Jul १७, २०१६ १६:१३ Asia/Kolkata

सूरए इंसान मदीने में नाज़िल हुआ और इसके सूरए दहर और सूरए हल अता जैसे भी नाम हैं।

ये सभी नाम इस सूरे की आयतों में मौजूद हैं। सूरए इंसान में मनुष्य की रचना, मार्गदर्शन, विचारों की स्वतंत्रता, ईश्वरीय मार्गदर्शन के मुक़ाबले में गतिरोध करने वालों के मिलने वाले विभिन्न दंड, भले लोगों के पारितोषिक, क़ुरआने मजीद के महत्व, उसके आदेशों के क्रियान्वयन की शैली, आत्म निर्माण और मनुष्य के स्वाधीन होने के साथ ही ईश्वरीय इच्छा के प्रभुत्व जैसे विषयों के बारे में बात की गई है।

 

सूरए इंसान के आरंभ में मनुष्य की रचना और जन्म के चरणों के बारे में संकेत किया गया है क्योंकि सृष्टि पर ध्यान, रचयिता और प्रलय पर ध्यान का मार्ग प्रशस्त करता है। इस सूरे की दूसरी आयत में ईश्वर कहता है। हमने मनुष्य को एक मिश्रित शुक्राणु या स्पर्म से पैदा किया और (हर चरण में) उसे आज़माते रहे, फिर हमने उसे सुनने और देखने वाला बना दिया।

 

क़ुरआने मजीद के विभिन्न सूरों में मनुष्य की रचना के बारे में बात की गई है जो इस ईश्वरीय किताब के चमत्कारों में से है। क़ुरआन की आयतों के अनुसार ईश्वर ने मनुष्य को मिट्टी से बनाया। इसके बाद शुक्राणु को जमे हुए ख़ून का रूप दिया। जमे हुए ख़ून का मांस में बदलना उसकी परिपूर्णता का एक और चरण था। फिर वह हड्डी के रूप में आया, उसके बाद हड्डी पर मांस चढ़ा और अंत में उसमें ईश्वरीय आत्मा फूंके जाने के बाद उसे एक नई रचना मिल गई और वह मनुष्य में बदल गया।

 

इंसान की सृष्टि के चरणों का उल्लेख उसे यह सिखाता है कि तत्वदर्शी रचयिता के माध्यम से इस सृष्टि की जटिलता व सटीकता को सही ढंग से देखे और उसकी शक्ति व ज्ञान को समझे। इसके बाद इस सूरे में मनुष्य के, दायित्व के चरण तक पहुंचने और परीक्षा की बात कही गई है और चूंकि परीक्षा व दायित्व का बोध ज्ञान के बिना संभव नहीं है इस लिए दूसरी आयत के अंत में पहचान के साधनों अर्थात आंख और कान की ओर संकेत किया गया है जिन्हें मनुष्य के अधिकार में दिया गया है। तीसरी आयत में मनुष्य के मार्गदर्शन की बात की गई है और कहा गया है कि ईश्वर ने लोक-परलोक में कल्याण का मार्ग मनुष्य को दिखा दिया है और वह स्वतंत्रता के साथ या तो कृतज्ञ रह कर इस मार्गदर्शन को स्वीकार कर लेता है या अकृतज्ञता दिखाते हुए उद्दंडी हो जाता है। बहरहाल दोनों चयनों का परिणाम मनुष्य के सामने अवश्य आता है।

 

सूरए इंसान के भेजे जाने के बारे में शिया व सुन्नी किताबों में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के चचेरे भाई इब्ने अब्बास के हवाले से बयान किया गया है कि एक बार इमाम हसन व हुसैन अलैहिमस्सलाम बीमार पड़ गए। पैग़म्बर अपने कुछ साथियों के साथ उन्हें देखने पहुंचे और हज़रत अली अलैहिस्सलाम से कहा कि अगर आप अपने बच्चों के स्वस्थ होने के लिए कोई नज़्र कर लेते अर्थात मन्नत मान लेते हो अच्छा होता। हज़रत अली, हज़रत फ़ातेमा और उनकी दासी हज़रत फ़िज़्ज़ा ने नज़्र की कि अगर वे दोनों स्वस्थ हो जाएं तो वे लोग तीन दिन रोज़ा रखेंगे। कुछ ही समय में दोनों बच्चे ठीक हो गए। उस समय परिवार काफ़ी तंगी में था। हज़रत अली अलैहिस्सलाम थोड़े से जौ उधार लेकर आए और हज़रत फ़ातेमा ने उसका एक तिहाई भाग पीस कर आटा बनाया और इफ़्तार के लिए रोटी पकाई। लेकिन इफ़्तार के समय एक भिखारी आ गया और उसने आवाज़ लगाई। तुम पर सलाम हो मुहम्मद के घर वालो! मैं एक मुसलमान दरिद्र हूं, मुझे कुछ खाने के लिए दे दो। उन सभी ने अपने हिस्से की रोटी उस भिखारी को दे दी और सिर्फ़ पानी पीकर सो गए।

 

अगले दिन भी सभी ने रोज़ा रखा और इफ़्तार के समय जब रोटियां तैयार थीं, एक अनाथ हज़रत अली के दरवाज़े पर आया और खाने के लिए कुछ मांगने लगा। सभी ने उस दिन भी त्याग का प्रदर्शन किया और अपने हिस्से की रोटी उसे दे दी। इस बार भी सबने पानी से इफ़्तार किया और सो गए। अगले दिन भी सभी ने रोज़ा रखा। उस दिन भी इफ़्तार के समय एक बंदी घर के पास आया और उसने कुछ खाने के लिए मांगा। सबने फिर अपने हिस्से की रोटी उसे दे दी। अगले दिन सुबह के समय हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने दोनों बच्चों हसन व हुसैन का हाथ पकड़ कर पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पास पहुंचे। जब पैग़म्बर ने उन्हें भूख से कांपते हुए देखा तो कहा कि तुम लोगों को इस स्थिति में देखना मेरे लिए अत्यंत कठिन है, इसके बाद वे उठे और उनके साथ घर पहुंचे। जब वे घर के अंदर पहुंचे तो देखा कि हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा नमाज़ पढ़ रही हैं जबकि भूख के कारण उनका पेट, पीठ से लग गया था और उनकी आंखें अंदर की ओर धंसी हुई थीं। पैग़म्बर बहुत दुखी हुए। उसी समय ईश्वर के विशेष दूत हज़रत जिब्रईल आए और उन्होंने कहाः हे मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) इस प्रकार के परिजनों पर ईश्वर आपको बधाई देता है। इसके बाद उन्होंने पैग़म्बर के परिजनों की सराहना में सूरए इंसान को उनके समक्ष पढ़ा।

 

चूंकि क़ुरआने मजीद का मूल लक्ष्य, मानवीय परिपूर्णता की ओर इंसान का मार्गदर्शन है इस लिए इस सूरे में ईश्वर द्वारा भले कर्म करने वालों को दिए जाने वाले पारितोषिक और उनके उन कर्मों के उल्लेख द्वारा जिनके चलते वे इस पारितोषक का पात्र बने हैं, इस बात का प्रयास किया गया है कि लोगों के समक्ष एक अच्छा आदर्श पेश किया जाए ताकि लोग उसी राह पर चलें जिस पर सद्कर्मियों ने क़दम बढ़ाए हैं। आयतें शुभ सूचना देती हैं कि भले कर्म करने वाले ईश्वर के स्वर्ग में ऐसे प्यालों से शर्बत पियेंगे जो प्रसन्नता की सुगंध से महक रहा होगा और इसका स्रोत वह सोता है जिससे ईश्वर के विशेष बंदे पी सकते हैं और जब भी वे इरादा करेंगे उस सोते को जहां चाहेंगे जारी कर लेंगे। आयतें इस उच्च स्थान तक पहुंचने के कारणों का उल्लेख करते हुए कहती हैं। वे नज़्र (मन्नत) पूरी करते हैं और उस दिन से डरते है जिसका दंड व्यापक होगा और वे खाने की चाहत (और आवश्यकता) रखते हुए भी उसे ज़रूरतमंद, अनाथ और क़ैदी को खिला देते हैं।

 

इन आयतों से उनके त्याग व बलिदान की सीमा का पता चलता है कि वे दूसरों को उस समय भी अपना खाना खिला देते हैं जब स्वयं उन्हें उसकी बहुत अधिक ज़रूरत होती है। इसके साथ उनके द्वारा दूसरों को खिलाने का काम अत्यंत व्यापक है जिसमें ज़रूरतमंद, अनाथ और बंदी शामिल हैं। इस आयत से यह भी पता चलता है कि दूसरों को खाने खिलाने की सबसे अच्छी क़िस्म, वंचितों और ज़रूरतमंदों को खिलाना है, इसमें केवल मुसलमान शामिल नहीं हैं बल्कि अन्य धर्मों के ज़रूरतमंदों को भी खिलाना चाहिए। भले लोग अपने कर्म पूरी निष्ठा के साथ करते हैं और कहते हैं कि हमने सिर्फ़ ईश्वर के लिए तुम्हें खाना खिलाया और इस पर हम तुमसे न तो कोई बदला चाहते हैं और न ही आभार। हम उस दिन को लेकर अपने पालनहार से भयभीत हैं जो बड़ा डरावना और कड़ा होगा। इसके बाद क़ुरआने मजीद सूरए इंसान की 11वीं से लेकर 22वीं आयत तक में उन विभिन्न अनुकंपाओं और नेमतों का उल्लेख करता है जो परलोक में भले कर्म करने और ईश्वर से डरने वालों को प्राप्त होंगी।

 

सूरए इंसान की कुछ आयतों में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम को संबोधित करते हुए उन्हें धैर्य व संयम से काम लेने की सिफ़ारिश की गई है। इसके बाद उन्हें चार महत्वपूर्ण आदेश देते हुए कहा गया है कि धर्म के प्रचार और ईश्वर के आदेशों के क्रियान्वयन में संयम से काम लें, पापियों और काफ़िरों का अनुसरण न करें, अपने ईश्वर को भोर और शाम के समय याद करें, रात के एक भाग में सज्दा करें और रात के समय देर तक उसकी पवित्रता का गुणगान करें। यद्यपि ये आदेश पैग़म्बरे इस्लाम के लिए हैं लेकिन वास्तव में यह उन सभी के लिए उत्तम कार्यक्रम हैं जो मानव समाज के आध्यात्मिक व मानवीय नेतृत्व की राह में क़दम बढ़ाते हैं।

 

उन्हें जानना चाहिए कि अपने लक्ष्य व दायित्व के प्रति भरपूर आस्था व ईमान के बाद उनके लिए संयम से काम लेना ज़रूरी है और समस्याओं व कठिनाइयों से घबराना नहीं चाहिए। इसी तरह ज़रूरी है कि वे शैतान व शत्रुओं के उकसावों के मुक़ाबले में पूरी शक्ति से प्रतिरोध करें जो विभिन्न मार्गों से नेताओं को बहकाने और सही मार्ग से हटाने की कोशिश करते हैं ताकि उनका लक्ष्य पूरा न हो सके। उन्हें न लोभ में आना चाहिए और न ही धमकियों से डरना चाहिए। इन ईश्वरीय नेताओं को सभी चरणों में अपनी आत्मिक शक्ति और संकल्प को बढ़ाने के लिए हर सुबह और हर शाम ईश्वर की याद में और उसके समक्ष नतमस्तक रहना चाहिए। विशेष कर रात की उपासनाओं से मदद लेनी चाहिए। अगर इन बातों का पालन किया गया तो जीत निश्चित है और अगर किसी चरण में कठिनाई आती है या पराजय होती है तो इन सिद्धांतों की छाया में उसकी क्षतिपूर्ति की जा सकती है।

 

सूरए इंसान की 28वीं आयत में एक बार फिर मनुष्य की रचना की ओर संकेत करते हुए कहा गया है। हमने उन्हें पैदा किया और उनके जोड़-बन्द मज़बूत किए और हम जब चाहें उनका स्थान दूसरे गुट को दे देंगे। यह आयत काफ़िरों को चेतावनी देती है कि वे अपनी ताक़त पर घमंड न करें क्योंकि जिस ईश्वर ने उनकी रचना की है और उन्हें शक्ति प्रदान की है कि वह जब चाहे उन्हें समाप्त करके उनके स्थान पर दूसरे गुट को ला सकता है। इसी प्रकार उनकी उपासना व ईमान से ईश्वर का आवश्यकता मुक्त होना यह स्पष्ट करता है कि अगर उनके ईमान व मार्गदर्शन पर आग्रह किया जा रहा है तो यह वास्तव में उनके प्रति ईश्वर की कृपा है। ये सारी आयतें एक प्रकार से मुनष्य को सही मार्ग दिखाती हैं ताकि जो भी चाहे इस राह पर क़दम रखे और अपने पालनहार की ओर आगे बढ़े।

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