सृष्टि के रहस्य- 2
दुनिया में बहुत से लोगों के सामने उनके जीवन में कई ऐसे प्रश्न आते हैं जिनका सामना अन्य लोगों को भी अपने जीवन में करना पड़ता है।
आम लोगों से लेकर बड़े-बड़े विचारकों तक के सामने कुछ ऐसे सवाल उनके जीवन में आते हैं जिनका जवाब सोच-विचार के बिना संभव नहीं है। इन सवालों में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या सृष्टि में कुछ एसी चीज़ें मौजूद हैं जो इस बात की ओर संकेत करती हैं कि इसका बनाने वाला एक ही है। इन बातों का जवाब आसमानी धर्मों ने स्पष्ट रूप में दिया है। रोचक बात यह है कि इस्लाम ने सबको सृष्टि में सोच-विचार का निमंत्रण दिया है। मनुष्य के इर्दगिर्द जो चीज़ें पाई जाती हैं वे हमको यह समझाने के लिए काफ़ी हैं कि सृष्टि का कोई बनाने वाला है और यह स्वंय अस्तित्व में नहीं आई है।
मनुष्य की सृष्टि में जो जटिलताएं पाई जाती हैं वे सदैव से विचारकों और चिंतकों के लिए सवाल का विषय रही हैं। मनुष्य का जन्म, उसका शारीरिक और मानसिक विकास तथा जन्म से लेकर मृत्यु तक चलने वाली प्रक्रिया के बारे में बहुत सी किताबें लिखी जा चुकी हैं। विद्वानों और वैज्ञानिकों का कहना है कि मनुष्य स्वयं में एक पहेली है। मनुष्य के शारीरिक अंगों का जितना अध्ययन किया जाता है वह वैज्ञानिकों को उतना ही आश्चर्य में डालता जाता है।
रोचक बात यह है कि मनुष्य के बारे में अबतक जितना भी शोध किया गया है वह सब अधिकतर उसके शरीर से ही संबन्धित हैं जबकि मनुष्य के मानसिक और आध्यात्मिक आयामों के बहुत से ऐसे पहलू हैं जो अभी भी अस्पष्ट हैं। केवल मानव ही नहीं बल्कि कई अन्य प्रकार के जीव-जंतु, वनस्पतियां और जीव संसार में जीवन व्यतीत करते हैं। इनमें से हरएक की अपनी कुछ विशेषताए हैं जिनका वर्णन करने से उनके महत्व को समझा जा सकता है। अगर मनुष्य, पशु-पक्षियों, वनस्पतियों और अन्य चीज़ों के बारे में ध्यानपूर्वक ढंग से सोचा जाए तो पता चलेगा कि इस बारे में पहले जो चीज़ें प्रचलित थीं उनमें आज इस बारे में किये जाने वाले शोध में बहुत अंतर पाया जाता है। सृष्टि मे पाए जाने वाले जीव-जंतुओं और अन्य चीज़ों के बारे में यदि यह पूछा जाए कि इनमें किसकी सृष्टि जटिल है तो यह कहना बहुत मुश्किल है कि वह कौन है?
आइए अब हम मनुष्य की सृष्टि के बारे में कुछ सोच-विचार करते हैं। मनुष्य के हाथों को काम करने के लिए, पैरों को चलने के लिए, आखों को देखने के लिए, कानों को सुनने के लिए, नाक को सूंघने के लिए, अमाशय को खाना हज़्म करने के लिए और ज़िगर को शरीर के भीतरी पदार्थों को शोधित करके विषैले पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने के लिए बनाया गया है।
शरीर, भोजन के माध्यम से अपने आप को सुरक्षित रखता है। खाना पहले अमाशय में जाता है। बाद में मेदा उसे हज़्म करता है। उसके बाद यह खाने दूसरे रूप में जिगर तक पहुंचता है। यह कार्य बहुत ही सूक्ष्म ढंग से अंजाम पाता है। इस प्रकार से हम देखते हैं कि शरीर के भीतर के अंग बहुत ही व्यवस्थित रूप में पाबंदी के साथ अपना काम करते रहते हैं। हो सकता है कि यह सोचा जाए कि यह सारे काम, प्रकृति के क्रियाकलाप हैं। अब यदि प्रकृति स्वयं इस जटिल काम से अवगत है तो मानो यह प्रकृति ही वह है रचयिता जिसे ईश्वर पर भरोसा रखने वाले मानते हैं। यह वही शक्ति है जिसके कई नाम है किंतु वह स्वयं में एक ही है। अब अगर प्रकृति स्वयं इस जटिल व्यवस्था से ख़ुद ही अवगत नहीं है और वह इसको सुरक्षित रखने या चलाने में सक्षम नहीं है तो फिर यह संभावना पाई जाती है कि प्रकृति के पीछे कोई एसी जानकार शक्ति है जो इस सृष्टि के संचालन में सक्षम है।
सृष्टि की आश्चर्यचकित करने वाली चीज़ों में से एक वे ज्ञानेंद्रियां हैं, जिनके माध्यम से मनुष्य अपने इर्दगिर्द की चीज़ों को समझता है। ईश्वर ने मनुष्य को पांच ज्ञानेद्रियां प्रदान की हैं। इन पांच इन्द्रियों में से एक आंख है जिससे वह चीज़ों को देखता है। अगर मनुष्य के पास आंखें न होतीं तो वह किस प्रकार से सृष्टि की सुन्दरता को देखता? इसी प्रकार से एक अन्य इंद्री, कान है जिससे वह आवाज़ों को सुनता है। इसी प्रकार से नांक है जो सूंघने का काम करती है।
इससे पता चलता है कि ईश्वर ने जो पांच इन्द्रियां मनुष्य को दी हैं उनका अलग-अलग काम है। इनके न होने की स्थिति में मनुष्य सृष्टि में पाई जाने वाली बहुत सी चीज़ों की जानकारी के बारे में वंचित रह जाता। इस बात को ऐसे समझा जा सकता है कि एक अंधे, बहरे, गूंगे या हाथों एवं पैरो से वंचित लोग, न जाने किन प्रकार की ईश्वरीय विभूतियों से लाभान्वित होने से वंचित रह जाते हैं। ऐसे लोग अपने इर्दगिर्द की चीज़ों के बारे में ही जानकारी नहीं रखते। ऐसे में कहा जा सकता है कि ईश्वर ने मनुष्य को पांच ज्ञानेन्द्रियां दी हैं वे बहुत ही उपयोगी एवं लाभदायक हैं।
मनुष्य की सृष्टि में विचार योग्य एक विषय यह है कि ईश्वर ने उसके कुछ अंग जोड़े में बनाए हैं जबकि कुछ अन्य जोड़े से नही हैं। जैसे हाथ, पैर, आंख, कान आदि। शरीर के जो अंग जोड़े के रूप में बनाए गए हैं उनका काम अलग है जबकि जो एकल हैं उनका काम अलग है। मनुष्य के शरीर के वे अंग जो जोड़े के रूप में नहीं बल्कि एक हैं उनमें से एक सिर है। सिर के बहुत से काम हैं। सिर के भीतर भेजा होता है जो विभिन्न प्रकार की परतों में छिपा रहता है। इस प्रकार वह हर प्रकार के ख़तरों से सुरक्षित रहता है। इन परतों के अतिरिक्त खोपड़ी की हड्डी, भेजे को हर प्रकार की क्षति से बचाए रखती है। इसके अतिरिक्त मनुष्य के सिर पर बाल होते हैं जो उसे गर्मी और ठंड से सुरक्षित करते हैं।
क्या ऐसे सूक्ष्मता से संपन्न प्राणी को बनाने में कोई सर्वशक्तिमान हस्ती नहीं है। क्या आपने यह कभी सोचा है कि किसने दिल को सीने के बीच में रखा है। इस प्रकार से सीने की हड्डियां, दिल की रखवाली करती हैं।
मानव की संरचना पर ध्यान देने से यह पता चलता है कि इसके बनाने में बहुत अधिक ध्यान व सूक्ष्मता बरती गई है। आधुनिक शोध के अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जिसने भी मनुष्य की रचना की है उसका ज्ञान पूरी मानव जाति के ज्ञान के कहीं ऊपर है और वह सर्वज्ञानी है।