ईरानी संस्कृति और कला - 13
ईरान के विशाल भुगोल में न केवल वर्तमान ईरान, बल्कि ग्रेटर ख़ुरासान, वर्तमान अफ़ग़ानिस्तान का एक भाग और मेसोपोटामिया का इलाक़ा शामिल होता था।
इस्लाम से पहले यद्यपि क़बीलों की रूची सादा जीवन व्यतीत करने में ही होती थी, इसके बावजूद ईरान में तेज़ी से शहरीकरण हो रहा था।
हख़ामनी, सलूकी, सासानी और अब्बासी शासनलकाल में ईरान में शहरीकरण हुआ और महत्वपूर्ण आवासीय क्षेत्रों का निर्माण हुआ। उस सभ्यता के जो नमूने अभी बाक़ी हैं, उनमें सड़कों की व्यवस्था, रास्तों का अन्य क्षेत्रों से जैविक संबंध और शहरों के विजुअल इफ़ैक्ट पर ध्यान दिया जाता था। इन शहरों में चौक, दरवाज़े, पुल, नदी, बाज़ार, मस्जिद और स्कूल बनाए जाते थे यहां तक कि दुश्मनों के हमलों से बचने के लिए भी योजना होती थी। इसी प्रकार, शहर के चारो ओर नदी से निकालकर नहरें बनाई जाती थीं।
हुसैन सुल्तान-ज़ादे ने ईरान की ऐतिहासिक धरोहर नामक किताब में शहरों की सड़कों और रास्तों के बारे में लिखा है, शहर में अन्य क्षेत्रों की भांति संपर्क नेटवर्क भी व्यवस्थित होता था। इसलिए कि रास्तों के साथ ही शहर के अन्य तत्व समाज और संस्कृति के मुताबिक़ होते थे। ईरान के ऐतिहासिक शहर, आज के अनेक शहरों की भांति वर्तमान ज़रूरतों को ध्यान में रखकर नहीं बनाए जाते थे, बल्कि सामान्य रूप से समाज की भौतिक एवं आध्यात्मिक ज़रूरतों को ध्यान में रखकर चरणबद्ध रूप से उनका निर्माण किया जाता था।
सुल्तान-ज़ादे आगे चलकर ईरान के कई प्राचीन एवं ऐतिहासिक शहरों से लिए गए नमूनों का उल्लेख करते हैं, शहर के अंत तक जाने वाली असली सड़क के किनारे और शहर के प्रवेश द्वार के आसपास एक क़ब्रिस्तान होता था। सबसे बड़े क़ब्रिस्तान में किसी बड़ी धार्मिक हस्ती का मक़बरा बनाया जाता था। उसके बाद, शहर के अंदर और असली सड़के के साथ साथ बाज़ार और चौक बनाए जाते थे और वहीं से विभिन्न मोहल्लों तक जाने के लिए गलियां निकलती थीं।
ईरान के छोटे बड़े शहरों में बाज़ार को संपर्क का महत्वपूर्ण मार्ग समझा जाता था। जामा मस्जिद और अन्य बड़ी मस्जिदें, मदरसे, मुसाफ़िरख़ाने और अन्य व्यापारिक केन्द्र बाज़ार के आसपास बनाए जाते थे। वास्तव में बाज़ार कनेक्टिविटी, आर्थिक और सांस्कृतिक केन्द्र होने के साथ साथ सामाजिक जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।
बड़े शहरों में जैसे कि इस्फ़हान, तबरेज़, शीराज़ और तेहरान में कुछ सार्वजनिक स्थान, उदाहरण स्वरूप मस्जिदें, स्कूल, स्नानगृह और मुसाफ़िरख़ाने आम तौर से शहर की असली सड़क पर बनाए जाते थे। हालांकि इनका स्थान शहर के ढांचे के मुताबिक़ होता था। इसी प्रकार एक दूसरे से जुड़ी हुई या एक दूसरे से फ़ासले पर बनी हुई इमारतें हुआ करती थीं।
शहर के बाहर की व्यवस्था का भी हम यहां उल्लेख करेंगे। अधिकांश ऐतिहासिक शहरों में कि जहां घनी आबादी होती थी, इमारतों का बाहरी भाग सादा और एक जैसा होता था। इसलिए बाहर से भीतर की वास्तुकला का अंदाज़ा लगाना कठिन होता था। अधिकांश शहरों में विशेषकर दक्षिणी और केन्द्रीय ईरान में घरों की बाहरी सतह को ईंटों या मिट्टी से ढांपा जाता था। इस तरह से शहर के अधिकांश घरों में एकरुपता पाई जाती थी। स्थानीय निर्माण सामग्री का इस्तेमाल किया जाता था, जिससे शहर के दृश्य में एकरूपता पैदा हो जाती थी। टाइलें और चूना ऐसी महत्वपूर्ण निर्माण सामग्रियां हैं जिन्हें कुछ इमारतों विशेष रूप से धार्मिक इमारतों और मदरसों के निर्माण में इस्तेमाल किया जाता था।
घनी आबादी वाले शहरों में गली कूचे तंग होते थे, लेकिन असली रास्ते चौड़े हुआ करते थे। इस्फ़हान में चहार बाग़ और तेहरान में अलाउद्दीन सड़कें इसी तरह की थीं। ईरान के विभिन्न शहरों में जामा मस्जिद की इमारत या महत्वपूर्ण मक़बरे एक ही तरह के डिज़ाइन के होते थे। इन इमारतों में कई प्रवेश द्वार होते थे और छोटे शहरों में लोग एक स्थान से दूसरे स्थान जाने के लिए वहां से गुज़रते थे। मस्जिदों के प्रवेश द्वार के निकट आर्थिक व सामाजिक सरंचनाएं स्थित होती थीं। तेहरान में मस्जिदे इमाम, शीराज़ में जामा मस्जिद अतीक़ और क़ुम एवं मशहद में बने मक़बरे इस तरह की इमारतों के नमूने हैं।
धार्मिक स्थलों के प्रवेश द्वार या कक्ष में विशेष अवसरों पर लोग एकत्रित होते थे। इस तरह के दृश्य आज आधुनिक सार्वजनिक इमारतों के प्रवेश कक्ष में देखे जा सकते हैं। मेहमानों का स्वागत और उनकी विदाई ईरानी लोगों की एक प्राचीन परम्परा है। इस परम्परा के दौरान मेहमानों का बहुत अधिक सम्मान किया जाता है और सुन्दर शब्दों का आदान-प्रदान किया जाता था। इस परम्परा को अधिकांश शहर में प्रवेश के लिए बनाई गई इमारतों के परिसर में अंजाम दिया जाता था। यहां तक कि जब भी कोई यात्रा पर जाने का इरादा करता था, तो यह रस्म शहर के प्रमुख द्वार तक बड़े पैमाने पर अदा की जाती थी। हालांकि औपचारिक रूप से यह स्वागत और विदाई की रस्म तीर्थ यात्रा के अवसर पर अदा की जाती थी, जिसमें परिजन, संबंधी और दोस्त शामिल होते थे।
कुल मिलाकर, प्राचीन एवं ऐतिहासिक शहरों में सार्वजनिक स्थान काफ़ी चौड़े और खुले होते थे। इन इलाक़ों का फ़र्श पत्थर का होता था, जो अधिकांश लंबा आयताकार होता था और चौक पर आयताकार में बदल जाता था। इस्फ़हान में मैदाने नक़्शे जहान, इस तरह के डिज़ाइन का स्पष्ट नमूना है। यह एक विशाल चौक है, जिसका क्षेत्रफल 85 हज़ार वर्ग मीटर है, जिसका निर्माण पोलो खेलने के लिए किया गया था।
इस चौक के आसपास, दो मस्जिदें, एक महल और लम्बा बाज़ार बनाया गया था, जिससे यह एक संग्राहलय में परिवर्तित हो गया है। इसी प्रकार, उससे थोड़ी ही दूरी पर चहार बाग़ की सड़क है, जिसे ज़ायंदे रूद के दोनों किनारों पर बनाया गया है जो शहर के दो भागों को आपस में जोड़ती है। वास्तव में कहा जा सकता है कि हौरिज़ॉन्टल एवं वर्टिकल चौराहे, ईरान के ऐतिहासिक शहरों की वास्तुकला का महत्वपूर्ण भाग होते थे।