Nov १३, २०१६ १५:३८ Asia/Kolkata

संयुक्त राष्ट्रसंघ की मानवाधिकार परिषद में सऊदी अरब का बाक़ी रहना इस बात का सूचक है कि विश्व, मानवाधिकार की रक्षा का दावा करने वालों की ओर से किस सीमा तक अनैतिकता का साक्षी है।

जिस देश का संचालन मध्ययुगीन शताब्दी की तानाशाही शैली में किया जा रहा है और वहां के नागरिकों को नाम मात्र की आज़ादी भी प्राप्त नहीं है, वह देश संयुक्त राष्ट्रसंघ की मानवाधिकार परिषद के सदस्यों में शामिल होकर दूसरे देशों में मानवाधिकार के हनन के बारे में अपनी राय दे रहा है।

शुक्रवार 28 अक्तूबर के दिन को संयुक्त राष्ट्रसंघ के इतिहास में एक काले दिन के रूप में याद किया जाना चाहिये। संयुक्त राष्ट्रसंघ वह संगठन है जिसकी ज़िम्मेदारी पूरी दुनिया के लोगों के मध्य शांति व सुरक्षा स्थापित करना है परंतु वह मानवाधिकारों का हनन करने वाले देशों के अपराधों पर पर्दा डालने के हथकंडे में परिवर्तित हो गया है। पिछले जून महीने में एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच ने मांग की थी कि संयुक्त राष्ट्रसंघ की मानवाधिकार परिषद में सऊदी अरब की सदस्यता लंबित कर दी जाये और इन संस्थाओं ने संकेत किया था कि सऊदी अरब संगठित और खुल्लम खुल्ला ढंग से देश के भीतर और बाहर मानवाधिकारों का हनन कर रहा है।

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संयुक्त राष्ट्र संघ की एमनेस्टी संस्था के प्रमुख रिचर्ड बेनेट ने उस समय लिखाः संयुक्त राष्ट्रसंघ की मानवाधिकार परिषद की प्रतिष्ठा खतरे में है। उन्होंने बयान किया कि जब से सऊदी अरब संयुक्त राष्ट्रसंघ की मानवाधिकार परिषद का सदस्य बना है तब से इस देश में मानवाधिकार की स्थिति और बदतर हो गयी है और इस देश की अगुवाई में बना गठबंधन पूरी शक्ति के साथ यमन में निर्दयता के साथ आम नागरिकों की हत्या में संलग्न है। पश्चिम में मानवाधिकार की रक्षा का दम भरने वालों की ओर से इन चेतावनियों के प्रति प्रतिक्रिया संयुक्त राष्ट्रसंघ की मानवाधिकार परिषद में सऊदी अरब के बाकी रहने का कारण है। मानवाधिकार के पांचवें अनुच्छेद में आया है कि किसी को भी निर्दयता या अमानवीय ढंग से प्रताड़ित नहीं किया जाना चाहिये कि उसके मानवता से गिर जाने का कारण बने।

इनमें से कौन सी बात या मापदंड सऊदी अरब में पाया जाता है जिसके दृष्टिगत पश्चिम में मानवाधिकारों की रक्षा का दम भरने वालों ने मानवाधिकार परिषद में सऊदी अरब की सदस्यता के पक्ष में मत दिया। संयुक्त राष्ट्रसंघ की मानवाधिकार परिषद के अनुच्छेद आठ के अनुसार अगर इस परिषद का कोई भी सदस्य अपराध करता है तो उसकी सदस्यता  मानवाधिकार परिषद में विलंबित कर दी जायेगी। पश्चिम में मानवाधिकार की रक्षा का दम भरने वाली सरकारों ने ऐसी स्थिति में संयुक्त राष्ट्रसंघ की मानवाधिकार परिषद में सऊदी अरब की सदस्यता बाक़ी रहने के पक्ष में वोट दिया जब सऊदी अरब पूरी निर्दयता के साथ यमनी बच्चों, महिलाओं और पुरुषों की हत्या करने में किसी प्रकार के संकोच से काम नहीं ले रहा है।  

देश के भीतर और बाहर मानवाधिकारों के हनन में सऊदी अरब का रिकार्ड है।

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आले सऊद के राजशाही परिवार के सात हज़ार सदस्य ढाई करोड़ से अधिक लोगों पर शासन कर रहे हैं और देश के समस्त संवेदनशील मामलों के उनके हाथ में होने के बावजूद तेल और गैस से होने वाली आमदनी भी उनके नियंत्रण में है और इस संबंध में उन पर किसी प्रकार की निगरानी नहीं है।

वास्तव में सऊदी अरब में दिखावे की भी लोकतांत्रिक सरकार नहीं है। आले सऊद अपनी कबायली सरकार को टिकाऊ बनाने के लिए तानाशाही शैली में देश का संचालन करता है और इस देश के नागरिक न्यूनतम आज़ादी से भी वंचित हैं। सऊदी अरब में घुटन के वातावरण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के न होने को मानवाधिकारों के हनन का आधार माना जा सकता है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने सऊदी अरब की जेलों में बंद लोगों की स्थिति के संबंध में अपनी रिपोर्ट में बल देकर कहा है कि सऊदी अरब के बहुत से बंदियों को केवल आले सऊद के विरोध के अपराध में गिरफ्तार किया गया है।

सऊदी अरब में मानवाधिकारों का एक हनन यह है कि इस देश में राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध है। सऊदी अरब के नागरिक एक विज्ञप्ति पर हस्ताक्षर करने या अपने नाम के प्रकाशित होने से डरते हैं।  

ह्यूमन राइट्स वॉच में सऊदी मामलों के ज़िम्मेदार एडम कोएगल ने पिछली ठंडक में इस देश में मानवाधिकार की स्थिति को बहुत ही दयनीय बताया और कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लोगों के एकत्रित होने की स्वतंत्रता और सऊदी अरब में धार्मिक आज़ादी जैसे मूल अधिकारों की स्थिति दिन -प्रतिदिन बदतर होती जा रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि समस्त मानवाधिकार कार्यकर्ता सऊदी अरब की जेलों में हैं और उन्हें लंबे समय तक का कारावास का दंड दिया गया है।

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वर्ष 2011 में उत्तरी अफ्रीक़ा के तानाशाही देशों में जनांदोलन आरंभ होने के समय से सऊदी अरब में हर प्रकार के विरोध की आवाज़ को दबाने के लिए कड़ा व्यवहार किया जाता है। सऊदी अरब में आपको शायद ही एक मानवाधिकार कार्यकर्ता मिले जो जेल से बाहर हो। सऊदी अरब में इच्छानुसार फैसला होता है। इस देश में फैसला करने और सजा के कानून नहीं हैं। सऊदी अरब की जेलें राजनीतिक बंदियों से भरी पड़ी हैं जो आज़ादी की मांग करने और आले सऊद से विरोध के कारण बुरी स्थिति में जेलों में हैं। सऊदी अरब में दसियों बंदियों को एक बहुत ही छोटे स्थान पर रखा जाता है। सऊदी अरब की अदालतों में फैसले का कोई मानदंड नहीं हैं। सऊदी बंदियों को वकील करने का भी अधिकार नहीं है। अगर वकील कर भी लें तो भी सऊदी न्यायाधीश के फैसले में कोई अंतर नहीं पड़ता। क्योंकि सऊदी अदालतों के फैसलों का मानदंड कानून नहीं है और वे पूरी तरह न्यायाधीशों की इच्छा पर निर्भर होते हैं।

इस देश की महिलाओं को बहुत अधिक सीमीत्ताओं का सामना है। सार्वजनिक स्थलों, कार्य स्थलों और प्रशिक्षण केन्द्रों व स्थानों पर जाने में महिलाओं को समस्याओं का सामना है। इसी प्रकार बैंकों, रेस्टेरेन्टों और मॉल में महिलाओं का अकेले जाना मना है। इस देश के संचार माध्यम भी प्रत्यक्ष रूप से आले सऊद के नियंत्रण में हैं।

जो सरकार अपने देश के भीतर अपने नागरिकों के साथ इस प्रकार का व्यवहार कर रही है उससे देश से बाहर मानवाधिकारों का ध्यान रखने की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिये। आले सऊद तेल से होने वाली आमदनी के बल पर अरब जगत के नेतृत्व का दावा करता है और दूसरे अरब देशों के लिए नीति व दिशा निर्धारित करता है। आले सऊद इसी दृष्टिकोण के साथ पांच वर्ष से अधिक समय से सीरिया में तकफीरी और आतंकवादी गुटों का व्यापक समर्थन कर रहा है। सऊदी अरब की नीतियों के कारण पांच लाख से अधिक सीरियाई नागरिक मारे और दसियों लाख बेघर हो चुके हैं। सऊदी अरब के वहाबी शासक वास्तव में तकफीरी और आतंकवादी गुटों के अभिभावक और गॉड फ़ादर हैं। यह विषय पूरी दुनिया विशेषकर पश्चिम से छिपा नहीं है।

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तकफीरी और आतंकवादी गुटों का मुंह बोला पिता सऊदी अरब ऐसी स्थिति में मानवाधिकार परिषद का दोबारा सदस्य बना जब डेढ़ वर्ष से अधिक का समय बीत रहा है जब रियाज़ की नीतियों के विरोध के कारण सऊदी अरब यमन की निर्दोष जनता पर अमेरिका और ब्रिटेन के बने बमों से हमला कर रहा है। सऊदी अरब की बमबारी के कारण निर्धन देश यमन की आर्थिक, औद्योगिक और दूसरी बहुत सारी आधार भूत संरचनाएं तबाह हो गयी हैं। यमन में दसियों हज़ार लोग हताहत व घायल हो चुके हैं। यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में घोषणा की है कि स्वास्थ्य सेवाओं में भारी कमी के कारण 10 हजार से अधिक यमनी बच्चे अपनी जान से हाथ धो बैठे। राहत पहुंचाने वाली संयुक्त राष्ट्रसंघ की दूसरी  संस्थाओं ने घोषणा की है कि 15 लाख से अधिक यमनी बच्चों को भारी भूख और कुपोषण का सामना है और यमन की आधी जनसंख्या निर्धनता रेखा से नीचे जीवन व्यतीत कर रही है। विश्व खाद्य कार्यक्रम के प्रवक्ता ने इस बारे में कहा कि सच में यमन की स्थिति बहुत ही विषम व दयनीय है। जब हम ऐसी माताओं को देखते हैं जिनके पास अपने बच्चों का पेट भरने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं है तो इस दृश्य से केवल दिल को बहुत तकलीफ होती है। 21वीं शताब्दी में यह दृश्य भयावह, हृदयविदारक और इसे देखने से दिल को झटका लगता है। सऊदी अरब की नीतियों के कारण यमन में एक ओर मानव त्रासदी घट रही है और दूसरी ओर सऊदी अरब को मानवाधिकारों की रक्षा का दम भरने वाली पश्चिमी सरकारों का राजनीतिक और सैनिक समर्थन प्राप्त है। ऐसी स्थिति में कि जब सऊदी अरब की बमबारी के कारण यमनी बच्चे, महिलाएं और पुरुष मारे जा रहे हैं, ब्रिटेन के हाउस ऑफ कामन्स में इस बारे में बहस हो रही है कि इस बात की निगरानी की जा रही है कि ब्रितानी युद्धक विमानों से यमनी जनता पर बम न गिरने पायें।

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ब्रिटेन ने सऊदी अरब द्वारा यमन पर हमले के पहले ही वर्ष लगभग पांच अरब डॉलर का हथियार रियाज़ को बेचा। सऊदी अरब को हथियारों का निर्यात ब्रिटेन और कुछ दूसरे पश्चिमी देशों की ओर से यथावत जारी है। वास्तव में पश्चिमी सरकारें उन समस्त अपराधों में सऊदी अरब की भागीदार हैं जो यह देश सीधे रूप से यमन में कर रहा है और तकफीरी व आतंकवादी गुटों के समर्थन से परोक्षरूप से इराक, सीरिया और दूसरे देशों में कर रहा है। पश्चिमी देशों के समर्थन से संयुक्त राष्ट्रसंघ की मानवाधिकार परिषद में सऊदी अरब की सदस्यता में वृद्धि कर दी गयी ताकि इस देश को युद्ध युद्धापराध के मुकद्दमों से बचाया जा सके। इस संबंध में हर प्रकार की जांच सऊदी अरब के समर्थक देशों को भी अपमानित कर देगी। सऊदी अरब पश्चिमी देशों की कठपुतली है जिसे पश्चिमी सरकारों ने क्षेत्र में अपनी नीतियों को लागू करने, इस्लामी देशों में संकट उत्पन्न करने और इस्लामी संप्रदायों के मध्य फूट डालने के लिए बना रखा है। अगर सऊदी अरब में एक लोकतांत्रिक सरकार होती तो इस बात की संभावना नहीं थी कि पश्चिमी सरकारें सऊदी अरब का दिशा -निर्देशन अपनी नीतियों के संचालन के लिए कर सकतीं।

                         

 

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