Oct ०५, २०१६ १३:५३ Asia/Kolkata

आपको याद होगा कि पिछले कार्यक्रम में दमावंद ज़िले से आपको परिचित कराया था।

आपको यह बताया था कि इस ज़िले का इतिहास पुरातत्वविदों को मिले अवशेषों के मद्देनज़र 14000 साल पुराना है। कुछ इतिहासकारों ने दमावंद को ईरान के उन ज़िलों में गिना है जो सबसे पहले बसे हैं। दमावंद ज़िले में मौजूद ऐतिहासिक अवशेषों से भी इस ज़िले की प्राचीनता का पता चलता है। इस ज़िले में पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की 37 औलादों के रौज़े, 27 क़िले, 23 प्राचीन घर, 21 दर्शनस्थल, 18 ऐतिहासिक हम्माम, 15 प्राचीन अहाते 6 प्राकृतिक अवशेष, 8 ऐतिहासिक पुल, 3 ऐतिहासिक मस्जिदें और 3 ऐतिहासिक कारवांसरायें, दमावंद ज़िले के प्राचीन इतिहास के एक छोटे से भाग का चित्रण करती हैं।

दमावंद की जामा मस्जिद

  

दमावंद की जामा या जुमा मस्जिद दमावंद के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक अवशेषों में गिनी जाती है। यह मस्जिद दमावंद शहर के केन्द्र में एक प्राचीन मुहल्ले में स्थित है। कुछ इतिहासकारों ने इस मस्जिद के निर्माण की तारीख़ को 812 हिजरी क़मरी बताया है। जबकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह तारीख़ मस्जिद की मरम्मत की तारीख़ है और उनका मानना है कि यह मस्जिद 500 हिजरी क़मरी में बनी है और उस समय सलजूक़ी शासन श्रंख्ला का राज था। इस इमारत में एक गोलाकार मीनार है जिसका आधार ईंट के चौकोर खम्बे पर है। इस मीनार पर कूफ़ी लीपि के शिलालेख का अवशेष और पांचवी शताब्दी की शैली की अन्य सजावट की चीज़ें मौजूद हैं।

यह मीनार ही मस्जिद का वह हिस्सा है जो पांचवी शताब्दी की वास्तुकला का नमूना पेश करता है। इस मस्जिद का सबसे पुराना हिस्सा वह छोटा सा हाल है जो मस्जिद के उत्तरी छोर पर बेसमंट में है और इसकी ऊंची मीनार अभी भी अपनी अस्ली हालत में मौजूद है। मस्जिद की मौजूदा इमारत में दो हाल हैं जो उत्तर से दक्षिण में फैले है। इसका प्रवेश द्वार अपेक्षाकृत बड़ा है और 7 तरह की टाइलों से सजा हुआ है। इसी प्रकार मस्जिद का नीला गुंबद दूर से नज़र आता है। इस मस्जिद की अनेक बार मरम्मत हो चुकी है। मस्जिद के द्वार पर दो शिलालेख लगे हुए हैं। एक पर शाह अब्बास प्रथम का दमावंद और ख़वार के लोगों के कर माफ़ करने का आदेश लिखा है जबकि दूसरे पर 1247 हिजरी क़मरी में महामारी की तारीख़ लिखी है। कहा जाता है कि जिस जगह पर मौजूदा मस्जिद की इमारत है वहां पर इस्लाम के उदय से पहले अग्निकुंड बना हुआ था जिसे तीसरे पहली शताब्दी हिजरी के दशक में बड़ी मस्जिद में बदल दिया गया। दमावंद की जुमा मस्जिद ईरान के राष्ट्रीय अवशेषों की सूचि में पंजीकृत है।

दमावंद शहर का एक और ऐतिहासिक अवशेष शिब्ली मीनार है जो पांचवी हिजरी शताब्दी क़मरी या सलजूक़ी शासन काल में बनी है। यह मीनार बेलनाकार है। इसे ईंट और चूने से बनाया गया है। शिब्ली तीसरी शताब्दी हिजरी क़मरी के मशहूर आत्मज्ञानी हैं जो अब्बासी शासन काल में कुछ समय तक दमावंद के शासक थे। शिबली अपने जीवन के अंतिम वर्षों में बग़दाद चले गए थे और वहीं आत्मोत्थान की कोशिश में लगे रहे यहां तक कि मौत आ गयी और वहीं उन्हें दफ़्न किया गया। शिब्ली मीनार भी ईरान की राष्ट्रीय धरोहर में शामिल है।

 दमावंद में इमामज़ादों के रौज़ों सहित अनेक दर्शन स्थल है जिसमें इमामज़ादा अब्दुल्लाह का रौज़ा उल्लेखनीय है। इमामज़ादा पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की औलाद को कहते हैं। इमामज़ादा अब्दुल्लाह का रौज़ा दमावंद शहर के केन्द्र में स्थित है और यह ईलख़ानी शासन काल में बना है। इस इमारत के निर्माण में पत्थर के टुकड़ों और खड़िये का मसाला इस्तेमाल हुआ है। इस रौज़े पर सफ़वी और क़ाजारी शासन काल में विशेष ध्यान दिया गया। इन दोनों दौर के अवशेष इस रौज़े में मौजूद हैं। जैसे कि इस रौज़े में सफ़वी शासन काल का लकड़ी का एक बक्सा मौजूद है और रौज़े के बग़ल में क़ाजारी शासन काल में बनी मस्जिद है। इमामज़ादा अब्दुल्लाह के रौज़े की इमारत इतनी बड़ी है कि इसे दमावंद ज़िले में मौजूद इमामज़ादों के रौज़ों की बड़ी इमारतों की श्रेणी में शामिल किया जा सकता है। इमामज़ादा अब्दुल्लाह के रौज़े की इमारत को 1972 में राष्ट्रीय धरोहर की सूचि में शामिल किया गया।

दमावंद की जामा मस्जिद

 

विश्वसनीय ऐतिहासिक सूचनाओं के अनुसार, कवीर मरुस्थल के उत्तरी छोर से लेकर अलबुर्ज़ पर्वत श्रंख्ला के दक्षिणी पर्वतांचल तक एक भाग को माद शासन श्रंख्ला के अधीन महत्वपूर्ण क्षेत्र समझा जाता था। सारान, कीलान और आबसर्द नामक इलाक़ों में अनेक क़िलों की मौजूदगी के मद्देनज़र ख़ास तौर पर कीलान माद शासन श्रंख्ला के दौर में महत्वपूर्ण क्षेत्र समझा जाता था। अलबत्ता इन इलाक़ों में क़िलों के सिर्फ़ नाम बचे हैं कुछ तो पूरी तरह गिर चुके हैं। गुल ख़न्दान नामक प्राचीन क़िले के अवशेष दमावंद ज़िले के गुल ख़न्दान नामक गांव में मौजूद हैं और यह इमारत सासानी शासन काल में बनी थी। यह इमारत भी ईरान की राष्ट्रीय धरोहर की सूचि में पंजीकृत।

 

शीर ख़िश्त क़िले के अवशेष दमावंद ज़िले के कोहनक गांव में मौजूद हैं। यह इमारत इस्लाम के बाद के किसी ऐतिहासिक काल में बनी है। इस इमारत को भी 2003 में पंजीकृत किया गया।

इससे पहले भी इस बात का संकेत किया था कि दमावंद प्राकृतिक स्थिति की दृष्टि से तेहरान के पूरब में पर्वतीय क्षेत्र में स्थित है। दमावंद की समुद्र की सतह से औसत ऊंचाई 2147 मीटर है। अनेक नदियों की उपस्थिति के मद्देनज़र दमावंद ईरान के पानी से समृद्ध क्षेत्रों में गिना जाता है। यही कारण है कि दमावंद में अख़रोट, सेब, खट्टी चेरी के बहुत से बाग़ हैं। इसी प्रकार दमावंद में अनेक प्रकार के सुंदर फूल भी पाए जाते हैं। दमावंद ज़िला पर्वतीय क्षेत्र में स्थित होने के कारण विशेष प्राकृतिक विशेषताओं से संपन्न है।

शिब्ली मीनार

 

दमावंद पूरे साल प्रकृति और पर्यावरण से प्रेम करने वालों, पर्वतारोहियों और पर्यटकों की मेज़बानी कर सकता है। इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण प्राकृतिक आकर्षणों में नदियां, झीलें और चश्मे या सोते हैं। तार नदी, दमावंद नदी और लार नदी इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण नदियां हैं। लार नदी कलून बस्तक के बर्फ़ीले पहाड़ों से निकलती है। ये पहाड़ तेहरान प्रांत के पूर्वोत्तर में स्थित हैं। यह नदी पानी से भरी रहती है। इस नदी से निकली कई उपनदियां भी हैं जैसे देली चाय, आब बारान और सफ़ीद आब, लार नदी से निकली उपनदियां हैं। लार नदी के दोनों ओर 6 से 7 किलोमीटर चौड़ी और 60 किलोमीटर लंबी पट्टी में प्राकृतिक चरागाहे हैं। चूंकि यह क्षेत्र बहुत ठंडा है इसलिए इस नदी के किनारे बहुत ही कम बस्तियां आबाद हैं। लार नदी की उपनदियों में ट्राउट मछली की भरमार है। इस नदी पर एक बांध भी बना है। जिन क्षेत्रों से यह नदी होकर गुज़रती है वे इलाक़े पर्यटन की दृष्टि से बहुत अहमियत रखते हैं। बड़ी संख्या में तेहरान वासी इन पर्यटन स्थलों का आनंद लेते हैं। लार नदी के गुज़रने के मार्ग पर स्थित अनेक पर्यटन आकर्षणों में एक बहुत ही सुदंर झरना है। यह झरना वाना नामक गांव के निकट स्थित है।

 

तार नदी 13 किलोमीटर लंबी है और यह नदी हमेशा बहती है। यह नदी दमावंद ज़िले के अब्र शीवे नामक गांव में बहती है और तार नामक झील के एक किलोमीटर पश्चिम में इस नदी का उद्गम है। तार नदी उत्तर में क़रे बाग और मयानरूद पहाड़ों की घाटियों और दक्षिण में ज़र्रीन कूह पहाड़ की घाटी से होकर पश्चिम की ओर बहती है और तार, वरीन और गलेवार इलाक़ों से गुज़रते हुए दमावंद शहर के उत्तर में एक उपनदी के साथ रूदबार नदी में मिल जाती है और इस प्रकार रूदबार नदी बन जाती है। दमावंद की साल भर बहने वाली नदी 30 किलोमीटर लंबी है जो दमावंद ज़िले में बहती है। यह नदी तार और रूदबार नदी के मिलने से वजूद में आयी है और दक्षिण-पश्चिम की ओर बहती है और कई गांवों से गुज़रते हुए कई उपनदियों से मिलकर जाजरुद में गिरती है। यह नदी क़ुम प्रांत में स्थित नमक की झील में जाकर ख़त्म होती है।

दमावंद की जामा मस्जिद

 

दमावंद में अनेक प्राकृतिक चश्मे भी मौजूद हैं जिसमें चश्मे आला नामक सोता सबसे ज़्यादा मशहूर है। यह सोता दमावंद शहर से 4 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। इस सोते का पानी हल्का, ठंडा और पीने योग्य है। इस सोते का पानी इतना अच्छा है कि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में निर्यात होता है।

 

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