मार्गदर्शन- 69
इस्लाम धर्म, ज्ञान और अध्यात्मिक मूल्यों पर प्रतिबद्धता का धर्म है।
मुसलमानों को ज्ञान और शोध को एक सार्वजनिक समझ के रूप में स्वीकार करना चाहिए ताकि एक साथ मिलकर पहाड़ की इस चोटी को सर किया जा सके। इस्लाम धर्म के मुख्य संदेशों में से एक ज्ञान है। पवित्र क़ुरआन ने बारंबार चिंतन मनन और ज्ञान की प्राप्ति पर बल दिया है और सभी को उस पर ध्यान देने को कहा है। जैसा कि इस्लामी इतिहास में आया है कि इस्लाम धर्म के आरंभिक वर्षों में पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने विभिन्न ज्ञानों के विस्तार और दूसरों को ज्ञान देने को अपनी प्राथमिकता क़रार दिया था। पैग़म्बरे इस्लाम को ज्ञान के विस्तार की इतनी हद तक चिंता थी कि उन्होंने एक क़ानून बना दिया था कि कुछ पढ़े लिखे क़ैदी जब किसी जाहिल को पढ़ाएंगे तो वह स्वतंत्र हो जाएंगे। यह विषय इस बात पर खुला बल है कि पैग़म्बरे इस्लाम ज्ञान की प्राप्ति और समाज के लोगों के ज्ञान के विस्तार को कितना महत्व देते थे।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि प्रयारा धर्म इस्लाम, ज्ञान की ओर सबसे अधिक प्रेरित करने वाला धर्म है और यह इस सीमा तक था कि निरंतर कई शताब्दियों तक पूरी दुनिया में मुसलमान ज्ञान और वैज्ञानिक प्रगति के ध्वजवाहक रहे हैं और आज हमारे देशों पर विदेशियों के वर्चस्व के कटु काल के बाद एक बार फिर ईरानी राष्ट्र विश्व साम्राज्यवाद के प्रभाव से छुटकारा पाने का प्रयास कर रहा है, ज्ञान की चोटियों का सर करना, हम सब की महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है।
इस्लाम धर्म ने ज्ञान की प्राप्ति को बुद्धि की सुन्दरता और बुद्धि के दीप के रूप में पहचनवाया है और धर्म के विकास को ज्ञान की प्राप्ति और उस पर अमल में निहित बताया है। इसी संबंध में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि हे लोगों जान लो कि धर्म की परिपूर्णता ज्ञान की प्राप्ति और उस पर अमल करने में है। जान लो कि ज्ञान की प्राप्ति तुम पर धन की प्राप्ति से अधिक अनिवार्य है। पवित्र क़ुरआन में ईश्वर कहता है कि धर्मगुरु और छात्र, वास्तविकता की तलाश में हैं, वे उसकी तलाश में अध्यात्म की ऊंचाईयों को भी छूते हैं।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ज्ञान की प्राप्ति और इस मार्ग में कभी न थकने के बारे में कहते हैं कि ज्ञान और शोध को एक सार्वजनिक आस्था के रूप में सीखना चाहिए ताकि सभी लोगों के साहस से यह चोटी सर की जाए। वरिष्ठ नेता दूसरे स्थान पर कहते हैं कि मैं प्रिय युवाओं को एक वास्तविक संघर्ष का निमंत्रण देता हूं, संघर्ष केवल युद्ध करना और रणक्षेत्र में जाना ही नहीं है, ज्ञान और नैतिकता के मैदान में प्रयास करना, राजनैतिक सहयोग और शोध भी लोगों के लिए जेहाद और संघर्ष समझा जाता है। आज पढ़ना, ज्ञान प्राप्त करना, शोध और पढ़ाई के दौरान अपने काम को गंभीरता से करना, एक जेहाद है।
ज्ञान की अनेक शाखाएं हैं और सभी ज्ञान प्राप्त करना मनुष्य के लिए ज़रूरी है किन्तु सबसे महत्वपूर्ण ज्ञान का प्रयोग और उससे लाभ उठाने का तरीक़ा है। इसी प्रकार ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए ज्ञान प्राप्त किया जाए, अर्थात ज्ञान को मानवता की समस्या को दूर करने के लिए प्राप्त किया जाए, न कि मानवता और सुरक्षा के विरुद्ध प्रयोग हो। उदाहरण स्वरूप परमाणु विज्ञान हासिल करना और इस विज्ञान को विस्तृत करना, मानवता की बहुत अधिक सेवा है क्योंकि इससे विशेष प्रकार की दवाइयों, बिजली और मानवता की बहुत सी ज़रूरतों को पूरा किया जाता है किन्तु इसके मुक़ाबले में कुछ लोग हैं जो इस ज्ञान को परमाणु हथियारों के निर्माण के लिए तथा मानवता को तबाह करने के लिए प्रयोग करते हैं।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता देश के परमाणु विकास पर बहुत अधिक बल देते हुए खुलकर कई बार कहते हैं कि हम कभी भी हथियारों के निर्माण के लिए परमाणु विज्ञान से लाभ नहीं उठाएंगे क्योंकि हम उस को इंसानी नहीं समझते हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस्लाम धर्म ने किसी मुस्लिम को भी इस बात की अनुमति नहीं दी कि वह अपने ज्ञान को अवैध तरीक़ों से बर्बाद करे अर्थात मानवता को नुक़सान पहुंचाने के लिए अपने ज्ञान का प्रयोग करे। इस प्रकार का ज्ञान, धर्म विरोधी है, धर्म मनुष्य से वह ज्ञान चाहता है जिसके प्रयोग से मनुष्य अध्यात्म और शांति के शिखर पर पहुंच जाए।
इस प्रकार इस्लाम धर्म बल देता है कि मानवता की स्वतंत्रता और उसको परिपूर्णता और कल्याण तक पहुंचाने के दो परंव ईमान और ज्ञान है। अब जबकि मनुष्यों में मानवता फीकी पड़ गयी है और उसकी वैज्ञानिक हस्ती भी पतन का शिकार हो जाएगी। दुनिया में कितने लोग थे जो ज्ञान में निपुण थे और मानवता को तबाह करने के लिए अपने ज्ञान का प्रयोग किया, आज लोग उनसे घृणा करते हैं, उदाहरण स्वरूप वह वैज्ञानिक जिसने रासायनिक बम बनाया या परमाणु बम का दुनिया में परीक्षण किया, वहां के लोगों की जान पर तनिक भी ध्यान दिए बिना, या वह शोधकर्ता जो प्रयोगशाला में घातक वायरस बनाता है, क्या वह ईश्वर पर ईमान रखता है? इस्लाम स्पष्ट रूप से कहता है कि वह ज्ञान जो ईश्वर की सेवा में न हो, ईमान से ख़ाली हो, वह ईश्वर की सृष्टि के लिए भी लाभहीन और बेकार होगा।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने ईरान के विरुद्ध दुश्मनों की खुली दुश्मनी और वैज्ञानिक एकाधिकार के दृष्टिगत देश के बुद्धिजीवियों से अनुशंसा करते हैं कि वह पूरी तत्वदर्शिता के साथ देश के वैज्ञानिक मार्ग पर आगे बढ़ें, वैज्ञानिक एकाधिकार तोड़ दें और ज्ञान तथा विज्ञान की चोटियां सर करें। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि मैंने सुना है कि दुनिया के कुछ संवेदनशील हल्क़ों में कहा जा रहा है कि हम मध्यपूर्व क्षेत्र में एक जापानी मध्यपूर्व को सहन नहीं करेंगे, वह इस्लामी जापान आप हैं, यह बात ऐसे ही नहीं कही गयी, इसीलिए कि हमारा देश वर्तमान समय में और हालिया कुछ वर्षों में शोध और वैज्ञानिक प्रगति की दृष्टि से दुनिया के देशों में सबसे आगे रहा है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता देश में दुश्मनों की विज्ञान विरोधी गतिविधियों के बारे में बल दिया कि दुश्मन फ़िलहाल हमारे विश्वविद्यालयों के लिए दो काम किर रहा है, एक ज्ञान से दूरी, एक धर्म से दूरी। विश्वविद्यालय से ज्ञान से दूरी होती है, विश्वविद्यालय से धर्म से दूरी होती है। विश्वविद्यालय से ज्ञान की दूरी किस प्रकार होती है? इन्हीं छोटे कार्यों में से एक वैज्ञानिकों की टारगेट किलिंग है, जिसने दो से तीन वैज्ञानिकों को हालिया वर्षों में हमसे छीन लिया, इससे व्यापक कार्यक्रम है, यह सबसे सरल काम है, इससे भी जटिल काम यह है कि हमारे विश्वविद्यालय को, हमारे प्रोफ़ेसर को, हमारे छात्रों को जाहिलाना कामों में व्यस्त कर दें, इस वैज्ञानिक निखार को जो हमारी कामना है, व्यवहारिक नहीं होने देंगे।
इस परिधि में सबसे ख़तरनाक और महत्वपूर्ण काम, विश्वविद्यालयों में वैज्ञानिक काम की भावना को समाप्त करना है। उदाहरण स्वरूप मेधावी छात्रों को वैज्ञानिक काम करने के लिए भावनाहीन बनाना और दूसरे देशों की ओर पलायन करने पर उन्हें प्रेरित करना, इस रणनीति का भाग है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता देश के वैज्ञानिक वातावरण को एक समस्या के रूप में कहते हैं कि विश्वविद्यालय में वैज्ञानिक नवीनीकरण पर बल दिया जाना चाहिए, देश की आवश्यकताओं की सेवा में वैज्ञानिक प्रगति पर बल दिया जाना चाहिए कि इसका एक मूल मापदंड है, आख़िरकार क्षमताएं सीमित हैं, मानवीय क्षमताएं भी, वित्तीय व भौतिक क्षमताएं भीं, इस बात पर निश्चित रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए कि हमारे वैज्ञानिक काम देश की वैज्ञानिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हों, हमें विभिन्न प्रकार की आवश्यकताएं हैं, विश्वविद्यालय हमारी आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है, इस शून्य को भर सकता है, यह भी हमारा एक अनुभव है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता देश के विश्वविद्यालय समाज से अपील करते हैं कि विज्ञान विशेषकर ह्यूमेनीटीज़ के विषय में ख़ास प्रगति करें, इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता की अपील पर ह्यमेनीटीज़ के विषय में विश्वविद्यालय के कोर्स में परिवर्तन हुए हैं। वरिष्ठ नेता विश्वविद्यालयों में पश्चिमी पुस्तकों के केवल अनुवाद और उनको पढ़ाने को पर्याप्त नहीं समझते और मानते हैं कि हमारे बुद्धिजीवियों और प्रोफ़ेसरों को इस क्षेत्र में प्रगति करनी चाहिए और वैज्ञानिक उत्पादन करना चाहिए।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का मानना है कि हम कर सकते हैं कि नारे के साथ और आंतरिक क्षमताओं पर भरोसा करते हुए विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति प्राप्त की जा सकती है और शत्रुओं को निराश किया जा सकता है। वैज्ञानिक छलांग की मांग ऊंचाई पर पहुंचना है। दो साल पहले इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नता की ओर से ज्ञान और तकनीक के क्षेत्र की नीति पेश किए जाने के कारण बुद्धिजीवियों और मेधावियों के लिए वैज्ञानिक रास्ता पहले से सरल हो गया। इन नीतियतं में सबसे मुख्य विषय, ईरान को दुनिया में विज्ञान और तकनीक के ध्रुव तक पहुंचाना है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता की बुद्धिजीवियों, मेधावियों, शोधकर्ताओं और प्रोफ़ेसरों से तो यही अपील है कि दुनिया में विज्ञान और तकनीक की केन्द्रियता प्राप्त करते हुए वैज्ञानिक छलांग लाई जाती रहे।