Feb १९, २०१९ ११:५५ Asia/Kolkata

परिवार का महत्व और मानव समाज में उसकी भूमिका, मानवीय अस्तित्व के दो आयामों पर चिंतन मनन और विचार से स्पष्ट होती है।

परिवार एक सामाजिक इकाई है जिसका लक्ष्य पवित्र क़ुरआन की दृष्टि में, पति पत्नी, माता पिता और संतान की मानसिक सुरक्षा की पूर्ती करना है ताकि सामाजिक बुराईयों से मुक़ाबले और टकराव के लिए तैयारी हो सके। पवित्र क़ुरआन के सूरए फ़ुरक़ान की आयत संख्या 74 में ईश्वर कहता है: और वह लोग बराबर दुआ करते रहते हैं कि हे मेरे पालनहार हमारी पत्नियों और संतानों की ओर से आंख की ठंडक प्रदान कर और हमें ईश्वरीय भय रखने वालों का मार्गदर्शक बना दे।

यह आयत परिवार के महत्व और उदाहरणीय मानव समाज के गठन में इसकी भूमिका की ओर संकेत करती है क्योंकि स्वच्छ और अच्छे पारिवारिक संबंध को ईश्वरीय भय रखने वालों की निशानी और उनका मॉडल क़रार दिया गया है। परिवार की सामाजिक इकाई में माता पिता, बच्चों के जन्म से ही उनके लिए एक आदर्श के रूप में होते हैं, मानव स्थिति को बेहतर बनाने में परिवार के महत्व के अर्थ और उसकी भूमिका, इसी वास्तविकता में छिपी हुई है। महापुरुषों की नज़र में आस्थाएं, जीवन किस प्रकार बिताई जाए, आदतें और माता पिता के रुझान, बच्चों पर पड़ने वाले महत्वपूर्ण प्रभावों में से हैं और इसीलिए पति और पत्नी और उनके बीच प्रेम और मुहब्बत की वजह से परिवार और संतान के लिए कृपा और दया की वर्षा होती है। स्वच्छ और पवित्र बंधन, स्थाई और ज़िम्मेदारपूर्ण संबंधों के लिए उचित भूमि प्रशस्त करने की गैरेंटी है। यही वह चीज़ है जिसको जवान अपने जीवन के आरंभ में आदर्श के रूप में स्वीकार करते हैं और समाज के साथ भविष्य के अपने संबंधों को इसी कसौटी पर परखते हैं। यहां पर ध्यान योग्य बात यह है कि परिवार के साथ आपके संबंध, बच्चों में सामाजिक सहयोग पैदा करने का कारण बनते हैं।

इस समय एक पावन और आसमानी बंधन का समय आ गया है। दो जवान महान ईश्वर की इच्छा के अनुसार और उसकी प्रसन्नता के लिए एक दूसरे का हाथ पकड़ कर जीवन के उच्च उद्देश्यों की ओर चलना और उनकी प्राप्ति चाहते हैं। सच में यह कितना मज़बूत और पवित्र बंधन है। इंसान की प्रवृत्ति जीवन साथी चाहती है। जीवन साथी के बिना इंसान स्वयं को अधूरा समझता है। महान ईश्वर हर एक को दूसरे के बिना पसंद नहीं करता है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने फरमाया है कि विवाह मेरी सुन्नत व परम्परा है और वह मुझसे नहीं है जिसने मेरी सुन्नत से मुंह मोड़ा और जिसने विवाह किया उसने अपने आधे धर्म को सुरक्षित कर लिया।

इंसान की ज़िन्दगी उतार- चढ़ाव से भरी है और उसके विभिन्न चरण हैं और उसके बहुत उच्च लक्ष्य भी हैं। इंसान के जीवन का लक्ष्य यह है कि वह स्वयं अपने अस्तित्व से और अपने आस- पास के इंसानों से आध्यात्मिक परिपूर्णता के लिए लाभ उठाये। क्योंकि बुनियादी तौर पर इंसान को इसी उद्देश्य के लिए पैदा किया गया है। इंसान उस हालत में दुनिया में आता है जब दुनिया में आने के लिए वह स्वतंत्र नहीं होता यानी अपनी इच्छा से वह दुनिया में नहीं आता है। धीरे- धीरे उसकी बुद्धि बढ़ती है और उसके अंदर चयन की शक्ति उत्पन्न हो जाती है। यह वही समय होता है जब इंसान को सही तरह से सोचना चाहिये, सही चयन करना चाहिये और उसी चयन के अनुसार चलना और आगे बढ़ना चाहिये।

शिक्षित समाज में यह बिन्दु स्पष्ट हो गया है कि मनुष्य का जीवन और मानव जीवन, जोड़े या दाम्पत्य पर आधारित होता है, अर्थात इंसान का जीवन महिला और पुरुष से अर्थ वाला बनता है और यदि इन दोनों में से कोई एक न हो या इनकी अनदेखी कर दी जाए तो वास्तव में मनुष्य की ज़िंदगी ही नहीं रह जाएगी। पवित्र क़ुरआन में इस विषय की ओर खुलकर इशारा किया गया है कि मैं ने तुमको एक पुरुष और एक महिला से पैदा किया है।

इसी आधार पर समाजिक जीवन में जितना स्थान और महत्व पुरुषों का है ठीक उतना ही स्थान और महत्व महिला का भी है और वह भी समाज में अपनी भूमिका अदा कर सकती है। विदित रूप से यह बात समझ में आती है कि लुरिस्तान क़बीले में पुरुषों का स्थान हमेशा ऊंचा होता है और वे अधिक महत्वपूर्ण और अहम भूमिका अदा करता है। वास्तव में यह विषय एसा नहीं है, यद्यपि अतीत पर नज़र डालने से यह बात समझ में आती है कि कुछ महिलाएं इतनी शालीन और योग्य थीं कि उनको महत्व नहीं दिया गया किन्तु यह एक संपूर्ण क़ानून नहीं है। कब़ीलों में महिलाओं की भूमिका के दृष्टिगत यह बात पता है कि वास्तव में वह भी महत्वपूर्ण थीं और उनको भी महत्व दिया जाता था।

सामाजिक मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि एक क़बाईली परिवार की रीढ़ की हड्डी महिला होती है क्योंकि पुरुषों पर जो ज़िम्मेदारी होती है उसके दृष्टिगत वह घर में बहुत कम ही रह पाता है और केवल महिला ही होती है जो हमेशा घर में अपने परिवार के साथ रहती है और घर के समस्त काम करती है। सूत कातने से लेकर दही, मक्खन और मट्ठा बनाने जैसी, सारी की सारी ज़िम्मेदारी महिला की ही होती है।

संदेवनशीलता के दृष्टिगत क़बाईली महिला प्राचीन काल से ही घर के समस्त सदस्यों से पहले उठती है और वह घर के सारे काम परिवार के प्रेम से बड़ी ख़ुशी से अंजाम देती है। इस प्रकार वह अपने पति और परिवार के दूसरे सदस्यों से काम में हाथ बंटाने को नहीं कहती और इसके साथ ही बड़े लोग विशेषकर पुरुष लोग विशेषकर पति छोटी सी ग़लतियों पर भी उसे कुछ नहीं कहते। कभी कभी कुछ पति अपनी पत्नियों को यातनाएं देते हैं और उसे परेशान करते हैं किन्तु इसके साथ ही पत्नी, अपने पति के सम्मान में अपनी भलाई से, अपने प्यार के जाल में उसे गिरफ़्तार कर लेती है। कुल मिलाकर लुरी महिला की मितव्ययता, साधारण जीवन, विनम्रता और हाव भाव, प्यार व मुहब्बत की वजह से घर हर प्रकार की चिंताओं से दूर रहता है। क़बाइली माताओं के अच्छे बर्ताव की छत्रछाया में घर में शांति, प्रेम, मुहब्बत और दया विराजमान हो जाती है।

 

क़बाईली परिवार में संतानें सभी मिलकर प्रकृति के अचंभों, स्वतंत्रताओं, काम और ख़ुशियों से भरपूर लाभ उठाती हैं। वे सीखतीं हैं कि परिवार, विकास और प्रगति के लिए अच्छा वातावरण हो सकता है। क़बीले वाले परिवार में दादा दादी या नाना नानी और इसी प्रकार बड़े बूढ़े लोग परिवार के अन्य सदस्यों के साथ जीवन व्यतीत करते हैं और और अपनी संतानों का वांछित ढंग से प्रशिक्षण करते हैं। एक क़बाईली महिला रोटी और खाना पकाती हैं और दस्तरख़ान पर अन्य परिवार के सदस्यों के सबसे बाद उपस्थित होती हैं और जब भी मेहमान आते हैं तो घर में जो कुछ होता है इसे पूरी निष्ठा के साथ वह ट्रे में मेहमान के सामने पेश करती है और मेहमान का ध्यान रखती हैं। एक शब्द में कहा जा सकता है कि क़बीलों के परिवार की वास्तविक मज़बूती और जीवन, परिवार की महिला पर निर्भर होती है। उदाहरण स्वरूप लुरी जाति में एक कहावत मशहूर है कि यदि एक परिवार की महिला मर जाती है जो वह घर पूरी तरह तबाह हो जाता है।

वास्तव में लुरी क़बाईली महिलाएं ईरान की अन्य महिलाओं की भांति, परिवार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ईरानी महिलाओं के अनुसार इसमें कोई अंतर नहीं है कि वह दुनिया में कहा जीवन व्यतीत कर रही है, जहां भी हो वह अपनी माता, बहन, पत्नी और बेटी की भूमिका अदा करती रही है और प्रेम और मुहब्बत से घर को जगमगाए हुए रहती है।

 

निश्चित रूप से आपने सुना होगा कि विवाह एक बंद तरबूज़ की भांति होता है, यद्यपि आपको तरबूज़ ख़रीदने में जितनी भी दक्षता होगी संभव है कि आप धोखा खा जाएं। विवाह भी ऐसा ही होता है, आप जितनी भी सावधानी बरतेंगे और सभी आयामों को परख लेंगे तब भी संभव है कि कहीं आपसे ग़लती हो जाए और आपका विवाह सफल न हो। इसीलिए परिवारिक मामलों की सलाहकार और मनोचिकित्सक डाक्टर परवीन नाज़िमी इस दृष्टिकोण की पुष्टि नहीं करतीं, वे कहती हैं कि एक सफल विवाह एक सही और युक्ति के साथ होने वाले चयन का परिणाम हो सकता है। खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि कुछ लोग विवाह को अपने लक्ष्यों तक पहुंचने का साधन समझते हैं उनका यह मानना है कि सफल विवाह से ही उनके अकेलपन की समस्या दूर हो सकती है जबकि ऐसा नहीं है। सफल विवाह के लिए सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु, प्रेम और स्नेह से पहले पहचान है।

परिवार सामाजिक जीवन की एक इकाई है। वंश बढ़ाना और मानवता को बाकी रखने के लिए बच्चों के लालन- पालन के अलावा परिवार की आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सहित विभिन्न ज़िम्मेदारियां भी हैं और सामाजिक मूल्यों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानांतरित करने में परिवार महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। परिवार की जो सामाजिक स्थिति होती है उसके दृष्टिगत किसी सीमा तक परिवार के हर व्यक्ति की अपनी विशेष भूमिका होती है।

 

जब हम ईरानी परिवार की भूमिका की समीक्षा करते हैं तो पाते हैं कि ईरानी समाज के परिवर्तनों में परिवार महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ईरान में सामूहिक एवं पारिवारिक जीवन की अपनी एक अलग विशेषता है और आज बहुत से पारिवारों एवं समाजों में समस्यायें पेश आ रही हैं वे ईरानी समाज में पेश नहीं आ रही हैं। (AK)

 

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