Feb ०९, २०२५ १७:२४ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-949

सूरए मुहम्मद , आयतें 15-17

आइये सबसे पहले सूरे मोहम्मद की 15वीं आयत की तिलावत सुनते हैं,

مَثَلُ الْجَنَّةِ الَّتِي وُعِدَ الْمُتَّقُونَ فِيهَا أَنْهَارٌ مِنْ مَاءٍ غَيْرِ آَسِنٍ وَأَنْهَارٌ مِنْ لَبَنٍ لَمْ يَتَغَيَّرْ طَعْمُهُ وَأَنْهَارٌ مِنْ خَمْرٍ لَذَّةٍ لِلشَّارِبِينَ وَأَنْهَارٌ مِنْ عَسَلٍ مُصَفًّى وَلَهُمْ فِيهَا مِنْ كُلِّ الثَّمَرَاتِ وَمَغْفِرَةٌ مِنْ رَبِّهِمْ كَمَنْ هُوَ خَالِدٌ فِي النَّارِ وَسُقُوا مَاءً حَمِيمًا فَقَطَّعَ أَمْعَاءَهُمْ (15)

इस आयत का अनुवाद हैः

जिस बहिश्त का परहेज़गारों से वायदा किया जाता है उसकी सिफत ये है कि उसमें पानी की नहरें जिनमें ज़रा बू नहीं और दूध की नहरें हैं जिनका मज़ा तक नहीं बदला और शराब की नहरें हैं जो पीने वालों के लिए (सरासर) लज्ज़त है और साफ़ शफ्फ़ाफ़ शहद की नहरें हैं और वहाँ उनके लिए हर किस्म के मेवे हैं और उनके परवरदिगार की तरफ से बख़्शिश है (भला ये लोग) उनके बराबर हो सकते हैं जो हमेशा दोज़ख़ में रहेंगे और उनको खौलता हुआ पानी पिलाया जाएगा तो वह ऑंतों के टुकड़े टुकड़े कर डालेगा। [47:15] 

इससे पहली वाली आयतें काफ़िरों और अहले ईमान के बारे में थीं। इस आयत में स्वर्ग में मोमिनों के स्थान और नरक में काफ़िरों की जगह की ओर संकेत किया गया है और दोनों के स्थानों की कुछ विशेषताओं को बयान किया गया है।

दुनिया में इंसान की एक शारीरिक विशेषता व ज़रूरत प्यास है और यह वह ज़रूरत है जो जन्नत में भी रहेगी और इस ज़रूरत को दूर करने के लिए पानी का होना ज़रूरी है। महान  ईश्वर पवित्र क़ुरआन की इस आयत में कहता है कि इस ज़रूरत को पूरा करने के लिए उसने जन्नत में विभिन्न प्रकार की पीने की स्वादिष्ट चीज़ों को हाज़िर व फ़राहम कर दिया है। जैसे शीतल जल और शहद आदि मगर नरकवासियों को खौलते हुए पानी के अलावा कुछ और नसीब नहीं है जबकि वे दहकती हुई आग के अंदर हैं और ठंडे व शीतल जल की उन्हें अधिक आवश्यकता है।  आइये देखते हैं कि इस आयत से हमें क्या सीख मिलती है।  

दुनिया की ख़ुबसूरती में आकर गुनाह की तरफ़ नहीं जाना चाहिये। महान ईश्वर ने आनंद व आराम की अकल्पनीय चीज़ों को जन्नत में उपलब्ध कर दिया है और जन्नत में जाने वाले हमेशा- हमेशा इन नेअमतों से लाभ उठायेंगे।

जो लोग महान ईश्वर से डरते हैं वे क्षणिक और अवैध कामयाबियों और आनंदों से परहेज़ करते हैं और वे हमेशा- हमेशा बाक़ी रहने वाली कामयाबी को प्राप्त करते हैं।

भौतिक और आध्यात्मिक नेअमतों के साथ महान ईश्वर की विशेष रहमत व मग़फ़रत के साथ स्वर्गवासियों की आत्मा वास्तविक शांति व आराम को प्राप्त करेगी।

विभिन्न प्रकार की स्वादिष्ट पीने वाली चीज़ों के अलावा स्वर्गवासियों की विभिन्न प्रकार के खानों और फ़लों से भी आवभगत की जायेगी।

स्वर्ग में जो नेअमतें हैं वे न तो कम होंगी और न कभी ख़त्म होंगी।

 

आइये अब सूरे मोहम्मद की 16वीं आयतों की तिलावत सुनते हैं,

وَمِنْهُمْ مَنْ يَسْتَمِعُ إِلَيْكَ حَتَّى إِذَا خَرَجُوا مِنْ عِنْدِكَ قَالُوا لِلَّذِينَ أُوتُوا الْعِلْمَ مَاذَا قَالَ آَنِفًا أُولَئِكَ الَّذِينَ طَبَعَ اللَّهُ عَلَى قُلُوبِهِمْ وَاتَّبَعُوا أَهْوَاءَهُمْ (16)

 इस आयत का अनुवाद हैः

और (ऐ रसूल) उनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो तुम्हारी तरफ कान लगाए रहते हैं यहाँ तक कि सब सुना कर जब तुम्हारे पास से निकलते हैं तो जिन लोगों को इल्म (कुरान) दिया गया है उनसे कहते हैं (क्यों भई) अभी उस शख्स ने क्या कहा था ये वही लोग हैं जिनके दिलों पर ख़ुदा ने (कुफ़्र की) अलामत मुक़र्रर कर दी है और ये अपनी ख्वाहिशों पर चल रहे हैं। [47:16]

यह आयत उस कमज़ोर ईमान वाले और बीमार दिल वाले गिरोह की ओर संकेत करती है जो इस्लामी समाज में रहते थे मगर पैग़म्बरे इस्लाम की बातों और ईश्वरीय संदेश पर विश्वास नहीं करते थे। वे महान ईश्वर की बातों और कलाम को पैग़म्बरे इस्लाम की ज़बान से सुनते थे मगर कहते थे कि इन बातों से वे कुछ नहीं समझे और जब वे मोमिनों और अंतरदृष्टि रखने वाले लोगों के पास पहुंचते थे तो उनका मज़ाक उड़ाते हुए कहते कि क्या तुम लोग पैग़म्बर की बात समझे? हम तो कुछ भी नहीं समझे।

पवित्र क़ुरआन की यह आयत इस गिरोह के अनुचित व्यवहार के जवाब में कहती है कि पैग़म्बर की बातें स्पष्ट हैं परुंतु चूंकि तुम लोग अपनी ग़लत इच्छाओं का अनुसरण कर रहे हो और हक़ व सत्य का अनुसरण नहीं कर रहे हो इसलिए हक़ को नहीं समझ रहे हो। दूसरे शब्दों में समस्या पैग़म्बर की ओर से नहीं है बल्कि ख़ुद तुम्हारी ओर से है कि हक़ को क़बूल नहीं कर रहे हो।  

इस आयत से हमने सीखा।

 जब इंसान अपनी ग़लत इच्छाओं का अनुसरण करने लगता है तो यही अनुसरण व अनुपालन ग़लत से सही को पहचानने की क्षमता व ताक़त छीन लेता है और वह सही व हक़ को नहीं समझ पाता है।

 समाज में दिल के रोगियों से सजग व सावधान रहना चाहिये क्योंकि वे हक़्क़ानियत, ईश्वरीय संदेश, पैग़म्बरे इस्लाम की बातों को संदेहास्पद बनाने और लोगों के ईमान को कमज़ोर करने की चेष्टा में रहते हैं।

 अल्लाह के कलाम को केवल सुनना और पढ़ना काफी नहीं है बल्कि अल्लाह की शिक्षाओं को समझना और उस पर अमल ज़रूरी और महत्वपूर्ण है। ऐसा बहुत हुआ है कि लोग पैग़म्बरे इस्लाम की बातों को सुनते थे परंतु चूंकि वे अपनी ग़लत इच्छाओं का अनुसरण करते थे इसलिए उन्होंने हक़ को क़बूल नहीं किया।

आइये अब सूरे मोहम्मद की सत्रहवीं आयत की तिलावत सुनते हैं

وَالَّذِينَ اهْتَدَوْا زَادَهُمْ هُدًى وَآَتَاهُمْ تَقْوَاهُمْ (17)  

इस आयत का अनुवाद है

और जो लोग हिदायत याफ़ता हैं उनको ख़ुदा (क़ुरान के ज़रिए से) और भी हिदायत करता है और उनको परहेज़गारी अता फरमाता है। [47:17]

 

दिल के जिन बीमार लोगों ने पैग़म्बरे इस्लाम के मार्गदर्शन को स्वीकार नहीं किया और उसकी सच्चाई और हक़्क़ानियत में शक करते थे पवित्र क़ुरआन की इस आयत ने वादा किया है कि जो भी पैग़म्बरों के बताये गये मार्ग और उनकी शिक्षाओं को क़बूल करेंगे तो महान ईश्वर उन्हें दो मूल्यवान नेअमतों को देगा। एक अंधकार से भरे जीवन में मार्गदर्शन और दूसरी सलामती और आत्मिक पवित्रता।

स्वाभाविक है कि इंसान से हमेशा ग़लती हो सकती है और जीवन के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, पारिवारिक और ग़ैर पारिवारिक जैसे विषयों में सही रास्ते का चयन कोई आसान काम नहीं है। इंसान को अपनी पूरी ज़िन्दगी में महान ईश्वर के मार्गदर्शन की ज़रूरत है। अतः महान ईश्वर ने वादा किया है कि अगर इंसान महान ईश्वर के आरंभिक मार्गदर्शन को क़बूल कर लेगा तो ज़िन्दगी के रास्तों को चयन करने में वह इंसान की मदद करेगा।

अलबत्ता इस मार्गदर्शन के साथ आंतरिक पवित्रता भी ज़रूरी है ताकि द्वेष, जलन, कंजूसी और दूसरी बुरी नैतिक व अख़लाक़ी विशेषताओं से प्रभावित होकर इंसान हक़ व सत्य के मार्ग से विचलित न हो जाये।

इस आयत से हमने सीखाः

आरंभिक मार्गदर्शन को क़बूल कर लेना महान ईश्वर की ओर से मार्गदर्शन में वृद्धि की भूमिका है।

मार्गदर्शन का क़बूल कर लेना, इंसान के अंदर मौजूद क्षमताओं व योग्यताओं के विकास व निखार का कारण बनता है।

दिल की पवित्रता और वास्तविक रहस्यवाद तक पहुंच केवल महान ईश्वर की हिदायत से संभव है न कि इंसानों द्वारा बनाये गये धर्मों व धारणाओं से जैसे बुद्धिष्ठ और हिन्दूइज़्म और इन जैसे धर्मों से।