Mar ०९, २०१९ १७:१८ Asia/Kolkata

दुनिया के हर इंसान की भांति बच्चों के भी आरंभिक और व्यक्तिगत अधिकार होते हैं।

बच्चों के सामाजिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक अधिकार भी होते हैं जिनकी बहुत से अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ भी पुष्टि करते हैं और धार्मिक शिक्षाओं में भी इस बात पर बल दिया गया है। इन अधिकारों में बच्चों की स्वतंत्रता, उनकी नागरिकता और पहचान सहित विभिन्न अधिकार शामिल हैं।

नागरिकता और राष्ट्रीयता के अधिकार से संपन्न होने के बारे में बच्चों के अधिकारों के कन्वनेश्न के सातवें और आठवें अनुच्छेद को इसी विषय से विशेष किया गया है। बच्चों के अधिकारों के कन्वेन्शन के सातवें और आठवें अनुच्छेद में स्पष्ट रूप से अपनी पहचान बनाने, राष्ट्रीयता और नागरिकता से संपन्न होने के अधिकारों की ओर संकेत किया गया है। बच्चों के अधिकारों, उनकी नागरिकता और पहचान का विषय कठिन और चर्चा योग्य है। नागरिकता और राष्ट्रीयता के अधिकार के बारे में समस्त राष्ट्रों की संवेदनशीलता, किस प्रकार नागरिकता हासिल की जाए, इस बारे में विभिन्न क़ानूनी और धार्मिक दायित्वों और इस बारे में पाई जाने वाली चिंताओं के विषय की ओर बच्चों के कन्वेन्शन के सातवें और आठवें अनुच्छेद में स्पष्ट रूप से कहा गया है। यही कारण है कि इस कन्वेन्शन के दूसरे और सातवें अनुच्छेद में सरकार को इस बात का दायित्व सौंपा गया है कि वह हर बच्चे को इस अधिकार से संपन्न करने के लिए उचित कार्य और उपाय करें।

 

बच्चे स्वतंत्र हैं और उन्हें दूसरे इंसानों की भांति स्वतंत्र रहने का अधिकार है। स्वतंत्रता के अधिकारों में, अभिव्यक्ति की स्वतंत्र तो  वैचारिक और धार्मिक स्वतंत्रता जैसे विभिन्न विषय शामिल हैं। बच्चों के अधिकारों के कन्वेन्शन के 12वें से 17वें अनुच्छेद में बच्चों की स्वतंत्रता के विषय को पेश किया गया है। अलबत्ता यह स्पष्ट है कि यह अधिकार उन बच्चों से संबंधित हैं जो किसी सीमा तक वैचारिक स्वतंत्रता से संपन्न हैं। शायद यह कहा जा सकता है कि इस बारे में मेरा तात्पर्य वे बच्चे हैं जो अपने आसपास के मामलों को अच्छी तरह समझने की क्षमता रखते हैं।

आस्था को स्वतंत्रतापूर्वक बयान करने के अधिकार के बारे में बच्चों के अधिकारों के कन्वेन्शन 12 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वह बच्चे अपनी अपनी आस्थाओं को संगठित करने और उसको स्वरूप प्रदान करने की क्षमता रखते हैं और उन्हें यह अधिकार है कि वे स्वतंत्रतापूर्वक ढंग से अपने दृष्टिकोणों और आस्थाओं को बयान करें। इसी प्रकार बच्चों को अनुमति दिए जाने की आवश्यकता है कि वे न्यायपालिका और कार्यालय के मामलों में अपने दृष्टिकोण सीधे या अपने प्रतिनिधि द्वारा बयान करें।

बच्चों के अधिकारों के कन्वेन्शन के 12वें अनुच्छेद के अनुसार सरकार की यह ज़िम्मेदारी है कि वह ऐसी भूमिका प्रशस्त करे ताकि बच्चे सामाजिक, राजनैतिक व धार्मिक मामलों में अपनी आस्थाओं और अपने दृष्टकोणों को स्वतंत्रतापूर्वक बयान करे और इसी प्रकार अदालती और क़ानूनी मामलों में बच्चों को दृष्टिकोण बयान करने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिये। वास्तव में इस विषय की समीक्षा इस तरह की जा सकती है कि सामाजिक व पारिवाररिक क्षेत्रों और अदालती मामलों में बच्चों को चाहिए कि वे अपने दृष्टिकोणों को स्वतंत्रतापूर्वक बयान करें और इस संबंध में आवश्यक भूमिका प्रशस्त किए जाने की ज़रूरत है।

अलबत्ता हर समाज और हर राष्ट्र में विशेष साहित्य और संस्कारों के आधार पर इस विषय पर ध्यान दिया गया है कि बच्चों के विकास और प्रगति के लिए उनको हर विषय पर स्वतंत्रतापूर्वक अपने दृष्टिकोण बयान करने का हक़ दिया गया है। अलबत्ता इस का यह अर्थ नहीं है कि जीवन का संचालन और बच्चों के मामले, उसके व्यक्तिगत दृष्टिकोणों के आधार पर तैयार किए जाएं।  इस्लाम धर्म बच्चों के समर्थन और उनके हितों की रक्षा के लिए अभिभावकता का दृष्टिकोण पेश करता है और इससे पहले इस विषय की ओर हमने संकेत किया था और इस बारे में इस्लाम धर्म के दृष्टिकोणों से आपको अवगत भी कराया था।

वैचारिक स्वतंत्रता, आस्था और धर्म के चयन के लिए स्वतंत्रता का अधिकार, बच्चों की स्वतंत्रता के अधिकार के दूसरे चरितार्थ हैं। बच्चों के अधिकारों के कन्वेन्शन के 14वें अनुच्छेद में वैचारिक स्वतंत्रता और बच्चों की धार्मिक व आस्था संबंधी स्वतंत्रता को बयान किया गया है। इस अनुच्छेद में आया है कि  कन्वनेश्न पर हस्ताक्षर करने वाले देशों की ज़िम्मेदारी है कि वे बच्चों की धार्मिक, आस्था और वैचारिक स्वतंत्रता का सम्मान करें, आस्था और धर्म बयान करने की स्वतंत्रता केवल क़ानून के अनुसार हो और क़ानून व्यवस्था की रक्षा करके सार्वजनिक सुरक्षा, नैतिकता तथा स्वतंत्रता दूसरे के लिए उपहार में ली जा सकती है।

मानवाधिकार के वैश्विक घोषणापत्र तथा राजनैतिक व नागरिक अधिकारों के अंतर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञापत्र में भी सभी मनुष्यों की धार्मिक, आस्था संबंधी तथा वैचारिक स्वतंत्रता पर बल दिया गया है। उक्त अनुच्छेद बच्चों के लिए इस हक़ को सीमित्ता के साथ स्वीकार करता है। इस अनुच्छेद की दूसरी धारा में बच्चों के अपने अधिकारों की प्राप्ति और अपने अधिकारों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए मार्गदर्शन प्राप्त करने हेतु माता पिता की भूमिका और सरकार की सहायता पर बल दिया गया है। इस क़ानून की तीसरी धारा में देश के आंतरिक क़ानून की ओर से इस को लागू करने में पेश आने वाली सीमित्ता की ओर संकेत किया गया है। इस अनुच्छेद में माता पिता के मार्गदर्शन के बावजूद इस बिन्दु की ओर संकेत किया गया है कि बच्चे को चाहिए कि वह स्वतंत्रता के साथ अपने धर्म का चयन कर सके। कम से कम 14 अनुच्छेदों में इस तर्क को पेश किया गया है कि आवश्यक नहीं है कि बच्चे 18 साल पहले तक अपने माता पिता के धर्म का अनुसरण करें अलबत्ता यह कन्वेन्शन पहचान की रक्षा के बारे में वर्णित आठवें अनुच्छेद और पारिवारिक वातावरण से वंचित काल में धर्म की रक्षा के बारे में उल्लेख 20वें अनुच्छेद तथा बच्चों के साथ धार्मिक कार्यक्रमों को आयोजित करने की छूट के बारे में 30वें अनुच्छेद में अपने और अपने माता पिता के धर्मों की रक्षा करने के लिए बच्चों के अधिकारों का समर्थन करते हैं।

इस बात के दृष्टिगत 14वां अनुच्छेद इस्लामी शिक्षा के अनुरूप नहीं है और यही कारण है कि दुनिया के कुछ देशों में और शायद अधिकतर इस्लामी देशों में इस अनुच्छेद को क़ानून के रूप में स्वीकार ही नहीं किया गया है और इसका अर्थ यह निकलता है कि इस बारे में सीमित्ता मौजूद हैं यहां तक कि आंतरिक क़ानून भी इससे इंसान को रोकता है।

 

दुनिया के बहुत से देश और माता पिता बच्चों के धर्मों का चयन करते हैं। डेनमार्क में 15 से 18 वर्ष के बच्चों के अभिभावक, या उन्हें चर्च के में ले जाएं या उन्हें चर्च में न ल जाएं, इसके लिए शर्त यह है कि बच्चे इसके लिए राज़ी हों। ब्रिटेन में जब बच्चा एक सीमा तक बढ़ जाता है, यदि बच्चे के अभिभावक उसका धर्म चुन सकते हैं तो उन्हें बच्चे के फ़ैसले को भी दृष्टिगत रखना होगा। इस फ़ैसले से यह मतलब निकलता कि जब भी बच्चे में अच्छी ख़ासी समझ पैदा हो जाए और वह अच्छाई और बुराई को समझने की ताक़त रखता हो तो अभिभावकता की ज़िम्मेदारी माता पिता से लेकर बच्चे के हवाले कर दी जाएगी। इसी प्रकार कोरिया गणराज्य के नागरिक क़ानून में आया है कि बच्चों के अभिभावक पर बच्चे की शिक्षा, उसकी राक्षा और उसके क़ानूनी दायित्यों की ज़िम्मेदारी है। स्वतंत्रता का यह अधिकार बच्चों को माता पिता के लिए बच्चों के शिष्टाचारिक व धार्मिक प्रशिक्षण का ज़िम्मेदार भी क़रार देता है। अलबत्ता कोरिया गणराज्य में बच्चे अपने माता पिता और  उनकी आस्थाओं का अनुसरण करते हैं। रोचक बात यह है कि बच्चे अपने हिसाब से और अपने स्वतंत्र धार्मिक रुझानों से अपने धर्म का चयन करते है। (AK)  

 

टैग्स