Jun ०९, २०२५ १५:५१ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-993

सूरए रहमान आयतें, 1 से 9

सू.       सूरए क़मर की व्याख्या और तफ़सीर समाप्त होने के बाद अब हम सूरए रहमान की व्याख्या शुरू कर रहे हैं।

यह सूरा "अर-रहमान" शब्द से शुरू होता है, जो अल्लाह के ख़ूबसूरत नामों और गुणों में से एक है। यह ब्रह्मांड में अल्लाह की व्यापक दया और रहमत को दिखाता है।

इस सूरे में दुनिया और आख़ेरत (परलोक) में अल्लाह की दी हुई बड़ी बड़ी नेमतों का ज़िक्र है। हर नेमत के बाद बंदों से पूछा जाता है: "फिर तुम अपने रब की किस-किस नेमत को झुठलाओगे?"

 

आइए, पहले सूरए अर-रहमान की आयत नंबर 1 से 4 तक की तिलावत सुनते हैं:

 

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ

 

الرَّحْمَنُ (1) عَلَّمَ الْقُرْآَنَ (2) خَلَقَ الْإِنْسَانَ (3) عَلَّمَهُ الْبَيَانَ (4)

 

इन आयतों का अनुवाद हैः

 

अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील और दयावान है

 

बड़ा मेहरबान (ख़ुदा) [55:1] उसी ने क़ुरान की तालीम फ़रमाई [55:2] उसी ने इन्सान को पैदा किया [55:3] उसी ने उनको (अपना मतलब) बयान करना सिखाया [55:4]

 

क़ुरआन में अल्लाह का नाम "अल्लाह" है, और "अर-रहमान" उसकी एक सिफ़त (गुण) है। लेकिन यह सिफ़त, जो अल्लाह की बहुत बड़ी रहमत (दया) को दिखाती है, इतनी बार इस्तेमाल हुई है कि यह भी अल्लाह के नाम की तरह हो गयी है। इस सूरे में यही नाम (अर-रहमान) इस्तेमाल हुआ है। 

क़ुरआन का उतरना और पैग़म्बरे इस्लाम के ज़रिए इंसानों और जिन्नात को सिखाया जाना इतना क़ीमती है कि इस सूरे में इसे इंसान की पैदाइश से भी पहले बताया गया है। हाँ! असल में इंसान की क़ीमत तभी है जब वह अल्लाह की हिदायत (मार्गदर्शन) पर चले और सही रास्ता अपनाए। 

इंसान की ख़ासियतों में से एक है बोलने की ताक़त, जो उसे दूसरे जानवरों से अलग बनाती है। जानवरों के भी आँख-कान होते हैं, लेकिन बातचीत करना सिर्फ़ इंसान का ही ख़स गुण है। 

यह भी याद रखें कि "बयान" (व्यक्त करने की क्षमता) का मतलब सिर्फ़ बोलना ही नहीं, बल्कि लिखना और पढ़ना भी है। यही चीज़ इंसानी तरक़्क़ी और सभ्यता के विकास की बुनियाद है। अगर इंसान को बोलने और लिखने की नेमत न मिली होती, तो वह अपना ज्ञान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक नहीं पहुँचा पाता। इस तरह, विज्ञान और तकनीक की प्रगति भी नहीं हो पाती। 

 

इन आयतों से हमने सीखाः

 

अल्लाह का सबसे बड़ा गुण उसकी रहमत है, जो हर चीज़ को अपनी  छाया में रखती है और यही सिफ़त कायनात के पैदा किए जाने और उसके लिए व्यवस्था और क़ानून निर्धारित किए जाने का स्रोत है। अल्लाह ने कहा है कि हम कोई भी काम बिस्मिल्लाह के साथ शुरू करें जिसमें अल्लाह के नाम के साथ साथ उसके रहमान होने का ज़िक्र है।

अल्लाह दूसरे कामों के साथ ही एक उस्ताद का काम भी करता है – अल्लाह ही इंसान का पहला उस्ताद है, और शिक्षा देने के लिए दया ज़रूरी है।

इंसान की पैदाइश और उसकी सीखने की क़ाबिलियत अल्लाह की रहमत की निशानी है, जैसे कि क़ुरआन का सिखाया जाना भी उसकी दया है। 

बोलने और लिखने की क्षमता भी अल्लाह की एक बड़ी नेमत है, जिससे इंसान ज्ञान बाँट पाता है। 

 

अब हम सूरए अर-रहमान की आयत नंबर 5 और 6 की तिलावत सुनेंगे:

الشَّمْسُ وَالْقَمَرُ بِحُسْبَانٍ (5) وَالنَّجْمُ وَالشَّجَرُ يَسْجُدَانِ (6)

इन आयतों का अनुवाद हैः

 

सूरज और चाँद एक मुक़र्रर हिसाब से चल रहे हैं [55:5] और बेलें और दरख़्त (उसी को) सजदा करते हैं [55:6]

 

इससे पहले कि क़ुरआन के उतरने और इंसान को बोलने की नेमत दिए जाने का ज़िक्र हो जो उसे जानवरों से श्रेष्ठ बनाती है, यह आयतें पहले आसमान की तरफ़ देखती हैं, फिर ज़मीन की ओर। अल्लाह फ़रमाता है: "सूरज और चाँद एक बिल्कुल नियमित और तयशुदा गणना के मुताबिक चल रहे हैं।"

 उनका वज़न, आकार, धरती से दूरी और एक-दूसरे से फ़ासला—सब कुछ इतना सटीक है कि अगर सूरज और धरती के बीच थोड़ी भी दूरी कम या ज़्यादा हो जाए, तो इंसान और दूसरे जीव ज़्यादा गर्मी या सर्दी से ख़त्म हो जाएँगे। 

धरती का अपनी धुरी पर घूमना जिससे दिन-रात बनते हैं और सूरज के चारों ओर चक्कर लगाना जिससे मौसम बदलते हैं, साथ ही चाँद का धरती के इर्द-गिर्द घूमना—ये सभी इस बात की निशानी हैं कि पूरा ब्रह्मांड एक दम सटीक नियमों पर चल रहा है।

वैज्ञानिक कहते हैं कि सूरज और चाँद की गति इतनी नियमित है कि सालों पहले से सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण का सही समय बताया जा सकता है।

सूरज, यह गर्म और चमकता हुआ गोला इंसान के लिए सबसे बड़ी नेमतों में से एक है। अगर इसकी रोशनी और गर्मी न हो, तो धरती पर ज़िंदगी नामुमकिन है। पेड़-पौधों की उगना और बढ़ना, बारिश, हवाएँ, ये सब सूरज की वजह से ही हैं।

चाँद भी इंसानी ज़िंदगी में अहम भूमिका निभाता है।  अँधेरी रातों में यह रोशनी देता है।  इसकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति समुद्र में ज्वार-भाटा पैदा करती है, जो समुद्री जीवन और धरती के संतुलन के लिए ज़रूरी है। 

धरती पर तरह-तरह के पेड़-पौधे हैं, जो इंसान और जानवरों के लिए खाने का स्रोत हैं। ये सभी अल्लाह के बनाए नियमों पर चलते हैं और उनसे एक इंच भी नहीं हटते।

 

इन आयतों से हमने सीखा:

 

आसमान और ज़मीन एक सटीक व्यवस्था से चल रहे हैं। कोई भी चीज़ अल्लाह के तय किए हुए रास्ते से भटकती नहीं। 

पूरा ब्रह्मांड इंसान की सेवा में लगा है, लेकिन इंसान ख़ुद ही प्रकृति और पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहा है। 

हर चीज़ अल्लाह के आगे सिर झुकाए हुए है, उसके ज़रिए पहले से तय कर दिएगए नियमों का पालन कर रही है। 

 

आइए अब सूरए अर-रहमान की आयत नंबर 7 से 9 तक की तिलावत सुनते हैं,

 

وَالسَّمَاءَ رَفَعَهَا وَوَضَعَ الْمِيزَانَ (7) أَلَّا تَطْغَوْا فِي الْمِيزَانِ (8) وَأَقِيمُوا الْوَزْنَ بِالْقِسْطِ وَلَا تُخْسِرُوا الْمِيزَانَ (9)

 

इन आयतों का अनुवाद हैः

 

और उसी ने आसमान बुलन्द किया और (हर मसले की नाप-तोल के लिए) तराज़ू क़ायम किया [55:7] ताकि तुम लोग तराज़ू और तौलने में हद से न गुज़रो [55:8] और इंसाफ़ के साथ ठीक तौलो और तौल कम न करो। [55:9]

 

पिछली आयतों के बाद, अब अल्लाह विशाल ब्रह्मांड और आकाशगंगाओं की रचना की ओर इशारा करता है, जहाँ अरबों तारे और ग्रह एक नियमित प्रणाली के साथ चल रहे हैं। अल्लाह फ़रमाता है: "वह अल्लाह जिसने इस विशाल आसमान को बनाया और उसे संतुलित किया, उसी ने इंसानों के लिए न्याय और सच्चाई का पैमाना (मीज़ान) भी बनाया है ताकि तुम हक़ और बातिल को पहचान सको और बातिल से दूरी अख़्तियार करो।

हमें अपने आर्थिक, सामाजिक और नैतिक मामलों में इंसाफ़ (न्याय) से काम लेना चाहिए, न ही ज़्यादती करनी चाहिए और न ही कमी छोड़नी चाहिए।

 

इन आयतों से हमने सीखाः

 

ब्रह्मांड संयोग से नहीं, बल्कि एक सटीक योजना के तहत बना है। हर चीज़ का आकार, गति और स्थिति अल्लाह ने तय की है।

जैसे प्रकृति में संतुलन है, वैसे ही इंसानी ज़िंदगी में भी न्याय ज़रूरी है। हमें हर काम में नाप-तौल का ध्यान रखना चाहिए, हमेशा इमानदारी और निष्पक्षता बरतें।