मालूम करके देखो क्या हमने ख़ुदा के सिवा और माबूद बनाए थे कि उनकी इबादत की जाए। [43:45]
मक्के के मुशरिक ख़ुद को हज़रत इब्राहीम और हज़रत इस्माईल की नस्ल का कहते थे और हर साल हज जैसे कुछ अमल अंजाम देते थे। ख़ानए काबा का सम्मान करते थे मगर साथ ही बुतों की पूजा करते थे। इसलिए यह आयत बुतों की पूजा को ग़लत ठहराने और मुशरिकों के अक़ीदे को नकारने के लिए आई और इसमें पैग़म्बरे इस्लाम को संबोधित करते हुए कहा गया कि पिछले पैग़म्बरों के अनुयाइयों से सवाल करो कि क्या उन पैग़म्बरों ने लोगों से यह कहा था कि अल्लाह के अलावा दूसरी चीज़ों की इबादत करो?
यह आयत मुसलमानों से कहती है कि पिछले पैग़म्बरों के अनुयाइयों से पूछो कि क्या अल्लाह ने इस तरह का आदेश दिया है कि उसके अलावा किसी और की इबादत की जाए? अगर अल्लाह ने इस तरह का कोई फ़रमान दिया है तो हमें कोई आपत्ति नहीं है। क्योंकि हम तो अल्लाह के हुक्म के पाबंद हैं वो जो कहे उस पर अमल करते हैं।
इस सवाल के ज़रिए यह आयत दरअस्ल इस बिंदु की तरफ़ संकेत करती है कि अल्लाह के सारे पैग़म्बर तौहीद का प्रचार करते थे और सबने ठोस तरीक़े से बुतों की पूजा और शिर्क की निंदा की। दूसरे यह कि पैग़म्बरे इस्लाम ने मूर्ति पूजा के विरोध और तौहीद के प्रचार के लिए जो कुछ किया वो कोई नई चीज़ नहीं थी बल्कि यह पिछले सारे पैग़म्बरों का मिशन था जिसे उन्होंने ज़िंदा किया।
इस आयत से हमने सीखाः
अल्लाह के दीन का केन्द्र तौहीद है और इस पर क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम ने भी ताकीद की है।
किसी भी चीज़ या व्यक्ति की पूजा जायज़ नहीं है चाहे वो अल्लाह को छोड़कर की जाए या अल्लाह की पूजा करते हुए उसके साथ में की जाए। इबादत तो सिर्फ़ अल्लाह के लिए है जो रहमान है।
अब सूरए ज़ुख़रुफ़ की आयत संख्या 46 और 47 की तिलावत सुनते हैं,
وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا مُوسَى بِآَيَاتِنَا إِلَى فِرْعَوْنَ وَمَلَئِهِ فَقَالَ إِنِّي رَسُولُ رَبِّ الْعَالَمِينَ (46) فَلَمَّا جَاءَهُمْ بِآَيَاتِنَا إِذَا هُمْ مِنْهَا يَضْحَكُونَ (47)
इन आयतों का अनुवाद हैः
और हम ही ने यक़ीनन मूसा को अपनी निशानियाँ देकर फिरऔन और उसके दरबारियों के पास (पैग़म्बर बनाकर) भेजा था तो मूसा ने कहा कि मैं सारे जहान के पालने वाले (ख़ुदा) का रसूल हूँ। [43:46] तो जब मूसा उन लोगों के पास हमारे चमत्कार लेकर आए तो वह लोग उन चमत्कारों की हँसी उड़ाने लगे। [43:47]
यह आयतें हज़रत मूसा के साथ पेश आने वाले हालात का ज़िक्र करती हैं कि हज़रत मूसा की एक ज़िम्मेदारी यह थी कि बनी इस्राईल के साथ ही फ़िरऔन के पास भी जाएं और उसे भी अल्लाह के रास्ते की दावत दें। इसी संदर्भ में उन्होंने अल्लाह का दिया हुआ चमत्कार फ़िरऔन और उसके दरबार की बड़ी हस्तियों के सामने पेश किया और इस तरह से सुबूत दिया कि वो अल्लाह के रसूल हैं और उन्हें सारी दुनिया वालों के लिए पैग़म्बर बनाकर भेजा गया है। फ़िरऔन के विपरीत जो दावा तो बहुत करता था कि वो लोगों का जीवन चलाने वाला परवरदिगार है और सबका फ़र्ज़ है कि उसकी आज्ञापालन करें।
जब हज़रत मूसा फ़िरऔन के दरबार में गए कि उसे सही रास्ते की हिदायत करें तो उस समय उन्होंने सादा सा लिबास पहन रखा था। हज़रत मूसा ने फ़िरऔन को संबोधित करते हुए कहा कि मुझे अल्लाह ने भेजा है ताकि मैं तेरी हिदायत करूं। मगर फ़िरऔन और उसके दरबारियों ने उनका मज़ाक़ उड़ाया और उन पर हंसे। क्योंकि मक्का वासियों की तरह वे लोग भी इसी ग़लतफ़हमी में थे कि अगर अल्लाह किसी को अपना दूत बनाएगा तो वो उच्च वर्ग के किसी धनवान व्यक्ति को चुनेगा, उस व्यक्ति को नहीं जिसका कोई नाम और शोहरत नहीं है बल्कि जो किसी समय फ़िरऔन के यहां पलते थे। इस तरह का व्यक्ति दावा कर रहा है कि वो फ़िरऔन और उसकी क़ौम की हिदायत करेगा।
इन आयतों से हमने सीखाः
पैग़म्बर अपने मिशन के दौरान आम लोगों के साथ ही शासकों के पास भी जाते थे क्योंकि समाज का सुधार शासक के सुधार के बग़ैर संभव नहीं है।
पैग़म्बरों के अंदर व्यक्तिगत रूप से भी बड़े गुण और नैतिक विशेषताएं होती थीं और साथ ही वे अपने दावे को सही साबित करने के लिए चमत्कार पेश करते थे ताकि लोगों को कोई संदेह न रह जाए।
विरोधियों का तरीक़ा यह होता था कि वे पैग़म्बरों का मज़ाक़ उड़ाते थे। उनके पास कोई तर्क नहीं होता था।
अब आइए सूरए ज़ुख़रुफ़ की आयत संख्या 48 की तिलावत सुनते हैं,
وَمَا نُرِيهِمْ مِنْ آَيَةٍ إِلَّا هِيَ أَكْبَرُ مِنْ أُخْتِهَا وَأَخَذْنَاهُمْ بِالْعَذَابِ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ (48)
इस आयत का अनुवाद हैः
और हम जो चमत्कार उन को दिखाते थे वह दूसरे से बढ़ कर होता था और आख़िर हमने उनको अज़ाब में गिरफ्तार किया ताकि ये लोग बाज़ आएँ। [43:48]
यह आयत पिछली आयतों की बात को जारी रखते हुए कहती है कि फ़िरऔनियों से हर बहाना छीन लेने के लिए कई चमत्कार पेश किए गए जिनमें हर चमत्कार पिछले वाले से बड़ा होता था ताकि वे लोग घमंड और स्वार्थ से दूर हों और अगर सच्चाई समझने का इरादा रखते हैं तो उसे समझें और तलाश करें। लेकिन जैसे जैसे चमत्कार बढ़ता गया ज़िद भी बढ़ती गई। यहां तक कि चमत्कार दिखाने के साथ ही उन्हें सूखा और दूसरी आपदाओं जैसी चेतावनी देने वाली घटनाओं में फंसा दिया ताकि शायद उनकी आंख खुले और वे सत्य के रास्ते पर जाएं।
इस आयत से हमने सीखाः
अल्लाह ने इसलिए कि लोगों के पास बहानेबाज़ी का मौक़ा न रहे एक तर्क पेश करके बात ख़त्म नहीं बल्कि उसके साथ ही चमत्कार भी भेजा। यह भी दरअस्ल बंदों पर अल्लाह के ख़ास करम की निशानी है।
हुज्जत पूरी हो जाने के बाद यानी तब जब बहानेबाज़ी की कोई गुंजाइश न बचे, दुनियावी सज़ा की बारी आती है। ताकि इस चेतावनी की नतीजे में इंसान ग़लत रास्ते से पांव वापस खींच ले।