फ्रांस में विरोध प्रदर्शन
वर्ष 2008 में आर्थिक एवं वित्तीय संकट के बाद आर्थिक मंदी, बेरोज़गारी में वृद्धि और फ्रांस को बजट घाटे जैसी विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना रहा है।
फ्रांस के दक्षिण पंथी राष्ट्रपति निकोला सारकोज़ी और फ्रांसवां ओलांद जैसे उदारवादी पूर्व राष्ट्राध्यक्षों ने इस देश की आर्थिक स्थिति के बेहतर होने, बेरोज़गारी को कम करने और बजट घाटे से मुकाबले के संबंध में बहुत वादे किये थे परंतु इस संबंध में उन्हें कोई ध्यानयोग्य सफलता नहीं मिली।
वर्ष 2017 में फ्रांस में राष्ट्रपति पद के लिए जो चुनाव हुए थे उसमें दो मुख्य प्रतिस्पर्धी थे। एक स्वतंत्र उम्मीदवार एमानोएल मैक्रां और दूसरी अतिवादी प्रत्याशी मारिन लिपेन थीं। इन दोनों प्रत्याशियों ने भी काफी नारे लगाये थे कि वे फ्रांस की आर्थिक स्थिति को अच्छा बना देंगे और इस मामले पर उन्होंने काफी ध्यान केन्द्रित किया था। 2017 के मई महीने में जब एमानोएल मैक्रां फ्रांस के राष्ट्रपति बन गये तो उन्होंने अपने दृष्टिगत आर्थिक योजनाओं व कार्यक्रमों में सुधार आरंभ किया। उन्होंने अपने दृष्टिगत जो सुधार कार्य किया उनमें से एक श्रम कानून में सुधार था और इसका लक्ष्य पूंजी निवेश को अधिक करना था और उसके परिणाम में रोज़गार में वृद्धि होती किन्तु इस कार्य के नतीजे में कार्य कराने के मालिकों की अपेक्षा मज़दूरों और कर्मचारियों की स्थिति कमज़ोर हो रही थी इसलिए मैक्रां को बड़े पैमाने पर लेबर यूनियनों के विरोधों का सामना करना पड़ा। साथ ही मैक्रां ने बजट घाटे को कम करने लिए टैक्सों को अधिक कर दिया और लोगों को जीवाष्म ईंधन के प्रयोग के लिए प्रोत्साहित किया। यही नहीं मैक्रां ने ईधन पर नया टैक्स लगा दिया जिससे फ्रांसीसी समाज में एसा आक्रोश फूटा जिसके समाप्त होने का निकट भविष्य में अनुमान नहीं है। कुछ विश्लेषकों का तो यह मानना है कि ईधंन के टैक्स में वृद्धि वास्तव में एक चिंगारी है जिसने इस देश में पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ जन- आक्रोश के बारुद के ढ़ेर में आग लगा दी है। फ्रांस में अशांति इस देश में ही नहीं बल्कि हालैंड और बेल्जियम जैसे दूसरे देशों में भी फैल रही है।
फ्रांस में विरोध प्रदर्शनों का क्रम व्यापक रूप से 17 नवंबर को आरंभ हुआ और देखते- देखते ही पूरे फ्रांस में फैल गया। पहले ही हफ्ते में फ्रांस के विभिन्न क्षेत्रों में 2 लाख 80 हज़ार से अधिक प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर निकल कर विरोध जताया। अब फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रां की आर्थिक नीतियों के विरुद्ध जन प्रदर्शनों का चौथा सप्ताह खत्म हो रहा है और हज़ारों प्रदर्शनकारी, सड़कों पर निकल कर आर्थिक मांगों के अलावा इस देश के राष्ट्रपति के त्यागपत्र की भी मांग कर रहे हैं। यह प्रदर्शनकारी, यलो वेस्ट के नाम से प्रसिद्ध हो गये हैं। फ्रांस में शांतिपूर्ण रूप से आरंभ होने वाले यह प्रदर्शन हिंसक हो उठे हैं लेकिन इन प्रदर्शनों की सब से बड़ी विशेषता यह है कि इन प्रदर्शनों का संयोजन कोई संस्था या संघ नहीं कर रहा है बल्कि लोग स्वंय ही विभिन्न इलाक़े में सड़कों पर निकल कर प्रदर्शनों में भाग ले रहे हैं।
राजनीतिक टीकाकार हमीद रज़ा आसेफी कहते हैं कि फ्रांस के इस आंदोलन का कोई विशेष नेता नहीं और लोग सोशल मीडिया पर किये गये आह्वान के बाद लाखों की संख्या में सड़कों पर उतर रहे हैं और इस देश के राष्ट्रपति मैक्रां की आर्थिक नीतियों का विरोध कर रहे हैं। हालांकि इस आंदोलन का कोई नेता या अगुवा नहीं है लेकिन बहुत से टीकाकर इसे फ्रासं में पुंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ बड़े आंदोलनों में गिन रहे हैं। सर्वेक्षणों के अनुसार 84 प्रतिशत फ्रांसीसी यलो वेस्ट आंदोलन का समर्थन करते हैं । एडोक्सा संस्था द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार सर्वेक्षण में भाग लेने वाले फ्रांस के 84 प्रतिशत लोगों ने इन विरोधों को औचित्यपूर्ण और कानूनी बताया है।
एमानोएल मैक्रां वर्ष 2017 में एसे नारों के साथ सत्ता में आये जिसे फ्रांस के अधिकांश लोग पसंद करते थे और हालिया दो वर्षों में उन्होंने अपना अधिकांश प्रयास उन कानूनों व कार्यक्रमों को लागू करने में किया जिससे फ्रांस की सामाजिक और आर्थिक स्थिति बेहतर हो सके उसके बावजूद फ्रांसीसी समाज ने मैक्रां के प्रयासों के प्रति बड़े पैमाने पर नकारात्मक प्रतिक्रिया दिखाई। वर्ष 2018 के फरवरी महीने में जो संसदीय मध्यावधि चुनाव हुआ उसे इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। इस चुनाव में मैक्रां की पार्टी को पराजय का सामना हुआ। इस प्रकार जून 2017 में मिलने वाली भारी जीत के बाद उन्होंने पहली बार चुनावी हार का अनुभव किया। इस हार के बावजूद मैक्रां अपने दृष्टिगत सुधार कार्यक्रमों को जारी रखने पर आग्रह कर रहे हैं। मैक्रां जिन चीज़ों में सुधार करना चाहते हैं उनसे से एक ऊर्जा विशेषकर डीज़ल के मूल्यों और टैक्सों में वृद्धि है। वर्ष 2018 में फ्रांस की सरकार ने घोषणा की थी कि वह पेट्रोल और डीज़ल के टैक्सों को भी अधिक करेगी ताकि लोग निजी वाहनों को कम ख़रीदें या कम से कम हरी गाड़ियों को खरीदें। ज्ञात रहे कि पिछले 12 महीनों के दौरान पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों में 23 प्रतिशत की वृद्धि रही है और 2000 के अंतिम दशकों में यह सबसे अधिक कीमत रही है।
फ्रांस की सरकार ने फैसला किया था कि वह वर्ष 2019 के आरंभ से ईंधन के मूल्यों में वृद्धि करेगी परंतु उसके इस फैसले से फ्रांसीसी नागरिक बहुत क्रोधित थे। मैक्रां का दावा था कि रिनुएबल ऊर्जा के संबंध में निवेश के लिए जीवाष्म ईंधन के मूल्यों में वृद्धि ज़रूरी है। इन सबके बावजूद ईंधन विशेषकर डीज़ल के मूल्यों में वृद्धि से फ्रांसीसी परिवारों पर भारी दबाव पड़ा है। इस समय फ्रांस की जो विषम आर्थिक स्थिति है उससे इस देश के पर्यटन उद्योग को बहुत नुकसान पहुंचा है और यह संकट इस बात का कारण बना है कि फ्रांसीसी राजनेताओं, पार्टियों और इस देश के वरिष्ठ अधिकारीयों ने मैक्रां को चेतावनी दी है कि वह देश को तुरंत आर्थिक दुर्दशा से बाहर निकालें।
फ्रांसीसी सिनेट के प्रमुख जेरार्ड लार्चियर ने ट्वीट करके कहा है कि मैक्रां सरकार को चाहिये कि वह विरोधियों की आवाज़ पर ध्यान दे ताकि देश में उत्पन्न हुए आर्थिक संकट से बाहर निकल सके। फ्रांस की रिपब्लिकन पार्टी ने भी इस देश की सरकार का आह्वान किया है कि वह देर होने से पहले आपत्ति जताने वालों की आवाज़ सुने। साथ ही कुछ फ्रांसीसी नेताओं ने विरोधों के जारी रहने पर बल दिया है।
फ्रांस की “नाफरमान पार्टी” के प्रमुख जीन लुक मेलेनचन ने कहा है कि अब विरोधियों व आपत्ति जताने वालों की आवाज़ सुनने में देरी हो चुकी है क्योंकि आर्थिक दबाव के कारण लोग कुचल गये हैं। फ्रांस के श्रम और मध्यम वर्ग के लोग निराश हो चुके हैं और वे क्रोधित हो गये हैं यहां तक कि भविष्य के प्रति दिन- प्रतिदिन वे निराश होते जा रहे हैं। वे मैक्रां को पूंजीपतियों का राष्ट्रपति कहते हैं। साथ ही यलो वेस्ट आंदोलन ने फ्रांस की अर्थ व्यवस्था पर खतरनाक दुष्परिणाम डाला है और भविष्य में उसके नकारात्मक प्रभाव पहले से अधिक स्पष्ट होंगे।
यलो वेस्ट आंदोलन के जारी रहने से प्रदर्शनकारियों के मुकाबले में फ्रांस की सरकार पीछे हट गयी है और उसने उनकी कुछ मांगों को स्वीकार कर लिया है। इसी परिप्रेक्ष्य में फ्रांस के अधिकांश सिनेटरों ने ईंधन के टैक्स में वृद्धि को रोक दिये जाने के पक्ष में मत दिया। यह वृद्धि जनवरी 2019 से लागू होने वाली थी। इसी प्रकार फ्रांस की सरकार टैक्स में वृद्धि करने के प्रस्ताव से पूरी तरह पीछे हट गयी है। इसी परिप्रेक्ष्य में फ्रांस के प्रधानमंत्री एडवर्ड फिलिप ने पांच दिसंबर को घोषणा की है कि इस देश की सरकार ने ईंधन के टैक्स में वृद्धि के प्रस्ताव से जिसे 6 महीनों के लिए विलंबित किया था, अब पूरी तरह से पीछे हट रही है। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा कि जो कुछ आपत्ति करने वाले कह रहे हैं उनमें से अधिकांश पूरी तरह कानूनी हैं और यह वह चीज़ें हैं जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
फ्रांस में जो यलो वेस्ट आंदोलन है उसका एक दुष्परिणाम यह हुआ है कि फ्रांस जाने वाले पर्यटकों की संख्या में 50 प्रतिशत की कमी हो गयी है। मैक्रां की जो आर्थिक नीति है विशेषकर ईंधन और पर्यावरण के संबंध में उसने अब पुंजीवाद विरोधी रूप धारण कर लिया है और वह फ्रांस के विभिन्न नगरों में यथावत जारी है। रोचक बात यह है कि फ्रांस की सरकार विरोधियों व आपत्ति जताने वालों से वार्ता के लिए तैयार हो गयी है परंतु यलो वेस्ट आंदोलन के प्रतिनिधि अभी भी सरकार से वार्ता के लिए तैयार नहीं हैं। क्योंकि इस आंदोलन की मांगों में से एक मांग यह है कि मैक्रां सरकार त्याग पत्र दे।
यलो वेस्ट आंदोलन यद्यपि ईंधन पर टैक्स अधिक करने के विरोध में आरंभ हुआ परंतु अब उसने राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रुप धारण कर लिया है। राजनीतिक स्तर पर आपत्ति जताने वाले मैक्रां की सरकार के त्याग पत्र की मांग कर रहे हैं किन्तु सामाजिक स्तर पर यलो वेस्ट आंदोलन फ्रांस जैसे यूरोपीय देश में निर्धनता में वृद्धि का सूचक है। मकानों की कीमतों में वृद्धि इस बात का कारण बनी है कि फ्रांसीसी समाज के गरीब व निर्धन वर्ग ने बड़े शहरों में रहना छोड़ दिया है और अब वह छोटे शहरों में रहने के लिए बाध्य है। समाज का यह वर्ग मैक्रां की आर्थिक नीतियों को अपने परिवार के खिलाफ बड़ी आर्थिक चोट समझता है। साथ ही यलो वेस्ट आंदोलन को यूरो विरोधी आंदोलन भी समझा जा सकता है। यलो वेस्ट आंदोलन की एक मांग वेतन और मज़दूरी में कम से कम वृद्धि है किन्तु यूरो के मूल्य पर फ्रांसीसी सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है और वह दूसरे देशों से प्रतिस्पर्धा के कारण आपत्ति जताने वालों की मांगों को पूरा करने में सक्षम नहीं है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए भविष्यवाणी की जा सकती है कि यलो वेस्ट आंदोलन यथावत जारी रहेगा और फ्रांस की विपक्षी पार्टियों के नेता मैक्रां को चेतावनी दे रहे हैं कि जो स्थिति उत्पन्न हो गयी है उसके प्रति उचित और समय पर प्रतिक्रिया दिखायें। दक्षिण पंथी राष्ट्रीय मोर्चे की नेता मारिन लिपेन और वाम पंथी पार्टी” फ्रांस नाफरमान” के नेता जान लुक ने मध्यावधि चुनाव कराये जाने की मांग की है। इसी प्रकार फ्रांस की रिपब्लिकन पार्टी के प्रमुख लारेन वुकिया ने टैक्स और पर्यावरण के संबंध में मैक्रां की नीतियों के संदर्भ में जनमत संग्रह कराये जाने की मांग की है और कहा है कि इस संवेदनशील परिस्थिति में लोगों को अंतिम बात कहनी चाहिये।
मैक्रां जो सुधार करना चाहते हैं उसके दृष्टिगत इस बात की आशंका और खतरा मौजूद है कि फ्रांस की आर्थिक स्थिति पहले से अधिक विस्फोटक रूप धारण कर ले। फ्रांस विश्व विद्यालय के एक प्रोफेसर और राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ डोमोनिक मोइसी इस देश में पूंजीवाद विरोधी यलो वेस्ट आंदोलन की ओर संकेत करते हुए कहते हैं” यह आंदोलन आपात स्थिति और फ्रांसीसी जनता की एकता का सूचक है। प्रदर्शनकारी और आपत्ति जताने वाले कहते हैं कि आपने यानी फ्रांसीसी सरकार के राजनेताओं ने हमारी अनदेखी की। आपने इस प्रकार का समझा था कि हमारा अस्तित्व ही नहीं है, हम कुछ भी नहीं हैं परंतु अब आप हमें देख रहे हैं हम सब सड़कों पर हैं।“
प्रदर्शनकारियों के साथ फ्रांसीसी पुलिस का हिंसात्मक व्यवहार और अपने दृष्टिगत सुधारों पर मैक्रां का आग्रह किया जाना इस बात का कारण बना है कि फ्रांसीसी सरकार के पीछे हट जाने के बावजूद यलो वेस्ट आंदोलन के प्रतिनिधियों से कोई वार्ता नहीं हो सकी है। इस प्रकार से कि यलो वेस्ट आंदोलन ने सरकार की मांग को रद्द कर दिया है और सरकार से गम्भीर कार्यवाहियों व नीति अपनाये जाने की मांग की है। बहरहाल मौजूद प्रमाण इस बात के सूचक हैं कि इस समय फ्रांस में जो प्रदर्शन हो रहे हैं वे उससे बहुत अधिक गहरे व व्यापक हैं जिसकी कल्पना फ्रांस के राष्ट्रपति एमानोएल मैक्रां कर रहे हैं और पुंजीवादी व्यवस्था के विरोधी अर्थ व्यवस्था सहित समस्त क्षेत्रों में न्याय स्थापित किये जाने की मांग कर रहे हैं।