Oct ०१, २०१८ १४:५३ Asia/Kolkata

इस समय एक पावन और आसमानी बंधन का समय आ गया है।

दो जवान महान ईश्वर की इच्छा के अनुसार और उसकी प्रसन्नता के लिए एक दूसरे का हाथ पकड़ कर जीवन के उच्च उद्देश्यों की ओर चलना और उसे प्राप्त करना चाहते हैं। सच में यह कितना मज़बूत और पवित्र बंधन है। इंसान की प्रवृत्ति जीवन साथी चाहती है। जीवन साथी के बिना इंसान स्वयं को अधूरा समझता है। महान ईश्वर हर एक को दूसरे के बिना पसंद नहीं करता है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने फरमाया है कि विवाह मेरी सुन्नत व परम्परा है और वह मुझसे नहीं है जिसने मेरी सुन्नत से मुंह मोड़ा और जिसने विवाह किया उसने अपने आधे धर्म को सुरक्षित कर लिया।

इंसान की ज़िन्दगी उतार- चढ़ाव से भरी है और उसके विभिन्न चरण हैं और उसके बहुत उच्च लक्ष्य भी हैं। इंसान के जीवन का लक्ष्य यह है कि वह स्वयं अपने अस्तित्व से और अपने आस- पास के इंसानों से आध्यात्मिक परिपूर्णता के लिए लाभ उठाये। क्योंकि बुनियादी तौर पर इंसान को इसी उद्देश्य के लिए पैदा किया गया है। इंसान उस हालत में दुनिया में आता है जब दुनिया में आने के लिए वह स्वतंत्र नहीं होता यानी अपनी इच्छा से वह दुनिया में नहीं आता है और धीरे- धीरे उसकी बुद्धि बढ़ती है और उसके अंदर चयन की शक्ति उत्पन्न हो जाती है। यह वही समय होता है जब इंसान को सही तरह से सोचना चाहिये, सही चयन करना चाहिये और उसी चयन के अनुसार चलना और आगे बढ़ना चाहिये।

जिस विवाह को महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने इंसान के लिए सुन्नत करार दिया है और इंसान की प्राकृतिक ज़रूरत भी है वह इंसान के लिए महान ईश्वर की एक अनुकंपा है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि महान ईश्वर अपने आसमानी आदेश में विवाह को अनिवार्य कर सकता था और समस्त इंसानों का आह्वान कर सकता था कि वह विवाह करें परंतु अपनी तत्वदर्शिता के अनुसार उसने विवाह को अनिवार्य करार देने के बजाये एक मूल्यवान चयन करार दिया। इस आधार पर जो इंसान विवाह नहीं करता है वह स्वयं को इस मूल्यवान चयन व चीज़ से वंचित कर लेता है। महान ईश्वर विवाह और संयुक्त जीवन को पसंद करता है। जो मर्द और औरत पूरा जीवन अकेले रहते हैं वह मानवीय समाज में अपरचित मनुष्य की भांति हैं। इस्लाम चाहता है कि परिवार समाज की इकाई की तरह हो।

यह बात सही है कि आज पूरी दुनिया गांव बन गयी है, लोग एक दूसरे से संपर्क और सूचना की दुनिया में हैं। यह सही है कि आज की दुनिया सूचनाओं की दुनिया है परंतु अब भी एसी पारम्परिक चीज़ें हैं जिनकी इंसान को आवश्यकता है। परिवार उनमें से एक है और इंसान को उसकी आवश्यकता है। आज के कार्यक्रम में हम इस्लामी परिवार की सुन्दरताओं और ईरानी परिवार की विशेषताओं की चर्चा करेंगे।

 

परिवार सामाजिक जीवन की एक इकाई है। वंश बढ़ाना और मानवता को बाकी रहने के लिए बच्चों के लालन- पालन के अलावा परिवार की आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सहित विभिन्न ज़िम्मेदारियां भी हैं और सामाजिक मूल्यों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानांतरित करने में परिवार महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। परिवार की जो सामाजिक स्थिति होती है उसके दृष्टिगत किसी सीमा तक परिवार के हर व्यक्ति की अपनी विशेष भूमिका होती है।

जब हम ईरानी परिवार की भूमिका की समीक्षा करते हैं तो पाते हैं कि ईरानी समाज के परिवर्तनों में परिवार महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और ईरान में सामूहिक एवं पारिवारिक जीवन की अपनी एक अलग विशेषता है और आज जो बहुत से पारिवारों एवं समाजों में समस्यायें पेश आ रही हैं वे ईरानी समाज में पेश नहीं आ रही हैं।

तेहरान विश्व विद्यालय में शैक्षिक एकेडमी के एक सदस्य डाक्टर हमीद रज़ा जलालीपूर ने तेहरान के 300 परिवारों पर अध्ययन करने के बाद घोषणा की है कि ईरानी समाज न केवल विघटित नहीं हो रहा है बल्कि इस समय परिवार ईरानी समाज की मज़बूत इकाई है और इस समय वह पारम्परिक स्वरूप से दूर होकर नागरिक व सभ्य समाज की दिशा में अग्रसर है। कुल मिलाकर परिवार वर्तमान स्थिति में पहुंचने से पहले विभिन्न चरणों को तय कर चुका है। पहले चरण में परिवार छोटा और कम उपयोगी होता है।

तेहरान विश्व विद्यालय में समाजशास्त्री डाक्टर आज़ाद अरमकी परिवार को जीवन का शून्य बिन्दु मानते हैं। इस दौर में परिवार छोटा और कम उपयोगी होता है क्योंकि परिवार के सदस्य यानी माता- पिता कम ज़िम्मेदारियों के साथ ज़िन्दगी गुज़ारते हैं परंतु धीरे- धीरे जैसे- जैसे परिवार बढ़ता है वैसे- वैसे परिवार की ज़िम्मेदारियों एवं उपयोगिता में वृद्धि होती- रहती है।

अध्ययनकर्ताओं का मानना है कि परिवार पहली सामाजिक इकाई है और धर्म, राजनीति और अर्थ व्यवस्था आदि परिवार के जारी रहने से अस्तित्व में आता और विस्तृत होता है। जब सामाजिक जीवन विस्तृत होता है तो माता- पिता, संतान और निकट संबंधी बहुत सी सामाजिक गतिविधियों में केन्द्रीय भूमिका निभाते हैं और लोगों की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति परिवार करते हैं।

जनसंख्या वाले ईरानी परिवार का स्वरूप एक बड़े परिवार का है और वह अब भी बहुत से ईरानियों के मस्तिष्क में बाकी है। एसे परिवार जिनके सदस्यों की संख्या में विवाह के बाद वृद्धि होती है और परिवार के समस्त सदस्य माता- पिता के घर में ही किसी प्रकार की समस्या के बिना एक दूसरे के साथ घुल मिलकर रहते थे। बड़े परिवारों में माता- पिता के अलावा बेटे, बेटियां, चाचा, चाची मामू ममानी और दादा- दादी भी एक साथ रहते थे। इस प्रकार के परिवार जहां सामाजिक संबंधों व संपर्कों के केन्द्र होते थे वहीं वे राजनीतिक एवं आर्थिक गतिविधियों के भी केन्द्र होते थे। जो काम होते थे उसे परिवार सुव्यवस्थित करते थे। बड़े परिवारों में घर की केन्द्रीय भूमिका माता- पिता निभाते थे। बेटे, पोते पोतियां और बहुएं माता- पिता के आदेशों का पालन करती थीं और अगर माता- पिता अधिक आयु होने की वजह से अपने दायित्वों का निर्वाह नहीं कर सकते थे तो बड़ा बेटा उनका स्थान ले लेता था और वही परिवार में माता- पिता की भूमिका निभाता था। लड़कियां विवाह के बाद माता पिता के घर से चली जाती हैं और बच्चे प्रायः वही कार्य करते थे जो उनके पिता करते थे। इस प्रकार के परिवारों को ईरान सहित विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में देखा जा सकता है।

मशहदी कासिम एक ईरानी हैं जो लगभग 6 दशक से अराक नगर के एक गांव में रहते हैं। इस समय उनकी उम्र 75 साल है और उनके सात बच्चे हैं और उनकी दो लड़कियां विवाह करने के बाद अपने पिता के घर से चली गयीं। वह अपने बेटों और बहुओं के साथ एक बड़े घर में रहते हैं। जिस घर में वह रहते हैं उसमें आंगन भी है। जब कोई बड़ा फैसला लेना होता है तो घर के समस्त सदस्य इकट्ठा होते हैं और विचारों के आदान- प्रदान के बाद वे फैसला लेते और उस पर अमल हैं। घर की महिलांए कार्य आदि में पुरुषों का साथ देतीं होती हैं। अलबत्ता घर के जो काम होते हैं उसे घर की महिलाएं अंजाम देती हैं और माता, दादी, मौसी, या चाची की मुख्य व केन्द्रीय भूमिका होती है।

यहां इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि पिता के घर में जो लड़के विवाह करके रह जाते हैं उस घर के कुछ कार्य उनसे विशेष हो जाते हैं। इस प्रकार के परिवार के सदस्य किसी सीमा तक स्वतंत्र भी होते हैं और वे घर की परम्परा और संस्कार के बाकी रखने के साथ एक प्रकार से स्वतंत्र ढंग से भी रहना चाहते हैं। इसके बाद वाले चरण में परिवार और विस्तृत रूप धारण करता है और अगले कार्यक्रम में इस प्रकार के ईरानी परिवारों से आपको परिचित करायेंगे परंतु आज के कार्यक्रम में हम संयुक्त जीवन के कुछ बिन्दुओं को बयान करना चाहते हैं।

अच्छे जोड़े वे हैं जो एक दूसरे को अच्छी तरह समझते हैं। उनके बीच किसी प्रकार का अहंकार नहीं होता है और उनके बीच मौजूद प्रेमपूर्ण व स्नेहिल संबंध जीवन को जारी रखने के लिए उन्हें कारण, ऊर्जा और खुशी प्रदान करता है। इस बात को ध्यान में रखना चाहिये कि संयुक्त जीवन आरंभ होने से पहले आपके जीवन साथी के परिवार और दोस्त थे। यह सही है कि अब प्राथमिकता आपके साथ जीवन करने में है किन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि वह दूसरों की अनदेखी कर दे। क्या आप उस परिवार या दोस्त को छोड़ने या उसकी अनदेखी करने के लिए तैयार हैं जो वर्षों आपके साथ रहा हो? इस बात को ध्यान में रखना चाहिये कि दूसरों के सम्मान में आपका सम्मान नीहित है यानी अगर आप दूसरों का सम्मान करेंगे तो दूसरे आपका सम्मान करेंगे और किसी की निजी जीवन की सीमा को पार मत कीजिये। इस शैली के माध्यम से अर्थहीन बहसों के बजाये आप एक दूसरे की इच्छाओं का सम्मान करके अपने जीवन को अधिक आनंदमयी बना सकते हैं।