मानव तस्करी- 4
विश्व की जटिल समस्याओं व चुनौतियों में से एक मानव तस्करी है जिसका विश्व के विभिन्न समाजों को सामना है।
मादक पदार्थों से मुकाबले के कार्यालय और संयुक्त राष्ट्रसंघ की ओर से जो रिपोर्ट अभी हाल ही में प्रकाशित हुई है वह इस बात की सूचक है कि विश्व के 152 देशों से मानव तस्करी विश्व के 124 देशों को होती है।
जिन लोगों की तस्करी की गयी उनमें से अधिकांश की तस्करी रोज़गार का झांसा देकर की गयी या वे ऐसे पलायनकर्ता हैं जो समुद्रों और मरुस्थलों की दुर्गम यात्रा करते हैं ताकि विवादों और विभिन्न प्रकार की समस्याओं से छुटकारा पा सकें किन्तु वे मानव तस्करों के हत्थे चढ़ जाते हैं।
मानवधिकारों की रक्षा का दम भरने वाली अमेरिकी सरकार ने इस बात की पुष्टि की है कि प्रतिवर्ष पूर्व सोवियत संघ के देशों से एक लाख लड़कियों व महिलाओं की तस्करी अमेरिका होती है। इसी प्रकार 75 हज़ार लोगों की पूर्वी यूरोप और 50 हज़ार की अफ्रीका से अमेरिका प्रतिवर्ष तस्करी होती है। इसी तरह लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई देशों से प्रतिवर्ष जिन लोगों की तस्करी अमेरिका होती है उनकी भी संख्या लगभग एक लाख है।
जिन लोगों की तस्करी होती है उनमें 33 प्रतिशत बच्चे होते हैं और इस संख्या में दो तिहाई लड़कियां होती हैं। कुल मिलाकर तस्करी होने वालों में 70 प्रतिशत बच्चे और महिलाएं होती हैं। जिन लोगों की तस्करी की जाती है उनका शोषण भी अलग- अलग क्षेत्रों में भिन्न है। जिन लोगों की तस्करी अमेरिका और यूरोप होती है उनमें से अधिकांश की तस्करी यौन शोषण के लिए होती है।
यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार तस्करे का शिकार होने वाले 90 प्रतिशत बच्चों में जो अपने मालिकों के घरों में काम करते हैं जवान लड़कियां हैं।
अभी कुछ दिन पहले एक मिस्री समाचार पत्र अलमिस्रीयून ने उन संगठनों का रहस्योदघाटन किया है जो मानव तस्करी के कार्य में लिप्त हैं। इस समाचार पत्र ने लिखा" प्लान नाम का एक अमेरिकी संगठन है उसकी एक शाखा मिस्र में वर्ष 1981 से काम कर रही है। वह 7 साल से कम उम्र के मिस्री बच्चों को खरीद कर यूरोप और अमेरिका भेजता है। वह जिन परिवारों से बच्चों को खरीदता है उसे 10 हज़ार डालर देता है। समाचार पत्र अलमिस्रयून मिस्र के स्थानीय सूत्रों के हवाले से लिखता है इस अमेरिकी संगठन का कार्यक्षेत्र मानव प्रेम की आड़ में निर्धन क्षेत्र हैं। आरंभ में वह निर्धन परिवारों की सहायता करता और पढ़ाई का खर्च देता है और जब परिवारों का विश्वास जीत लेता है तो उनसे कहता है कि वह आपके बच्चे को अमेरिका और यूरोप पढ़ने के लिए निःसंतान परिवार के पास भेजना चाहता है।
मानव तस्करी जारी रहने के साथ मानवाधिकारों की रक्षा का दम भरने वाले अमेरिका और यूरोपीय देशों में प्रतिवर्ष लगभग 10 लाख बच्चे लापता हो जाते हैं। लापता हो जाने वालों में कुछ बच्चे भाग जाते हैं, कुछ का अपहरण कर लिया जाता है और कुछ बच्चे अकेले पलायन करते हैं।
हथियारों और मादक पदार्थों की तस्करी के बाद अमेरिका में सबसे अधिक मुनाफ़े वाला काम मानव तस्करी है। अमेरिका में आधिकारिक संगठनों की जांच रिपोर्टों ने भी दर्शा दिया है कि प्रतिवर्ष अमेरिका में कानूनी उम्र से कम की एक लाख से अधिक लड़कियों का यौन शोषण के लिए व्यापार होता है। यहां तक कि अमेरिका की राजधानी वाशिंग्टन में भी यौन शोषण के लिए लड़कियां खरीदी और बेची जाती हैं और उनमें से कुछ की उम्र लगभग 13 साल है। संयुक्त राष्ट्रसंघ की ओर से जो रिपोर्ट प्रकाशित हुई है उसने भी इस विषय की पुष्टि की है। मानव तस्करी से जो अरबों डालर का फायदा होता है उसके लगभग पचास प्रतिशत का संबंध अमेरिकियों से है।
अमेरिका में मानव तस्करी का दिल को दहला देने वाला जो आंकड़ा है वह इस बात का सूचक है कि किस तरह अमेरिका में हज़ारों महिलाओं और बच्चों की तस्करी की जाती है।
मानवाधिकारों के कुछ कार्यकर्ताओं ने कहा है कि अमेरिका और दूसरे देशों में जिन इराकी बच्चों की तस्करी हुई है वह इराक युद्ध का एक दुष्परिणाम है। इस प्रकार से कि तस्करी करने वाले गुटों ने सक्रिय और गोपनीय ढंग से इराक में निर्धन परिवारों को निशाना बनाया और थोड़ा सा पैसा देकर निर्धन परिवारों से उनके बच्चों को खरीद लिया और इराक से निकाल कर उन्हें अमेरिका सहित दूसरे देशों में पहुंचा दिया। रोचक बात यह है कि अमेरिका में वास्तविकता कुछ और है जबकि वह स्वयं को मानवाधिकारों और बच्चों के अधिकारों की रक्षा का ठेकेदार समझता है।
"कोर्नीय कोर्ट हाउस" अमेरिका में एक प्राइवेट संगठन है जो तस्करी या यौन शोषण का शिकार हुई महिलाओं और लड़कियों की सहायता करता है। इस संगठन की संस्थापक और प्रमुख टिना फ्रांटा कहती हैं कि अमेरिका में बहुत से लोगों का मानना है कि बच्चों की तस्करी के लिए विभिन्न कानून हैं जबकि इस प्रकार की बात की कोई वास्तविकता नहीं है। बहुत से अवसरों पर बच्चे उन कार्यों की कीमत चुका रहे हैं जिस पर वे न तो सहमति जता सकते हैं और न ही भाग सकते हैं।
इस प्रकार का व्यापार अमेरिका में कोई नया विषय नहीं है और यह 50 साल से अधिक समय से अमेरिका में जारी है। इस प्रकार के अतीत के साथ अमेरिका मानव तस्करी से मुकाबले के संबंध में अग्रणी देश होने का दावा करता है।
ये रिपोर्टें इस बात की सूचक हैं कि अमेरिका का मूल लक्ष्य मानवीय प्रतिष्ठा का सम्मान करना नहीं है बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने हितों को साधने के लिए वह इस विषय का प्रयोग एक हथकंडे के रूप में करता है। रशिया टूडे अपनी एक रिपोर्ट में इसी वास्तविकता की ओर संकेत करते हुए कहता है" अमेरिका सदैव दूसरे देशों पर आरोप लगाता है कि वहां बच्चों और महिलाओं का यौन शोषण होता है जबकि शक्तिशाली व प्रभावी अमेरिकी राजनेताओं की जानकारी के साथ प्रतिदिन इस प्रकार की घटनाएं होती रहती हैं।
अमेरिका के प्रभावी डेमोक्रेट सिनेटर राबर्ट मेनेनडेज़ कहते हैं अमेरिका मानव तस्करी के संबंध में जो रिपोर्टें जारी व प्रकाशित करता है इससे उसका लक्ष्य वास्तविकता बयान करना नहीं होता है बल्कि वह राजनीतिक कारणों से एसा करता है। यह बातें एसी स्थिति में की जा रही हैं जब इस्लामी गणतंत्र ईरान उन देशों में से है जिसने वर्षों पहले मानव तस्करी को रोकने के लिए संसद में कानून पारित किया है। संगठित अपराधों को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ का जो “पालरेमो”(PALERMO) कन्वेन्शन है उस पर भी ईरान ने हस्ताक्षर किये हैं। यह कन्वेन्शन मानव तस्करी से मुकाबले के संबंध में है। ईरान ने मानव तस्करी से मुकाबले के संबंध में जो कार्य अंजाम दिये हैं उसकी पुष्टि अपराधों और मादक पदार्थों से मुकाबला करने के संयुक्त राष्ट्रसंघ के कार्यालय ने भी की है। इसी प्रकार मानव तस्करी सहित दूसरे संगठित अपराधों का मुकाबला करने के संबंध में ईरान ने दूसरे देशों के साथ विभिन्न सुरक्षा समझौते किये हैं। ईरान ने जिन देशों के साथ सुरक्षा समझौते किये हैं उनमें इटली, सऊदी अरब, यूनान, बोस्निया व हिर्ज़ोगोविना और अफगानिस्तान जैसे देश शामिल हैं।
अमेरिका ऐसी स्थिति में यह दावा करता है कि ईरान मानव तस्करी को रोकने के संबंध में कुछ नहीं कर रहा है जब वह अपने पड़ोसी देशों विशेषकर लाखों अफगान नागरिकों को दूसरों की सहायता की अपेक्षा के बिना अपने यहां शरण दे रखी है जिसमें ध्यान योग्य संख्या महिलाओं और बच्चों की है। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली खामनेई ने मई वर्ष 2015 में कहा था कि समस्त अफगानी बच्चों का नाम ईरान के सरकारी स्कूलों में लिखा जाना चाहिये चाहे उनके पास ईरान में रहने के लिए कानूनी दस्तावेज़ हों या न हों। यह उस स्थिति में है जब बहुत से लोग विशेषकर बच्चे कुछ पश्चिमी देशों में अपने मौलिक अधिकारों से भी वंचित हैं।
वास्तव में लोगों के बेघर होने के परिणाम में जिन समस्याओं का सामना होता है उसका बोझ ईरान जैसे उन देशों पर है जो मानवीय सिद्धांतों और धार्मिक शिक्षाओं के आधार पर इंसानों के शोषण के विरोधी हैं और अगर बेघर होने वाले लोगों का समर्थन व सहायता न की जाये तो वे मानव तस्करों के हत्थे चढ़ जायेंगे पर खेद के साथ कहना पड़ता है कि अमेरिका जैसे देश मानवीय सिद्धांतों के प्रति कटिबद्ध रहने की केवल बात करते हैं जबकि उनके कर्मपत्र मानव तस्करी जैसे घृणित कार्यों से भरे पड़े हैं।