इस्लामी क्रांति वरिष्ठ नेता का नववर्ष संदेश
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने नए शमसी वर्ष 1398 को "उत्पादन के बढ़ावा देने" का साल नामित किया है।
वरिष्ठ नेता कहते हैं कि मेरी दृष्टि में उत्पादन का विषय इस वर्ष का केन्द्रीय विषय है। उन्होंने कहा कि मैं इस साल को "उत्पादन के बढ़ावा देने " का नाम देता हूं। उनका कहना था कि सबको इस बात के लिए प्रयास करने चाहिए कि देश में उत्पादन को बढ़ाया जाए। वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह काम साल के आरंभ से शुरू होकर साल के अंत तक जारी रहे ताकि उसके प्रभाव को राष्ट्रीय स्तर पर स्पष्ट रूप में देखा जा सके।
प्रति वर्ष हिजरी शमसी वर्ष के आरंभिक पलों में ईरान की जनता वरिष्ठ नेता के माध्यम से नए साल का संदेश सुनने की इच्छुक रहती है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता सामान्यतः प्रतिवर्ष नए साल के आगमन पर एक संदेश देते हैं जिसमें गुज़रे हुए वर्ष की समीक्षा के साथ ही नए साल के लिए एक नारे का एलान किया जाता है। पिछले कई वर्षों से वरिष्ठ नेता देश के आर्थिक मामलों पर विशेष बल देने के साथ ही राष्ट्रीय उत्पादन को बढ़ावा देने का आह्वान करते हैं। वरिष्ठ नेता ने पिछले वर्ष को "ईरानी उत्पादों के समर्थन" का नारा दिया था। इस वर्ष आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि मेरे हिसाब से इस वर्ष उत्पादन का विषय केन्द्रीय विषय रहेगा अतः सारे देशवासियों को लगातार प्रयास करने चाहिए ताकि देश में उत्पादन बढे।
वरिष्ठ नेता ने अपने नववर्ष के संबोधन में कहा कि पिछले साल ईरान निर्मित वस्तुओं का जनता ने स्वागत किया और यह काम आगे भी जारी रहना चाहिए। उन्होंने नए साल के नारे, "उत्पादन के बढ़ावा देने " के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वर्तमान समय में मुख्य मुद्दा उत्पादन को बढ़ावा देने है। अगर उत्पादन बढ़ेगा तो फिर विभिन्न क्षेत्रों में परिवर्तन होगा। जब देश मे उत्पादन बढ़ेगा तो उसका प्रभाव रोज़गार पर भी पड़ेगा, इससे मंहगाई भी कम होगी, यह बजट को भी प्रभावित करेगा और इससे देश की मुद्रा के अवमूल्यन को भी रोका जा सकता है।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि उत्पादन से उनका तात्पर्य केवल औद्योगिक उत्पादान नहीं है बल्कि इससे उनका उद्देश्य औद्योगिक उत्पादन के साथ ही साथ कृषि उत्पादन, पोल्ट्री फार्मिंग, बड़े उद्योग, कुटीर उद्योग, हस्तकर्घा उद्योग और घरेलू उत्पाद आदि सब ही है। इससे समाज को लाभ पहुंचेगा। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने देश की संसद, जनता, उद्योगपतियों और पूंजीनिवेशकों से मांग की है कि उत्पादन के विकास को वे बहुत ही गंभीरता के साथ अपने कार्यक्रमों में शामिल करें। उन्होंने कहा कि उत्पादकों का समर्थन किया जाना चाहिए, पूंजी निवेशकों की सहायता की जाए, आर्थिक क्षेत्र में सक्रिय लोगों का समर्थन किया जाए बल्कि यह मसझिए कि जो भी देश के लिए पूंजी का प्रबंध कर रहा है उसकी सहायता की जानी चाहिए। देश को विकसित करने के लिए यथासंभव प्रयास जारी रखे जाएं।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने ईरान के विरुद्ध लगे अमरीकी प्रतिबंधों को विफल बताया। उन्होंने देश के विद्वानों, मेघावियों, छात्रों और युवाओं का आहृवान किया कि वे इस अवैध प्रतिबंध को विफल बनाने के लिए आगे आएं। उन्होंने कहा कि अमरीका के अन्यायपूर्ण प्रतिबंधों को विफल बनाने के बहुत से रास्ते मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि प्रतिबंधों का मुक़ाबला करने और वर्तमान समय की आर्थिक स्थिति का सामना करने के लिए बहुत सी राहें मौजूउ हैं।
वरिष्ठ नेता का कहना था कि हमारे पास कमी नहीं है, हमारे पास श्रम बल की कोई कमी नहीं है, प्राकृतिक संसाधनों की भी कमी देश में नहीं है। हमारी भौगोलिक स्थिति बहुत अच्छी है। इन बातों के दृष्टिगत कहा जा सकता है कि हमारे पास संभावनाएं मौजूद हैं और पैसों की भी कमी नहीं है बल्कि देश में मौजूद संभावनाओं के सदुपयोग के लिए उचित प्रबंधन की आवश्यकता है। वरिष्ठ नेता ने कहा कि हमें जेहादी प्रबंधन की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि ईश्वर के मार्ग में निरंतर प्रयास, न थकने की भावना, निष्ठा, जनसेवा और लोगों की भलाई की भावना वे विशेषताए हैं जो जेहादी प्रबंधन में पाई जाती हैं। इस प्रबंधन को वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर आगे बढ़ाया जाए। अब जब इस भावना के साथ शिक्षित वर्ग परस्पर सहयोग के साथ आगे बढ़ेगा तो निश्चित रूप में देश की अर्थव्यवस्था प्रगति करेगी। इस प्रकार देश विकास करते हुए आगे बढ़ेगा।

ईरान ऐसा देश है जिसके पास तेल और गैस के बड़े-बड़े भण्डार हैं। इन प्राकृतिक भण्डारों की उपस्थिति, जहां देश के लिए खुशी और गौरव की बात है वहीं पर इसके अनुचित प्रयोग से कुछ समस्याएं भी पैदा होती हैं। तेल की आय पर निर्भरता से कई प्रकार की आर्थिक समस्याएं अस्तित्व लेती हैं। खेद के साथ कहना पड़ता है कि विगत में ईरान की अर्थव्यवस्था, तेल की आय पर ही निर्भर थी। ईरान की इस्लामी क्रांति के बाद यद्यपि तेल पर निर्भरता कम हुई है किंतु यह पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है जिसे समाप्त होना चाहिए।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता अपने संबोधनों में जिस विषय पर बहुत बल देते हैं वह देश की अर्थव्यवस्था का तेल पर न निर्भर रहना है। उनका मानना है कि हमें केवल तेल की आय पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। यही कारण है कि वरिष्ठ नेता का मानना है कि तेल प्रतिबंधों और तेल से अर्जित धन में कमी को, तेल से निर्भरता दूर करने का साधन बनाते हुए देश के भीतर बनाई जाने वाली वस्तुओं का उत्पादन बढाया जाए। इस संदर्भ में वे कहते हैं कि अनुभव ने दर्शा दिया है कि वे देश जो तेल जैसे प्राकृतिक स्रोत से संपन्न हैं, जब भी उनको तेल से होने वाली आय में कमी होती है तो वे फौरन ही यह बात सोचने लगते हैं कि किसी तरह से तेल की आय पर निर्भरता को समाप्त किया जाए।
यही कारण है कि देश को तेल की आय पर निर्भर्ता से अलग करने के लिए देश के भीतर विभिन्न क्षेत्रों विशेषकर विश्वविद्यालयों और सरकारी केन्द्रों में अध्ययन आरंभ हो चुके हैं। वरिष्ठ नेता ने दबाव को अवसर में बदलने के संबन्ध में उदाहरण पेश करते हुए कहा कि ईरान पर थोपे गए युद्ध के दौरान तेहरान पर हथियारों का प्रतिबंध लगाया गया था। उन्होंने कहा कि हमारे युवाओं और विशेषज्ञों ने बहुत कम संसाधनों से उस समय के आधुनिकतम हथियार बनाए। वरिष्ठ नेता ने कहा कि उसका परिणाम यह हुआ कि वर्तमान समय में ईरान, सैन्य शक्ति के हिसाब से एक मज़बूत देश है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस्लामी गणतंत्र ईरान और पश्चिमी सरकारों के साथ संबन्धों के संदर्भ में कहा कि वे इस बात के पक्षधर नहीं है कि पश्चिम के साथ पूर्ण रूप से संबन्ध समाप्त कर लिए जाएं। उन्होंने कहा कि पश्चिम ने विज्ञान के क्षेत्र में अच्छा काम किया। हिम्मत करके प्रयास किये, विज्ञान के क्षेत्र में वे आगे बढ़े। इसी प्रकार से उन्होंने तकनीक के क्षेत्र में भी प्रशंसनीय प्रयास किये। इसके अतिरिक्त कुछ नैतिक बातों में भी पश्चिम को अनदेखा नहीं करना चाहिए। वरिष्ठ नेता ने कहा कि अच्छी चीज़ हमें जहां से भी मिले उसे हासिल करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि इन बातों के साथ यह भी सही है कि पश्चिमी सरकारें, जिसमें अमरीका भी शामिल है, अत्याचारी और तानाशाही हैं। वे अतार्किक भी हैं और वर्चस्ववादी भी। वे किसी भी तर्क को स्वीकार नहीं करतीं। वरिष्ठ नेता ने कहा कि पश्चिमी देशों के विस्तारवाद को पिछली कुछ शताब्दियों के दौरान संसार के विभिन्न क्षेत्रों में उनकी विस्तारवादी नीतियों में देखा जा सकता है। इस दौरान पश्चिम ने किस प्रकार से संसार के बहुत से देशों और राष्ट्रों के संसाधनों का दोहन किया। अपने वर्चस्व के दौरान पश्चिमी देशों ने जहां संसार के बहुत से क्षेत्रों से संसाधनों का खुलकर दोहन किया वहीं पर उन क्षेत्रों में वैज्ञानिक तथा आर्थिक प्रगति को भी रोके रखा। वरिष्ठ नेता ने पश्चिमी सरकारों द्वारा उनके वचनों के उल्लंघन की ओर संकेत करते हुए परमाणु समझौते का उल्लेख किया। इस समझौते में पश्चिम विशेषकर अमरीका ने वचनों का पालन नहीं किया बल्कि प्रतिबंध बढ़ा दिये।
उन्होंने पश्चिम की धूर्ततापूर्ण नीति का उल्लेख करते हुए अभी हाल में न्यूज़ीलैण्ड में मुसलमानों के विरुद्ध आतंकवादी हमले की ओर संकेत किया। वरिष्ठ नेता ने कहा कि पश्चिम हमेशा आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष का दावा करता है लेकिन न्यूज़ीलैण्ड के आतंकवादी हमले को पश्चिम के बहुत से नेताओं ने एक सशस्त्र हमला बताया। हालांकि इस आतंकवादी हमले में बहुत बड़ी संख्या में मुसलमान मारे गए। उन्होंने इस्लामी गणतंत्र ईरान के विरुद्ध अमरीकी शत्रुता का उल्लेख करते हुए कहा कि पिछले दो वर्षों के दौरान अमरीकी कांग्रेस में ईरान के विरुद्ध 226 प्रस्ताव पेश किये गए जिनमें से कुछ पारित भी किये जा चुके हैं।
यही कारण है कि पश्चिम की दोमुखी नीति के आधार पर इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का कहना है कि पश्चिम के साथ संबन्ध तो रखे जा सकते हैं किंतु उनपर कभी भी भरोसा नहीं किया जा सकता और न ही उनसे मदद मांगनी चाहिए। नववर्ष के अपने संबोधन में वरिष्ठ नेता ने कहा कि उनके साथ संबन्ध बनाने में कोई हर्ज नहीं है किंतु उनपर भरोसा करना सही नहीं है और उनका पिछलग्गू बनना भी सही नहीं है। उन्होंने कहा कि किसी भी स्थिति में पश्चिम पर भरोसा नहीं करना चाहिए। पश्चिम पर भरोसा करने की एक बुराई यह है कि उनके भ्रष्ट विचार जनता के बीच प्रचलित हो जाते हैं। इन्हीं बुराइयों में से एक, विज्ञान एवं प्रगति को धर्म और आस्था के मुक़ाबले में ला खड़ा करना है।
इस संदर्भ में वरिष्ठ नेता कहते हैं कि ईरान में पहलवी शासनकाल में युवाओं को यह समझाया जाता था कि अगर तुम प्रगति और विकास करना चाहते हो तो तुमको धर्म को छोड़ना होगा। उस काल में कहा जाता था कि धर्म और आस्था तथा प्रगति एकसाथ नहीं हो सकते क्योंकि इनमें आपस में टकराव है। वरिष्ठ नेता पश्चिम की इस विचारधारा को रद्द करते हुए कहते हैं कि इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद ईरान में वैज्ञानिक, औद्योगिक, सांस्कृतिक, सैनिक और अन्य क्षेत्रों में जो प्रगति हुई है वह ईरान के धार्मिक एवं आस्थावान युवाओं और विशेषज्ञों के माध्यम से ही हुई है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने ईरानी राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा कि पश्चिम और अमरीका इस परिणाम पर पहुंचे हैं कि ईरानी राष्ट्र यदि कोई संकल्प कर ले तो वह निश्चित रूप में उसे हासिल कर सकता है। यह बात उनकी समझ में आ गई है कि ईरान की राष्ट्रीय भावना से संघर्ष नहीं किया जा सकता। अब वे ईरानी राष्ट्र के संकल्प को कमज़ोर करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि इस समय संसार में इस बात के लिए अरबों रूपये ख़र्च किये जा रहे हैं कि युवाओं की आस्था को कमज़ोर किया जाए और उनके भीतर से संघर्ष की भावना को कम किया जाए ताकि वे आन्दोलन न कर सकें। यह इसलिए किया जा रहा है क्योंकि उनको पता है कि यदि एसा हो गया तो वह उनके हित में कभी नहीं होगा।