मस्जिद और उपासना- 29
इससे पहले वाले कार्यक्रम में हमने आपको बताया था कि मस्जिद, शिक्षा, प्रशिक्षण धर्म के प्रचार व प्रसार और अध्यात्मिक मार्गदर्शन का बेहतरीन स्थान है जो इमाम जमाअत के अध्यात्मिक नेतृत्व और प्रबंधन से अस्तित्व में आता है।
इमाम जमाअत सही और व्यवस्थित कार्यक्रम बनाकर इस काम को आगे बढ़ा सकता है। यहां पर इस बात का उल्लेख बहुत ज़रूरी है कि स्वयं मस्जिद समस्त नमाज़ियों और इमाम जमाअत को संगठित व व्यवस्थित करती है। सामूहिक नमाज़ या जमाअत की नमाज़, समन्वय और आपसी तालमेल का बेहतरीन नमूना है। निर्धारित समय पर लोगों का मस्जिद में एकत्रित होना और पांचों समय की नमाज़ की अज़ान के साथ स्वयं को ढालना, स्वयं समय पर एक प्रकार की प्रतिबद्धता का नमूना है और नमाज़ियों को समय की पाबंदी का पाठ सिखाती है। नमाज़ियों की व्यवस्थित लाइन और कंधे से कंधा मिलाकर उनका खड़ा होना, नमाज़े जमाअत के सिद्धांतों में से एक है। ईश्वर के समक्ष खड़े होने के समय मोमिन नमाज़ियों का एक लाइन में खड़ा होना, दुश्मनों के मुक़ाबले में मुसलमानों की सहृदयता और उनकी एकता का प्रदर्शन है।
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के हवाले से एक हदीस बयान करते हुए कहते हैं कि हे लोगो, अपनी पंक्तियों को व्यवस्थित करो, एक दूसरे से अपने कंधे मिलाओ ताकि तुम्हारे बीच दूरी और फ़ासला न रहे, अव्यवस्थित न खड़े हो, नहीं तो ईश्वर तुम्हारे दिलों को एक दूसरे से असमन्वय कर देगा। यहां पर यह कहा जा सकता है कि पैग़म्बरे इस्लाम का बयान इस बिन्दु की ओर संकेत करता है कि दिलों को जोड़ने और आपसी मेल मिलाप में व्यवस्था और क़ानून की भूमिका होती है जबकि एक दूसरे को परेशानी में देखने से आत्मा को तकलीफ़ पहुंचती है। सैद्धांतिक रूप से धर्म के समस्त क़ानून और नियम, चाहे वह अनिवार्य हों या जिनके अंजाम देने से पुण्य मिलता है, सभी एक व्यवस्थित कार्यक्रम रखते हैं ताकि मुसलमानों के बीच एक विशेष समन्वय और व्यवस्था स्थापित कर सकें इसीलिए सुव्यवस्था न केवल जमाअत की नमाज़ के समय बल्कि समस्त गतिविधियों और मस्जिद के समस्त कामों में बहुत ही ज़रूरी है क्योंकि मस्जिद अल्लाह का घर है जो व्यवस्था सिखाने के साथ मोमिनों को समय की सही पहचान भी बताती है। क़ानून व्यवस्था मनुष्य को समय का सही उपयोग सिखाती है। वास्तव में क़ानून व्यवस्था, समय का सही प्रबंधन व्यवहारिक बनाती है। इस्लाम धर्म में क़ानून व्यवस्था को इतना महत्व दिया गया है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम जिन्होंने बारंबार मुसलमानों के व्यवहार और उनकी सोच में बिखराव और अव्यवस्था के ख़तरनाक परिणाम देखे, अपने जीवन के अंतिम क्षण में अपनी संतानों और मुसलमानों को ईश्वरीय भय और अपने कामों को व्यवस्थित करने की नसीहत करते हैं। इमाम अली अलैहिस्सलाम अपनी वसीयत में कहते हैं कि परिवार के समस्त लोगों, मेरी संतानों और उन लोगों को जिन तक मेरी यह वसीयत पहुंचेगी, ईश्वरीय भय और अपने कामों को व्यवस्थित करने की नसीहत करता हूं।
मस्जिद में सुव्यवस्था, अन्य संभावनाओं से लाभ उठाने के लिए नमाज़ियों को कार्यक्रम बनाने की संभावनाएं उत्पन्न कराती हैं। इस्लामी समाज के एक हिस्से के रूप में नमाज़ी मस्जिद में व्यवस्था बनाकर समाज में प्रविष्ट होता है और इस प्रकार से समाज में मतभेद और अराजकता कम होती है। जब समाज व्यवस्थित हो जाता है तो बड़ी शांति से वह कल्याण और परिपूर्णता के मार्ग को तय करता है और यह मस्जिद में उपस्थित होने का परिणाम है।
कहा जाता है कि अबू सईद अबुल ख़ैर एक प्रसिद्ध परिज्ञानी थे, उनसे पूछा गया कि क्यों ज़रूरी है कि लोग मस्जिद में एकत्रित हों और सामूहिक नमाज़ आयोजित करें जबकि कहा जाता है कि ईश्वर गर्दन की नाड़ी से भी लोगों से निकट है? तुम जहां पर भी रहो, यदि ईश्वर से संपर्क साधना चाहो तो क्या परिणाम निकलेगा? अबू सईद ने उसके सवाल का जवाब दिया और उदाहरण पेश करके अपनी बात को सिद्ध कर दिया। यदि एक स्थान पर कई दीप जल रहे हों और उनमें से एक को बुझा दें, तो दूसरे दीप तो जल रहे हैं और उस जगह पर यह नहीं कहा जा सकता कि अंधेरा है, किन्तु यदि उन दीपों में से एक दीप एक बंद कमरे में जलाओ, जैसे ही दीप बुझेगा, कमरे में अंधेरा फैल जाएगा, इसीलिए ईश्वर ने सामूहिक नमाज़ को प्राथमिकता दी है ताकि लोग एक दूसरे की सहायता और सहयोग से ईश्वर की प्रसन्नता के लक्ष्य को हासिल कर सकें।
हमने ईरान की एक महत्वपूर्ण मस्जिद, मस्जिदे गौहरशाद के बारे में बताया था।

तैमूरियों के काल में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के पवित्र मज़ार में बहुत निर्माण कार्य हुआ। उस समय शाहरुख़ तैमूरी की पत्नी के आदेश से इस्लामी जगत की सुन्दर मस्जिद, मस्जिदे गौहरशाद का निर्माण किया गया। इस मस्जिद का निर्माण इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के पवित्र मज़ार के दक्षिणी प्रांगण में हुआ है। बहुत से विशेषज्ञों का मानना है कि मस्जिदे गौहरशाद, निर्माण और वास्तुकला की दृष्टि से इस्लामी जगत में अद्वतीय है। इस मस्जिद के द्वार पर जो शिलालेख लगे हैं इस्लामी दुनिया में उनका कहीं भी उदाहरण नहीं है। इस मस्जिद का हाल बहुत बड़ा व ऊंचा है और यह ईरान की सुन्दरतम मस्जिदों में एक है। क़ेवामुद्दीन शीराज़ी ने इसका निर्माण किया है। बाद में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के पवित्र मज़ार के पास मदरसये परीज़ाद, मदरसये दो दर और मदरसये बालासर की इमारतों का भी निर्माण कर दिया गया। नादिर शाह अफशार के शासन काल में तैमूरी प्रांगण को बहुत ही अच्छी शैली में सुसज्जित किया गया और मज़ार की दीवारों पर फिर से चित्रकारी की गयी। इस मस्जिद का निर्माण वर्ष 1418 ईसवी में पूरा हुआ।

मस्जिदे गौहरशाद का द्वार तैमूरी शासन काल की विषय वस्तु का बेहतरीन नमूना है। इस पर बहुत ही सुन्दर डिज़ाइनें बनी हुई हैं। मस्जिदे गौहरशाद का गुंबद फ़ीरोज़े रंग की टाइलों से सुसज्जित हैं। गुंबद पर ला इलाहा इल्लाह बहुत ही सुन्दर डिज़ाइन में लिखा हुआ है। नीला फ़िरोज़ा रंग, गुंबद के भीतरी दृश्य को आसमान के रूप में पेश करता है। आसमान का रूप इस नीले फ़िरोज़ी रंग के गुंबद के नीचे ईश्वर से दुआ करने और उससे अपने मन की बात करने से यह दिखाने का प्रयास किया गया है कि बंदे और ईश्वर के बीच कोई दूरी नहीं है।

मस्जिदे गौहरशाद में नीले और फ़िरोज़ी रंग का प्रयोग, स्थाई और मज़बूत विचारों का बेहतरीन माहौल प्रदर्शित करता है। मस्जिदे गौहरशाद में नीले रंग के बहुत से शिलालेखों का प्रयोग किया गया जिसमें सफ़ेद रंग की लिपि का प्रयोग हुआ है। चारों प्रागणों और पूरे मस्जिद के हाल में बेल्ट की भांति यह पट्टी एक दूसरे से जुड़ी हुई दिखाई देती है।
पीला रंग, सबसे निखरा और प्रकाश दिखाने का बेहतरीन साधन है और यह नमाज़ियों की सूझबूझ और उनकी समझ को दिखाने का बहुत अच्छा माध्यम है। मस्जिदे गौहरशाद में टाइलों और बेल बूटों की डिज़ाइनों पर पीले रंग प्रयोग किया जाना देखने योग्य है। मस्जिदे गौहरशाद में पीले और नीले रंग को मिलाकर एक नये प्रकार के नये हरे रंग का प्रयोग किया गया है जिससे आशा और शांति का पता चलता है।

मस्जिदे गौहरशाद में कुछ स्थानों पर पत्थर के शिलालेख देखे जा सकते हैं। मस्जिदे गौहरशाद में एक प्रांगण, एक गुंबद, दो अज़ान देने के गुलदस्ते, चार हाल और हाल से मिले हुए विशेष स्थान हैं। मस्जिदे गौहरशाद का सबसे बड़े प्रांगण का नाम, मक़सूरा प्रांगण है जिसके बारे में पिछले कार्यक्रम में बताया गया है। इस मस्जिद में अज़ान देने के विशेष स्थान में कुछ स्तंभ, मुकुट के आकार का अज़ान देने का विशेष स्थान शामिल हैं। सफ़वी काल से पहले तक अज़ान देने के विशेष स्थान के निर्माण में ईंट का प्रयोग किया गया था किन्तु इस काल के बाद इसके स्तंभ को फ़िरोज़े की टाइलों से सुन्दर बना दिया गया। इन सुन्दर टाइलों में ईश्वर के विभिन्न नाम, पैग़म्बरे इस्लाम (स) और हज़रत अली के नाम बहुत ही सुन्दर डिज़ाइनों में लिखे हुए हैं।

मस्जिद के हर मीनारे पर बहुत ही सुन्दर डिज़ाइनों में ईश्वर के अनेक नाम लिखे हुए हैं जबकि मीनार के निचले भाग में पैग़म्बरे इस्लाम का यह कथन लिखा है कि नमाज़, मोमिनों की मेराज व शिखर है। मीनार के निचले भाग में बिनाई लिपि में “ ला इलाहा इललल्लाह” लिखा हुआ है।

मस्जिदे गौहरशाद का दूसरा प्रांगण, सादा के नाम से प्रसिद्ध उत्तरी प्रांगण का रुख़ क़िबले की ओर है और मक़सूरा नामक प्रांगण के ठीक सामने स्थित है। इस प्रांगण में मुअर्रक़ डिज़ाइन में एक शिलालेख लगा हुआ है जिस पर शाह अब्बास सफ़वी काल में इसकी मरम्मत की बात लिखी हुई है। वर्तमान समय में यह प्रांगण उन लोगों के आने जाने का रास्ता है जो यहां से इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े पर जाना चाहते हैं।

तीसरा प्रांगण मस्जिद के पूर्वी भाग में स्थित है जो इमाम ख़ुमैनी नामक हाल से मिला हुआ है जबकि चौथा प्रांगण पश्चिमी छोर पर स्थित है जो अतीत में बड़े बाज़ार से मिला हुआ था।