इस्लाम में बाल अधिकार- 12
नवजात के पैदा होते ही जीवन को जारी रखना उसका सबसे अहम मस्ला होता है क्योंकि बच्चा अपनी रक्षा करने की स्थिति में नहीं होता।
मां वह हस्ती है जो नवजात से सबसे निकट होती है और मां के वजूद में ईश्वर की ओर से मुहैया की गयी चीज़ नवजात का सबसे अच्छा आहार है। दूध पीने का दौर, शारीरिक दृष्टि से बच्चे को मज़बूत बनाता है और उसका मन मां के व्यवहार व शिष्टाचार से प्रभावित होता है जिससे बच्चे की परवरिश की पृष्ठिभूमि मुहैया होती है। इसके अलावा, बच्चे को दूध पिलाने से मां को भी फ़ायदा पहुंचता है। मां के सीने में मौजूद आहार, नवजात के जीवन के आरंभिक महीने का बेहतरीन आहार होता है। इस अधिकार को दिलाना बाप की ज़िम्मेदारी है कि वह मां के ज़रिए बच्चे को दूध पिलाने का ख़र्च अदा करे।
पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की शिक्षाओं में इस बात पर बल दिया गया है कि नवजात को मां का दूध मिले और इसे बेहतरीन आहार बताया गया है।
जैसा कि ईश्वर बक़रह नामक सूरे की आयत नंबर 233 में फ़रमाता हैः "मांएं अपने बच्चों को पूरे दो साल दूध पिलाएं। यह उसके लिए है जो इस मुद्दत को पूरा कराना चाहता है। बाप के लिए ज़रूरी है कि जितनी मुद्दत तक मां बच्चे को दूध पिलाती है, उसके खाने पीने का ख़र्च वहन करे चाहे मां ने तलाक़ क्यों न ले लिया हो। किसी भी व्यक्ति पर उसकी क्षमता से ज़्यादा ज़िम्मेदारी नहीं है। न मां को पति से मतभेद की वजह से बच्चे को नुक़सान पहुंचाने का अधिकार है और न ही बाप को। उसके वारिस पर ज़रूरी है कि इस काम को अंजाम दे। अगर वे दोनों आपसी सहमति व परामर्श से बच्चे का मुद्दत से पहले दूध छुड़ाना चाहते हैं तो कोई हरज नहीं है। अगर मां की अक्षमता या असहमति की वजह से बच्चे के लिए कोई दाया करना चाहो तो इसमें भी कोई हरज नहीं है, इस शर्त के साथ कि मां के पिछले अधिकार को सही तरह अदा करो। ईश्वर की अवज्ञा से बचो और जान लो कि जो कुछ तुम करते हो, उसे वह देखता है।"
इस आयत में ईश्वर ने नवजात के आहार के संबंध में बहुत ही अहम बिन्दु की ओर इशारा किया है। इस आयत का हुक्म मां की प्रवृत्ति व स्वभाव के अनुसार है क्योंकि मां बच्चे से अलग होने के लिए तय्यार नहीं होती इसी वजह से मां को 2 साल तक बाप पर वरीयता दी गयी है। इस आयत की नज़र से नवजात को दूध देना एक ओर बच्चे का अधिकार है तो दूसरी ओर मां का अधिकार है। इसी लिए 2 साल तक बच्चे की रक्षा की दृष्टि मां के अधिकार को वरीयता हासिल है।
नवाजत के मां का दूध पाने के अधिकार के बारे में बक़रह सूरे की आयत नंबर 233 में कई अहम बिन्दुओं का उल्लेख है। पहला यह कि इस आयत में कहा गया है कि मां अपने बच्चों को पूरे दो साल तक दूध पिलाए। इस आयत में अरबी का जो शब्द इस्तेमाल हुआ है वह ‘वालेदात’ शब्द है जिसका अर्थ बच्चे को जन्म देने वाली मां जबकि अरबी में मां के लिए एक शब्द और इस्तेमाल होता है और वह है ‘उम्म’। इस शब्द के अर्थ में मां की मां अर्थात नानी भी शामिल होती है। इसी तरह आयत के इस भाग से यह समझा जा सकता है कि मां को यह ज़िम्मेदारी सौंपना जबकि बच्चे की सरपरस्ती बाप का अधिकार है, बच्चे और मां दोनों के अधिकार को अहमियत देने के अर्थ में है क्योंकि जन्म देने वाली मां बच्चे को ख़ुद से दूर नहीं देख सकती।
दूसरे यह कि दो साल दूध पिलाने की मुद्दत उन लोगों के लिए है जो इसे पूरा करना चाहें। कभी बच्चे की शारीरिक स्थिति और स्वास्थ्य की वजह से बच्चे को दो साल से कम समय के लिए दूध पिलाया जाता है।
तीसरे यह कि बाप की ज़िम्मेदारी है कि वह मां का ख़र्च अदा करे कि बच्चे को दूध पिलाए। इस भाग में पवित्र क़ुरआन में जो शब्द इस्तेमाल हुआ है उसका अर्थ है कि मां की शान के लायक़ ख़र्च अदा करे।
चौथे यह कि मां बाप में किसी को यह अधिकार नहीं है कि उनके आपसी मतभेद की वजह से बच्चों को किसी तरह का नुक़सान पहुंचे। पवित्र क़ुरआन की व्याख्या की मशहूर किताब तफ़सीरे नमूना के अनुसार, इनमें से किसी एक को यह अधिकार नहीं है कि वे बच्चे के भविष्य को अपने मतभेद की बलि चढ़ा दें और नवजात के कोमल शरीर व आत्मा को नुक़सान पहुंचाएं।
पांचवें यह कि इस आयत में बाप की मौत के विषय की ओर इशारा है कि वारिसों को चाहिए कि मां की ज़रूरतों को पूरा करें जिस मुद्दत में वह बच्चे को दूध पिलाती है।
छठे बच्चे की दूध छुड़ाई है। हालांकि दूध पिलाने की मुद्दत 2 साल बयान की गयी है, मां-बाप आपसी सहमति और बच्चे की शारीरिक स्थिति के मद्देनज़र 2 साल से पहले बच्चा का दूध छुड़ा सकते हैं।
सातवें यह कि अगर मां ने किसी वजह से बच्चे को दूध पिलाने के अधिकार को इस्तेमाल नहीं किया है या उसमें दूध पिलाने की क्षमता नहीं है, तो इस आयत में इस मस्ले का हल भी मौजूद है। जैसा कि आयत के एक भाग में ईश्वर कह रहा है कि अगर मां के अक्षम होने की वजह से अपनी संतान के लिए दाया रखना चाहते हो तो इसमें कोई हरज नहीं है इस शर्त के साथ कि मां के पिछले अधिकार को सही तरीक़े से अदा कर दो।
आयत के अंत में सभी से अनुशंसा की गयी है कि ईश्वर से डरें और जान लें कि ईश्वर उनके सभी कर्म को देख रहा है। यह चेतावनी इसलिए है कि कहीं मां बाप के बीच मतभेद, या उनके बीच दूरी का बच्चे के भविष्य पर बुरा असर पड़े।
मां के दूध से बच्चे के आहार पर धर्म और चिकित्सा विज्ञान की ओर से बल दिए जाने के साथ ही इस्लाम ने मां को यह अधिकार दिया है कि अगर वह बच्चे को दूध पिलाने में सक्षम नहीं है, तो यह काम अंजाम न दे। धर्मशास्त्र की नज़र से नवजात को दूध पिलाना मां पर अनिवार्य नहीं है, लेकिन विशेष हालात में अनिवार्य हो जाता है। एक उस समय जब बच्चे को दूध पिलाने के लिए कोई दूसरी औरत न मिले। दूसरे यह कि दूसरी औरत मौजूद हो लेकिन बाप के पास दूसरी औरत का ख़र्च उठाने का पैसा न हो तो इस स्थिति में नवाजात की मां पर बच्चे को दूध पिलाना अनिवार्य हो जाता है। तीसरे यह कि नवजात मां के अलावा किसी दूसरी औरत का दूध न पिए। इसी तरह जब औरत बच्चे को कुछ मुद्दत तक दूध पिलाने के बाद, ऐसा करने से मना कर दे और बच्चा किसी दूसरी औरत का दूध न पिए तो मां का बच्चे को दूध पिलाना अनिवार्य हो जाता है।
इस बात का उल्लेख भी ज़रूरी है कि बाल अधिकार कन्वेन्शन में बच्चे के दूध पीने के अधिकार का वर्णन नहीं है बल्कि सरकारों पर बल दिया गया है कि वे बच्चे के लिए मां के दूध की अहमियत का प्रचार करें। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मां के दूध से नवजात के आहार का प्रचार किया गया है। वर्ष 1981 में वर्ल्ड हेल्थ असेंब्ली ने मां के दूध के स्थानापन्न पदार्थ को बेचने के तरीक़े के बारे में क़ानून पारित किया। इस क़ानून की पहली धारा में इस क़ानून का उद्देश्य यूं बयान हुआ हैः "मां के दूध के आहार का समर्थन और उसे बढ़ावा देते तथा मां के दूध के स्थानापन्न पदार्थ के उचित इस्तेमाल को सुनिश्चित करते हुए नवजातों के लिए स्वस्थ्य आहार की उपलब्धि में मदद करना।" इसी तरह उक्त क़ानून को लागू कराने के लिए वर्ष 1990 में इनसेन्टी डेक्लेरेशन नामक घोषणापत्र मां के दूध से बच्चे के आहार का समर्थन और उसे बढ़ावा देने के बारे में देशों के राष्ट्रीय कर्तव्य के उद्देश्य से पारित हुआ। बाल अधिकार समिति ने उक्त सिफ़ारिशों के सरकारों द्वारा लागू होने के बारे में कुछ देशों से रिपोर्टें तय्यार की हैं।
कुछ रवायतों में इस बात पर बल दिया गया है कि छह महीने की उम्र तक बच्चे के लिए मां का दूध पानी और आहार दोनों ज़रूरतों को पूरी करता है। आज वैज्ञानिक शोध के नाम से जो यह कहा जा रहा है कि नवजात सिर्फ़ मां का दूध पिए, पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के कथनों में इसका पहले ही वर्णन हो चुका है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के मशहूर साथी हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमायाः "ईश्वर ने नवजात की रोज़ी मां के दोनों तरफ़ मुहैया की है। नवजात के पैदा होते समय एक भाग में पानी और दूसरे भाग में उसका आहार, उसकी हर दिन की ज़रूरत के अनुसार, निर्धारित की है।"
इसी तरह पैग़म्बरे इस्लाम के परपौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के हवाले से रवायत में आया है कि नवजात को मां के बायी तरफ़ से दूध पिलाया जाए। कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में हुए शोध से यह बात साबित हुयी है कि इसका कारण यह है कि बायी तरफ़ इंसान का दिल होता है और बायीं तरफ़ का दूध पीने से बच्चे को मां के दिल की धड़कन सुन कर सुकून मिलता है। बायीं तरफ़ से दूध पिलाने की अनुशंसा की गयी है।
मां का बच्चे को दूध पिलाना सिर्फ़ बच्चे के लिए नहीं बल्कि मां के लिए भी फ़ायदेमंद है। जिस समय नवजात दूध पीता है तो मां के गर्भ की मांसपेशियों में खिचाव आता है जिससे ख़ून की नसें आपस में मिलती हैं और ख़ून बहना रुक जाता है। इसके अलावा मां के बदन में गर्भाधारण के समय इकट्ठा होने वाली वसा भी जल्द ख़त्म हो जाती है और शरीर पहली वाली हालत में लौट आता है। इसके अलावा दूध पिलाते वक़्त मां के मन में ऐसी भावना जागृत होती है कि वह गर्भाधारण व पैदाइश के वक़्त की तकलीफ़ों को भूल जाती है।