Feb ०९, २०२५ १९:२२ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-955 

सूरए मुहम्मद, आयतें 36-38

 

आइये सूरए मोहम्मद की 36वीं और 37वीं आयतों की तिलावत सुनते हैं,

 

إِنَّمَا الْحَيَاةُ الدُّنْيَا لَعِبٌ وَلَهْوٌ وَإِنْ تُؤْمِنُوا وَتَتَّقُوا يُؤْتِكُمْ أُجُورَكُمْ وَلَا يَسْأَلْكُمْ أَمْوَالَكُمْ (36) إِنْ يَسْأَلْكُمُوهَا فَيُحْفِكُمْ تَبْخَلُوا وَيُخْرِجْ أَضْغَانَكُمْ (37)

    

     इन आयतों का अनुवाद इस प्रकार हैः

 

दुनियावी ज़िन्दगी तो बस खेल तमाशा है और अगर तुम (ख़ुदा पर) ईमान रखोगे और परहेज़गारी करोगे तो वह तुमको तुम्हारे अज्र प्रदान करेगा और तुमसे तुम्हारा माल नहीं तलब करेगा। [47:36]   और अगर वह तुमसे माल तलब करे और तुमसे ज़ोर देकर माँगे भी तो तुम (ज़रूर) कंजूसी करोगे। और ख़ुदा तो तुम्हारे द्वेष को ज़रूर ज़ाहिर करके रहेगा। [47:37]   

 

दुनिया से लगाव का एक कारण दुनियावी ज़िन्दगी के प्रति सही दृटिकोण का न होना है। जो लोग यह सोचते हैं कि उनका माल और शक्ति इस दुनिया में बाक़ी रहेंगे तो उनका लगाव इस दुनिया से हो जाता है। इस प्रकार का इंसान अपने माल को अल्लाह की राह में देने के लिए तैयार नहीं होता है या वह अपनी शक्ति को अल्लाह के धर्म को मज़बूत करने की राह में लगाने के लिए तैयार नहीं होता है। 

जो लोग अल्लाह पर ईमान रखते हैं उनकी नज़र में दुनिया उस रास्ते की भांति है जो मरूस्थलों और सुन्दर जंगलों के बीच से गुज़रा हो ऐसे सुन्दर जंगल को देखकर बहुत से लोग यात्रा के मक़सद को ही भूल जाते हैं और रास्ते के किनारे रुक कर पेड़ों के नीचे और नदी के किनारे मनोरंजन कार्यों में व्यस्त हो जाते हैं परंतु ईमानदार लोग यात्रा के मक़सद को नहीं भूलते हैं। वे लोग अपनी ज़रूरत भर रास्ते के किनारे रुकेंगे ताकि अपनी ज़रूरत की चीज़ ले लें मगर उनका रुकना लंबा नहीं होगा और पूरी गति से अपने मक़सद की ओर यात्रा जारी रखेंगे।

इसके अलावा अल्लाह पर ईमान रखने वाले तक़वे के आधार पर ज़िन्दगी गुज़ारेंगे ताकि अल्लाह के आदेशों की अवज्ञा न हो और सही- सलामत अपने मक़सद तक पहुंच जायें।

स्वाभाविक है कि जो इंसान इस रास्ते पर तेज़ चलना और मक़सद तक पहुंचना चाहता है वह कभी भी अपने साथ ज़्यादा और अनावश्यक सामान नहीं रखेगा क्योंकि अगर ऐसा करेगा तो तेज़ और सही से चलना कठिन हो जायेगा और जगह -2 पर रुकना पड़ेगा। अतः अल्लाह पर ईमान रखने वाला इंसान केवल ज़रूरी चीज़ें अपने साथ रखेगा और शेष उन लोगों के लिए छोड़ देगा जिनको ज़रूरत होगी। जी हां जो चीज़ रास्ते में इंसान के चलने में रुकावट बनती है वह लालच और कंजूसी जैसी चीज़ें हैं और ये वे चीज़ें हैं जो इंसान के लिए बोझ बन जाती हैं और उनकी वजह से इंसान तेज़ नहीं चल पाता है और उसका नतीजा यह होता है कि इंसान देर से अपने मक़सद तक पहुंचता है।

आइये देखते हैं कि हमने इन आयतों से क्या सीखा

दुनिया में व्यस्त हो जाना. दुनिया से बहुत अधिक लगाव और परलोक को भुला देना वे चीज़ें हैं जो ईमान और तक़वा से मेल नहीं खाती हैं।

बेईमान इंसानों की दुनिया बच्चों की दुनिया जैसी होती है। जिस तरह बच्चों का दिल खिलौनों में लगा होता है और वे उसी में व्यस्त हो जाते हैं और उनकी सारी सोच खिलौने में होती है।

ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए धन- दौलत का होना ज़रूरी है मगर उतना ही ज़रूरी है जितने से उसकी ज़रूरत दूर हो जाये और दूसरों का मोहताज न हो न यह कि उसकी ज़िन्दगी का लक्ष्य ही दुनिया का धन इकट्ठा करना हो जाये।

लालच और कंजूसी इंसान को धार्मिक दायित्वों के निर्वाह और अल्लाह की राह में ख़र्च करने से रोकती हैं।

 

आइये अब सूरए मोहम्मद की 38वीं आयत की तिलावत सुनते हैं,

 

هَاأَنْتُمْ هَؤُلَاءِ تُدْعَوْنَ لِتُنْفِقُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ فَمِنْكُمْ مَنْ يَبْخَلُ وَمَنْ يَبْخَلْ فَإِنَّمَا يَبْخَلُ عَنْ نَفْسِهِ وَاللَّهُ الْغَنِيُّ وَأَنْتُمُ الْفُقَرَاءُ وَإِنْ تَتَوَلَّوْا يَسْتَبْدِلْ قَوْمًا غَيْرَكُمْ ثُمَّ لَا يَكُونُوا أَمْثَالَكُمْ (38)

 

इस आयत का अनुवाद हैः

 

देखो तुम लोग वही तो हो कि ख़ुदा की राह में ख़र्च के लिए बुलाए जाते हो तो तुम में कुछ ऐसे भी हैं जो कंजूसी करते हैं और (याद रहे कि) जो कंजूसी करता है ख़ुद अपने ऊपर कंजूसी करता है और ख़ुदा तो बेनियाज़ है और तुम (उसके) मोहताज हो और अगर तुम (ख़ुदा के हुक्म से) मुँह फेरोगे तो ख़ुदा तुम्हारी जगह दूसरे लोगों को क़रार देगा और वे तुम्हारे ऐसे (कंजूस) न होंगे। [47:38]

 

यह सूरे मोहम्मद की आख़िरी आयत है। इससे पहले वाली आयतों में इस ओर संकेत किया गया कि मोमिनों के एक गिरोह का दिल धन-दौलत और दुनिया में लग गया है और वह अल्लाह की राह में ख़र्च नहीं करता जबकि यह आयत कहती है कि अगर तुम अल्लाह पर ईमान रखते हो तो ईमान का तक़ाज़ा केवल नमाज़- रोज़ा नहीं है जिसमें कोई माली ख़र्च नहीं है बल्कि ईमान का लाज़िमा अपने माल के कुछ भाग को ज़कात आदि के रूप में अल्लाह की राह में ख़र्च करना है। अलबत्ता जो लोग अल्लाह की राह में ख़र्च करने में कंजूसी से काम लेते हैं वे यह न सोचें कि अल्लाह मोहताज है जिसकी वजह से उसने ऐसा आदेश दिया है बल्कि वे अल्लाह के मोहताज हैं और जितनी भी कंजूसी करेंगे वास्तव में लोक- परलोक में उन्होंने अपने आप को अल्लाह की रहमत व दया और प्रतिदान प्राप्त करने से वंचित कर लिया है।

आयत के अंत में अल्लाह चेतावनी देने के अंदाज़ में कहता है यह ख़याल न करो कि चूंकि तुम ईमान रखते हो इसलिए दुनिया में हमेशा तुम अल्लाह के कृपापात्र रहोगे। अगर तुम भी अल्लाह के धर्म की सुरक्षा करने और उसके दुश्मनों से जेहाद व संघर्ष करने में ढ़िलाई से काम लोगे तो धीरे- धीरे तुम्हारी शक्ति कम और ख़त्म हो जायेगी। उस वक़्त अल्लाह तुम्हारी जगह दूसरे गुट को दे देगा जो अल्लाह की राह में काम करेगा और उसकी राह में अपने माल के एक भाग को देने में कंजूसी से काम नहीं लेगा।

 

इस आयत से हमने सीखाः  

 

ख़र्च करने में कंजूसी अल्लाह पर ईमान से मेल नहीं खाती है और मोमिन कंजूस नहीं होता है।

स्पष्ट है कि इंसान को अपनी माली क्षमता के अनुसार अल्लाह की राह में ख़र्च करना चाहिये। मोमिन को इस बात को ध्यान में रखना चाहिये कि अल्लाह पूरी तरह बेनियाज़ है वह किसी का और किसी भी चीज़ का मोहताज नहीं है और कोई भी माल-दौलत जमा करने के बाद भी अल्लाह से बेनियाज़ व आवश्यकतामुक्त नहीं हो सकता।

अहले ईमान को अल्लाह की मदद और उसकी कृपा उस समय हासिल होती है जब वे अपने धार्मिक दायित्वों को अंजाम देते हैं और अल्लाह ने किसी को इस बात की गैरन्टी नहीं दी है कि वह ज़रूर अमुक व्यक्ति या गुट को अपनी रहमत का पात्र बनायेगा।

अल्लाह की राह में जान व माल का ख़र्च करना समाज के जारी व बाक़ी रहने का कारण है और दुनिया की मोहमाया और कंजूसी में उसे छोड़ देना समाज के विघटन, उसकी बर्बादी और इसी प्रकार दूसरी क़ौम के आने का कारण बनता है।

दोस्तो सूरए मोहम्मद के समाप्त होने के बाद अगले कार्यक्रम में हम सूरए फ़त्ह का अनुवाद और उसकी व्याख्या आरंभ करेंगे। तब तक के लिए हम आपसे विदा चाहते हैं।