Mar ०४, २०१९ १२:५३ Asia/Kolkata

कार्यक्रम का आरंभ पवित्र क़ुरआन के रूम नामी सूरे की आयत नंबर 21 के अनुवाद से कर रहे हैं।

इस आयत में ईश्वर कह रहा हैः "और यह भी उसकी निशानियों में से है कि उसने तुम्हारी सहजाति से तुम्हारे लिए जोड़े पैदा किए, ताकि तुम उसके पास शांति प्राप्ति करो और उसने तुम्हारे बीच प्रेम और दयालुता पैदा की। निश्चय ही इसमें बहुत सी निशानियां हैं उन लोगों के लिए जो सोच-विचार करते हैं।"

पवित्र क़ुरआन के मशहूर व्याख्याकार अल्लामा तबातबाई कहते हैं कि यह भी ईश्वर की निशानी है कि मानव जाति का हर सदस्य अपनी सहजाति से जोड़ा खाता है ताकि बच्चा पैदा हो और इस तरह मानव जाति बाक़ी रहे। उन्हें इस तरह पैदा किया गया है कि एक दूसरे के मोहताज हैं और हर एक दूसरे की संगत में अपनी परिपूर्णतः तक पहुंचता है। परिपूर्णत उस समय हासिल होगी जब ये दोनों सहयोग के ज़रिए एक दूसरे को परिपूर्णतः तक पहुंचाए। इस्लाम ने सामाजिक कामों को अंजाम देने की सूझबूझ में दोनों को बराबर का रोल दिया है। इस समानता का कारण यह है कि जिन चीज़ों की मर्द को ज़रूरत होती है, उन सारी चीज़ों की औरत को भी ज़रूरत होती है। जैसा कि इस बारे में ईश्वर पवित्र क़ुरआन के आले इमरान नामक सूरे की आयत नंबर 195 में फ़रमाता हैः वही है जिसने मर्द औरत को एक जाति से पैदा किया। इसलिए पुरुष और महिला दांपत्य जीवन, पैदाइश और मानव जाति के वजूद को बचाने के मामले में एक समान हैं और हर कोई अपना रोल निभाता है और किसी को किसी पर वरीयता नहीं है।

इस बात में शक नहीं कि इंसान के जीवन में शांति और प्रेम से ख़ुशी आती है लेकिन शांति, सुकून व प्रेम की प्राप्ति तथा आकर्षक शख़्सियत बनाने के लिए त्याग, बलिदान और कठिनाइयों को सहन करना पड़ता है। इस बीच बेटी, बीवी और मां के रूप में मौजूद औरत, जीवन के आरंभ से ही अपने भाइयों, पति और बच्चों के मन में प्रेम व मेहरबानी तथा शांति व सुकून भरे जीवन का पौधा उगा सकती हैं और अब यह मर्दों की ज़िम्मेदारी है कि वे अपने जीवन के बग़ीचे के फूल को अहमियत दें और उसकी रक्षा करें।             

अब आपको ईरान में रहने वाली कुर्द जाति की पारिवारिक संस्कृति से परिचित करा रहे हैं।

विभिन्न समाजों में जीवन साथी के चयन पर समाजों पर छायी हुयी संस्कृति का हमेशा असर रहा है। हर समाज ने अपनी ज़रूरत के अनुसार, जीवन साथी के चयन के संबंध में नियम बनाए ताकि इस प्रक्रिया पर नज़र रखे। मुमकिन है शादी और परिवार का गठन करने वाले लोग यह आभास करें कि उन्होंने जीवन साथी का चयन पूरी आज़ादी से किया है लेकिन उन्हें पता भी नहीं होता कि उन्होंने न जानते हुए भी बहुत ही जटिल सूक्ष्म नियमों व आदर्श का पालन किया है जिनमें पूरे इतिहास के दौरान बहुत से बदलाव आए हैं।

 

आज के ईरानी समाज में अभी भी मां बाप अपने बच्चों की शादी के लिए बहुत बड़ा रोल अदा करते हैं चाहे बच्चे ने ख़ुद ही अपने जीवन साथी का चयन किया हो। अलबत्ता इस रोल की सीमा विभिन्न वर्गों में एक जैसी नहीं है लेकिन कुर्द जाति में यह रोल बहुत मज़बूत है। कुर्दों में रिश्तेदारों में शादी होती है। रिश्तेदारों में शादी करने वाली ज़्यादातर औरतें, अपने बच्चों के लिए भी रिश्तेदारों के बीच शादी का समर्थन करती हैं। उच्च सांस्कृतिक मूल्यों और बड़े परिवार के मूल्यों के प्रति कटिबद्ध रहने वाली औरतें, दूसरी औरतों की तुलना में रिश्तेदारों में विवाह की समर्थक हैं।

ईरान में कुर्दिस्तान में रहने वाले कुर्द समाज में आम तौर पर परिवार बड़ा होता है जिसमें मां-बाप, बेटा, बेटी और उनके मियां बीवी एक साथ रहते हैं, मगर बड़े शहरों में ऐसा नहीं है। कुर्द परिवार व क़बीलों में सदस्यों के बीच इसी मज़बूत संपर्क से आत्मिक सुकून का माहौल बना रहता है। कुर्द औरतों और उनके पति के बीच मज़बूत संबंध की वजह से दोनों एक दूसरे को सहयोगी के रूप में देखते हैं और उनके बीच यह सहयोग विभिन्न क्षेत्रों में साफ़ व पारदर्शी नज़र आते हैं। यही वजह है कि कुर्द समाज में वह बुराइयां लगभग शून्य हैं जो आम तौर पर दूसरे समाजों में नज़र आती हैं। इसके पीछे कुर्द समाज में पारिवारिक ढांचे का बहुत मज़बूत मुख्य तत्व है। इतना मज़बूत कि इस समाज में तलाक़ की दर अन्य समाजों की तुलना में बहुत कम है। कुर्द लोग दूसरों के साथ संपर्क में सम्मान का ख़्याल करते और दूसरों के सुख-दुख में शामिल होते हैं।

कुर्दों के जीवन में एक चीज़ बहुत नज़र आती और वह ख़ुशी में जश्न तथा संगीत कार्यक्रम का आयोजन है। कुर्द ख़ुशी के हर क्षण का आनंद लेते हैं। कुल मिलाकर कुर्दों को ख़ुश रहने वाली व ज़िन्दा दिल जाति कह सकते हैं।

 

कुर्दों के जश्न के समारोह में महिला बहुत बड़ा रोल अंजाम देती है। कुर्द महिला की परिवार, समाज, आर्थिक व कलात्मक गतिविधियों सहित विभिन्न क्षेत्रों में दुनिया के दूसरे समाजों की औरतों के बीच सक्रिय रोल निभाने वाली छवि है। कुर्द महिला की ईरान में कुर्द बाहुल क्षेत्रों में एक प्रभावशाली, सक्रिय और अधिक बच्चों की मां बनने में सक्षम महिला के रूप में पहचान है। कुर्द औरतें घर और परिवार को बहुत अहमियत देती हैं। यह उनकी विशेषता है। कुर्द महिला घर और परिवार की अहमियत को समझते हुए बहुत योगदान देती हैं। जीवन में कठिनाइयों से नहीं घबरातीं बल्कि उनका सामना करती है।          

समाजशास्त्री आज़ाद सनन्दजी का कहना हैः "कुर्द परिवार में औरत की हैसियत घर के खंबे की तरह अहम होती है। उसके बिना घर बिखर जाता है। उसकी हैसियत परिवार के सदस्यों में मौजूद मतभेदों के बीच समन्वय बनाने वाले की तरह होती है। वह घरेलू विवाद को बहुत आसानी से हल कर देती है।"

कुर्द बाहुल क्षेत्र में बच्चे बचपन से ही समाज में प्रचलित रीति रवाज व शिष्टाचार सीखते हैं और उन्हें पारिवारिक धरोहर पर परंपरा की रक्षा के लिए प्रेरित किया जाता है। प्राचीन समय से अब तक कुर्दों के बीच क़ालीन की बुनाई, नमाज़ की विशेष दरी और नमदा नामक विशेष दरी की बुनाई, कुर्द लेबास, गहने बनाने और हाथ से बुना जूता बनाने जैसी कला बाक़ी है। माएं बच्चों को चाहे लड़का हो या लड़की, यह कला सिखाती आ रही हैं।

दुनिया की दूसरे समुदायों की औरतों और कुर्द औरतों के बीच एक अंतर यह है कि कुर्द महिला को अत्याचार, जंग जैसी समाज की बुरी स्थिति यहां तक कि दुश्मन की मौजूदगी भी पारिवारिक, सामाजिक व आर्थिक गतिविधियों के अंजाम देने से नहीं रोक सकती। वह कठिनाइयों में अपने पति के साथ अपनी क्षमता व कौशल का और अच्छी तरह प्रदर्शन करती है।

कुर्द परिवारों की एक और विशेषता उनका रंग बिरंगे कपड़े पहनना है। कुर्द महिलाएं पूरे इस्लामी हेजाब के साथ रंग बिरंगे कपड़े पहनती हैं। उनका मानना है कि इस तरह के लेबास से कुर्द बाहुल इलाक़ों में महिलाओं को पूरी आज़ादी के साथ समाज में सक्रिय रोल अदा करने का मौक़ा मिलता है।     

 

सफल विवाह की कसौटी के लिए दर्जनों विकल्प हो सकते हैं। लोग अलग अलग तौर तरीक़े के होते हैं और हर व्यक्ति की नज़र में उसकी अपनी कसौटी हो सकती है। इस संबंध में पवित्र क़ुरआन ने कुछ मानदंड बताए हैं।

जीवन साथी के चयन में पवित्र क़ुरआन में जिस पर बात बहुत अधिक बल दिया गया है वह जीवन साथी की आस्था है। इस्लाम की नज़र में पति पत्नी की आस्था एक होनी चाहिए। अगर पति पत्नी में कोई एक अनेकेश्वरवादी आस्था का है तो उनके बीच विवाह नहीं हो सकता और अगर हुआ है तो वह निरस्त है।

पवित्र क़ुरआन में इसका कारण यह बताया गया है कि अनेकेश्वरवादी नरक की ओर ले जाता है। क्योंकि अनेकेश्वरवादी पथभ्रष्ट होता है और उसका अंजाम तबाही व नरक है।

इसके मुक़ाबले में ईश्वर पर आस्था रखने वाला मोमिन बंदा है। जिसके व्यवहार से कृपा, प्रेम और क्षमाशीलता ज़ाहिर होती है। मोमिन बंदे का क़दम ईश्वर की प्रसन्नता के लिए उठता है। जीवन और सृष्टि के संबंध में मोमिन और अनेकेश्वरवादी व्यक्ति के नज़रिये में मूलभूत अंतर होता है। यही वजह है कि विवाह के लिए जिस तरह के समन्वय व एकता पर बल दिया गया है वह अलग अलग आस्था की स्थिति में संभव नहीं हैं। विवाह के लिए ऐसे प्रेम की ज़रूरत है जिसे समान आस्था के ज़रिए परिपूर्णतः तक पहुंचाया जा सकता है।

पवित्र क़ुरआन में इस बिन्दु को स्पष्ट तौर पर बयान किया गया है कि मुसलमान व्यक्ति, अनेकेश्वरवादी आस्था रखने वाली औरत से विवाह नहीं कर सकता। इसी तरह मुसलमान औरत नास्तिक व अनेकेश्वरवादी मर्द से विवाह नहीं कर सकती। जैसा कि पवित्र क़ुरआन के मायदा नामी सूरे की आयत नंबर 5 में ईश्वर मुसलमान और आसमानी धर्म वाली औरतों से शादी करने के बारे में फ़रमाता हैः "तुम्हारे लिए मुसलमान व आसमानी धर्म वाली चरित्रवान औरतें हलाल हैं, उन्हें मेहर देकर उनसे शादी कर सकते हो। व्याभिचारी न बनो और न ही चोरी छिपे अवैध संबंध बनाओ। और जिस किसी ने ईमान की शैली पर चलने से इंकार किया तो उसके कर्म बर्बाद हो गए और परलोक में वह घाटे में रहेगा।"

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