Jun ०९, २०२५ १५:०९ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार -988

सूरए क़मर आयतें 1 से 8

पिछले प्रोग्राम में सूरए नज्म की तफ़सीर ख़त्म हुई,  आज के प्रोग्राम में हम सूरए क़मर की आसान और सरल तफ़सीर शुरू करेंगे। यह सूरा भी मक्का में नाज़िल हुआ और इसमें मुशरिकों और विरोधियों को चेतावनी दी गई है। पिछले समुदायों का बुरा अंजाम, जिन्होंने अल्लाह के पैग़म्बरों की दावत को ज़िद और हठ के कारण ठुकरा दिया था, इन उदाहरणों के ज़रिए मुशरिकों को समझाया गया है ताकि वे पैग़म्बरे इस्लाम (सल्लल्लाहु अलैहि व आलेही वसल्लम) का विरोध छोड़ दें और सच्चाई को स्वीकार कर लें।

सबसे पहले हम सूरए क़मर की आयत नंबर 1 से 3 तक की तिलावत सुनते हैं:

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ

اقْتَرَبَتِ السَّاعَةُ وَانْشَقَّ الْقَمَرُ (1) وَإِنْ يَرَوْا آَيَةً يُعْرِضُوا وَيَقُولُوا سِحْرٌ مُسْتَمِرٌّ (2) وَكَذَّبُوا وَاتَّبَعُوا أَهْوَاءَهُمْ وَكُلُّ أَمْرٍ مُسْتَقِرٌّ (3)

इन आयतों का अनुवाद हैः

अल्लाह के नाम से जो बड़ा दयावान और रहम वाला है,

क़यामत क़रीब आ गयी और चाँद दो टुकड़े हो गया [54:1]  और अगर ये (कुफ़्फ़ार) कोई चमत्कार देखते हैं, तो मुँह फेर लेते हैं, और कहते हैं कि ये तो लगातार नज़र आने वाला जादू है। [54:2]  और उन लोगों ने झुठलाया और अपनी नफ़सानी ख़्वाहिशों की पैरवी की, और हर काम (अपने निर्धारित वक़्त पर) अपनी जगह पहुंच जाएगा (और आपकी सच्चाई साबित हो जाएगी)। [54:3]

सूरए क़मर की आरंभिक आयतें पैग़म्बरे इस्लाम के एक बड़े मोजिज़े या चमत्कार की ओर संकेत करती हैं। मक्का के मुशरिकों ने पैग़म्बर के दावे को स्वीकार करने से बचने के लिए उनसे एक ऐसी चीज़ माँगी जिसके बारे में उन्हें लगता था कि पैग़म्बर कभी भी उसे पूरा नहीं कर पाएंगे। उन्होंने अल्लाह के रसूल से कहा: "अगर आप सच्चे हैं और अल्लाह के पैग़म्बर हैं, तो हमारे लिए चाँद को दो टुकड़ों में बांट दीजिए!" उनका मानना था कि जादू-टोना केवल सांसारिक मामलों में असरदार होता है, आसमानी चीज़ों पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। अगर चाँद फट जाएगा, तो स्पष्ट हो जाएगा कि हज़रत मुहम्मद का काम जादू नहीं है। 

ऐसे में, पैग़म्बर ने अल्लाह के सामने प्रार्थना की कि वह उन्हें वह चीज़ प्रदान करे जो उन लोगों ने माँगी थी। अल्लाह के आदेश से, जिस रात चाँद पूरा था, पैग़म्बर के इशारे से चाँद दो हिस्सों में बँट गया। जब मक्का के लोगों ने इसे देख लिया, तो चाँद फिर से पहले जैसा हो गया। 

लेकिन विरोधियों ने, जिन्होंने कभी ऐसा होने की उम्मीद नहीं की थी, इसे एक तरह का जादू बताया और कहा: "वास्तव में चाँद नहीं फटा, बल्कि तुमने जादूगरों की तरह हमारी आँखों पर ऐसा प्रभाव डाला है कि हमें लग रहा है कि चाँद दो टुकड़ों में बँट गया है।

लेकिन मुशरिकों के दावों के विपरीत, यह घटना वास्तव में घटित हुई थी। शाम और यमन के कारवाँ वालों ने अपने रास्ते में यह अद्भुत नज़ारा देखा था, और यहाँ तक कि भारत के लोगों ने भी चाँद के फटने को देखा था। 

क़ुरआन कहता है कि इन झूठे इनकारों की जड़ "हवा-ए-नफ्स" अहंकार और इच्छाएँ है, जो इंसान को सच्चाई के सामने झुकने नहीं देतीं और वह हमेशा अपनी मर्ज़ी के अनुसार चलना चाहता है। लेकिन अंत में सच्चाई सामने आ जाएगी, और कुफ़्र व शिर्क का अंत केवल पतन और विनाश ही होगा। 

इन आयतों से हमने सीखा:

क़यामत का आना निकट और निश्चित है, और यह उन लोगों के लिए एक गंभीर चेतावनी है जो क़यामत और उसके हिसाब-किताब से बेख़बर हैं। आख़िरी पैग़म्बर का आना भी उन संकेतों में से एक है जो दुनिया के अंत के निकट होने की ओर इशारा करते हैं। 

क़ुरआन के अलावा, जो पैग़म्बरे इस्लाम का अमर मोजिज़ा है, उनके और भी मोजिज़ात थे, जिनमें चाँद का फटना सबसे महत्वपूर्ण चमत्कारों में से एक है। 

हठधर्मी लोग अपनी आँखों से मोजिज़े देखने के बाद भी उसे जादू कहते हैं और पैग़म्बर को झुठलाते हैं। 

नफ़्सानी इच्छाओं का पालन करना, पैग़म्बरों की सच्चाई को न मानने के पीछे सबसे बड़ा कारण है। 

अब हम सूरए क़मर की आयत नंबर 4 और 5 तक की तिलावत सुनते हैं:

وَلَقَدْ جَاءَهُمْ مِنَ الْأَنْبَاءِ مَا فِيهِ مُزْدَجَرٌ (4) حِكْمَةٌ بَالِغَةٌ فَمَا تُغْنِ النُّذُرُ (5)

इन आयतों का अनुवाद हैः

और उनके पास तो (पिछले लोगों की) वह ख़बरें पहुँच चुकी हैं जो (उन्हें कुफ़्र की राह पर जाने से) रोक सकती थीं। [54:4]  और (हालांकि वो ख़बरें) इन्तेहा दर्जे की हिकमत रखती थीं मगर (उनको तो) डराने का कुछ फ़ायदा नहीं हुआ। 54:5]  [

पिछली आयतों के ही संदर्भ में ये आयतें कहती हैं कि पैग़म्बर के दावे को न मानने वालों की ज़िद अज्ञानता के कारण नहीं है। उन्हें पिछली क़ौमों के हालात का पता है कि किस तरह उनकी ज़िद और अवज्ञा के कारण उनका विनाश हुआ था। उन्होंने पिछले धर्मों के अनुयायियों से सुना है कि मृत्यु के बाद क़यामत आएगी और जन्नत व दोज़ख़ का अस्तित्व है, फिर भी वे अपने बुरे कामों से बाज़ नहीं आते। 

निस्संदेह, अल्लाह और उसके पैग़म्बरों का काम केवल "इत्माम-ए-हुज्जत" या स्पष्ट संदेश पहुँचाना है, ताकि सच्ची और बुद्धिमत्तापूर्ण बात लोगों के कानों तक पहुँच जाए—हालाँकि बहुत से लोग इन चेतावनियों पर ध्यान नहीं देते और यह उनके लिए कोई लाभ नहीं लाती। 

इन आयतों से हमने सीखाः

पिछली क़ौमों और सभ्यताओं के इतिहास का अध्ययन मनुष्य को उनके विनाश के कारणों को समझने में मदद करता है और उसे कुफ़्र, गुनाह तथा अत्याचार से रोकता है। 

क़ुरआन का संदेश हिक्मत और तर्क पर आधारित है, जिसे आम लोगों की समझ और विवेक से ग्रहण किया जा सकता है। 

पैग़म्बरों ने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया—सच्चाई का संदेश पहुँचाकर इंसानों पर हुज्जत पूरी कर दी। लेकिन उनका उद्देश्य ज़बरदस्ती या थोपना नहीं है, बल्कि लोगों को अपने अख़्तियार से सच्चाई स्वीकार करनी चाहिए। 

अब हम सूरए क़मर की आयत नंबर 6 से 8 तक की तिलावत सुनते हैं,

فَتَوَلَّ عَنْهُمْ يَوْمَ يَدْعُ الدَّاعِ إِلَى شَيْءٍ نُكُرٍ (6) خُشَّعًا أَبْصَارُهُمْ يَخْرُجُونَ مِنَ الْأَجْدَاثِ كَأَنَّهُمْ جَرَادٌ مُنْتَشِرٌ (7) مُهْطِعِينَ إِلَى الدَّاعِ يَقُولُ الْكَافِرُونَ هَذَا يَوْمٌ عَسِرٌ (8)

इन आयतों का अनुवाद हैः

तो (ऐ रसूल) तुम भी उनसे किनारा कशी कर लो, जिस दिन एक बुलाने वाला (इसराफ़ील) एक अजनबी और नागवार चीज़ की तरफ़ बुलाएगा [54:6]  तो (निदामत से) ऑंखें नीचे किए हुए क़ब्रों से निकल पड़ेंगे गोया वह फैली हुई टिड्डियाँ हैं [54:7]  (और) बुलाने वाले की तरफ़ गर्दनें बढ़ाए दौड़ते जाते होंगे, कुफ्फ़ार कहेंगे ये तो बड़ा सख़्त दिन है। [54:8]

इन आयतों में काफिरों और इन्कार करने वालों की हठधर्मिता की पराकाष्ठा बताने के बाद, अल्लाह अपने पैग़म्बर को संबोधित करते हुए फ़रमाता है: "इन्हें उन्हीं के हाल पर छोड़ दो और उन लोगों की तरफ़ रुख़ करो जो सच्चाई को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। ये लोग तभी होश में आएंगे जब क़यामत को अपनी आँखों से देखेंगे -जब अल्लाह के हुक्म से मुर्दे ज़मीन से एक-एक करके निकलेंगे और डर व हड़बड़ाहट में हर दिशा में भागने लगेंगे।"

क़यामत की स्थिति इन लोगों के लिए एकदम अनजान और अजीबो ग़रीब होगी। वे हर आवाज़ और पुकार की तरफ़ दौड़ेंगे ताकि कोई ख़बर पा सकें और थोड़ी सी शांति महसूस कर सकें। लेकिन जितना आगे बढ़ेंगे, उनका डर और भी बढ़ता जाएगा। अंत में उन्हें समझ आएगा कि यह वही दिन है जिसके बारे में दुनिया में उन्हें चेतावनी दी जाती थी, मगर वे उसे झुठलाते रहे।

इन आयतों से हमने सीखा:

मुकम्मल हुज्जत (स्पष्ट प्रमाण) पेश करने के बाद कभी-कभी विरोधियों को उनके हाल पर छोड़ देना चाहिए, ताकि उन्हें यह गुमान न हो कि हमें उनके ईमान लाने की ज़रूरत है या हम उनसे मिन्नतें कर रहे हैं।

क़यामत के मंज़र काफिरों और बदकारों के लिए इतने भयानक और अप्रत्याशित होंगे कि वे कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि ऐसी स्थितियाँ उन पर आएँगी।

मआद या पुनः उठाया जाना शारीरिक है - इंसान ज़मीन से उठेंगे, सिर्फ़ रूहों का इकट्ठा होना नहीं होगा। यह इस बात का प्रमाण है कि इस्लाम में "जिस्मानी हश्र" शरीर का पुनः उठाया जाना एक अक़ीदा है।