Apr ०६, २०१६ ०१:०० Asia/Kolkata

ईरानी क़ालीन की एक बहुत अहम व विस्तृत डिज़ाइन का नाम ‘माही दरहम’ है।

ईरानी क़ालीन की एक बहुत अहम व विस्तृत डिज़ाइन का नाम ‘माही दरहम’ है। यह डिज़ाइन स्थानीय व क़बायली डीज़ाइनों की श्रेणी में आती है और इसकी बुनाई क़ालीन की अन्य ज्यामितीय डीज़ाइन की तरह काल्पनिक है। यह किसी ख़ास नक़्शे को मद्देनज़र रख कर नहीं बुनी गयी है।

इस डिज़ाइन की ख़ूबसूरती के मद्देनज़र, क़ालीन के डीज़ाइनर इस बात के लिए प्रेरित हुए कि इसकी पुरानी विशेषताओं को बाक़ी रखते हुए इसे सुव्यवस्थित रूप से इस्तेमाल करें। शुरु में पूर्वी ईरान के बीरजन्द में प्रचलित थी और फिर धीरे-धीरे यह डिज़ाइन ईरान में क़ालीन की बुनाई के अन्य क्षेत्रों में प्रचलित हुयी। इस वक़्त ईरान में क़ालीन की बुनाई के ज़्यादातर क्षेत्रों में इस डिज़ाइन पर आधारित क़ालीन बुने जाते हैं और इस डीज़ाइन के क़ालीन की विश्व बाज़ार में हमेशा मांग रहती है।

‘माही दरहम’ शब्दावली आम बोल-चाल में प्रचलित है और इस बात का उल्लेख नहीं मिलता कि यह शब्दावली कबसे इस्तेमाल में है। विशेषज्ञों का मानना है कि ‘माही दरहम’ हेरात की डीज़ाइन का विशेष रूप है। यह डीज़ाइन दो मछली और 8 पत्तियों वाले एक फूल पर आधारित है कि जिसके बीच में दोनों मछलियां बनी होती है।

इस्लाम के आगमन के बाद क़ालीन के बुनकर चूंकि मुसलमान होते थे, इस लिए वे अपनी आस्था के अनुसार प्राणियों ख़ास तौर पर जानवरों का चित्र नहीं बनाते थे और इस डिज़ाइन में भी मछली बड़ी हद तक पत्ती जैसी दिखती है।

मौजूद क़ालीनों पर किए गए शोध के अनुसार, माही दरहम चित्र तैमूरी शासन काल और पूरे सफ़वी काल में बनाए जाते थे और बाद में इसका गहरा प्रभाव ईरानी क़ालीन की कुछ डीज़ाइनों पर भी पड़ा। माही दरहम डीज़ाइन के हेराती डीज़ाइन के नाम से मशहूर होने का कारण यह है कि यह डीज़ाइन हेरात में और तैमूरी शासन काल में बहुत प्रचलित थी। हेराती डीज़ाइन में दो मुड़े हुए पत्तों के बीच शाही अब्बासी या कुमुदिनी का फूल बना होता है।

इस बात के ठोस दस्तावेज़ हैं कि ये दोनों पत्ते हक़ीक़त में दो मछली थीं जिन्हें बाद में पत्ते के रूप में बनाया जाने लगा। जैसा कि इस डीज़ाइन के नाम माही दरहम से इस बात की पुष्टि होती है। फ़ारसी में माही का अर्थ होता है मछली। इस बात का पता लगाने के लिए क़ालीन पर इस प्रकार का पहला चित्र कब और कहां बनाया गया, ऐतिहासिक अध्ययन का सहारा लेना होगा।

हेराती चित्र का इतिहास प्राचीन सासानी काल से मिलता है क्योंकि उस

दौर में कुछ रीति रिवाज का पानी से बहुत निकट संबंध था। सासानी दौर के कुछ अवशेषों के अध्ययन से पता चलता है कि उस दौर के लोगों का मानना था कि चांद पानी में जन्म लेकर कुमुदिनी के एक फूल के ऊपर आ जाता है। समय बीतने के साथ साथ शाह अब्बासी फूल कुमुदिनी या वाटर लिली का स्थान ले लेता है और इस तरह उसे ईरानी क़ालीन के पारंपरिक चित्रों में विशेष स्थान मिलता है।

मछली के चित्र के स्थान पर फूल और पत्ते के चित्र इस्लाम के आगमन के बाद बनना शुरु हुए। यह वह समय था जब क़ालीन के बुनकर क़ालीन पर जानवरों के चित्र नहीं बनाते थे। हेरात की डिज़ाइन में एक प्रकार की डिज़ाइन भारत में बहुत प्रचलित थी। इस डीज़ाइन के तहत शाह अब्बासी फूल के चारों ओर अंगूर की बेल और फूल बने हुए हैं। इस डीज़ाइन में फूल के चारों ओर गोलाकार या अंडाकार रिंग बनायी जाती है जिसके बीच में मछली या मछली जैसे दिखने वाले फूल बनाए जाते हैं।

 क़ालीन के चित्र की डिज़ाइन बनाने वाले कभी कभी माही दरहम की डिज़ाइन में चकोतरे का चित्र भी बनाते हैं। कभी कभी माही दरहम डिज़ाइन की पृष्ठिभूमि में भी इसी चित्र की पुनरावृत्ति करते हैं और क़ालीन के किनारे और फ़्रेम को मुख्य चित्र के असमान रंग से बुनते हैं। ख़ुरासान प्रांत के क़ाएन शहर में माही दरहम डिज़ाइन को आम तौर पर प्रफुल्लित करने वाले रंग की पृष्ठिभूमि पर बनाते हैं।

 पूर्वी ईरान के बीरजंद शहर के दक्षिणी भाग में मूद नामक गांव में क़ालीन के बुनकर माही दरहम की मुख्य डिज़ाइन के चारों ओर रेशम के सफ़ेद या फ़िरोज़ी रंग के धागे का इस्तेमाल करते हैं। मूद गांव और बीरजंद के बुनकर अपने क़ालीन पर माही दरहम डिज़ाइन के साथ साथ ज़्यादातर चकोतरे का चित्र बनाते हैं ताकि मछली के बार बार चित्र बनने से क़ालीन की डिज़ाइन उबाऊ न लगे।

माही दरहम डिज़ाइन वाले क़ालीन की समीक्षा से एक और तथ्य जो सामने आता है वह यह कि पूर्वी ईरान से जैसे जैसे पश्चिम ईरान की ओर बढ़ते हैं तो माही दरहम डिज़ाइन में बनने वाली मछली के चित्र का

आकार धीरे-धीरे छोटा होता जाता है। जैसा कि पूर्वी ईरान के क़ाएन, तुर्बत जाम और तुर्बत हैदरिया में माही दरहम डिज़ाइन वाले क़ालीन पर मछली के चित्र बड़े बने होते हैं जबकि पश्चिमी ईरान के कुर्दिस्तान में इसी डिज़ाइन के तहत मछली के बनने वाले चित्र छोटे होते हैं। वैसे माही दरहम डिज़ाइन के सबसे अच्छे क़ालीन ईरान के केन्द्रीय प्रांत के अराक शहर में बिने जाते थे किन्तु अब इस डिज़ाइन के क़ालीन नहीं बुने जाते। अलबत्ता इसी से मिलती जुलती एक डिज़ाइन है जिसे अराक वाले मुर्ग़ो माही डिज़ाइन कहते हैं। इस डिज़ाइन के तहत मछली के स्थान पर दो मुर्ग़ या मछली के साथ मुर्ग़ को एक हौज़ के चारों ओर चलते हुए चित्रित किया जाता है। पुराने समय के ईरान के सिक्कों पर भी यही चित्र छपा होता था।

ईरानी क़ालीन पर बुनी जाने वाली एक डिज़ाइन शेर के चित्र की है। इसका इतिहास पौराणिक कथाओं से मिलता है। ईरान में प्राचीन समय से ख़ास तौर पर फ़ार्स की खाड़ी के इलाक़ों में विभिन्न चीज़ों पर शेर के चित्र का चलन था। जैसा कि तख़्ते जमशीद के शेर के उभरे हुए चित्र, आपादाना महल की सीढ़ियों पर शेर का गाय से लड़ते हुए चित्र बना हुआ है। इसी प्रकार सासानी शासन काल की बहुत सी बुनी हुयी चीज़ों और बर्तनों पर शेर के चित्र बने हुए हैं। यहां तक कि अश्कानी और सासानी शासन काल की मोहरों पर भी शेर के चित्र बने हुए हैं।

 

पुरातनविदों का मानना है कि इनमें से ज़्यादार चीज़ों में शेर को राजशाही शान और सत्ता का प्रतीक दर्शाया गया है। इस बात की भी संभावना है कि मिथ्राइज़्म जैसे प्राचीन धर्म में शेर को सत्ता और प्रकाश तथा सूरज का प्रतीक माना जाता था अलबत्ता कुछ प्राचीन धर्मों में शेर को बुरी ताक़त का प्रतीक समझा जाता था। जैसा कि कलीले व दिमने की एक कहानी में शेर के हाथों गाय के मारे जाने की कहानी से इसविचार की प्राचीनता का अंदाज़ा होता है।

 क़ालीन के साथ साथ ईरान के लुरिस्तान प्रांत में हाथ से बुने हुए बहुत से कपड़ों और चीज़ों जानवरों के चित्र बनाए जाते हैं। ये चित्र फ़ार्स के प्राचीन अवशेषों पर बने चित्रों से बहुत मिलते जुलते हैं। इन चित्रों में सबसे ज़्यादा शेर के चित्र बनाए गए हैं और इस जानवर को हमेशा बड़ी शान के साथ और इसी प्रकार लड़ाई के विजेता के तौर पर चित्रित किया गया है। यह बिन्दु भी महत्वपूर्ण है कि ईरान के ज़्यादातर क़ालीन की मुख्य डिज़ाइन पर शेर या दो जानवरों के बीच लड़ाई के चित्र सबसे ज़्यादा बनाए गए हैं।

 

अंत में इस बिन्दु का उल्लेख ज़रूरी है कि क़ालीन पर चित्र बनाने के कारण के बारे में जो बातें पुरातनविद, समाजशास्त्री और इतिहासकार कहते हैं ज़रूरी नहीं हैं कि वह पूरी तरह सही हों। लेकिन इतनी बात तो विश्वास से कही जा सकती है कि क़ालीन पर बने चित्र उन लोगों की लिखित भाषा हैं जिनमें इस प्रकार के विचारों को चित्र, रंग और धागों के सहारे पेश करने की क्षमता हैं। ये वे लोग थे मानों उनके विचार एक जैसे थे। इस प्रकार हम देखते हैं कि आसमान, ज़मीन, पेड़ और पानी विभिन्न क्षेत्रों व संस्कृतियों में विभिन्न रूप में पेश किए गए जो हमें किसी हद से अपने पूर्वजों की दुनिया से परिचित कराते हैं।

ऐसी दुनिया जिसमें कलाकारों के मन में जानवरों का स्थान बहुत ऊंचा था।


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