Feb २९, २०१६ १४:३३ Asia/Kolkata

तेहरान के बाज़ार के समीप सांस्कृतिक और एतिहासिक संस्थाओं व केन्द्रों के अस्तित्व ने इस क्षेत्र को तेहरान के सांस्कृतिक व एतिहासिक केन्द्र में परिवर्तित कर दिया है।

तेहरान के बाज़ार के समीप सांस्कृतिक और एतिहासिक संस्थाओं व केन्द्रों के अस्तित्व ने इस क्षेत्र को तेहरान के सांस्कृतिक व एतिहासिक केन्द्र में परिवर्तित कर दिया है। इस क्षेत्र के कुछ स्थान ईरानी इतिहास के महत्वपूर्ण दौर की याद दिलाते हैं। जैसे मश्क़ स्क्वायर, बाग़े मिल्ली या राष्ट्रीय बाग़,शम्सुल इमारह, इमाम ख़ुमैनी स्क्वायर और दूसरी विभिन्न एतिहासिक इमारतें हैं जिन्हें संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है।

तेहरान के मश्क़ स्क्वायर का निर्माण फतहअली शाह क़ाजार के काल में हुआ। यह ऐसा स्क्वायर है जो सबसे प्राचीन और तेहरान के सबसे इतिहासिक स्थल यानी पुराने तूपखाने और इमाम ख़ुमैनी रोड़ एवं सी तीर रोड के मध्य स्थित है और 12 मेहर 1377 हिजरी शम्सी को क्रमांक 2130 के साथ इसका पंजीकरण ईरान के राष्ट्रीय धरोहर के रूप में कर लिया गया। नासिरुद्दीन शाह के सत्ताकाल में सेनापति मोहम्मद ख़ान द्वारा इस स्क्वायर का विस्तार किया गया। इस स्क्वायर को ईंटों की ऐसी दीवार से घेर दिया गया गया है जिसमें ताक़ बने हुए हैं। उस समय इस स्क्वायर का क्षेत्रफल लगभग 16 हेक्टेयर था और प्रतिदिन इसमें सैन्य अभ्यास व प्रशिक्षण होता था। बाद में सेना में विस्तार के साथ यह स्क्वायर क़ज़्ज़ाक़खाना या सैन्य छावनी में परिवर्तित हो गया और उसके प्रांगड़ में कई बड़ी इमारतों का निर्माण कर दिया गया परंतु वर्ष 1301 हिजरी शम्सी में यह स्क्वायर बड़े पार्क में परिवर्तित हो गया और उसके बाद से मश्क़ स्क्वायर को “बाग़े मिल्ली” कहा जाने लगा। यद्यपि इस स्क्वायर की इमारतों के आस- पास विदेशमंत्रालय बन गया है परंतु आज भी इस स्क्वायर को मश्क़ स्क्वायर या बाग़े मिल्ली के नाम से नाम से जाना जाता है। इस स्क्वायर के अंदर जिन इमारतों का निर्माण किया गया है उनमें से अधिकांश का निर्माण अपने समय की विशेष शैली व वास्तुकला में किया गया है। निर्माण की यह वास्तुकला ईरान में इतिहास के विभिन्न कालों और यूरोप की वास्तुकला का मिश्रण है और हर इमारत के निर्माण में विशेष वास्तुकला का प्रयोग किया गया है।

शहर के विस्तृत होने के साथ नासिरुद्दीन शाह के काल में यह इतिहासिक स्क्वायर नगर के अंदर आ गया और उसका कुछ भाग ब्रिटेन के दूतावास के लिए विशेष हो गया। इस कॉम्प्लेक्स की सबसे पुरानी इमारत क़ज़्ज़ाक़ख़ाना अर्थात वह सैनिक छावनी है जिसका निर्माण फतह अली शाह क़ाजार के काल में इस कॉम्प्लेक्स के उत्तर में हुआ था जबकि सबसे नई इमारत में पुस्तकालय और मलिक राष्ट्रीय संग्रहालय है। इस इमारत का निर्माण वर्ष 1997 में ईरान की पारंपरिक वास्तुकला में किया गया।

नासिरुद्दीन शाह के काल में इस इमारत में एक प्रवेश द्वार या मेन गेट था जो सरदर नासिरी के नाम से प्रसिद्ध था और नासिरुद्दीन शाह कभी -कभी उसके ऊपर से सैनिक अभ्यास व प्रशिक्षण को देखते थे। प्रथम पहलवी सरकार के काल में नगर के लिए “बाग़े मिल्ली” नाम का सार्वजनिक बाग़ बनाकर सरदर नासिरी का नया नाम “सरदर बाग़े मिल्ली” हो गया।

बाग़े मिल्ली या मश्क़ स्क्वायर के क्षेत्र ने पूरे इतिहास में बहुत अधिक घटनाएं देखी हैं। नासिरुद्दीन शाह के हत्यारे मिर्ज़ा रज़ा किरमानी को इसी स्क्वायर पर फांसी दी गयी। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ईरान में पहला विमान इसी स्क्वायर में उतरा और कुछ समय तक इस विमान को मश्क़ स्क्वायर में रखा गया और लोग इस विमान को देखने के लिए मश्क़ स्क्वायर पर जाते थे। नया साल आरंभ होने की सूचना मश्क़ स्क्वायर पर रखी तोप से गोला दाग़कर दी जाती थी। ईरान में सबसे पहला बलून इसी स्क्वायर से उड़ाया गया और शीया संघर्षकर्ता, मुजतहिद और तंबाकू आंदोलन के नेता शैख फज़्लुल्लाह नूरी को इसी स्क्वायर पर फांसी दी गयी। “सरदर बाग़े मिल्ली” इमारत का निर्माण ईरानी और यूरोपीय दोनों वास्तुकलाओं में किया गया है विशेषकर टाइलों के काम में और उसका निर्माण अपने समय की वस्तुकला में किया गया है। “सरदर बाग़े मिल्ली” इमारत का निर्माण मश्क़ स्क्वायर में प्रवेशद्वार के रूप में वर्ष 1922 से 1925 के बीच किया गया। प्रवेशद्वार के रूप में इस इमारत के निर्माण के कुछ समय बाद मश्क़ स्क्वायर के भीतर सार्वजनिक बाग़ बनाने की योजना पेश व तैयार हो गयी और उसे लागू भी कर दिया गया और मश्क़ स्क्वायर के द्वार का नाम बदलकर “सरदर बाग़े मिल्ली” हो गया। अधिक समय नहीं गुज़रा था कि बाग़े मिल्ली या राष्ट्रीय बाग़ के अंदर विदेशमंत्रालय, राष्ट्रीय पुस्तकालय और ईरानी संग्रहालय का निर्माण कर दिया गया परंतु इस बाग़ का नाम सरदर मश्क़ स्क्वायर बाक़ी रहा और लोग “सरदर बाग़े मिल्ली” को तेहरान के वर्तमान समय के इतिहास और प्राचीन तेहरान की वास्तुकला का प्रतीक मानते हैं। इस इमारत के दो भाग हैं एक भीतरी और दूसरा बाहरी। इमारत के बाहरी भाग में ईंट के आठ स्तंभ हैं जिनका निर्माण दो- दो करके एक साथ किया गया है और हर द्वार पर चार स्तंभ हैं और उनके दो स्तंभ थोड़ा पीछे हैं और छाया एवं प्रकाश की दृष्टि उसने इमारत को विशेष सुन्दरता प्रदान कर दी है। पूरब से पश्चिम में इमारत के गेट की चौड़ाई 27 मीटर से कम है। यह इतना चौड़ा इसलिए है क्योंकि अतीत में इस गेट के दोनों ओर चेकिन्ग के लिए दो कमरे बने हुए थे जिसे मिलाकर गेट की चौड़ाई लगभग 45 मीटर थी। स्तंभ के अलावा इमारत के भीतरी और बाहरी रूप में कोई विशेष अंतर नहीं है।

इस इमारत का निर्माण काशानी वास्तुकार उस्ताद जाफ़र ख़ान ने किया था जबकि उसकी मज़बूती का कार्य उस्ताद इस्माईली, उसके स्तंभों का निर्माण उस्ताद करीम मनीजेह और उसे टाइलों से सजाने का काम दिवंगत उस्ताद ख़ाक निगार मुक़द्दम ने किया है। इमारत के बाहरी भाग के प्रवेश द्वार पर टाइलों से सुसज्जित एक शिलालेख है जिस पर नदीमुल मुल्क के शेर लिखे हुए हैं। इमारत के बाहर प्रवेश द्वार चित्रकारी से सुसज्जित टाइलों से सुशोभित है। प्रवेश द्वार पर तीन रास्ते हैं एक सवारी से जाने के लिए और यह बीच में है जबकि पैदल चलने वाले व्यक्तियों के लिए दो रास्ते अलग अलग और सवारी से जाने वाले रास्ते के दोनों किनारे हैं। इमारत में कास्ट आइरन का जो दरवाज़ा है उसका निर्माण तेहरान की भट्ठी में उस्ताद मोहम्मद अली किरमानी नामक मिस्त्री ने किया है।

कुल मिलाकर बाग़े मिल्ली के प्रवेश द्वार पर टाइल्स पर 45 शिलालेख जबकि धातु पर दो शिलालेख हैं जिनमें से एक अर्धवृत्त और दूसरा प्रवेश द्वार के ऊपर अंडाकार है। ये शिलालेख पट्टी की भांति पूरी इमारत के चारों ओर हैं और उसके पड़ोस में दूसरी इमारतों के निर्माण हो जाने से उन्हें क्षति पहुंची हैं। वर्ष 1997 ईसवी में बाग़े मिल्ली की इमारत का पंजीकरण ईरान की राष्ट्रीय धरोहर के रूप में कर दिया गया।

तेहरान में बाग़े मिल्ली इमारत के प्रांगण में इमाम ख़ुमैनी स्क्वायर के निकट 10 हज़ार वर्ग मीटर की एक बहुत ही सुन्दर व आकर्षक इमारत स्थित है। इस इमारत का नाम मलिक पुस्तकालय और मलिक राष्ट्रीय संग्रहालय है। मलिक पुस्तकालय दिवंगत हाज हुसैन द्वारा वक़्फ़ की गयी वस्तुओं में से है। उन्हें जवानी से ही किताबों के अध्ययन और उन्हें एकत्रित करने का शौक था इसलिए उन्होंने पुस्तकालय एवं संग्रहालय का निर्माण किया। दिवंगत मलिक ने इस पुस्तकालय एवं संग्रहालय के साथ दूसरी बहुत सारी चीज़ों को वर्ष 1938 में ताकि इस मार्ग से पुस्तकालय और संग्रहालय के, विस्तार और उसके दूसरे खर्चों की आपूर्ति हो सके। पहले यह पुस्तकालय तेहरान के अलहरमैन बाज़ार में दिवंगत हाज हुसैन आक़ा मलिक के घर में था उसके बाद इसे नई इमारत में स्थानांतरित कर दिया गया। पुस्तकालय और संग्रहालय की जो वर्तमान इमारत है वर्ष 1997 में उसका उदघाटन हुआ और निर्माण से संबंधित उसके कार्यों में 12 वर्षों का समय लगा। मलिक राष्ट्रीय पुस्तकालय में 19 हज़ार हस्तलिखित दुर्लभ और मूल्यवान किताबें मौजूद हैं। इस पुस्तकालय को ईरान में हाथ से लिखी पुस्तकों का बहुत बड़ा व मूल्यवान खज़ाना समझा जाता है। उदाहरण स्वरूप पुस्तकालय के जिस भाग में हस्त लिखित पुस्तकों को रखा गया है उनमें केवल 104 विषयों और प्रसिद्ध ईरानी विद्वान अबू अलीसीना की हाथ से लिखी पुस्तक व पुस्तिकाओं को रखा गया है। इसी प्रकार इस पुस्तकालय में टालमी की अरबी भाषा में और अक़लीदस की अलउसूल बिलअस्तक़सात और नासिरुद्दीन शाह की हाथ से लिखी दूसरी पुस्तकें व रचनाएं मौजूद हैं। इसी प्रकार इस पुस्तकालय में लगभग 70 हज़ार नई किताबें मौजूद हैं जबकि 3400 किताबें लिथोछपाई की हैं। इसी प्रकार इस पुस्तकालय में 548 विषयों के बारे में नियत समय पर प्रकाशित होने वाली रचनाएं हैं जो चार हज़ार जिल्दों में हैं। छपाई की ध्यान योग्य पुस्तकों का संबंध 1941 इसवी से पहले से है और वे ईरान में छपने वाली आरंभिक किताबों में हैं। मलिक पुस्तकालय के लिए सदैव हस्त लिखित और अन्य पुस्तकों की ख़रीदारी की जाती है इस प्रकार यह पुस्तकालय दिन -प्रतिदिन समृद्ध होता जा रहा है।

पुस्तकालय में जहां किताबें रखी हैं और किताबों के अध्ययन के हाल के अलावा दूसरे भाग भी हैं वहां विभिन्न कार्य किये जाते हैं जैसे एक भाग में हस्त लिखित किताबों की मरम्त की जाती है, दूसरे भाग में फोटोग्रैफी और माइक्रोफ़िल्म का कार्य अंजाम दिया जाता है और तीसरे भाग में किताबों पर जिल्द चढ़ाने का काम होता है। इसी तरह इस पुस्तकालय में मौजूद किताबों की छपाई और उनके प्रकाशन के लिए बुक प्रकाशक केन्द्रों की स्थापना की गयी है। यह पुस्तकालय विश्व के दूसरे पुस्तकालयों एवं शैक्षिक केन्द्रों से पत्राचार भी करता है और प्रतिदिन इसमें सैकड़ों शोधकर्ता आते हैं।

जो भाग संग्रहालय का है उसमें भी ईरान और विश्व के कलाकारों के बेहतरीन अवशेषों व नमूनों को रखा गया है। इस संग्रहालय में जिन चीज़ों को रखा गया है। उसमें ईरानी कला व चित्रकार कमालुल मुल्क ग़फ़्फ़ारी, लुत्फ अली सुरतगर, हादी खान तजवीदी और कुछ युरोपीय चित्रकारों व कलाकारों के पोस्टर शामिल हैं। इसी प्रकार इस संग्रहालय में याक़ूत मुस्तअसमी ,अली रज़ा अब्बासी, मीर एमाद, अहमद नीरेज़ी, दरविश अब्दुल मजीद तालेक़ानी और मिर्ज़ा ग़ुलाम रज़ा इस्फहानी जैसे ईरान के प्रसिद्ध लिपिकारों की रचनाओं को रखा गया है। इस संग्रहालय का जो भाग क़ालीनों के लिए विशेष है उनमें ईरान के विभिन्न भागों से छोटे- बड़े 34 फर्श व कालीन हैं जिन्हें हालिया बीती दो शताब्दियों के प्रसिद्ध बुनकरों ने तैयार किया है। इसी प्रकार इस संग्रहालय में तीन हज़ार सिक्कों की सुरक्षा की जा रही है जिनमें कुछ सिक्कों का संबंध 6 शताब्दी ईसा पूर्व से है जबकि कुछ दूसरे सिक्कों और पदकों का संबंध पहलवी काल से है। इसी प्रकार इस संग्रहालय में मौजूद कुछ सिक्कों का संबंध यूनान, सिकन्दर के उत्तराधिकारियों, यूनानी साम्राज्य, इस्लामी ख़लीफ़ाओं और उसमानी साम्राज्य से है। इसी प्रकार इस संग्रहालय में ईरान और विश्व की हज़ारों मुहरें मौजूद हैं।


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