Apr २८, २०१९ १२:४९ Asia/Kolkata

परिवार यानी प्रेम और शांति।

क्या आप इस बात को जानते हैं कि एक सफल परिवार का रहस्य यह है कि उसके समस्त सदस्यों ने एक दूसरे से प्रेम करना सीख लिया है? ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई एक अच्छे परिवार की विशेषता को बयान करते हुए कहते हैं" अच्छा परिवार यानी पति-पत्नी एक दूसरे से प्रेम करते हों, एक दूसरे के प्रति वफादार हों, एक दूसरे का ध्यान रखते हों और एक दूसरे की इच्छाओं का सम्मान करते हों। जो संतान उसमें जन्म ले उसके प्रति अपनी ज़िम्मेदारी का आभास करें और भौतिक व आध्यात्मिक दृष्टि से उसे बड़ा करने के बारे में सोचें। भौतिक व आध्यात्मिक दृष्टि से उसे स्वस्थ बनाने की सोचें। कुछ चीज़ें उसे सीखायें और कुछ चीज़ों से उसे रोकें। उसे अच्छी चीज़ें व विशेषताएं सीखायें। इस प्रकार का परिवार एक देश में होने वाले सुधार का वास्तविक आधार है। क्योंकि इंसानों की प्रशिक्षा इस प्रकार के अच्छे परिवारों में होती है। वे अच्छी विशेषताओं के साथ बड़ा होते हैं। ऐसे लोग बहादुरी, स्वतंत्र बुद्धि व विचार, ज़िम्मेदारी का एहसास, प्रेम का आभास, फैसले लेने का साहस, दूसरे के शुभ चिंतक और मुक्ति के विचार के साथ बड़ा होते हैं। जब किसी समाज के लोग इस प्रकार की विशेषताओं से सम्पन्न होंगे तो वह समाज बर्बादी की ओर नहीं जायेगा।"

आज दुनिया में बड़ी तेज़ी से परिवर्तन हो रहा है। यह परिवर्तन केवल तकनीक व उपकरणों में नहीं हो रहा है बल्कि उसका प्रभाव इंसान के स्वभाव पर भी पड़ रहा है और शिक्षा- प्रशिक्षा की जो व्यवस्था है उसमें भारी परिवर्तन आने का कारण बन रहा है परंतु बुनियादी विषय यह है कि क्या परिवारों, लोगों और शिक्षाप्रशिक्षा के केन्द्रों के पास इन परिवर्तनों से मुकाबले की क्षमता है? इस संबंध में हमने संचार माध्यमों से होने वाले लाभों और नुकसानों की ओर संकेत किया है। हमने इस कार्यक्रम में विशेषज्ञों की राय से लाभ उठाया है।

 

समाजशास्त्रियों के अनुसार अगर समाज के लोग होने वाले परिवर्तनों की भविष्यवाणी कर सकें और उसे स्वीकार कर लें तो उनके पास उसे नियंत्रित करने और उसके मुकाबले की क्षमता रहेगी और परिवर्तनों के अनुसार वे अपने अंदर परिवर्तन उत्पन्न करके विकास की दिशा में प्रगति कर सकते हैं। उस वक्त कोई भी परिवर्तन न केवल भयावह नहीं होगा बल्कि जीवन में उसके प्रति रोचकता भी बढ़ेगी और वह जीवन को नया रूप प्रदान करेगा। आम तौर पर जब हम स्वयं को उन परिवर्तनों के सामने देखते हैं जो हमारे जीवन में होते हैं तो प्रयास करने के बजाये हम शिथिल हो जाते हैं और उसका सामना करने के बजाये भागना चाहते हैं। तकनीक में होने वाले परिवर्तनों के कारण अधिकांश परिवार अपनी आंतरिक समस्याओं में उलझे हैं और इस चीज़ से परिवार की वांछित भूमिका पर कुप्रभाव पड़ रहा है। आज की दुनिया में परिवारों के लिए ज़रूरी है कि जिन चुनौतियों व समस्याओं का उन्हें सामना है उसके मुकाबले के लिए वे आवश्यक चीज़ों को सीख लें किन्तु जब तक उन्हें चुनौतियों और परिवर्तनों की सही पहचान नहीं होगी वे इनका मुकाबला नहीं कर सकते। क्योंकि भविष्य पर ध्यान देना, दूरगामी सोच और परिवर्तनों की भविष्यवाणी विचारों की दुनिया में बुनियादी विषय हैं।

सामाजिक मामलों के विशेषज्ञ मोहम्मद करीमी डिजीटल संचार माध्यमों को परिवारों का नया सदस्य मानते और कहते हैं कि परिवार समाज की पहली इकाई है। इस आधार पर अगर समाज में दीर्घावधि या लघुअवधि के लिए कुछ परिवर्तन करना चाहते हैं तो परिवार में जाना पड़ेगा क्योंकि परिवार के कुछ सदस्य हैं और उन सबके अलग- अलग विचार होते हैं। पिता की सोच, माता की सोच और संतान की सोच। इस समय अधिकांश परिवारों को जिस समस्या का सामना है, वह परिवार के सदस्यों के विचारों में विरोधाभास है। इस आधार पर हमें परिवार को अपनी इच्छा के अनुसार बनाने के लिए उसके पास जाना पड़ेगा उसकी सोच को परिवर्तित करना पड़ेगा। परिवारों में प्रवेश करने और उस्के पास जाने का एक रास्ता संचार माध्यम हैं।

इस समय कम्प्यूटर का होना एक आवश्यकता बन गयी है जिसे विभिन्न स्तरों पर परिवारों में एक सदस्य के रूप में देखा जाता है यहां तक कि वह कम्प्यूटर गेम के रूप में तीन चार साल के बच्चे के साथ रहता है।

माता- पिता को चाहिये कि इस उपकरण के प्रति अपनी जानकारी को अधिक करें क्योंकि कम्प्यूटर के लाभदायक और हानिकारक दोनों ही आयाम हैं। अगर माता- पिता इससे अवगत नहीं होंगे तो इससे पहुंचने वाले नुकसान से वे बच्चों को नहीं बचा सकते। दूसरे शब्दों में इससे जो ज़हर फैल सकता है उसका तोड़ कर सकें और यह संभव नहीं है किन्तु यह कि माता- पिता इसके प्रति अपनी जानकारी को अधिक करें और उसका प्रयोग सही व सीमित करें न कि समाप्त करें और इस उपकरण की उपस्थिति को वांछित तरीके से स्वीकार करें।

एक विचार यह है कि साफ्ट वार से मुकाबले के लिए घरों में कम्प्यूटर रखना ही नहीं चाहिये। इस विचार के संबंध में श्री मोहम्मदी कहते हैं इस विषय को सिरे से खारिज कर देना बहुत आसान है और उसे बड़ी सरलता से अंजाम दिया जा सकता है परंतु इसके अंजाम पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है। अंततः तुम्हारे पास इलेक्ट्रानिक सरकार है और तुम्हारे हिसाब का एक भाग इलेक्ट्रानिक है या विज्ञापनों में उसका प्रचार किया जाता है आप घंटों नगरों के बीच यात्रा करने के बजाये एक क्लिक से अपना कार्य अंजाम दे सकते हैं। इस आधार पर आप कम्प्यूटर को अपने जीवन से समाप्त नहीं कर सकते। कम्प्यूटर को परिवार से समाप्त कर देने की विचार धारा से परिवार को पहुंचने वाला नुकसान ही अधिक होगा और यह कार्य आपकी बेटी के साइबर कैफे जाने का कारण बनेगा और उस समय आपको दूसरी समस्याओं का सामना होगा और उस समय आप उसे नियंत्रित नहीं कर सकते। या इसी प्रकार यह कार्य आपके बेटे के साइबर कैफे जाने का कारण बनेगा और वहां पर वह विभिन्न प्रकार के गेम खेलेगा। वे गेम उसके अंदर रोचकता पैदा करते हैं इस प्रकार आपके बेटे और आपके अंदर दूरी उत्पन्न हो सकती है। इस आधार पर कम्प्यूटर को अपने जीवन से समाप्त कर देने का मैं मुखर विरोधी हूं। इंटरनेट वास्तव में दोधारी चाकू है एक ओर विकास व प्रगति है और दूसरी ओर खतरनाक है। खेद की बात है कि बहुत से लोगों ने उसके खतरनाक पहलु पर ध्यान केन्द्रित कर रखा है और परिवार को यह बताते हैं कि इंटरनेट यानी परिवार में ख़तरे का प्रवेश।

वह आगे कहते हैं” नहीं, मैं इस प्रकार नहीं देखता व सोचता, मेरा मानना है कि हर परिवार अपनी सोच, जानकारी और ज्ञान के आधार पर कम्प्यूटर और नेट की दुनिया से लाभ उठा रहा है। उदाहरण स्वरूप जब स्कूल में शिक्षक बच्चे से कहता है कि इंटरनेट में जाओ और अपने नंबरों को साइट पर देख लो तो क्या उस समय कहा जा सकता है नहीं? इस प्रकार के परिवार के पास समाधान का रास्ता यह है कि सीमित पैमाने पर इंटरनेट लें ताकि लड़का या लड़की नेट का दुरुपयोग ही न कर सके। नेट को समाप्त कर देने का न कोई लाभ नहीं है बल्कि बच्चे के बाहर जाने का कारण बनेगा और वहां पर आप न उसकी निगरानी कर सकते हैं और न ही उसे नियंत्रित कर सकते हैं।

एक दूसरा रास्ता मनोवैज्ञानिक यह पेश करते हैं कि कम्प्यूटर को एसी जगह होना चाहिये जहां परिवार के समस्त सदस्यों की नज़र पड़ती हो। बच्चों के सोने के कमरे में नहीं होना चाहिये। मेरा मानना है कि इंटरनेट को एक ज़रूरी व सहायक चीज़ के रूप में स्वीकार करना चाहिये और उससे इस बात को मज़बूत करना चाहिये कि उससे अच्छे से अच्छा लाभ उठाया जा सकता है खतरे वाले पहलु को मज़बूत न करें। जिस क्षेत्र में हमारी जानकारी जितनी अधिक होगी उतना अधिक उन खतरों व चुनौतियों से मुकाबले की हमारी क्षमता अधिक होगी जिनसे हमें नुकसान पहुंच सकता है।

इस्लामी और पवित्र कुरआन की शिक्षाओं के अनुसार पति-       पत्नी दोनों में समस्त परिपूर्णतायें संयुक्त रूप से पाइ जाती हैं और इसमें कोई स्पष्ट अंतर नहीं है। उदाहरण स्वरूप परिपूर्णता, इरादा, चयन, पहचान के संसाधन, समझ और मार्ग दर्शक आदि का होना वे चीज़ें हैं जिसे महान ईश्वर ने महिला और पुरुष दोनों को समान रूप से दिया है। इसी प्रकार महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने दोनों को परिपूर्णता व विकास की संभावनाएं प्रदान की हैं। महान ईश्वर ने दोनों को शक्ति और चयन का अधिकार दिया है और दोनों के मार्गदर्शन के लिए संदेशक व पैग़म्बर भेजे हैं। इसी प्रकार महान ईश्वर ने आंख, कान और बुद्धि जैसी नेअमत से सबको नवाज़ा है। महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे नहल की 78वीं आयत में कहता है” ईश्वर ने तुम्हें यानी महिला और पुरूष को तुम्हारी मांओं के पेट से बाहर निकाला है जबकि उस समय तुम कुछ भी नहीं जानते थे और उसने तुम्हें कान, आंख और बुद्धि दी ताकि उसका शुक्र अदा करो।“

इसी प्रकार ईश्वरीय शिक्षाओं में आया है कि अच्छे कार्यों का पुण्य प्राप्त करने में महिला और पुरुष के मध्य कोई अंतर नहीं है और हर एक को उतना ही मिलेगा जितना वे प्रयास करेंगे। पवित्र कुरआन इस संबंध में कहता है” मैं तुममें से किसी एक के काम के पारीतोषिक को बर्बाद नहीं होने दूंगा चाहे मर्द हो या औरत।“

इस आधार पर मर्द व औरत जब एक परिवार में होते हैं तो दोनों विकास व प्रगति के साथ परिवार की मज़बूती में बराबर के भागीदार हैं और दोनों का दायित्व है कि वे परिवार की मजबूती के लिए प्रयास करें। इसी प्रकार दोनों का दायित्व है कि वे परिवार को विकास, शांति और संतान की शिक्षा- प्रशिक्षा और भौतिक व आध्यात्मिक विकास के केन्द्र में परिवर्तित करने का प्रयास करें।

 

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