ईरान की सांस्कृतिक धरोहर-40
कपड़ों की पारंपरिक बुनाई में, बुनाई के साधारण यंत्रों से कपड़े बिने जाते हैं।
कपड़ों की पारंपरिक बुनाई में, बुनाई के साधारण यंत्रों से कपड़े बिने जाते हैं। ईरान के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में इस बुनाई के माध्यम से अब भी कपड़े बनाए जाते हैं। हालांकि इनकी संख्या पहले की तुलना में कम है किंतु यह अभी भी मौजूद हैं।
कपड़े की पारंपरिक बुनाई, ईरान की अति प्राचीन कलाओं में से एक है। ईरान के उत्तरी क्षेत्र में स्थित बेहशहर के निकट एक गुफा में कुछ यंत्र मिले हैं जो लगभग 6000 वर्ष पुराने हैं। इनके अध्ययन से पता चलता है कि इस क्षेत्र में उस समय के लोग, कपड़ा बुनने और सूत कातने जैसी कला से अवगत थे।
ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर ईरान के मरूस्थलीय क्षेत्रों के रहने वाले, कपड़े बुनने की कला या सूत कातने जैसे शैली से अवगत होने से पहले जानवरों की खालों से अपने लिए कपड़े बनाया करते थे। शोध यह बताते हैं कि ईरान के पठारी क्षेत्रों के लोगों ने लगभग 4200 वर्ष ईसा पूर्व से पहनने के लिए जानवरों की खालों का प्रयोग बंद कर दिया था और वे ऊन से कपड़ा बनाया करते थे जिसे पहनने के लिए प्रयोग किया जाता था।
एक यूनानी इतिहासकार “हेरोडोटस” ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि ईरान में ईसा से पूर्व वाले काल में कपड़े की बुनाई के प्रमाण मौजूद हैं। ईरान में कपड़े की बुनाई की पहली निशानी का संबन्ध 4000 वर्ष ईसापूर्व से है। इस बारे में कुछ अवशेष शूश में की जाने वाली खुदाई के दौरान हाथ लगे हैं। इसके अतिरिक्त “हेसार” नामक टीले में तीन हज़ार वर्ष ईसा पूर्व का बुनाई का एक एसा यंत्र मिला है जो यह सिद्ध करता है कि ईरान में बुनाई की कला अति प्राचीनकाल में भी मौजूद थी।
बाद के वर्षों में भेड़ के ऊन और बकरी के बालों से कपड़े बनाए गए जिन्हें पसंद किया गया। माद के काल के कुछ नूमने यह दर्शाते हैं कि उस काल में ईरान में कपड़े की बुनाई का काम प्रचलित था। इतिहासकारों के अनुसार हख़ामनशी काल में कपड़े की बुनाई बहुत ही दक्षता के साथ की जाने लगी थी।
सासानियों के शासनकाल , ईरान में कपड़े की बुनाई की दृष्टि से उच्च स्तर का काल रहा है जिसमें कपड़े की बुनाई अपने शिखर पर थी। एक मश्हूर चीनी पर्यटक “हियोन सांग” ने, जिसने सातवीं शताब्दी में एशियन देशों की स्थिति की समीक्षा की है, ईरान में बने कपड़ों की ओर संकेत किया है। वह लिखता है कि ईरानी, रेशम और ऊन से बहुत ही सुन्दर और अच्छे कपड़ों की बुनाई किया करते थे। दूसरी ओर जर्मनी के एक शोधकर्ता आर्थर क्रिस्टेंसन कहते हैं कि कपड़े की बुनाई, ईरान की महत्वपूर्व कलओं में से एक रही है। एतिहासिक प्रमाणों से यह पता चलता है कि रोम का शासक “बीरक़” ईरान तथा चीन के बने रेशमी कपड़ों को बहुत पसंद करता था। इन प्रमाणों के अनुसार वह ईरान के रेशमी कपड़ों को अधिक महत्व देता था। सासानी काल में ईरान में कपड़े की बुनाई अपने चरम शिखर पर थी। इस काल के जो कपड़े बचे हैं उनपर पशुओं के चित्र, पक्षियों के चित्र और शिकार करते हुए घुड़सवारों को दिखाया गया है।
इस्लाम के उदय के आरंभिक काल में कपड़े की बुनाई की कला, सासानी काल की बुनाई की शैली से प्रभावित थी। इस काल में तकनीकी दृष्टि से कोई परिवर्तन नहीं हुआ बल्कि कपड़े पर बनाए जाने वाले चित्रों में थोड़ा परिवर्तन देखने में आया। दूसरी से चौथी शताब्दी हिजरी क़मरी के बीच ईरान में कपड़े की बुनाई की कला ने अधिक प्रगति की। उस काल के बने कपड़ों के कुछ नमूने, मिस्र में क़ाहिरा इस्लामी संग्रहालय में मौजूद हैं। यह कपड़े ईरान के मर्व और नैशापूर क्षेत्रों के बने हुए हैं।
उमवी तथा अब्बासी शासन कालों में दरबार और समाज के स्भ्रांत लोगों के लिए बहुत ही सुन्दर एवं कोमल रेशमी कपड़े बनाए जाते थे। इस काल में बनाए जाने वाले कपड़ों और सासानी काल में बनाए गए कपड़ों में काफ़ी अंतर पाया जाता है।
कुछ शोधकर्ताओं का यह मानना है कि कपड़े की बुनाई की कला सलजूक़ी काल में अपने शिखर पर थी। इस काल में सजाने के लिए कपड़ों पर बनाए जाने वाले चित्रों में कुछ परिवर्तन आया। इसी के साथ इस काल में कपड़े बनाने की चीनी शैली का भी प्रयोग आरंभ हुआ। इस काल में रेशमी कपड़ों पर पशुओं और वनस्पतियों के चित्रों का चलन आरंभ हुआ। इन दौरान कपड़ों बनाए जाने लगे जिनपर पशुओं के चित्रों के साथ ही बहुत ही सुन्दर ढंग से कूफी लीपि में भी लिखा जाने लगा। सलजूक़ी काल में कपड़ों के लिए हरे, लाल, सफेद, भूरे और सुनहरे रंगों का प्रयोग आरंभ हुआ।
सलजूक़ी काल में अर्थात 11वीं और 12वीं शताब्दी में ईरान में शहरे रै, कपड़े बुनने के प्रमुख केन्द्रों में से एक था। यहां पर बुनाई का काम करने वाले दक्ष लोग हुआ करते थे जो बहुत ही दक्षता से अपना काम करते थे। रै शहर के अतिरिक्त ईरान में कपड़े की बुनाई के केन्द्रों में यज़्द, काशान और तबरीज़ का नाम लिया जा सकता है।
ईरान पर मंगोलों के आक्रमण के बाद चीनी वस्तुओं के आयात और चीन तथा ईरान के बीच बढ़ते व्यापार के कारण बहुत से चीनी बुनकर ईरान आए जिसके कारण ईरान की हस्तकला शैली पर चीनी शैली ने प्रभाव डाला। उधर चीनी वस्तुओं की बढ़ती मांग के कारण ईरानी बुनकरों ने भी चीनी शैली को वरीयता देना आरंभ कर दिया। ईरानी कपड़ों पर काल्पनिक पशुओं के चित्र और इसी प्रकार के कुछ अन्य चित्रों की मौजूदगी, ईरानी हस्तकला शैली पर चीनी शैली के प्रभाव का चिन्ह है। इस दौरान हरात, नीशापूर, मर्व और तबरीज़ जैसे ईरानी नगर बुनाई का केन्द्र थे।
तैमूरियों के काल में यज़्द, इस्फ़्हान, काशान और तबरेज़ में बिने हुए कपड़े ईरान के अतिरिक्त अन्य देशों को भी भेजे जाते थे। इस प्रकार कपड़ा बुनने की कला अधिक विकसित हुई।
सफ़वी काल को ईरान में कपड़े की बुनाई का स्वर्णिम काल कहा जाता है। ईरान में इस दौर में बुने गए कपड़ों को अद्वितीय बताया गया है। उस काल के बिने कपड़ों में बहुत विविधता पाई जाती है। इन कपड़ों को यूरोप और रूस भी निर्यात किया जाता था। इन बिने हुए कपड़ों में से बहुत से कपड़ों पर शाहनामें की कई घटनाओं के चित्र बने हुए हैं। इसके अतिरिक्त इनपर जंगल, बाग़ और शिकार के चित्र भी बने हुए हैं।
सफ़वी काल में जो कपड़े ईरान में प्रचलित थे उनमे रेशमी कपड़े सबसे अधिक थे। इनमें से एक का नाम “ताफ्त” था जिसे इस्फ़्हान और अब्याने में बुना जाता था। इस दौर में यज़्द में बनाए जाने वाले जालीदार कपड़े भी बहुत मशहूर थे। कहते हैं कि सफ़वी काल मे ईरान में जो रेशमी कपड़े प्रचलित थे और जिनपर विभिन्न डिज़ाइन बनाए जात थे उनका उदाहरण कही और पाना बहुत मुश्किल है।
सफ़वी काल में रेशमी कपड़ों को जो महत्व प्राप्त था और जिस प्रकार से वे विश्व प्रसिद्ध हुए थे बाद के दशकों में उनका प्रभाव कम होता गया जिसके कारण इसके दक्ष बुनकरों की संख्या कम होती गई। बाद के वर्षों में यह केवल कुछ ग्रामीण क्षेत्रों या बज़ारों के क्षेत्रों तक ही सीमित हो गए।
वर्तमान समय में ईरान में हस्तशिल्प का काम मुख्यतः यज़्द, ख़ुरासान, माज़ंदरान, गीलान और गुलिस्तान में किया जाता है।