Feb ०५, २०२५ १५:११ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-934

सूरए जासिया, आयतें 1-8

आइए सबसे पहले सूरए जासिया की आयत संख्या 1 से 3 तक की तिलावत सुनते हैं,

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ

حم (1) تَنْزِيلُ الْكِتَابِ مِنَ اللَّهِ الْعَزِيزِ الْحَكِيمِ (2) إِنَّ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ لَآَيَاتٍ لِلْمُؤْمِنِينَ (3)

 

इन आयतों का अनुवाद हैः

 

अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है।

 

हा मीम [45:1]  ये किताब (क़ुरान) ख़ुदा की तरफ से नाज़िल हुई है जो शक्तिशाली और जानकार है। [45:2] बेशक आसमान और ज़मीन में ईमान वालों के लिए बहुत सी निशानियाँ हैं।[45:3]

सूरए जासिया मक्के में नाज़िल हुआ और मक्के में नाज़िल होने वाले अन्य सूरों की तरह इस सूरे की आयतों में भी तौहीद पर तर्क, गुमराहों को चेतावनी और क़यामत में इंसानों के अंजाम के बारे में सावधानियां पेश की गई हैं। इस सूरे की पहली आयत में मक़त्तआत कहे जाने वाले अक्षर हैं। बाद वाली आयत के मद्देनज़र जिसमें क़ुरआन के अल्लाह की तरफ़ से नाज़िल किए जाने का ज़िक्र है, पहली आयत कहती है कि इन्हीं अक्षरों से क़ुरआन की रचना की गई है। यही अक्षर सारे इंसानों के पास हैं लेकिन फिर भी कोई क़ुरआन जैसी रचना नहीं कर सकता।

क़ुरआन के नाज़िल होने को अल्लाह की दो विशेषताओं से संबंधित बताया गया है। उसकी महानता और उसका ज्ञान। इन विशेषताओं के मद्देनज़र अल्लाह मोमिन इंसानों से चाहता है कि वे हमेशा अपनी इज़्ज़त की हिफ़ाज़त करें और किसी भी हाल में अपमान स्वीकार न करें। अक़्ल और समझदारी से अपने मामलों को व्यवस्थित रखें और निराधार और अस्वस्थ कार्यों से ख़ुद को दूर रखें।

आयतें इसके बाद कायनात में अल्लाह की महानता की निशानियां बयान करती हैं और इस महत्वपूर्ण बिंदु पर ध्यान केन्द्रित कराती हैं कि क़ुआरन को उसी हस्ती ने नाज़िल किया है जिसने आसमानों और ज़मीन को पैदा किया। क़ुरआन में उल्लेखित उसके आदेश और नियम कायनात और इंसान की रचना की व्यवस्था से समन्वित हैं। इसलिए ईमान वाले लोग केवल आसमानी किताब की आयतों पर नज़र नहीं रखते बल्कि बड़ी बारीकी से आसमानों और ज़मीन को देखते हैं ताकि उन्हें कायनात में अल्लाह की निशानियां नज़र आएं और उनका ईमान मज़बूत हो।

आसमानों की महानता और उनकी हैरत अंगेज़ व्यवस्था, ज़मीन का ढांचा और उसकी हैरत अंगेज़ चीजें इनमें हर एक अल्लाह की निशानी है। ज़मीन की व्यवस्थित और निर्धारित हरकतें हैं। ज़मीन अपने चारों ओर चक्कर काटती है और एक ख़ास कक्षा में सूरज के चारों ओर भी चक्कर काटती रहती है। ज़मीन इसी तरह सौरमंडल में आकाशगंगा में अपना सफ़र तय करती है। मगर इसके बावजदू इस तरह शांत नज़र आती है कि इस पर इंसानों और दूसरे प्राणियों को सुकून मिलता है। इस धरती पर रहने वालों को उसकी तेज़ हरकत का कोई एहसास नहीं होता।

धरती में तरह तरह की खदाने और जीवन के संसाधन हैं जिनकी मदद से अरबों इंसान जीवन गुज़ारते हैं। पहाड़ और समुद्र भी अल्लाह की निशानियां हैं। दरअस्ल आसमान और ज़मीन इतने सुंदर हैं कि इंसान उनके जादू में खो जाता है। लेकिन मोमिन बंदे ज़ाहिरी बातों को देखकर गुज़र नहीं जाते बल्कि विचार करते हैं कि इनका रचयिता कौन है।

इन आयतों से हमने सीखाः

क़ुरआन जो अल्लाह के क़ानून की किबात है, इंसानों का भाग्य सवांरने के लिए आई है। इसे अल्लाह की तत्वदर्शिता के आधार पर नाज़िल किया गया है।

कायनात की रचना और उसे चलाने के लिए बनाए गए क़ानून सब का स्रोत एक है और दोनों में पूर्ण समन्वय है।

अल्लाह की किताब की आयतें भी और प्रकृति के पन्नों पर फैली निशानियां भी ईमान वालों के लिए अहम निशानियां हैं।

अब आइए सूरए जासिया की आयत संख्या 4 से 6 तक की तिलावत सुनते हैं,

وَفِي خَلْقِكُمْ وَمَا يَبُثُّ مِنْ دَابَّةٍ آَيَاتٌ لِقَوْمٍ يُوقِنُونَ (4) وَاخْتِلَافِ اللَّيْلِ وَالنَّهَارِ وَمَا أَنْزَلَ اللَّهُ مِنَ السَّمَاءِ مِنْ رِزْقٍ فَأَحْيَا بِهِ الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا وَتَصْرِيفِ الرِّيَاحِ آَيَاتٌ لِقَوْمٍ يَعْقِلُونَ (5) تِلْكَ آَيَاتُ اللَّهِ نَتْلُوهَا عَلَيْكَ بِالْحَقِّ فَبِأَيِّ حَدِيثٍ بَعْدَ اللَّهِ وَآَيَاتِهِ يُؤْمِنُونَ (6)

इन आयतों का अनुवाद हैः

और तुम्हारी पैदाइश में (भी) और जिन जानवरों को वह (ज़मीन पर) फैलाता रहता है (उनमें भी) यक़ीन करने वालों के वास्ते बहुत सी निशानियाँ हैं।[45:4]  और रात दिन के आने जाने में और ख़ुदा ने आसमान से जो रिज़्क़ (पानी) नाज़िल फरमाया फिर उससे ज़मीन को उसके मर जाने के बाद ज़िन्दा किया (उसमें) और हवाओं के फेर बदल में अक़्लमन्द लोगों के लिए बहुत सी निशानियाँ हैं। [45:5] ये ख़ुदा की आयतें हैं जिनको हम ठीक (ठीक) तुम्हारे सामने पढ़ते हैं तो ख़ुदा और उसकी आयतों के बाद कौन सी बात होगी जिस पर वे ईमान लाएंगे?। [45:6]

दुनिया में अल्लाह की निशानियों का ज़िक्र करने के बाद यह आयतें पहले इंसानों को चेतावनी देती हैं कि तुम अपनी रचना के बारे में विचार क्यों नहीं करते कि अल्लाह की शक्ति और महानता को समझते? तुम इस धरती पर अपने आस पास जीवन गुज़ारने वाले जानवरों पर ध्यान क्यों नहीं देते? हालांकि इन चीज़ों के बारे में विचार से इंसान का अल्लाह पर ईमान मज़बूत होता है।

अगर तुम प्राकृतिक तथ्यों के बारे में जैसे बारिश, सूरज के उदय और अस्त के बारे में विचार करो तो तुम्हें पता चलेगा कि कायनात का रचनाकर ही सारी कायनात का संचालन कर रहा है। उसी ने ज़मीन में रहने वाले जीवों की प्राकृतिक ज़रूरतें पूरी करने के संसाधन और ज़मीन में उनके जीवन गुज़ारने की संभावनाएं उपलब्ध कराई हैं।

अगर कुछ लोग अनगिनत निशानियों पर नहीं सोचते, पैग़म्बर पर नाज़िल होने वाली चीज़ों पर ईमान नहीं लाते तो इसमें ख़ुद उनकी अपनी कमी है वरना अल्लाह की निशानियां तो कायनात में भी और क़ुरआन में भी बहुत साफ़ और स्पष्ट रूप में मौजूद हैं जिनके बारे में छोड़ा सा विचार करके इंसान यक़ीन तक पहुंच सकता है।

इन आयतों से हमने सीखाः

अल्लाह का पैग़ाम हमें कायनात के बारे में ग़ौर करने की दावत देता है ताकि अल्लाह पर हमारा ईमान सही जानकारी के आधार पर हो और हम इस मार्ग से यक़ीन तक पहुंचें।

बादल, हवा, बर्फ़ और बारिश जैसी प्राकृतिक चीज़ों को हम संयोग न मानें। अगर यह घटनाएं व्यवस्थित और प्रबंधित रूप में न हों तो इंसान और दूसरे प्राणी सूखे और भुखमरी से ख़त्म हो जाएंगे।

अल्लाह ने आसमानी किताब नाज़िल करके लोगों पर अपनी हुज्जत तमाम कर दी है और जो लोग ईमान नहीं लाते उनके पास कोई बहाना और तर्क नहीं है।

अब आइए सूरए जासिया की आयत संख्या 7 और 8 की तिलावत सुनते हैं,

وَيْلٌ لِكُلِّ أَفَّاكٍ أَثِيمٍ (7) يَسْمَعُ آَيَاتِ اللَّهِ تُتْلَى عَلَيْهِ ثُمَّ يُصِرُّ مُسْتَكْبِرًا كَأَنْ لَمْ يَسْمَعْهَا فَبَشِّرْهُ بِعَذَابٍ أَلِيمٍ (8)

 

इन आयतों का अनुवाद हैः 

धिक्कार हो हर झूठे और गुनाहगार पर। [45:7]  कि ख़ुदा की आयतें उसके सामने पढ़ी जाती हैं और वह सुनता भी है फिर ग़ुरूर से (कुफ़्र पर) अड़ा रहता है गोया उसने उन आयतों को सुना ही नहीं तो (ऐ रसूल) तुम उसे दर्दनाक अज़ाब की ख़ुशख़बरी दे दो। [45:8]

पिछली आयतों में कायनात में अल्लाह की कुछ निशानियों का ज़िक्र था। इसी तरह क़ुरआन अल्लाह की तरफ़ से नाज़िल किया गया है इसका उल्लेख था। अब यह आयतें कहती हैं कि जो लोग अल्लाह, उसके पैग़म्बर और उसकी आसमानी किताब पर ईमान नहीं लाते वो जान बूझ बर इच्छाओं के बहाव में आकर गुनाह की पस्ती में गिरे हैं। उनके दिल सत्य को स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं हैं। अब उन्हें अल्लाह के चाहे जितनी निशानियां दिखा दी जाएं वे उन्हें देखने और उनके बारे में कुछ सुनने के लिए तैयार नहीं हैं। वे बिल्कुल उन लोगों की तरह है जिसने सोने का स्वांग भरा हो। एसे व्यक्ति को जितना भी जगाया जाए वो जागने वाला नहीं है।

ज़ाहिर है कि इस प्रकार के लोग अपने घमंड और गुनाहों की वजह से दंड के पात्र होंगे और दुनिया व आख़ेरत में अपने कर्मों का ख़मियाज़ा भुगतेंगे।

इन आयतों से हमने सीखाः

अल्लाह की बातों को सब के कानों तक पहुंचाना चाहिए। यहां तक कि उन लोगों तक भी जो गुनाह में डूबे हैं ताकि उनके पास कोई बहाना न रह जाए।

घमंड बुरी चीज़ है लेकिन अल्लाह के सामने अगर कोई अकड़े तो यह और भी बुरा है। इस घमंड पर अड़ जाना तो ख़ैर बहुत ही बुरा है।