Feb ०५, २०२५ १५:२३ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-936

सूरए जासिया, आयतें 15-20

 

आइये सबसे पहले सूरे जासिया की 15वीं आयत की तिलावत सुनते हैं।

مَنْ عَمِلَ صَالِحًا فَلِنَفْسِهِ وَمَنْ أَسَاءَ فَعَلَيْهَا ثُمَّ إِلَى رَبِّكُمْ تُرْجَعُونَ (15)

इस आयत का अनुवाद है

जो शख़्श नेक काम करता है तो ख़ास अपने लिए और बुरा काम करेगा तो उस का वबाल उसी पर होगा फिर (आख़िर) तुम अपने परवरदिगार की तरफ़ लौटाए जाओगे। [45:15]

इससे पहले वाले कार्यक्रम की आख़िरी आयत में उन लोगों की ओर संकेत किया गया था जो क़यामत का इंकार करते हैं। इस आयत में अल्लाह कहता हैः जो भी नेक काम करेगा वह अपने लिए और जो बुरा काम करेगा उसका नुकसान उसी को उठाना पड़ेगा। इसके बाद तुम लोग अपने पालनहार की ओर पलटाये जाओगे।" यानी कोई यह न सोचे कि उसके ईमान से अल्लाह को फायदा पहुंचेगा और उसकी नाफ़रमानी से अल्लाह को नुकसान पहुंचेगा। जो भी कोई काम करेगा उसका प्रतिफल उसी को मिलेगा और क़यामत में उसका नतीजा उसी को हासिल होगा। ठीक उसी तरह से जैसे कोई शिक्षक अपने छात्रों से यह कहे कि सबक़ पढ़ो या न पढ़ो इसका फ़ायदा और नुक़सान तुम्हीं लोगों को होगा, इसका फ़ायदा और नुक़सान मुझे नहीं होगा।

इस आयत से हमने सीखाः

अल्लाह के दंड और फल का मापदंड इंसान के नेक या बुरे अमल हैं और अल्लाह का क़ानून सारे इंसानों के लिए समान है।

2.   अल्लाह इंसान से बेनियाज़ है और अल्लाह की शिक्षायें इंसान की परिपूर्णता और उसके कमाल के लिए हैं।

आइये अब सूरे जासिया की 16वीं और 17वीं आयतों की तिलावत सुनते हैं,

وَلَقَدْ آَتَيْنَا بَنِي إِسْرَائِيلَ الْكِتَابَ وَالْحُكْمَ وَالنُّبُوَّةَ وَرَزَقْنَاهُمْ مِنَ الطَّيِّبَاتِ وَفَضَّلْنَاهُمْ عَلَى الْعَالَمِينَ (16) وَآَتَيْنَاهُمْ بَيِّنَاتٍ مِنَ الْأَمْرِ فَمَا اخْتَلَفُوا إِلَّا مِنْ بَعْدِ مَا جَاءَهُمُ الْعِلْمُ بَغْيًا بَيْنَهُمْ إِنَّ رَبَّكَ يَقْضِي بَيْنَهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ فِيمَا كَانُوا فِيهِ يَخْتَلِفُونَ (17)  

इन आयतों का अनुवाद हैः

और हमने बनी इस्राईल को किताब (तौरेत) और हुकूमत और नबूवत अता की और उन्हें उम्दा उम्दा चीज़ें खाने को दीं और उनको सारे जहान पर फ़ज़ीलत दी। [45:16] और उनको दीन की खुली हुई दलीलें इनायत कीं तो उन लोगों ने इल्म आ चुकने के बाद बस आपस की ज़िद में एक दूसरे से एख्तेलाफ़ किया कि ये लोग जिन बातों से एख्तेलाफ़ कर रहें हैं क़यामत के दिन तुम्हारा परवरदिगार उनमें फैसला कर देगा। [45:17]

ये आयतें अल्लाह की उन बड़ी नेअमतों की ओर संकेत करती हैं जो प्राचीन समय में उसने बनी इस्राईल क़ौम को दी थीं ताकि इस्लामी उम्मत के लिए सबक़ बन जाए। सबसे पहले यह आयत आसमानी किताब, सत्ता हासिल करने और पैग़म्बरों के भेजे जाने का उल्लेख करती है और उसके बाद पवित्र आजीविका की ओर संकेत करती है।

इसी प्रकार अल्लाह कहता है कि इन नेमतों के कारण उन्हें अपने समय के लोगों पर फज़ीलत दे दी मगर हसद और एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा के कारण उनमें मतभेद हो गये जबकि हक़ उनके लिए स्पष्ट था और अल्लाह की किताब के आधार पर हक़ीक़त को समझने के लिए उनके पास काफ़ी सुबूत मौजूद थे फिर भी उन्होंने आपस में मतभेद किया। उन लोगों ने मतभेद को जारी रखा यहां तक कि उनकी ताक़त ख़त्म हो गयी और उनकी सत्ता भी चली गयी।

इन आयतों से हमने सीखाः

हमें यह जानना चाहिये कि भौतिक और आध्यात्मिक नेमतों को अल्लाह ने हमें दिया है और उनसे सही ढंग से लाभ उठाना चाहिये ताकि हम इस दुनिया में भी ऊंचाइयां हासिल कर सकें।

नबूव्वत और हुकूमत में कोई विरोधाभास नहीं है और सियासत का आधार धार्मिक सिद्धांत और मूल्य होना चाहिये।

अल्लाह ने लोगों की बहानेबाज़ी की गुंजाइश खत्म कर दी है और हक़ीक़त को समझने के लिए पर्याप्त चीज़ें लोगों के सामने रख दी हैं। फिर क़यामत में वह लोगों से पूछताछ और उन्हें दंडित कर सकता है।

इंसान की नजात के लिए केवल जानकारी होना काफ़ी नहीं है। कभी ऐसा होता है कि हसद, दुश्मनी और हठधर्मिता की वजह से इंसान हक़ को कबूल नहीं करता है और समाज में फूट डालता है।

आइये अब सूरे जासिया की 18 से 20 तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं।

ثُمَّ جَعَلْنَاكَ عَلَى شَرِيعَةٍ مِنَ الْأَمْرِ فَاتَّبِعْهَا وَلَا تَتَّبِعْ أَهْوَاءَ الَّذِينَ لَا يَعْلَمُونَ (18) إِنَّهُمْ لَنْ يُغْنُوا عَنْكَ مِنَ اللَّهِ شَيْئًا وَإِنَّ الظَّالِمِينَ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَاءُ بَعْضٍ وَاللَّهُ وَلِيُّ الْمُتَّقِينَ (19) هَذَا بَصَائِرُ لِلنَّاسِ وَهُدًى وَرَحْمَةٌ لِقَوْمٍ يُوقِنُونَ (20)

 

इन आयतों का अनुवाद हैः

फिर (ऐ रसूल) हमने तुमको दीन के खुले रास्ते पर क़ायम किया है तो इसी (रास्ते) पर चले जाओ और नादानों की ख़्वाहिशो की पैरवी न करो। [45:18] ये लोग ख़ुदा के सामने तुम्हारे कुछ भी काम न आएँगे और ज़ालिम लोग एक दूसरे के मददगार हैं और ख़ुदा तो परहेज़गारों का मददगार है। [45:19] ये (क़ुरान) लोगों (की) हिदायत के लिए दलीलो का मजमूआ है और बातें करने वाले लोगों के लिए हिदायत व रहमत है। [45:20]

बनी इस्राईल क़ौम का अतीत व अंजाम बयान करने के बाद अल्लाह पैग़म्बरे इस्लाम को संबोधित करते हुए कहता है कि हमने आपके लिए भी शरीअत रखी है ताकि उसके आधार पर लोगों को तौहीद की ओर बुलायें। अलबत्ता मुशरिक और विरोधी आपके मुकाबले में खड़े हो जायेंगे और आपके धर्म के प्रचार-प्रसार को रोकने के लिए सुझाव व प्रस्ताव भी पेश करेंगे मगर अल्लाह के धर्म पर उनसे कोई समझौता न कीजिये। अल्लाह कहता है हे पैग़म्बर! हक़ के रास्ते पर मज़बूती से डट जाइये और उसके प्रति कटिबद्ध रहिये और केवल उसके आदेशों का अनुसरण कीजिये और विरोधियों की मांगों पर कोई ध्यान मत दीजिये। क्योंकि अल्लाह केवल परहेज़गारों की हिदायत करता है मगर काफ़िर हमेशा अपने जैसे लोगों के साथ रहते हैं और अल्लाह के मुक़ाबले में न तो किसी को नुकसान पहुंचा सकते हैं और न ही अल्लाह के दंड से किसी को बचा सकते हैं। यही क़ुरआन जो आप पर नाज़िल हुआ है सबके मार्गदर्शन के लिए काफी है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जो यक़ीन के चरण तक पहुंचना चाहता है यह किताब उसकी हिदायत करेगी और अल्लाह की विशेष रहमत से उसे नवाज़ेगी।

इन आयतों से हमने सीखाः

अल्लाह के धर्मों में से हर एक हक़ और हक़ीक़त तक पहुंचने का मार्ग है और सबकी मंज़िल एक है। इस्लाम धर्म की शिक्षायें भी पहले वाले पैग़म्बरों की शिक्षाएं हैं।

जो भी अल्लाह के मार्ग का अनुसरण नहीं करेगा वह अपनी इच्छाओं या दूसरों का अनुसरण करेगा और उसका आधार न ज्ञान होगा न वास्तविकता की सही पहचान व समझ।

जाहिलों की इच्छाओं के अनुसरण का अर्थ उनकी विलायत को क़बूल करना है और अल्लाह की विलायत से दूरी करना है।

दीनदारी का आधार बसीरत और सही जानकारी होना चाहिये ताकि हिदायत, इत्मीनान और यक़ीन तक पहुंचने का ज़रिया बने।

पवित्र कुरआन वैचारिक, अखलाक़ी, सामाजिक, राजनीतिक और पारिवारिक क्षेत्रों में बसीरत और प्रकाश का स्रोत है।