ईरानी संस्कृति और कला-15
मनुष्य की मूल आवश्यकताओं में एक, घर है।
रोटी, कपड़ा और मकान मनुष्य की मौलिक आवश्यकताए हैं। मकान इनमें से से तीसरी और बहुत ही महत्वपूर्ण आवश्यकता है। यह एसी आवश्यकता है जिसकी पूर्ति के लिए मानव लगातार प्रयास करता है। अपने घर में मनुष्य को विशेष प्रकार की शांति का आभास होता है। घर एसी चीज़ है जिसमें मनुष्य अपनेपन का एहसास करता है। यह वह स्थान है जहां पर मनुष्य अकेला या परिवार के साथ अपनी इच्छानुसार जीवन गुज़ारता है। घर ऐसा स्थान है जहां पर व्यक्ति अकेले या दूसरों के साथ हर स्थिति में रह सकता है। घर, मनुष्य के लिए संसार में सबसे सुरक्षित स्कान होता है। फ़्रैंसियन बैगिन का कहना है कि घर रहने के लिए होता है न कि देखने के लिए। वे कहते हैं कि घर की उपयोगिता उसके बाह्य रूप से बहुत अधिक महत्व रखती है।
परिवार के साथ घर का सही अर्थ पता चलता है। परिवार, समाज की सबसे छोटी इकाई है। पूर्वी समाजों में परिवर को बहुत महत्व दिया जाता रहा है। घर ऐसा स्थान है जहां पर परिवार के सदस्यों के व्यक्तित्व बनते हैं। प्राचीनकाल से इन्सानों की पहचान उनके परिवारों से हुआ करती थी। ईरानी की पारंपरिक वास्तुकला शैली में घरों का विशेष महत्व रहा है।
ईरान की भवन निर्माण शैली विगत से सांस्कृति, परंपराओं और भौगोलिक स्थिति के अनुकूल रही है जिसमें धार्मिक आस्था की भी छाप दिखाई देती है। पुराने ज़माने में ईरान के शिल्पकारों का प्रयास घर के भीतरी भाग को सुसज्जित करने में रहता था। वे लोग घर के बाहरी रूप को कोई विशेष महत्व नहीं दिया करते थे। उस ज़माने में घर के भीती भाग को इसलिए अधिक सुसज्जि किया जाता था क्योंकि घरवालों का अधिकतर काम इसके भीती भाग से होता था न कि बाहरी भाग से।
ईरान के उन पुराने शहरों में आज भी आपको एसे घर देखने को मिल जाएंगे जिनका प्रवेश द्वार लकड़ी का होता था। एसे घरों में सामान्यतः खिड़कियां नहीं होती थीं। इस प्रकार के प्रवेष द्वार से मनुष्य एक साधारण से घर में दाख़िल होता है। यह प्रवेष द्वार एक गलियारे से मनुष्य को घर के आंगन तक ले जाता है। यह गलियारा छतदार होता है जिसपर पत्थर लगे होते हैं। गलियारे में 90 डिग्री के एंगिल से आंगन का कोई हिस्सा दिखाई नहीं देता। जैसे ही हम गैलरी के अंत में पहुंचते हैं हमें बड़ा सा आंगन दिखाई देता है जिसके चारों ओर कमरे और हाल बने होते हैं जिनमें खिड़कियां बनी हैं। आंगन का दृश्य बहुत ही मनमोहक होता है। यह होती थी प्राचीन ईरानी घरों की विशेषताएं। घर मे आने वाला यदि कोई जानने वाला होता है तो उसे सीघे घर में ले जाते हैं और अगर अंजान होता है तो उसे बैठक मे बिठाया जाता है।
पुराने ज़माने में ईरान में घरों के आंगन इस प्रकार के बनाए जाते थे जहां अधिक से अधिक धूप आती हो। इस प्रकार के आंगन में जहां पर मनुष्य तेज़ हवाओ से सुरक्षित रहता है वहीं धूप का पूरा आनंद भी ले सकता है। आंगनों को वर्गाकार या आयताकार बनाया जाता था। कहीं पर आंगन आठ कोणीय भी होते थे। इनको बाहरी सतह से लगभग आधा मीटर नीचे की ओर बनाया जाता था ताकि गर्मी के मौसम में वहां ठंडक रहे। आंगन के बीच में आयताकार हौज़ बनाया जाता था जो कभी-कभी विषमकोणीय होता था। इस हौज़ में ठंडा और शीतल जल भरा रहता था। यह हौज़ घर को विशेष प्रकार की सुन्दरता प्रदान करता था।
घर के आंगन के बीच में बने हौज़ के चारों ओर, जो घर के स्वीमिंगपूल की हैसियत रखता था, छोटी-छोटी क्यारिंया बनाई जाती थीं जिनमें छोटे-छोटे पेड़ लगे होते थे। इनमें फूल भी होते थे। यह पेड़ धर के लिए छाया भी उपलब्ध कराते थे। इन्ही घरों में हौज़ पर पत्थर भी लगाए जाते थे। हौज़ में पानी की निकासी के उद्देश्य से किनारे की ओर एक छेद बनाया जाता था। इस प्रकार के हौज़ के पानी को थोड़े-थोड़े समय के बाद बदल दिया जाता था जिससे पानी हमेशा साफ दिखाई देता था। जिस घर के हौज़ का पानी जितना साफ़ और स्वच्छ होता था उस घर का आंगन उतना ही सुन्दर देखाई देता था।
ईरानी घरों में सामान्यतः दो आंगन हुआ करते थे। घर के पहले वाले आंगन के किनारे ताक़ बने होते थे। आंगन में कुछ चबूतरे भी होते थे जिसपर घर के सदस्य बैठते थे। समाज के धनवान लोगों के घरों के पहले आंगन को मेहमानों की आवभगत के लिए विशेष किया जाता था। इसमें एक बैठक होती थी जिसमें मेहमानों का अतिथि सत्कार किया जाता था। बैठक के दरवाज़े लकड़ी के होते थे जिनपर छोटे-छोटे शीशे लगे रहते थे। बैठक के दरवाज़े आंगन में खुलते थे।
घर का यह भाग एक गैलरी के माध्यम से भीतर वाले आंगन से मिलता है। भीतरी आंगन, सामान्यतः आयताकार होता था जिसके चारों ओर कमरे, हाल, दालान और गलियारे पाए जाते थे। इस हिस्से को घरवाले प्रयोग करते थे। बाहर वाले लोग यहां पर नहीं आ सकते थे। यह हिस्सा केवल घरवालों से ही विशेष होता था। गर्मी के मौसम में आंगन में लकड़ी के तख़्त डाल दिये जाते थे। शाम के समय घर के लोग तख़्त पर आकर बैठते थे और लंबे समय तक वहां पर रहते थे। बहुत से अवसरों पर गर्मियों के मौसम में घर की छत को सोने के लिए प्रयोग किया जाता था। ऐसा सामान्यतः मरूस्थली क्षेत्रों में होता था।
ईरान की पारंपरिक वास्तुकला के गुरू दिवंगत "मुहम्मद करीम पीरनिया" इस बारे में कहते हैं कि ईरानियों के निकट जीवन को विशेष महत्व दिया जाता था। ईरानियों का मानना था कि निजी जीवन को महत्व देना उसको सम्मान देने के अर्थ में है। वे कहते हैं कि ईरानी घरों के प्रवेश द्वार आपको उनके निजी जीवन तक ले जाता है। घर के प्रवेश द्वार पर दो चबूतरे से बने होते थे जिनको कभी-कभी विश्राम के लिए प्रयोग किया जाता था। प्राचीनकाल में ईरानी घरों के दरवाज़ों पर खटखटाने के लिए जो कुंडी लगी होती थी वह दो प्रकार की थी। इनमे से एक महिलाओं के लिए होती थीं और दूसरी पुरुषों के लिए। जो कुंडी छोटी होती थी वह महिलाओं के लिए थी जबकि जो भारी होती थी उसे पुरूष प्रयोग करते थे। इस प्रकार से घर के अंदर वालों को यह पता चल जाता था कि दरवाज़े के बाहर कौन है।
घर की दीवारें सामान्यतः कच्ची ईंटों से बनी होती थीं। उस काल में भवन निर्माण मैटिरियल में कच्ची ईंटों का अधिकतर प्रयोग किया जाता था। कच्ची ईंटों के अतिरिक्त मिट्टी और भूसे को भी प्रयोग किया जाता था। कच्ची ईंटों को भी अलग-अलग प्रकार से बनाया जाता था। कहीं-कहीं पर कच्ची ईंटों को घर की साज-सज्जा के लिए भी प्रयोग किया जाता था। गर्म इलाकों के तटीय क्षेत्रों में घरों की छतों में लकड़ी का प्रयोग किया जाता था। छतों को बनाते समय लकड़ी की शहतीर बनाकर छत पर रखी जाती थी और बाद में उसपर मिटटी या लकड़ी के तख़्ते रखे जाते थे। कैस्पिन सागर के तटवर्ती क्षेत्रों में अधिक आद्रता के कारण मकानों की छत बनाते समय छत में लकड़ी की शहतीर लगाने के बाद तारकोल या डामर का भी प्रयोग किया जाता था ताकि वह पानी को रोक सके।
ईरान के पुराने घरों में दरवाज़े लकड़ी के ही होते थे जिनपर शीशेकारी की जाती थी। घरों की खिड़कियां, आंगन में खुलती थीं। इनपर रंग बिरंगे शीशे लगे होते थे। इस प्रकार से खिड़कियां बहुत ही सुन्दर दिखाई देती थीं।
एतिहासिक प्रमाणों से पता चलता है कि एक समय में ईरान में इमारतों की बाहरी दीवार को कच्ची या पक्की ईंट और पत्थरों से तैयार किया जाता था जबकि अंदर की दीवारों पर चूने का काम होता है। धीरे-धीरे अधिकतर इमारतों में साधारण ईंटों के बजाए रंगीन ईटों और चमकदार टाइलों का प्रयोग होने लगा। इस प्रकार ईंट और टाइलों को मिला कर इस्तेमाल करने का प्रचलन बढ़ता गया और चूने पर पेंटिंग के काम में व्यापकता आती गई। इमारतों की डिज़ाइनिंग और निर्माण में ज्योमिति का अधिक से अधिक प्रयोग किया जाने लगा। इस शैली में इमारतें काफ़ी बड़े आकार में बनाई गईं जो पहले की तुलना में बेजोड़ हैं।