Feb ०४, २०२५ १७:१९ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-925

सूरए ज़ुख़रुफ़, आयतें 70-78

आइए पहले सूरए ज़ुख़रुफ़ की आयत संख्या 70 से 73 तक की तिलावत सुनते हैं,

ادْخُلُوا الْجَنَّةَ أَنْتُمْ وَأَزْوَاجُكُمْ تُحْبَرُونَ (70) يُطَافُ عَلَيْهِمْ بِصِحَافٍ مِنْ ذَهَبٍ وَأَكْوَابٍ وَفِيهَا مَا تَشْتَهِيهِ الْأَنْفُسُ وَتَلَذُّ الْأَعْيُنُ وَأَنْتُمْ فِيهَا خَالِدُونَ (71) وَتِلْكَ الْجَنَّةُ الَّتِي أُورِثْتُمُوهَا بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ (72) لَكُمْ فِيهَا فَاكِهَةٌ كَثِيرَةٌ مِنْهَا تَأْكُلُونَ (73)

इन आयतों का अनुवाद हैः तो तुम अपनी बीवियों समेत ख़ुशी और हर्ष के साथ जश्रोताओ का

जन्नत में दाख़िल हो जाओ। [43:70]  उन पर सोने की रिकाबियों और प्यालियों का दौर चलेगा और वहाँ जिस चीज़ को जी चाहे और जिससे आंखें लज़्ज़त उठाएं (सब मौजूद हैं) और तुम उसमें हमेशा रहोगे। [43:71]  और ये जन्नत जिसके तुम वारिस (हिस्सेदार) बना दिये गये हो तुम्हारी क़ारगुज़ारियों का बदला है। [43:72]  वहाँ तुम्हारे वास्ते बहुत से मेवे हैं जिनको तुम खाओगे। [43:73]

पिछले कार्यक्रम की आख़िरी आयत में इस बारे में बात हुई कि अल्लाह की तरफ़ से नेक बंदों को बशारत दी जाएगी कि क़यामत में उनके लिए कोई ख़ौफ़ और डर नहीं होगा। अब यह आयतें जन्नत के हालात बयान कर रही हैं कि जो लोग दुनिया में ईमान की हिफ़ाज़त में अपने जीवन साथी के शरीक और कठिनाइयों और समस्याओं का सामना करने में एक दूसरे के भागीदार रहे हैं वे क़यामत में ख़ुशी और हर्ष में एक दूसरे के भागीदार बनेंगे और अपने जीवन साथी के समीप होंगे एक दूसरे से जुदा नहीं होंगे। वो ख़ुशियों में डूब जाएंगे और यह ख़ुशी उनके चेहरों से साफ़ झलक रही होगी।

वो सारी लज़्ज़तें और ख़ुशियां जिनसे ईमान वाले अपने ईमान की हिफ़ाज़त की वजह से दूर रहे अल्लाह क़यामत में उन्हें प्रदान करेगा। जन्नत के आकर्षक सेवक बेपनाह स्वादिष्ट खानों और शरबतों के साथ जो बेहतरीन और अति सुंदर बर्तनों में होंगे उनकी सेवा करेंगे और वो जो भी चाहेंगे उनके लिए मुहैया कराएंगे। वो भी ऐसी नेमतें जो कभी ख़त्म न होंगी। जन्नत के लोग असीम शांति और सुकून में बिना किसी आशंका और चिंता के समय गुज़ारेंगे और उन लज़्ज़तों और ख़ुशियों से कभी उनका जी नहीं ऊबेगा।

आयतें इसके आगे दो नेमतों का ज़िक्र करती हैं एक तो यह कि जन्नत में हर वो चीज़ मौजूद होगी जिसका दिल चाहेगा और जिसे देखकर आंखों को आनंद मिलेगा। यह कितना आकर्षक और मनमोहक बयान है?! इसी तरह इस उद्देश्य से कि बहिश्त वालों को नेमतों के ख़त्म हो जाने की आशंका न सताए आयत कहती है कि तुम इस हालत में हमेशा रहोगे।

आयत इसके आगे कहती है पल पल नयी ऊर्जा और नया जीवन देने वाली यह नेमतें जो तुम्हें दी गई हैं उस अमल की वजह से है जो तुमने किए। यहां दरअस्ल इस बिंदु की तरफ़ इशारा है कि तुम्हारी निजात का अस्ली कारण और ज़रिया तुम ख़ुद हो। इन आयतों के आख़िर में बहिश्त के फलों का ज़िक्र है। बहिश्त के दरख़्तों पर हमेशा बेपनाह फल लगे रहेंगे और बहिश्त वाले इन भांति भांति के स्वादिष्ट फलों का सेवन करेंगे।

इन आयतों से हमने सीखाः

साहिबे ईमान जीवनसाथी क़यामत में भी एक दूसरे के साथ होंगे।

जो लोग दुनिया में अल्लाह की मर्ज़ी की ख़ातिर परायी औरतों या मर्दों को देखने और ग़लत व अशिष्ट दृष्यों पर नज़र डालने से ख़ुद को बचाएंगे आख़ेरत में आकर्षक जन्नती जीवनसाथी के सामिप्य का आनंद उन्हें मिलेगा। वो भी ऐसा आनंद जिससे दुनिया की किसी भी लज़्ज़त की तुलना नहीं की जा सकती।

दुनिया की लज़्ज़तें और ख़ुशियां सीमित और अस्थायी हैं। सारी लज़्ज़तों और इच्छाओं का पूरा होना वो भी स्थायी रूप से केवल जन्नत में ही संभव है।

बहिश्त अमल और कर्म के बदले मिलती है, अकारण नहीं। नेक अमल के बग़ैर बहिश्त में जाने की आस लगाना ग़लत है।

बहिश्त की एक आनंददायक नेमत फलों की बहुतायत और विविधता है।

आइए पहले सूरए ज़ुख़रुफ़ की आयत संख्या 74 से 76 तक की तिलावत सुनते हैं,

إِنَّ الْمُجْرِمِينَ فِي عَذَابِ جَهَنَّمَ خَالِدُونَ (74) لَا يُفَتَّرُ عَنْهُمْ وَهُمْ فِيهِ مُبْلِسُونَ (75) وَمَا ظَلَمْنَاهُمْ وَلَكِنْ كَانُوا هُمُ الظَّالِمِينَ (76)

इन आयतों का अनुवाद हैः

गुनहगार (कुफ़्फ़ार) तो यक़ीकन जहन्नम के अज़ाब में हमेशा रहेगें। [43:74]  जो उनसे कभी कम न किया जाएगा और वह इसी अज़ाब में नाउम्मीद होकर रहेंगें। [43:75]  और हमने उन पर कोई ज़ुल्म नहीं किया बल्कि वह लोग ख़ुद अपने ऊपर ज़ुल्म कर रहे हैं। [43:76]

क़यामत में बहिश्त में जाने वाले लोगों की स्थिति बयान करने के बाद अब यह आयतें गुनहगारों का वहां क्या अंजाम होगा इस बारे में बताती है ताकि इंसान क़यामत में इन दोनों समूहों के अंजाम की तुलना करके दुनिया में अपने लिए सही रास्ता चुने। आयत पहले कहती है कि जिस तरह नेक बंदे बहिश्त में हमेशा रहेंगे गुनहगार जहन्नम में हमेशा रखे जाएंगे।

अलबत्ता दूसरी आयतों और रवायतों को मद्देनज़र रखा जाए तो यह पता चलता है कि सारे गुनहगारों को हमेशा जहन्नम में नहीं रखा जाएगा बल्कि जहन्नम में हमेशा रहने वाले गुनहगार वो लोग है कि दुनिया की ज़िंदगी में जिनकी शैली और अंदाज़ से यह साफ़ हो चुका है कि अगर वो हज़ार साल भी दुनिया में जीवित रहते तो हक़ का विरोध करने और दूसरों पर ज़ुल्म करने से बाज़ न आते। ज़ाहिर है कि इस तरह के अड़ियल और ज़िद्दी इंसान इस योग्य ही नहीं है कि उस पर अल्लाह की रहमत नाज़िल हो और वो अज़ाब से निजात पा जाए या उसकी सज़ा में कमी की जाए। तो उनके लिए वहां से निजात का कोई रास्ता नहीं है इसलिए वो मायूस होंगे और उन पर ग़म छाया होगा। आयतें आगे कहती हैं कि कोई यह न सोच बैठे के अल्लाह ने उनके ऊपर ज़ुल्म किया है कि दुनिया की सीमित ज़िंदगी की ग़लती पर आख़ेरत के असीम जीवन भर के लिए उन्हें सज़ा दे दी है, इसलिए अल्लाह कहता है कि अपने लिए यह अंजाम उन्होंने ख़ुद तय किया है। इस स्थायी अज़ाब की वजह उनके अत्याचार हैं।

आज की दुनिया में भी क़ानून में जुर्म के असर और सज़ा के बीच एक मुताबिक़त ज़रूर होती है। यह ज़रूरी नहीं है कि सज़ा उस मुद्दत के आधार पर रखी जाए जितनी मुद्दत में अपराध किया गया है। इसलिए कुछ अपराध इस तरह के हैं कि बहुत कम समय में अंजाम दिए गए लेकिन उनका जो भयानक नतीजा निकला उसको देखते हुए अपराधी को लंबी सज़ा यहां तक कि उम्र क़ैद की सज़ा दी जाती है।

 

इन आयतों से हमने सीखाः

क़ुरआन के तरबियती उसूलों में चेतावनी और ख़ुशख़बरी दोनों एक साथ हैं ताकि कोई भी व्यक्ति ग़लत आशावाद और मायूसी का शिकार न हो।

जिस तरह भले कर्म से इंसान बहिश्त में जाता है उसी तरह उसका बुरा कर्म उसे जहन्नम में पहुंचा देता है।

अल्लाह किसी पर अत्याचार नहीं करता, कुकर्मी ज़ालिम को सज़ा ज़रूर देता है।

आइए पहले सूरए ज़ुख़रुफ़ की आयत संख्या 77 और 78 की तिलावत सुनते हैं,

وَنَادَوْا يَا مَالِكُ لِيَقْضِ عَلَيْنَا رَبُّكَ قَالَ إِنَّكُمْ مَاكِثُونَ (77) لَقَدْ جِئْنَاكُمْ بِالْحَقِّ وَلَكِنَّ أَكْثَرَكُمْ لِلْحَقِّ كَارِهُونَ (78)

इन आयतों का अनुवाद हैः  

और (जहन्नमी) पुकारेगें कि ऐ मालिक (दरोग़ा ए जहन्नुम) तुम्हारा परवरदिगार हमें मौत ही दे दे वह जवाब देगा कि तुमको इसी हाल में रहना है। [43:77]    (ऐ कुफ़्फ़ारे मक्का) हम तो तुम्हारे पास हक़ लेकर आये हैं तुम में से बहुत से हक़ (बात) से चिढ़ते हैं। [43:78]  

जहन्नम में गुनहगारों और ज़ालिमों की हालत इतनी बुरी और असहनीय होगी कि उन्हें लगेगा कि मौत ही आ जाती तो कुछ राहत मिल जाती। वो वहां के फ़रिश्ते से अनुरोध करेंगे कि अल्लाह से सिफ़ारिश कर दो कि हमें इस कठिन हालत से निकाल दे। मगर उन्हें जवाब दिया जाएगा कि यह आरज़ू पूरी नहीं होगी तुम्हें यहीं हमेशा रहना होगा।

अगर इंसान दुनिया में आत्म हत्या करके अपना जीवन समाप्त कर सकता है तो क़यामत में यह संभव नहीं होगा। यहां तक कि कठोर अज़ाब और जहन्नम की भस्म कर देने वाली आग भी उसे मौत तक नहीं पहुंचाएगी। आयत में आगे यह बताया गया है कि इन लोगों के जहन्नम में जाने की सबसे बड़ी वजह हक़ से गुरेज़ और उसके ख़िलाफ़ लड़ना बताया गया है। आयत कहती है कि वे लोग दुनिया में हक़ बात को पसंद नहीं करते थे बल्कि अपनी मर्जी और इच्छाओं की फ़िक्र में रहते थे। वो इतना ही नहीं कि हक़ को स्वीकार नहीं करते थे बल्कि उसे सुनने और उसके बारे में सोचने के लिए भी तैयार नहीं होते थे। आख़िरकार हक़ और सत्य से उनकी लड़ाई ने उन्हें स्थायी अज़ाब में फंसा दिया।

इन आयतों से हमने सीखाः

दुनिया में हमें अपने अमल और बर्ताव का बहुत ख़याल रखना चाहिए ताकि आख़ेरत में हम मौत की आरज़ू करने पर मजबूर न हों और वो आरज़ू भी पूरी नहीं की जाएगी।

अल्लाह का अज़ाब और सज़ा हर बहाने की गुंजाइश ख़त्म करने के बाद ही दी जाती है। तो दोज़ख़ में केवल वही जाएगा जिसने हक़ को समझ लिया था लेकिन उसके बावजूद उसके ख़िलाफ़ लड़ता रहा।

हक़ को स्वीकार करना और उसके समक्ष समर्पित हो जाना दुनिया और आख़ेरत में इंसान के कल्याण का रास्ता है। इसी तरह हक़ की दुश्मनी इंसान को दुनिया और आख़ेरत हर जगह दुर्भाग्य में फंसा देती है।