Sep २१, २०१६ १४:५५ Asia/Kolkata

जैसा कि हमने उल्लेख किया था, सीनाई पर्वत पर ईश्वर ने हज़रत मूसा (अ) को दस धर्मादेश दिए थे। हिब्रू बाइबिल में इन दस नियमों का दो बार उल्लेख है।

दस धर्मादेशों में से एक यह है कि अपने माता और पिता का आदर करो। दस धर्मादेशों में यह पहला ऐसा आदेश है जो वादे के साथ है। अर्थात तुम अपने मां-बाप का आदर करो, इससे तुम्हारा भला हो सकता है और ईश्वर तुम्हें धरती पर लम्बा जीवन प्रदान करेगा।

माता पिता का आदर करना बाइबिल का एकमात्र ऐसा आदेश है, जो प्रतिफल के रूप में लम्बे जीवन का वादा करता है। ईश्वरीय दूत हज़रत सुलेमान बच्चों से मां-बाप के आदर की सिफ़ारिश करते हैं।

स्पष्ट रूप से मां-बाप का आदर और सम्मान करने का हमें आदेश दिया गया है। हमें अपने कार्यों और व्यवहार दोनों रूप से मां-बाप का आदर करना है। हमें उनकी कही और अनकही बातों और इच्छाओं का सम्मान करना चाहिए। बाइबिल में एक स्थान पर उल्लेख किया गया है कि बुद्धिमान पुत्र अपने पिता के दिशा-निर्देशों पर ध्यान देता है और एक उपहासक, फटकार तक पर कान नहीं धरता।

सम्मान से सम्मान मिलता है। ईश्वर उन लोगों का सम्मान करेगा, जो अपने मां-बाप का आदर करते हैं और उन लोगों का सम्मान नहीं करेगा, जो मां-बाप के आदर से संबंधित उसके आदेश का पालन नहीं करते हैं।

कहते हैं कि एक वृद्ध व्यक्ति अपने बेटे, बहू और चार वर्षीय पोते के साथ रहता था। प्रतिदिन परिवार के सदस्य रात का भोजन एक साथ मिलकर करते थे। लेकिन बूढ़ा व्यक्ति अपने लरज़ते हुए हाथों और कमज़ोर निगाह के कारण सही तरह से भोजन नहीं कर पाता था। भोजन करते समय कुछ खाना ज़मीन पर गिर जाता था। यह स्थिति बेटे और बहू के लिए असहनीय होती जा रही थी। एक दिन बेटे ने कहा कि इस समस्या का कोई न कोई उपाय खोजना ही होगा। उसके बाद बेटे और बहू ने पिता के कमरे में ही कोने में एक छोटी सी मेज़ रख दी।  उसके बाद से बूढ़े बाप को वहीं भोजन परोसा जाने लगा। बूढ़ा बाप अकेले ही अपने कमरे के एक कोने में बैठकर खाना खाता था, जबकि घर के अन्य सदस्य एक साथ बैठकर भोजन करते थे और भोजन का पूरा आनंद लेते थे। बूढ़े के हाथ से एक दो बर्तन टूट जाने के कारण अब उसे लकड़ी के एक प्याले में भोजन दिया जाने लगा। जब कभी उनकी नज़र बूढ़े बाप पर पड़ती थी तो वे देखते थे कि बूढ़ा बाप जब खाना खाता है तो उसकी आँखों में आँसू छलक रहे होते हैं। इस बीच बेटा और बहू बूढ़े बाप से संबोधित होकर कोई बात करते थे, तो वह केवल तीखे लहजे में कुछ चेतावनियां होती थीं। चार साल का उनका बेटा ख़ामोशी से यह सब तमाशा देखता था। एक दिन खाने से पहले बूढ़े के बेटे ने देखा कि उसका बेटा लकड़ी के कुछ टुकड़ों से खेलने में व्यस्त है। उसने प्यार से पूछा कि प्यारे बेटे इन लकड़ी के टुकड़ों से क्या बना रहे हो? लड़के ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया, लकड़ी का एक छोटा सा प्याला, इसलिए कि जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो आप को और अपनी मां को इसमें भोजन दिया करूंगा, उसके बाद वह मुस्कराया और फिर से अपने खेल में व्यस्त हो गया। बच्चे की इस बात ने मां-बाप को ऐसा झकझोर कर रख दिया, इस तरह से कि उनकी ज़बान से एक शब्द नहीं निकल पा रहा था, लेकिन आँखों से आँसू जारी थे। उस रात, बेटे ने बहुत ही विनम्रता से अपने बूढ़े बाप का हाथ पकड़ा और खाने की मेज़ पर ले गया।

यह घटना और इसी प्रकार की अनगिनत शिक्षाप्रद घटनाएं जिनका उल्लेख है, इंसान की जागरुकता के लिए काफ़ी हैं, इस शर्त के साथ कि उसका विवेक जीवित हो। वरिष्ठ ईश्वरीय दूतों समेत लगभग समस्त ईश्वरीय दूतों और उनके उत्तराधिकारियों ने मा-बाप के आदर की सिफ़ारिश की है। क़ुरान में ईश्वरीय दूत हज़रत यहिया के कथन का उल्लेख है, जिसमें वे कहते हैं कि ईश्वर ने मुझे इस प्रकार से पैदा किया है कि अपने मां-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करूं। ईश्वरीय दूत हज़रत ईसा कहते हैं कि ईश्वर ने मुझे एसा नहीं बनाया है कि अपनी मां के साथ दुर्व्यवहार करूं। हज़रत ईसा एक अन्य स्थान पर फ़रमाते हैं, मैं अपनी मां के प्रति सदाचारी हूं।

हज़रत ईसा की शिक्षाओं में मां-बाप के आदर पर अधिक बल दिया गया है। स्वयं हज़रत ईसा ने व्यवहारिक रूप से अपने अनुयाईयों के लिए इसका आदर्श प्रस्तुत किया है। हज़रत ईसा ने इस दुनिया में आँखे खोलते ही, सबसे पहले ईश्वर का शुक्र अदा किया और उससे दुआ कि मुझे अपनी का आदर और उसकी सेवा का अवसर प्रदान कर। इसलिए कि वे एक विशिष्ट ईश्वरीय दूत थे और उनका हर काम मनुष्यों के लिए आदर्श था। हज़रत ईसा अपनी मां की सेवा और उसके साथ अच्छे व्यवहार को अपने लिए एक विशिष्टता मानते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि उनकी दृष्टि में मां का कितना उच्च स्थान था। क्योंकि ईश्वरीय दूत के रूप में उनकी अनेक विशिष्टताएं थीं और वे ईश्वर का शुक्र अदा करते समय उनका उल्लेख कर सकते थे।

हिंदू संस्कृति में भी पिता माता के आदर पर बल दिया गया है। महाभारत के अनुशासन पर्व में पांच ऐसे लोगों के बारे में बताया गया है, जिनका सम्मान करने से मनुष्य को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

महाभारत के अनुसार, जो व्यक्ति पिता, माता, बड़े भाई, गुरु और आचार्य की सेवा करता है। कभी उनके गुणों को दोष की दृष्टि से नहीं देखता, उसे निश्चित ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है। ऐसे पुरुष को कभी भी नरक के दर्शन नहीं करना पड़ते।

महाभारत की शिक्षाओं के अनुसार, माता पिता, गुरु, बड़ा भाई और बुज़ुर्ग एवं अन्य वरिष्ठ लोग आदर एवं सम्मान के पात्र हैं। गुरु एवं माता-पिता के उपकारों से ऋण मुक्त होना तो संभव नहीं हैं किंतु इनकी सेवा, आज्ञा का पालन एवं सम्मान करना प्रत्येक हिंदू का धर्म कर्तव्य है। गुरु, माता-पिता और बुज़ुर्गों आदि का सम्मान एवं सेवा करने वालों की आयु, विद्या, यश और बल चारों बढ़ते हैं।

हिंदू धर्म की दृष्टि में धर्म, संस्कृति और जीवन तीनों का विस्तार समान है। हिंदु धर्म में माता पिता एवं गुरु को ईश्वर का स्वरूप क़रार दिया गया है।

हिंदु धर्म में यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म की भांति मां-बाप के आदर से संबंधित व्यापक दिशा-निर्देश और सिद्धांत बयान नहीं किए गए हैं और इन धर्मों के विपरीत हिंदु संस्कृति और धर्म में मां के अधिकारों पर पिता के अधिकारों को प्राथमिकता दी गई है। इसके अलावा जिन शक्तियों द्वारा मनुष्य का भरण-पोषण और विकास होता है, हिंदु संस्कृति में उन सभी को माता माना गया है। उदाहरण स्वरूप, गौमाता, सरस्वती माता, गंगा माता, यहां तक कि वह राष्ट्र और धरती जहां मनुष्य जन्म लेता है, जैसे कि भारत माता।

हालांकि अन्य ईश्वरीय धर्मों की भांति ही हिंदु धर्म में भी मां बाप की आज्ञा पालन, उनकी सेवा और उनके साथ विनम्रतापूर्ण व्यवहार के प्रतिफल के रूप में स्वर्ग का उल्लेख किया गया है और ईश्वर की ओर से वरदान का वादा किया गया है।

 

 

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