Mar १२, २०२५ १६:२७ Asia/Kolkata
  • कु़रआन ईश्र्वरीय चमत्कार 156

सूरए फ़तह, आयतें 1 से 4

सबसे पहले सूरए फ़त्ह की पहली से तीसरी तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं,

 بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ

إِنَّا فَتَحْنَا لَكَ فَتْحًا مُبِينًا (1) لِيَغْفِرَ لَكَ اللَّهُ مَا تَقَدَّمَ مِنْ ذَنْبِكَ وَمَا تَأَخَّرَ وَيُتِمَّ نِعْمَتَهُ عَلَيْكَ وَيَهْدِيَكَ صِرَاطًا مُسْتَقِيمًا (2) وَيَنْصُرَكَ اللَّهُ نَصْرًا عَزِيزًا (3)

इन आयतों का अनुवाद हैः

(ऐ रसूल ये हुबैदिया की सुलह नहीं बल्कि) हमने हक़ीक़तन तुमको खुल्लम खुल्ला फतह अता की।[48:1]  ताकि ख़ुदा अगले और पिछले गुनाहों को (जो कुफ़्फ़ार आपके बारे में झूठे तौर पर ज़िक्र करते हैं) माफ़ कर दे और तुम पर अपनी नेमत मुक्म्मल करे और तुम्हें सीधी राह पर साबित क़दम रखे। [48:2]  और ख़ुदा तुम्हारी ज़बरदस्त मदद करे। [48:3]

पवित्र क़ुरआन की ये आयतें सुल्हे हुदैबिया के बाद नाज़िल हुईं जिन्होंने इस समझौते को एक महत्वपूर्ण विजय की भूमिका के रूप में याद किया। क्योंकि इससे पहले अनेकेश्वरवादी केवल मुसलमानों को ख़त्म करने के बारे में सोचते और उनके लिए किसी स्थान को नहीं मानते थे यानी उन्हें कुछ नहीं समझते थे मगर सुल्हे हुदैबिया का नतीजा यह हुआ कि काफ़िरों और अनेकेश्वरवादियों ने मुसलमानों को क़बूल कर लिया और आठवीं हिजरी क़मरी में मक्का पर विजय करके पूरी तरह काफ़िरों और अनेकेश्वरवादियों पर भी जीत हासिल कर ली।

पैग़म्बरे इस्लाम के आने के बाद अज्ञानता के काल की ग़लत और अतार्किक परम्पराओं पर प्रश्न चिन्ह लग गया। इस्लाम धर्म की शिक्षाओं के अनुसार सामाजिक वर्गभेद को धीरे- धीरे ख़त्म कर दिया गया। समस्त इंसानों को एक दूसरे का भाई और अल्लाह का बंदा क़रार दिया गया चाहे उनका संबंध किसी भी धर्म, जाति या क़बीले से रहा हो। अलबत्ता पैग़म्बरे इस्लाम ने मूर्तियों और अज्ञानता की परम्पराओं के ख़िलाफ़ जो संघर्ष किया वह काफ़िरों और अनेकेश्वरवादियों को बिल्कुल भी पसंद नहीं आया और यह ऐसा विषय नहीं था जिसकी वे अनदेखी कर देते। चूंकि पैग़म्बरे इस्लाम अज्ञानता की अतार्कि व ग़लत परम्पराओं और मूल्यों को ख़त्म कर रहे थे इसलिए वे अरब समाज में पैग़म्बरे इस्लाम को गुनाहकार समझते थे। संक्षेप में कहा जा सकता है कि सुल्हे हुदैबिया की महत्वपूर्ण उपलब्धि मक्का पर विजय और उसके बाद अज्ञानता के काल की ग़लत परम्परायें ख़त्म हो गयीं और पैग़म्बरे इस्लाम ने मक्का और मदीना में इस्लामी व्यवस्था स्थापित कर दी और क़बाएली विवाद ख़त्म हो गये और समाज में लोगों के मध्य भाईचारे की भावना व्याप्त हो गयी।

इन आयतों से हमने सीखाः

मौजूद वास्तविकताओं के आधार पर फ़ैसला  सफ़लता व कामयाबी का मार्ग प्रशस्त करता है।

दुश्मन पर कामयाबी हमेशा जंग व जेहाद से नहीं होती है बल्कि कभी सुलह भी दुश्मनों पर जीत का मार्ग प्रशस्त करती है।

अगर हम अपने दायित्वों का निर्वाह कर रहे हैं तो हमें उसके परिणामों की चिंता नहीं करना चाहिये। अल्लाह ऐसे हालात पैदा कर देगा कि दृष्टिगत परिणाम हासिल हो जायेगा।

पैग़म्बरे इस्लाम दुश्मनों के साथ जो सुल्ह या जंग करते थे सब अल्लाह के दिशा -निर्देशन में होता था और पैग़म्बरे इस्लाम उसे अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं से अंजाम नहीं देते थे।

आइये अब सूरए फ़त्ह की चौथी आयत की तिलावत सुनते हैं,

هُوَ الَّذِي أَنْزَلَ السَّكِينَةَ فِي قُلُوبِ الْمُؤْمِنِينَ لِيَزْدَادُوا إِيمَانًا مَعَ إِيمَانِهِمْ وَلِلَّهِ جُنُودُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَكَانَ اللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا (4)

इस आयत का अनुवाद हैः

वह (वही) ख़ुदा तो है जिसने मोमेनीन के दिलों में ढारस नाज़िल फ़रमाई ताकि अपने (पहले) ईमान के साथ और ईमान को बढ़ाएँ और सारे आसमान व ज़मीन के लशकर तो ख़ुदा ही के हैं और ख़ुदा बड़ा ज्ञानी और हकीम है। [48:4]

सुल्हे हुदैबिया की वजह से मुसलमान उस वर्ष हज न कर सके और इसे वे अपना अपमान समझ रहे थे इसलिए अधिकांश मुसलमान इस सुल्ह से अप्रसन्न व क्षुब्ध थे परंतु जब यह आयत नाज़िल हुई और उसने भविष्य में मुसलमानों को बड़ी विजय की ख़ुशख़बरी दी तो मुसलमानों को दिली शांति मिली और पैग़म्बरे इस्लाम की बातें और अल्लाह का वादा उनके ईमान की मज़बूती का कारण बना।

स्वाभाविक है कि जो इंसान यह मानता है कि ब्रह्मांड का समस्त कार्य अल्लाह के संचालन में हो रहा है और ज़मीन और आसमान की समस्त चीज़ों को अल्लाह का लश्कर समझता है तो वह कभी भी पराजय का आभास नहीं करेगा और दुश्मनों की ताक़त, रोब और धौंस से घबरायेगा नहीं।

आइये देखते हैं कि इस आयत से हमने क्या सीखा

मोमिनों के प्रति अल्लाह की एक दया व कृपा यह है कि उनके दिलों को शांति प्रदान करता है जबकि अल्लाह काफ़िरों के दिलों में रोब व भय डाल देता है।

ईमान के दर्जे हैं और वह हमेशा बढ़ता- घटता रहता है यानी कम और ज़ियादा होता रहता है। वास्तव में घटनाओं और कठिनाइयों के माध्यम से अल्लाह लोगों के ईमान की परीक्षा लेता रहता है।

इस बात को ध्यान में रखना चाहिये कि शक्ति, ज्ञान और तत्वदर्शिता आदि और ब्रह्मांड की समस्त चीज़ों का दिशा -निर्देशन अल्लाह के आदेश के अधीन है और यह आस्था अल्लाह पर ईमान रखने वालों को आंतरिक शांति प्रदान करती है।