घर परिवार- 24
जीवन को रोमांच व ख़ुशी से मीठा कीजिए।
आप और आपके जीवन साथी को ख़ुशी और रोमांच की ज़रूरत है इसलिए कभी कभी एक ढर्रे पर जा रही जीवन की डगर को बदलिए और उसे नीरस बनने से बचाइये। इंसान नीरस जीवन में रोमांच चाहता है इसलिए अपने जीवन साथी के रोमांच का अनुभव कीजिए और वह भी मशीनी जीवन के चक्कर से बाहर निकले। इस बात को भी मत भूलिए कि अच्छे शौहर या अच्छी बीवी के साथ संयुक्त जीवन में ऐसी मुश्किलें भी होती हैं जिनके बारे में पहले से अनुमान नहीं लगाया जा सकता। इसलिए यह मान कर चलिए कि मुश्किलें जीवन का अभिन्न अंग हैं और आप ख़ुद को यह धोखा न दीजिए कि अगर अमुक व्यक्ति को अपना जीवन साथी बनाया होता तो जीवन में मुश्किल नहीं होती। कभी ख़ुद से भी सवाल कीजिए कि आपका जीवन साथी आपके साथ रह कर संतुष्ट है या नहीं? उसे अच्छी तरह पहचानिए और उसकी ख़ुशी के लिए रोमांच के साथ जीवन बिताइये।
अब आपको तुर्कमन जाति के पारिवारिक जीवन से परिचित कराने जा रहे हैं।
गुलिस्तान प्रांत की आबादी 18 लाख है। इस प्रांत में विभिन्न जातियां रहती हैं। हर जाति के अपने रीति रवाज, एवं शिष्टाचार हैं लेकिन मेघ-धनुष के रंग की तरह ये जातिंया आपस में सद्भाव से रहते हुए प्रांत की उन्नति में योगदान दे रही हैं। इन जातियों के संयुक्त व वैनाहिक जीवन के गठन, धार्मिक नियम, यहां तक कि पहनने के कपड़ों के विशेष रिति रवाज हैं जो पूर्वजों से एक के बाद एक अगली नस्ल को स्थानांतरित होते हुए मौजूदा दौर के मर्दों और औरतों तक पहुंचे हैं। गुलिस्तान में रहने वाली जातियों में तुर्कमन जाति भी है। इस प्रांत की कुल आबादी की एक तिहाई आबादी तुर्कमन जाति की है। तुर्कमन जाति के लोग गुंबद कावूस, आक़ क़ला, गुमीशान, बंदर तुर्कमन और मरावह तप्पे नामी ज़िलों में रहते हैं।
अतीत में तुर्कमन जाति के परिवार बहुत बड़े होते थे जिसमें परिवार का मुखिया एक प्रभावशाली व तानाशाही स्वाभाव का होता था। धीरे धीरे इस जाति में पति-पत्नी पर आधारित छोटे परिवारों का गठन आम हो रहा है।
तुर्कमन जाति में मर्दों और औरतों के काम अलग अलग बटे हुए हैं। मर्द खेती और पशुपालन का काम करते है जबकि औरतें कुटिया बनाने, गेहूं पीसने, फल सुखाने, दूध दुहने, क़ालीन बुनने, नमद नामी विशेष दरी बुनने, दुग्ध उत्पाद तय्यार करने और खाना पकाने का काम करती हैं।
तुर्कमन लोगों में विवाह इसलिए अहमियत रखता है क्योंकि आर्थिक दृष्टि से सक्रिय एक व्यक्ति अर्थात दुल्हन रूपी महिला अपने परिवार से कम होती है जवाकि दूल्हे के परिवार में एक सक्रिय व्यक्ति की संख्या बढ़ती है, इसलिए वधु के परिवार वाले वर के परिवार वालों से पैसे या कुछ मूल्यवान चीज़ लेते हैं जिसे शीरबहा कहते हैं।
तुर्कमन लोगों के बीच विवाह की एक रस्म अरूस कशान कहलाती है। यह रस्म विवाह के जश्न के बाद होती है। इस दिन स्कार्फ़ जैसा कपड़ा, इस रस्म में दुल्हन की तरफ़ से शामिल होने वालों को दिया जाता है। इस कारवां के दो भाग होते हैं। एक भाग में दूल्हा, जवान मर्द और औरत और दूसरे भाग में वृद्ध लोग होते हैं।
अतीत में दूल्हन को ऊंट के कजावे पर बिठा कर सुसराल पहुंचाते थे। यह कजावा रंग बिरंगे कपड़ों, प्रायः चालीस टुकड़ों से सजा होता था। कजावे के ऊपर एक घंटी लगी होती थी जो ऊंट के चलने पर बजती थी। घंटी का बजना जश्न व ख़ुशी का संदेश देता था।
अब ऊंट के कजावे का इस्तेमाल कम हो गया है। अब नई नई गाड़ियों के नए मॉडल इस्तेमाल होते हैं। इन गाड़ियों को फूल बूटों से सजाया जाता है। आम तौर पर इस समारोह में दो गाड़ियां होती हैं। एक दुल्हन और उसके साथ दो लोग बैठते हैं और दूसरी दूल्हे और उसके दोस्तों के लिए विशेष होती है।संगीत
जिस समय दूल्हा की तरफ़ से वृद्ध लोगों का कारवां दुल्हन के बाप के घर पहुंचता है, उनमें से एक व्यक्ति पहले से तय शुदा मेहर का पैसा दुल्हन के पिता को एक थैले में रखकर पेश करता है। दुल्हन की तरफ़ से वृद्ध लोग दूल्हे की तरफ़ से आने वाले वृद्ध लोगों के कारवां का स्वागत करते हैं। नाना प्रकार की मिठाइयों व फलों से इनका स्वागत किया जाता है।
इसके बाद दूल्हे के कारवां वाले शोर मचाते हुए, हाथ में उपहार लिए दुल्हन के घर पहुंचते हैं।
तुर्कमन लोगों में विवाह का एक और समारोह कुश्ती प्रतियोगिता है। यह रस्म पुराने ज़माने से चली आ रही है जिसे स्थानीय लोग गूरशमक कहते हैं। कुश्ती समारोह में जो व्यक्ति अपने प्रतिद्वंदवी के घुटने या भुजा को ज़मीन पर लगा दे, वह विजयी होता है। उसे वृद्ध लोगों के हाथ से ईनाम मिलता है। इस ईनाम को स्थानीय लोग "बयराक़" कहते हैं।
तुर्कमनों में विवाह के अवसर पर घुड़ सवारी भी आयोजित होती है। हालांकि अब यह रस्म फीकी पड़ती जा रही है।
एक अच्छे व सफल परिवार में मां-बाप की भूमिका केन्द्रीय होती है। इसके बाद बच्चों का स्थान होता है। इस बिन्दु पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है कि इस्लामी संस्कृति में अच्छे परिवार में न तो पुरुष न ही महिला और न ही बच्चों की चलती है। बल्कि इस संस्कृति के अनुसार परिवार प्रेम, कृपा और आपसी समझबूझ का केन्द्र होता है। ऐसे स्वस्थ माहौल में सच्चाई, न्याय और ईमानदारी की शिक्षा दी जाती है और आत्मिक शून्य एक दूसरे के ज़रिए भर जाता है और यह वही चीज़ है जो पुरुष और महिला की पैदाइश से समन्वित है।
इस बात में शक नहीं कि अगर किसी परिवार में तलाक़ की बात या नोक झोंक नहीं होती तो इसका अर्थ यह नही है कि वह एक सफल परिवार है। कभी कभी पति या पत्नी के बीच संबंध अच्छे नज़र आते है लेकिन मुमकिन है उनमें से कोई, दूसरे के अत्याचार को ख़ामोशी से सहन कर रहा हो।
पवित्र क़ुरआन की नज़र में सफल परिवार वह है जिसके सदस्य एक दूसरे की ज़रूरत को पूरा करें न यह कि एक दूसरे को सहन करें। ऐसे परिवार में शारीरिक व आत्मिक ज़रूरत का बड़ा भाग परिवार के सदस्यों द्वारा पूरा होता है। बच्चे को पारिवारिक संबंध से आनंद मिलता है और पति पत्नी को भी। दूसरे शब्दों में एक अच्छे परिवार में लोग आत्मिक, मानसिक व भावनात्मक कमी महसूस नहीं करते।
कुछ लोगों का ख़्याल है कि सबसे अच्छा जीवन साथी चुनना चाहिए। ऐसा जीवन साथी जिसके साथ रह कर कभी ऊबे नहीं। सौभाग्य की प्राप्ति सिर्फ़ एक अच्छे चयन पर निर्भर नहीं है बल्कि इंसान को धीरे धीरे लंबे संयुक्त जीवन में इसे हासिल करना चाहिए। ऐसे सौभाग्य का आनंद दीर्घकालिक होता है।
एक अच्छे परिवार के गठन के लिए ज़रूरी है कि परिवार के संबंध में हमारा नज़रिया सही हो। इस्लाम जिसे अच्छा परिवार समझता है उसमें तीन विशेषताएं सुकून, प्रेम और कृपा होती हैं। ऐसा परिवार ईश्वर की बंदगी का केन्द्र होता है।
जिस समय हज़रत अली अलैहिस्सलाम से पूछा गया कि आपने हज़रत फ़ातेमा ज़हरा को कैसा पाया, तो उन्होंने कहा कि ईश्वर की बंदगी में सबसे ज़्यादा सहयोग देने वाली। इसी तरह आपने यह भी फ़रमायाः जब भी मैं घर में दाख़िल होता था और मेरी नज़र फ़ातेमा के चेहरे पर पड़ती थी तो मैं जीवन की सभी कठिनाइयों को भूल जाता था, सुकून का आभास करता था और इसी सुकून की वजह से मैं ईश्वर की वंदना करता था।
एक अच्छे परिवार की एक और विशेषता यह है कि उसमें नस्ल का अच्छा प्रशिक्षण होता है। इस्लामी शिक्षाओं में है कि जब जीवन साथी का चयन करना चाहो तो ऐसे जीवन साथी का चयन करो जो तुम्हारी संतान के लिए अच्छी मां हो। इस्लामी शिक्षाओं से सुसज्जित जीवन एक स्वस्थ परिवार के वजूद में आने की पृष्ठिभूमि है। परिवार, समाज में कोशिका की हैसियत रखता है और इसी से एक स्वस्थ समाज का गठन होता है।
यह बात भी नहीं भूलना चाहिए कि परिवार में मर्यादा की रक्षा बहुत ज़रूरी है। परिवार के वातावरण में सुकून के कोई ख़िलाफ़ नहीं है लेकिन घर में सुकून हासिल करने के कुछ शिष्टाचार हैं।
इन्हीं शिष्टाचार में एक हलाल रोज़ी की प्राप्ति है जिससे परिवार सुरक्षित होता है। चूंकि आत्मिक स्वास्थ्य हलाल रोज़ी के सही उपयोग पर निर्भर है, इसलिए इस बिन्दु की अनदेखी का इंसान पर नकारात्मक असर पड़ता है। इसलिए पति पत्नी को हलाल आय के स्रोत की प्राप्ति कोशिश करनी चाहिए। हलाल रोज़ी की प्राप्ति से परिवार व समाज का नैतिक व भावनात्मक विकास होता है। जो व्यक्ति हलाल रोज़ी से अपनी पत्नी के आराम की सोचता है, घर का माहौल ख़ुशहाल रहता है और बीवी पूरी तनमयता से जीवन को आनंदित बनाती है।