क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-731
क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-731
وَلَا تُجَادِلُوا أَهْلَ الْكِتَابِ إِلَّا بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ إِلَّا الَّذِينَ ظَلَمُوا مِنْهُمْ وَقُولُوا آَمَنَّا بِالَّذِي أُنْزِلَ إِلَيْنَا وَأُنْزِلَ إِلَيْكُمْ وَإِلَهُنَا وَإِلَهُكُمْ وَاحِدٌ وَنَحْنُ لَهُ مُسْلِمُونَ (46)
और (आसमानी) किताब वालों से बस उत्तम शैली में ही बात करो सिवाय उनके जो उनमें अत्याचारी हैं और (उनसे) कहो कि जो चीज़ हम पर और तुम पर (भी) नाज़िल हुई है हम उस पर ईमान लाए। और हमारा ईश्वर और तुम्हारा ईश्वर एक ही है और हम उसी के आज्ञाकारी हैं। (29:46)
وَكَذَلِكَ أَنْزَلْنَا إِلَيْكَ الْكِتَابَ فَالَّذِينَ آَتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ يُؤْمِنُونَ بِهِ وَمِنْ هَؤُلَاءِ مَنْ يُؤْمِنُ بِهِ وَمَا يَجْحَدُ بِآَيَاتِنَا إِلَّا الْكَافِرُونَ (47)
और इसी प्रकार हमने तुम्हारी ओर (अपनी) किताब नाज़िल की तो जिन्हें हमने किताब प्रदान की है वे उस (क़ुरआन) पर ईमान लाएँगे। और इन (अनेकेश्वरवादियों) में से (भी) कुछ उस पर ईमान लाएंगे और काफ़िरों के अलावा कोई हमारी आयतों का इन्कार नहीं करता। (29:47)
وَمَا كُنْتَ تَتْلُو مِنْ قَبْلِهِ مِنْ كِتَابٍ وَلَا تَخُطُّهُ بِيَمِينِكَ إِذًا لَارْتَابَ الْمُبْطِلُونَ (48) بَلْ هُوَ آَيَاتٌ بَيِّنَاتٌ فِي صُدُورِ الَّذِينَ أُوتُوا الْعِلْمَ وَمَا يَجْحَدُ بِآَيَاتِنَا إِلَّا الظَّالِمُونَ (49)
और (हे पैग़म्बर!) आप इससे पहले न कोई किताब पढ़ते थे और न उसे अपने हाथ से लिखते थे कि अगर ऐसा होता तो ये असत्यवादी सन्देह में पड़ जाते। (29:48) (ऐसा नहीं है) बल्कि वह (क़ुरआन) तो उन लोगों के सीनों में खुली निशानी है, जिन्हें ज्ञान व ईश्वरीय पहचान प्रदान की गई है। और अत्याचारियों के अतिरिक्त हमारी आयतों का कोई इन्कार नहीं करता। (29:49)