Oct ०७, २०१८ १२:१३ Asia/Kolkata

ईरान की इस्लामी क्रांति, वैचारिक क्षेत्र में क्रांति की विचारधाराओं के समीकरणों में परिवर्तन का कारण बनने के साथ ही साथ क्रांतिसयों के बारे में अपनी विशेष विचारधाराएं रखने वालों के विचारों में परिवर्तन और संतुलन का कारण भी बनी।

क्रांति के बारे में विचारधाराएं पेश करने वाली एक अहम हस्ती, श्रीमति थेडा स्कोचपोल हैं जिनके विचारों में इस्लामी क्रांति के बाद मूल परिवर्तन आए। वे वर्ष 1947 में अमरीका के मिशिगन राज्य में पैदा हुईं और वर्ष 1976 में उन्होंने हारवर्ड विश्वविद्यालय से डाक्ट्रेट की डिग्री हासिल की।

श्रीमति थेडा स्कोचपोल ने अपनी किताब "सरकारें और सामाजिक क्रांतियां" (States and social revolutions) में फ़्रान्स, चीन और रूस की तीन बड़ी क्रांतियों की समीक्षा की है। उन्होंने इस किताब में लिखा है कि कुछ ढांचागत तत्वों और कारणों के परिणाम स्वरूप क्रांतियां आती हैं और नेता, जनता और विचारधारा, क्रांतियों का मुख्य कारण नहीं है बल्कि उनकी भूमिका आंशिक होती है। वास्तव में श्रीमति स्कोचपोल का मानना है कि क्रांतियां इरादों से नहीं बल्कि ख़ुद बख़ुद आ जाती हैं।

इस संबंध में उन्होंने लिखा है कि मेरे विचार में सामाजिक क्रांतियां, क्रांतिकारी आंदोलनों के माध्यम से अस्तित्व में नहीं आई हैं जो मौजूदा व्यवस्था को गिराने और नई व्यवस्था को स्थापित करने के लिए एक वैचारिक नेता तथा , लोगों को एकजुट करती हैं। क्रांतिकारी नेतृत्व अधिकतर क्रांति से पहले की सरकारों के गिरने तक या तो मौजूद नहीं था या फिर राजनैतिक दृष्टि से हाशिये पर था। श्रीमति स्कोचपोल ने इसी तरह अपनी एक अन्य किताब में लिखा है कि हमें क्रांति के नेताओं को उन राजनितिज्ञों की दृष्टि से देखना चाहिए जो सरकार की सत्ता हाथ में लेने के इच्छुक हैं। इसी तरह क्रांति के फैलने की प्रक्रिया की केवल वैचारिक दृष्टि से समीक्षा नहीं करनी चाहिए बल्कि क्रांति के अस्तित्व में आने की शैली, क्रांति की विषय वस्तु और पिछली सरकार से उसकी कुछ संस्थाओं के संपर्क पर अधिक ध्यान देना चाहिए क्योंकि ये सब, क्रांति के नेताओं को अधिक सीमित करने का कारण बनते हैं।

 

एक अन्य बिंदु जिसे थेडा स्कोचपोल पेश करती हैं, यह है कि क्रांतियों का अस्तित्व में आने का मुख्य कारण अधिकतर आर्थिक होता है। उनका मानना है क्रांतियों की आर्थिक जड़ें होती हैं और ये कृषि समाजों में आती हैं जो विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय दबाव में होते हैं और इस विकास में सरकार, ख़र्चों की आपूर्ति के लिए जनता पर दबाव डालती है। यह दबाव अंततः लोगों की अप्रसन्नता और विद्रोह का कारण बनता है। अब अगर सरकार उसे कुचलने में विफल रहती है तो यह क्रांति का रूप धारण कर लेता है।

श्रीमति स्कोचपोल इस संबंध में लिखती हैं कि क्रांतियां, उन कृषि समाजों में आती हैं जिनकी सरकारें पूंजीवादी देशों के दबाव या सैन्य पराजय के कारण नवीनीकरण के लिए क़दम उठाती हैं लेकिन उनमें विदेशी दबाव का मुक़ाबला करने के लिए धनवानों या ज़मींदारों से आर्थिक संसाधनों की आपूर्ति की क्षमता नहीं होती। इसके परिणाम स्वरूप अक्षम सरकार, किसानों को उठ खड़े होने का उचित अवसर प्रदान कर देती है और नेता किसानों के विद्रोहों को संगठित कर देते हैं और क्रांति शुरू कर देते हैं। इस प्रकार नई व्यवस्था अस्तित्व में आ जाती है।

 

ईरान में क्रांति आने के बाद श्रीमति थेडा स्कोचपोल के विचारों में बुनियादी परिवर्तन आ गया। उन्होंने ईरान की इस्लामी क्रांति के बारे में लिखी गई अपनी एक किताब में इस बात को स्वीकार किया कि ईरान की क्रांति के बारे में उनके विचार, कई कोणों से सही नहीं हैं और वे इसे अपनी थ्योरी के विपरीत पाती हैं। उन्होंने लिखा है कि ईरान की क्रांति कई आयामों से मेरे लिए असाधारण और विचारों के विपरीत है। निश्चित रूप से यह क्रांति एक प्रकार से सामाजिक क्रांति है और इस क्रांति के अस्तित्व में आने से फ़्रान्स, रूस और चीन की क्रांतियों के बारे में मैंने जो समीक्षाएं और भविष्यवाणियां की थीं वह ग़लत सिद्ध हो गईं।

उन्होंने शिया धर्म और ईरान की क्रांति के नेतृत्व की भूमिका पर ध्यान दिया और चीन, फ़्रान्स व रूस की क्रांतियों के बारे में अपने विचारों के विपरीत इस बात को स्वीकार किया कि ईरान की क्रांति अपने आप नहीं आई बल्कि जनता और नेताओं ने सोच समझ कर और गंभीरता से क्रांति की आधार शिला रखी। उन्होंने यह भी कहा कि अगर पूरे इतिहास में कोई क्रांति सोच समझ कर आई है तो ईरान की क्रांति है। श्रीमति थेडा स्कोचपोल ने लिखा कि वास्तव में अगर इतिहास में कोई क्रांति ऐसी है जो लोगों के एक सामाजिक आंदोलन के माध्यम से सोच समझ कर पिछली सरकार को गिराने के उद्देश्य से आई है तो निश्चित रूप से वह शाह के ख़िलाफ़ ईरानियों की क्रांति है। वर्ष 1979 तक ईरानी समाज के सभी वर्ग शिया इस्लाम के नेतृत्व में एकजुट हो गए और वे एक वरिष्ठ शिया धर्मगुरू इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में शाह के ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए।

श्रीमति थेडा स्कोचपोल के विचारों में आने वाला एक अन्य परिवर्तन, जो ईरान की इस्लामी क्रांति से प्रभावित है, यह है कि उन्होंने क्रांतियां आने के ढांचागत प्रभावों के संबंध में अपने विश्वास को त्याग दिया और इस्लामी क्रांति के संबंध में अपने विचारों को संतुलित किया। वे ईरान की क्रांति के तत्वों को मॉडर्न दलों की गतिविधियों में नहीं बल्कि सांस्कृतिक कारकों में खोजती हैं। अपने पिछले विचारों के विपरीत वे ईरान में आने वाली क्रांति में राजनैतिक दलों व गुटों को प्रभावहीन मानती हैं। वे कहती हैं कि ईरान की क्रांति में मॉडर्न दलों का स्थान सांस्कृतिक संगठनों ने ले लिया और वे शाह के मुक़ाबले में प्रतिरोध के केंद्रों में बदल गए।

 

श्रीमति थेडा स्कोचपोल लिखती हैं कि ईरान के अनुदाहरणीय मामले में क्रांति आई लेकिन यह राजनैतिक मंच के किसी मॉडर्न क्रांतिकारी दल के हाथों नहीं आई। दूसरे शब्दों में यह क्रांति न तो मुस्लिम छापामारों के हाथों आई, न मार्क्सवादी पार्टी के हाथों आई और न धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रीय लिब्रल मोर्चे के हाथों आई बल्कि इसके विपरीत ईरान की क्रांति सांस्कृतिक स्वरूपों वाले उन संगठनों के समूह द्वारा आई जो पूरी तरह से सामाजिक व नागरिक मैदानों में जगह बनाए हुए थे और ये मैदान शाह के मुक़ाबे में जन प्रतिरोध के केंद्रों में बदल गए। इस आधार पर थेडा स्कोचपोल, ईरान की क्रांति में शिया इस्लाम को सांस्कृतिक व संगठनात्मक स्रोत के रूप में देखती हैं और लिखती हैं कि शिया इस्लाम ने संगठनात्मक दृष्टि से भी और सांस्कृतिक दृष्टि से भी ईरान की क्रांति में निर्णायक भूमिका निभाई है।

श्रीमति थेडा स्कोचपोल कहती हैं कि अगर संस्कृति और संपर्क का नेटवर्क इतिहास के एक विशेष मोड़ पर एक दूसरे से मिल जाएं तो वे चेतनापूर्ण क्रांतिकारी आंदोलन उत्पन्न कर सकते हैं, जैसा कि ईरान की क्रांति में हुआ। वे कहती हैं कि संस्कृति और संपर्क का नेटवर्क अलग-अलग जनक्रांति की प्रक्रिया उत्पन्न नहीं करते लेकिन अगर इतिहास का कोई मोड़ ऐसा हो जहां दोनों का संगम हो जाए, इस प्रकार से कि एक कमज़ोर सरकार को विरोधी सामाजिक गुटों का सामना करना पड़े जो स्वाधीनता और स्वतंत्र आर्थिक स्रोतों के स्वामी हों और उनके बीच शिया इस्लाम में पाए जाने वाले संपर्क के मज़बूत नेटवर्क भी हों तो ये दोनों तत्व एक चेतनापूर्ण क्रांति ला सकते हैं।

 

कार्यक्रम के अंत में हम यह बिंदु पेश करना चाहते हैं कि श्रीमति थेडा स्कोचपोल ने ईरान की इस्लामी क्रांति के बारे में अपने विचारों के ग़लत होने की बात स्वीकार की लेकिन इसी के साथ उन्होंने ज़मींदारों की क्रांति के विचार का बचाव करने की भी कोशिश की लेकिन इस प्रकार की सरकार ईरान की इस्लामी क्रांति की सही तस्वीर पेश नहीं कर सकती क्योंकि इस स्थिति में यह विचार इस तरह की दूसरी सरकारों के बारे में भी सही होना चाहिए जबकि दूसरी सरकारों में ऐसी क्रांति नहीं आई। कुल मिला कर क्रांतियों के ढांचे के बारे में श्रीमति थेडा स्कोचपोल की विचारधारा चाहे बदली हो या न बदली हो, इस्लामी क्रांति के बारे में उनके विचार अवश्य बदल गए हैं। (HN)

 

टैग्स