Jan २४, २०२१ १३:२८ Asia/Kolkata

कोरोना वायरस के फैलाव ने अमरीकी अर्थव्यवस्था को तहस नहस कर दिया और इस देश में बड़ी संख्या में काम काज के अवसर ख़त्म हो गए जिसके बाद अमरीका, अभूतपूर्व आर्थिक संकट में ग्रस्त हो गया। अनेक आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह संकट, सन 1930 में अमरीका में आने वाले आर्थिक संकट से भी ज़्यादा जटिल है।

आर्थिक पहलू से देखा जाए तो अमरीका इस समय अपने इतिहास के सबसे बड़े आर्थिक संकट व मंदी से जूझ रहा है और इस देश में बेरोज़गारी, काम काज के केंद्रों के बंद होने, कंपनियों व कारख़ानों के काम में कमी और आर्थिक घाटे के आंकड़े अभूतपूर्व हैं। अमेरिकी न्यूज़ चैनलों में भी आर्थिक मंदी को लेकर आए दिन बहस होती रहती है। सच्चाई यह है कि इस समय अमरीका जिस आर्थिक गिरावट से जूझ रहा है वह दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमरीकी इतिहास की सबसे बुरी आर्थिक गिरावट है। विश्व बैंक ने दिसम्बर 2020 के अंत में अपनी एक रिपोर्ट में भविष्यवाणी की कि इस साल अमरीका का आर्थिक विकास माइनस 6.1 रहेगा। इस प्रकार का बड़ा नकारात्मक आर्थिक विकास अमरीका में वर्ष 1946 में देखने में आया था जब इस देश का आर्थिक विकास माइनस 11.6 तक पहुंच गया था। अमेरिका में जारी आर्थिक मंदी का अंदाज़ा इस महिला के आंसूओँ से लगाया जा सकता है, जो कोरोना महामारी के कारण आर्थिक स्थिति से जूझ रही है। इसी तरह अमरीका के मीडिया ने दिसम्बर 2020 में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था माने जाने वाले इस देश में पिछले महीनों के दौरान बेरोज़गार होने वालों की संख्या 4 करोड़ बताई थी। कोरोना वायरस के फैलाव और ट्रम्प सरकार की बुरी व्यवस्था व संचालन के कारण इस देश की जटिल आर्थिक स्थिति के मद्देनज़र ऐसा लगता है कि यह संख्या इस समय पिछले कुछ महीनों से काफ़ी अधिक हो चुकी है। सन 2020 में अमरीका की राष्ट्रीय करंसी यानी डॉलर के मूल्य में भी काफ़ी कमी आई और इसकी वजह कोरोना के कारण अमरीकी अर्थव्यवस्था को पहुंचने वाली भारी क्षति थी। दुनिया की विश्वस्त करंसियों की तुलना में 2020 में डॉलर के मूल्य में लगभग 6 प्रतिशत की कमी आई। इस तरह यह साल पिछले एक दशक में डॉलर के लिए सबसे बुरा साल रहा। वरिष्ठ मुद्रा विशेषज्ञ “फ्लिप वी” का कहना है कि आने वाले दिनों में भी डॉलर पर कोविड-19 का असर जारी रहेगा।

अमरीका में कोरोना वायरस के फैलाव के समय से ही इस देश में ग़रीबों और बेघर होने वालों की संख्या में बहुत अधिक बढ़ोतरी हुई है। वॉशिंग्टन पोस्ट ने दिसम्बर 2020 में नई जनगणना और विभिन्न अध्ययनों के आधार पर रिपोर्ट दी थी कि ज़रूरतमंद लोगों को कोरोना के दौरान दिए जाने वाले आर्थिक पैकेज को बंद करने के बाद पिछले 6 महीने में अमरीका में दरिद्रता की दर बढ़ गई है और जून से नवम्बर 2020 तक अमरीका के लगभग 78 लाख लोग ग़रीबों की श्रेणी में आ गए हैं। अमरीका के व्यापार मंत्रालय ने दिसम्बर 2020 के तीसरे हफ़्ते में बताया कि इस देश में नवम्बर में खुद्रा व्यापार में 1.1 प्रतिशत की कमी आई है और कोरोना वायरस के फैलाव के चलते अमरीकी परिवारों की आय भी कम हो गई है। खुद्रा बिक्री और अमरीकी परिवारों की आय में कमी से पता चलता है कि अमरीका की अर्थव्यवस्था में बेहतरी की रफ़्तार अब भी बहुत धीमी है। अमरीका के एक सिनेटर बर्नी सेंडर्ज़ ने इस संबंध में एक ट्वीट करके लिखाः अमरीकी अर्थ व्यवस्था भ्रष्ट है, देश में जैसे जैसे बहुसंख्यकों की ग़रीबी बढ़ रही है, वैसे वैसे अल्पमत धनवानों की स्थिति बेहतर होती जा रही है। इसी तरह उन लोगों की संख्या भी बढ़ती जा रही है, जिनके पास पर्याप्त भोजन का साधन नहीं है। सिनेटर बर्नी सेंडर्ज़ ने एक वीडियो संदेश में भी इन्हीं चीज़ों की ओर इशारा किया है। अमरीकी जनगणना कार्यालय की रिपोर्ट के अनुसार अमरीका के दो करोड़ 60 लाख लोग, पर्याप्त भोजन से वंचित हैं और इस मामले में अश्वेत परिवारों की संख्या, श्वेत परिवारों से ढाई गुना ज़्यादा है। बच्चे वाले हर छठे अमरीकी परिवार के पास पर्याप्त भोजन का साधन नहीं है और उन लोगों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ रही है जो अपने परिवार के लिए खाने की आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं। अमरीकी प्रतिनिधि सभा में सूचना समिति के प्रमुख एडम शेफ़ ने एक ट्वीट करके सन 2020 में मुफ़्त खाने का आवेदन करने वालों की संख्या में वृद्धि की सूचना दी और सेनेट में बहुसंख्यक दल के नेता मिच मैककेनल द्वारा इन लोगों की सहायता न किए जाने की आलोचना की। एडम शेफ़ ने एक टीवी डिबेट में भी इस ओर इशारा किया है।  उन्होंने कहा कि इस साल थैंक्स गिविंग डे में दसियों हज़ार अमरीकी खाना देने के केंद्रों पर घंटों लाइन में लगे रहे। एक वेबसाइट के अनुसार मार्च से अक्तूबर 2020 तक भोजन वितरित करने वाले केंद्रों ने 4.2 अरब खाने लोगों के बीच बांटे।

यूरोप महाद्वीप को भी सन 2020 में कोरोना महामारी फैलने के बाद बहुत बुरी स्थिति का सामना करना पड़ा। कोरोना के नए स्ट्रेन के सामने आने के बाद, जिसे ब्रिटिश कोरोना भी कहा जा रहा है और जिसके फैलने की रफ़्तार कोरोना वायरस से 9 गुना अधिक है, इस बात की आशंका है कि वर्तमान बुरी स्थिति आगे भी जारी रहेगी। हालांकि यूरोपीय संघ को, सदस्य देशों के बीच कोरोना वैक्सीन के सार्वजनिक वितरण के बाद आशा है कि वर्ष 2021 में वह इस वायरस को नियंत्रित कर लेगा। यह संघ कोरोना वैक्सीन के दो अरब डोज़ ख़रीद कर अगले साल तक बड़ी उम्र के सभी लोगों को कोरोना का टीका लगाने का इरादा रखता है। यूरोप के पांच देशों ब्रिटेन, इटली, फ़्रान्स, स्पेन और रूस में कोरोना से सबसे ज़्यादा लोग मरे हैं। सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि यूरोप में ढाई करोड़ से ज़्यादा लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं जिनमें से मरने वालों की संख्या पांच लाख से अधिक है। फ्रांस के वित्त मंत्री ली मेयर ने कहा कि कोरोना महामारी से यूरोप में पैदा हुए आर्थिक संकट से एक और बड़ी समस्या खड़ी हो गई है।  यूरोप में कोरोना महामारी का फैलाव इस बात का कारण बना है कि यूरोपीय संघ में पाई जाने वाली कमज़ोरियां व गहरी दरारें पहले से अधिक स्पष्ट हो जाएं। इस संघ के अधिकारी, कोरोना वायरस के कारण पैदा होने वाली समस्याओं के महत्व से अच्छी तरह अवगत थे और वे इस बात की कोशिश कर रहे हैं कि जैसे भी संभव हो इस अभूतपूर्व संकट का मुक़ाबला किया जाए। जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने कोरोना वायरस के कारण उत्पन्न होने वाले संकट को यूरोपीय संघ के अस्तित्व में आने के समय से लेकर अब तक इस संघ का सबसे बड़ा संकट बताया है।

यह वह कड़वी सच्चाई है जो यूरोप में कोरोना फैलने के बाद इस महाद्वीप के अधिकतर लोगों के लिए स्पष्ट हुई। यही वजह थी कि एक संयुक्त संस्था यानी यूरोपीय संघ के अस्तित्व के बावजूद, यूरोपीय देशों में से हर कोई अपने अलग ही रास्ते पर चलने लगा और किसी भी यूरोपीय देश ने कोरोना से मुक़ाबले के लिए संयुक्त कार्यवाहियों पर ध्यान नहीं दिया। कोरोना की महामारी का एक परिणाम, यूरोपीय संघ की कमज़ोरियों का स्पष्ट होना था विशेष कर अप्रत्याशित संकटों से निपटने में उसकी कमज़ोरी तो जगज़ाहिर हो गई। इससे पता चलता है कि गहरे व अप्रत्याशित संकटों में यूरोपीय संघ के क़ानून भी दम तोड़ जाते हैं। यूरोपीय संघ के आर्थिक मामलों के आयुक्त पाओलो जेंटोलिनी ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि कोविड-19 महामारी ने यूरोप की अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा झटका दिया है।  यूरोप में कोरोना का संकट जारी रहने और इससे सामने आने वाले आर्थिक व राजनैतिक कुपरिणामों, कारख़ानों व उत्पादन केंद्रों के बंद होने, आर्थिक मंदी, बेरोज़गारी में वृद्धि और आर्थिक संकट में वृद्धि पर बढ़ती चिंता ने यूरोपीय अधिकारियों के बीच दरार को पहले से अधिक स्पष्ट कर दिया है। आर्थिक विषय, कोरोना संकट का मुख्य मुद्दा है। यूरोपीय देश अपने भविष्य की ओर से चिंतित हैं। यह संकट यूरोप में करोड़ों लोगों के बेरोज़गार होने का कारण बना है। जून में यूरोपीय संघ में डेढ़ करोड़ से ज़्यादा लोगों की नौकरी या रोज़गार का ख़ात्मा हो गया।इससे पहले यह सोचा जाता था कि ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से निकलना, इस संघ का सबसे बड़ा संकट है लेकिन कोरोना महामारी के अचानक फैलाव ने सभी समीकरणों को बिगाड़ दिया और यूरोपीय संघ को अनेक संकटों के रूबरू कर दिया जिनमें से कुछ की जटिलता तो अभी समीक्षा योग्य भी नहीं है। उदाहरण स्वरूप 2020 की पहली छमाही में यूरोप की ऑटो मोबाइल इंडस्ट्री को 90 अरब यूरो का नुक़सान पहुंचाया है। जर्मन के सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस देश की अर्थव्यवस्था 2020 की दूसरी तिमाही में दस प्रतिशत छोटी हो गई है। यूरोप का पर्यटन उद्योग, जो यूरोपीय संघ के सदस्य देशों की जीडीपी का दस प्रतिशत भाग है और उनके रोज़गार के अवसरों का 15 प्रतिशत इस उद्योग से विशेष है, बहुत अधिक नुक़सान उठा रहा है और इन देशों के रोज़गार के कम से कम साढ़े सात करोड़ तबाही के मुहाने पर हैं।

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