ईरान की सांस्कृतिक धरोहर-29
ईरान में क़ालीन बुनने की कला का इतिहास बहुत पुराना है और ईरान के अधिकांश नगरों व गांवों में विभिन्न प्रकार के क़ालीन बुने जाते हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं गिलीम, दरी, गब्बे, PELLA, गलीचा और जाजिम।
ईरान में क़ालीन बुनने की कला का इतिहास बहुत पुराना है और ईरान के अधिकांश नगरों व गांवों में विभिन्न प्रकार के क़ालीन बुने जाते हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं गिलीम, दरी, गब्बे, PELLA, गलीचा और जाजिम।
सबसे पहले हम क़ालीन के इतिहास पर दृष्टि डालना चाहते हैं और उन आरंभिक क़ालीन के बारे में चर्चा करना चाहते हैं जिन्हें इंसान ने अपने आराम के लिए बुना था। आरंभिक इंसान संभवतः घासों, वस्पतियों और उसके बाद पशुओं के चमड़ों और अंत में चटाई को फ़ या बिछाने के साधन र्श के रूप में प्रयोग करते थे। 20 से 26 हज़ार साल पहले सुई- धागे के अस्तित्व में आ जाने से क़ालीन की बुनाई या बिछाने के साधन में महत्वपूर्ण परिवर्तन आ गया और इंसान के लिए यह संभावना उत्पन्न हो गयी कि वह प्राकृतिक चमड़े में परिवर्तन व बदलाव उत्पन्न कर सके और दो चमड़ों को एक दूसरे के साथ मिलाकर या दोनों को एक दूसरे के ऊपर नीचे रखकर सिल कर चमड़े को बड़ा कर सके है या उसे भिन्न रूप दे सके है और इस तरीक़े से वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके।
समय बीतने के साथ- साथ इंसान ने सीख लिया कि वह भेड़-बकरी के ऊन से विभिन्न प्रकार के नर्म और डिज़ाइनों वाली बिछाने जाने वाली वस्तुए बुन सकता है। पांचवीं शताब्दी ईसापूर्व यूनानी इतिहासकार ग़ज़ेन्फोन XENOPHON ने ईरान के बारे में दो किताबें लिखी हैं और हर एक में ईरानी ज़मीन पर बिहाई जाने वाली ईरानी वस्तुओं की ओर संक्षिप्त संकेत किया है। वह अपनी एक किताब ANABASIS में अधिकतर एक कालीन के मूल्य पर बल देते हैं जबकि दूसरी किताब cyropaedia में उस कार्य की ओर संकेत करते है जिसे ईरानी, ज़मीन पर बिछाने फर्शों वाली वस्तु के रुप में प्रयोग करते थे। उन्होंने इस संबंध में लिखा है कि ईरानी अपना बिस्तर नर्म बनाने के लिए उसके नीचे क़ालीन बिछाते थे।
उसके लिखने से समझा जा सकता है कि निश्चित रूप से इस प्रकार का बिछाई जाने वाली वस्तु दरी और नमदा नहीं रहा होगा और इसके लिए क़ालीन को गुच्छेदार होना चाहिये ताकि बिस्तर नर्म हो सके। गज़ेन्फ़ोन की बात से एक अन्य बिन्दु समझा जा सकता है और वह यह है कि क़ालीन के प्रयोग का विशेष समय होता था। वह लिखता है कि सोने के समय क़ालीन का प्रयोग किया जाता था और प्रतीत यह होता है कि कालीन का प्रयोग सदैव कमरे की निचली सतह को छिपाने के लिए नहीं होता था।
ग़ज़ेन्फोन से 600 साल पहले ATHENAEUS नाम के एक अन्य यूनानी इतिहासकार ने ईरानी क़ालीन के बारे में संकेत किया है। इस बारे में वह लिखता है” पूरे हाल में सोने की सौ बेन्चें थीं जिनके पाये SPHINX की भांति थे और इन बेन्चों पर जामुनी रंग के क़ालीन बिछे थे और उन सबमें प्रथम श्रेणी के रोये ऊन का प्रयोग किया गया था और पूरा हाल और गैलरी, सुन्दर कलाकृतियों से बने नर्म ईरानी क़ालीनों से ढका था।
ईरानी क़ालीन और फर्श नीचे बिछाई जाने वाली सबसे प्राचीन व मूल्यवान चीज़ें हैं जिनका इतिहास बहुत लंबा है और इस समय वे ईरान के बहुत से क्षेत्रों में बुने जाते हैं। दुनिया में सबसे पहले ईरानियों ने क़ालीन बुनना आरंभ किया। मौजूद प्रमाण इस बात के सूचक हैं कि क़ालीनों को केवल गांव के घरों को ठंडक और नमी से बचाने के लिए बुना गया है परंतु धीरे- धीरे वह प्रतिष्ठित लोगों के घरों को सुसज्जित करने की वस्तु में परिवर्तित हो गये। जीवन की एक वस्तु के रूप में फर्श के प्रयोग के पहले चिन्ह का संबंध लगभग 800 साल ईसापूर्व से है।
ज़ाग्रोस पर्वत के समूचे आंचल और केन्द्रीय एशिया के बड़े भाग में ईरानी क़ालीन बुने जाते थे और हर क्षेत्र की अपनी स्थानीय विशेषताएं होती थीं। ईरानी क़ालीनों का सबसे प्राचीन नमूना वह छोटा क़ालीन है जो एक स्किथि शासक की बर्फ जमी क़ब्र में मिला है। यह कब्र मंगोलिया से 80 किलोमीटर दूर पाज़ीरिक नामक घाटी में मिली है और इसे “पाज़ीरिक कालीन” कहा जाता है। अध्ययनकर्ताओं का मानना है कि इस कालीन को पार्त और माद सभ्यता के लोगों ने बुना है।
रेडियो धर्मिता के परीक्षण परिणामों ने दर्शा दिया है कि पाज़ीरिक घाटी की क़ब्रों की प्राचीनता का संबंध चार-पांच शताब्दी ईसापूर्व से है और लगभग पूरे विश्वास से कहा जा सकता है कि पाज़रिक क़ालीन दुनिया का सबसे प्राचीन क़ालीन है और इसका पता वर्ष 1949 में रूसी पुरातत्ववेत्ता ANTONINA RUDENKO ने लगाया। इस क़ालीन को ऊन, उच्च तकनीक और पारदर्शी रंगों के साथ बुना गया है। यह कालीन लगभग वर्गाकार है और इसकी लंबाई एक मीटर 98 सेंटीमीटर और चौड़ाई एक मीटर 89 सेंटीमीटर है। इस कालीन पर जो कलाकृतियां बनी हैं उसमें सवार, चरते हिरन और काल्पनिक पशुओं की तस्वीरों को देखा जा सकता है। इस कालीन में जो काल्पनिक जानवर हैं उनके सिर बाज़ और शरीर शेर के हैं और उसके बार्डर पर पुष्प बने हुए हैं।
कालीन की बुनाई, बनावट और उस पर बनी कलाकृतियों की समीक्षा के बाद RUDENKO का ध्यान इस ओर जाता है कि इसमें और पेर्स पुलिस या तख्ते जमशीद में बनी कला कृतियों के मध्य बहुत अधिक समानताएं हैं। इसी प्रकार इस कालीन में बहुत से ऐसे चिन्ह मौजूद हैं जिनके दृष्टिगत वह कहता है कि इसकी बुनाई का संबंध लुर जाति से है। जैसे कालीन में विशेष प्रकार की गांठ का प्रयोग और इस कालीन के केन्द्रीय भाग में चार कोने वाले तारों की पंक्ति। क्योंकि लोरिस्तान प्रांत की खुदाई में मिलने वस्तुओं पर इस प्रकार के चिन्ह दिखाई पड़े हैं।
चीनी किताबों में क़ालीन के अस्तित्व के संबंध में जो पहला प्रमाण मौजूद है उसका संबंध सासानी श्रंखला और 224 से 641 ईसवी के दौरान के वर्षों का है। सातवीं ईसवी शताब्दी के वर्षों में सासानियों की राजधानी तिसफोन में बहारिस्तान नाम का एक स्थान था जहां प्रसिद्ध व मूल्यवान क़ालीनों की सुरक्षा की जाती थी। बहारिस्तान के क़ालीनों को बहारे खुस्रो और बहारे कस्रा के नामों से भी जाना जाता था और बहारिस्तान फर्श, ताक़ कस्रा में था और वह 140 मीटर लंबा और 27 मीटर चौड़ा था। प्रथम और प्रसिद्ध इतिहासकार तबरी है जिसने बहारिस्तान के क़ालीनों की चर्चा की है और उल्लेख किया है कि इस क़ालीन की बुनाई में रेशम, सोने, चांदी और पन्ने एवं मोती जैसे मूल्यवान पत्थरों का भी प्रयोग किया गया है और उसकी डिज़ाइनिंग में स्वर्ग के एक हरे- भरे बाग़ को दिखाया गया है।
अलबत्ता इस क़ालीन के अलावा सासानी काल में कई दूसरे मूल्यवान क़ालीन बुने गये हैं। जो क़ालीन बड़े -बड़े बुने गये हैं इतिहासकारों ने उनके बारे में इस प्रकार लिखा है। उनके कोनों को नीले, लाल, सफ़ेद, पीले और हरे रंग के पुष्पों से सुसज्जित किया गया है। इसी तरह उसमें क्रिसटल की भांति चमकने वाले पारदर्शी पत्थरों को भी लगाया गया है।
सलजूक़ी श्रंखला के बाद इतिहासिक दृष्टि से 11वीं 12वीं ईसवी शताब्दी को ईरानी क़ालीनों का महत्वपूर्ण समय समझा जाता है। उस काल की महिलाएं मूल बुनकरों में परिवर्तित हो गयीं और क़ालीन बुनने में उन्हें विशेष दक्षता प्राप्त हो गयी जो क़ालीन की बुनाई में विकास का कारण बना।
13वीं शताब्दी में मंगोलों ने जो ईरान पर आक्रमण किया था वह बहुत पाश्विक था और उससे ईरान में कालीन की बुनाई, कला और संस्कृति आदि को भारी क्षति पहुंची परंतु वर्षों का समय बीत जाने के बाद और मंगोल शासकों का ईरानी संस्कृति से प्रभावित होना, दोबारा क़ालीन की बुनाई पर ध्यान दिये जाने का कारण बना और तबरीज़ नगर कालीन बुनने के महत्वपूर्ण केन्द्र में परिवर्तित हो गया परंतु इस बात को भी नहीं भूलना चाहिये कि ईरानी क़ालीनों पर जो डिजाइन बनाई जाती थीं धीरे- धीरे वे ज्येमितिय रूप में होने लगीं और क़ालीन की बुनाई नये चरण में प्रविष्ट हो गयी।
शायद ईरान के क़ालीन उद्योग का सबसे महत्वपूर्ण काल सफवी काल है। ईरान में 16वीं और 17वीं शताब्दी में सफवी शासकों का शासनकाल था और उस काल के सैकड़ों मूल्यवान क़ालीन पूरी दुनिया के संग्राहलयों में मौजूद हैं जो इस बात का बेहतरीन प्रमाण है कि उस काल में क़ालीन उद्योग अपने विकास के शिखर पर था। शाह अब्बास सफवी के शासन काल में व्यापार, कला और उद्योग में बहुत विकास हुआ और लोगों के प्रोत्साहन पर शाह अब्बास सफवी ने यूरोप से व्यापारिक लेन- देन आरंभ किया। शाह अब्बास की राजधानी इस्फहान नगर था और वह ईरान के सुन्दर व भव्य नगरों में परिवर्तित हो गया।
इसी प्रकार इस नगर में फर्श की बुनाई के एक बड़े केन्द्र की स्थापना की गयी। इस केन्द्र में कलाकर बेहतरीन कालीन व फर्श बुनते थे और उन्हें सुसज्जित करने के लिए रेशम और सोने-चांदी के धागों व तारों का प्रयोग करते थे। इन क़ालीनों को ईरान और विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में भेजा जाता था और इस प्रकार ईरानी कलाकारों की कला पूरी दुनिया में फैलती थी।
उसके बाद के शासन काल में शासकों ने अपना पूरा समय अफ़ग़ानों, तुर्कों या रूसियों से लड़ने में लगाया और समय की उथल- पुथल राजनीतिक एवं सामाजिक परिस्थिति ने ईरान में कला के फलने- फूलने का समय ही नहीं दिया। अतः उस काल में कोई मूल्यवान क़ालीन बुना ही नहीं गया और कालीन की बुनाई खानाबदोश एवं बंजारा लोगों के माध्यम से छोटे नगरों में होती रही।
19वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों और क़ाजारिया काल में इस कला में दोबारा जान आ गयी और कुछ यूरोपीय एवं अमेरिकी कंपनियां ईरान आयीं और वे इस कला व उद्योग को अपने देशों में ले गयीं। अलबत्ता धीरे- धीरे मशीन से भी क़ालीन बुने जाने लगे। जब कालीन अधिक संख्या में मशीनों से बुने जाने लगे तो उनके मूल्य सस्ते हो गये जिससे हाथ से बुने जाने वाले क़ालीनों का बाज़ार किसी सीमा तक संकट में पड़ गया परंतु इतिहासिक अनुभव इस बात के साक्षी हैं कि दूसरे कारणों की भांति वह भी इस मूल ईरानी कला को समाप्त नहीं कर सका।
ईरान में जितने भी हस्त उद्योग हैं उनमें कालीन की बुनाई सबसे अधिक है और देश के बाहर भी ईरानी क़ालीन बहुत प्रसिद्ध व लोकप्रिय हैं। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इस समय ईरानी फर्शों व कालीनों को जो प्रसिद्धि व लोकप्रियता प्राप्त है वह उसकी अद्तीय डिज़ाइन, रंग और विविधता की ऋणी है जो शताब्दियों से ईरानी कलाकारों के परिश्रम का परिणाम है।