Apr २८, २०१९ १६:२८ Asia/Kolkata

हमने "तसव्वुफ़" या सूफ़ी के क्षेत्र में दक्षता रखने वाले एक जानेमाने ज्ञानी के बारे में वार्ता की थी।

इस क्षेत्र के जानकारों में वे कुछ अलग ही दिखाई देते हैं।  उनका पूरा नाम हुसैन बिन मंसूर हल्लाज था।  मंसूर हल्लाज का संबन्ध तीसरी शताब्दी हिजरी क़मरी से था।  वे इतने विचित्र थे कि उनके जन्म, उनके जीवन, उनकी मृत्यु और जीवन से संबंधीत बातों के बारे में लोगों को कुछ अधिक ज्ञात नहीं है।  उनके बारे में ईरानी और पश्चिमी शोधकर्ताओं को भी विस्तार से कुछ नहीं पता है।

जैसाकि हम आपको पहले बता चुके हैं कि ईरानी तथा ग़ैर ईरानी शोधकर्ताओं के अथक प्रयासों के बावजूद अभी भी ईरानी सूफ़ी हुसैन बिन मंसूर हल्लाज के बारे में अधिक जानकानी एकत्रित नहीं की जा सकी हैं।  उनका अस्ल नाम हुसैन था जबकि उनके पिता का नाम मंसूर था।  प्राचीन किताबों में हल्लाज की जन्म तिथि के बारे में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं मिलता।  हालांकि कुछ जानकारों का कहना है कि हल्लाज का जन्म लगभग 244 हिजरी क़मरी बराबर 858 ईसवी में हुआ था।  कुछ जानकारों का मानना हे कि उनका जन्म 248 हिजरी क़मरी बराबर 862 ईसवी में हुआ था।  हुसैन हल्लाज का जन्म फार्स के क़रिया नाम स्थान पर हुआ था जो बैज़ा क्षेत्र में स्थित था।  वे बचपन में ही अपने परिवार के साथ इराक़ चले गए थे।  हुसैन बिन मंसूर हल्लाज के बारे में यह भी नही पता चलता कि उनका उपनाम हल्लाज क्यों था।  हालांकि हल्लाज का अर्थ होता है रूई धुनने वाला।

हुसैन हल्लाज ने अधिक से अधिक ज्ञान अर्जित करने के उद्देश्य से अपनी जवानी में ही दूरस्थ क्षेत्रों की यात्राएं आरंभ कर दी थीं।  उन्होंने अपने काल के कई जानेमाने गुरूओं से ज्ञान अर्जित किया जैसे सुहैल बिन अब्दुल्लाह तस्तरी, उमर बिन उस्मान मक्की तथा जुनैद नहावंदी आदि।  अपने गुरूओं के निकट हल्लाज को विशेष महत्व प्राप्त था।  हुसैन हल्लाज ने अपने जीवन में तीन बार हज किया।  उनके बारे में कहा जाता है कि वे जहां भी जाते थे उनके मानने वालों और समर्थकों की संख्या बहुत अधिक हो जाती थी।  उनके काल के लोग हुसैन बिन मंसूर हल्लाज को एक सुधारक के रूप में देखते थे।  यही कारण है कि वे जहां भी जाते उनके चारों और उनके मानने वालों की भीड़ लग जाया करती थी।  हल्लाज की लोकप्रियता के कारण उनके काल के शासक यहां तक कि कुछ धर्मगुरू भी उनके विरोधी हो गए थे।  कुछ लोग उनके बारे में भ्रांतियों के शिकार को गए थे।  यही वजह है कि हल्लाज के विरुद्ध विभिन्न प्रकार के आरोप लगने लगे और अंततः उनको जेल में डाल दिया गया।  8 वर्षों तक जेल में रहने के बाद 24 ज़िलहिज सन 309 हिजरी क़मरी को हुसैन हल्लाज को फांसी दे दी गई।

हुसैन बिन मंसूर हल्लाज की मौत के बाद दुनिया में उनके बारे में दो प्रकार के विचार पाए जाते हैं।  एक उनकी पवित्रता और उनके भीतर पाया जाने वाला रहस्यवाद और दूसरे उनके विरुद्ध लगाए जाने वाले आरोप।  यही वे बाते हैं जिनके कारण उनके जीवन के बारे में कुछ अस्पष्टता पाई जाती है।  उनके बारे में फैसला चाहे जो कुछ भी किया जाए किंतु निष्कर्ष यह है कि वे अपने काल के प्रभावी व्यक्ति थे।  उनके समर्थक एवं विरोधी सब ही उनके बारे में कुछ न कुछ विचार रखते थे।  कुछ लोगों का कहना है कि मंसूर हल्लाज का व्यक्तित्व यदि प्रभावशाली न होता तो उनके साथ एसा नहीं होता।  शायद यही वजह है कि मंसूर हल्लाज को ईरान के सूफ़ीवाद में एक प्रभावशाली व्यक्तित्व के रूप में देखा जाता है।

 

हल्लाज को अपनी रचनाओं से उतनी ख्याति नहीं मिली जितनी ख्याति उन्हें अपने विचारों और मृत्यु से मिली।  पिछले कार्यक्रम में हम यह बता चुके हैं कि हल्लाज की बहुत सी पुस्तकें हैं किंतु उनमें से बहुत कम ही इस समय उपलब्ध हैं।  हालांकि हल्लाज की बहुत ही कम रचनाएं उपलब्ध हैं किंतु बहुत सी किताबों में उनके विचार और उनसे संबन्धित बातें मौजूद हैं जिनसे उनके व्यक्तित्व तथा उनके विचारों के बारे में जानकारी एकत्रित की जा सकती है।  फ़्रांस के जाने माने ओरियंटलिस्ट लुई मैसिनयो ने  भी हल्लाज के बारे में बहुत कुछ लिखा है।  कहते हैं कि हल्लाज की बहुत सी बातों को समझना सरल नहीं है क्योंकि उनकी कुछ बातें बहुत ही जटिल हैं जो आम आदमी की समझ से बाहर हैं।  हालांकि जो लोग तर्कशास्त्र या दर्शनशास्त्र का ज्ञान रखते हैं उनके लिए उन्हें समझना कठिन नहीं है।

अगर हम यह चाहते हैं कि संक्षेप में मंसूर हल्लाज के मूल विचार को व्यक्त करें तो उसे एक वाक्य में इस प्रकार से कहा जा सकता है कि ईश्वर और उनकी निकटता ही उनके विचारों का केन्द्रीय बिंदु था।  उनका जीवन और मृत्यु भी उनके पूरे जीवन की व्याख्या करते हैं।  हल्लाज पूरी निष्ठा के साथ एकेश्वरवाद के समर्थक थे।  वे अपने विचारों में एकेश्वरवाद को भी वरीयता देते थे।  हल्लाज की एक मनोकामना थी कि वे ईश्वर के बहुत निकट हो जाए।  इतना निकट कि सारी दूरियां समाप्त हो जाएं।  दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि वे ईश्वर से बहुत प्रेम करते थे और उसी की याद में डूबे रहते थे।

उस्ताद ज़र्रीनकूब के अनुसार हल्लाज के सूफ़ी में प्रेम और जोश पाया जाता है।  वे ईश्वर से प्रेम का निमंत्रण देते थे।  उनका मानना था कि ईश्वर ही वास्तविक प्रेम का स्रोत है और वह चाहता है कि उससे प्रेम किया जाए।  उन्होंने स्वयं को पूर्ण रूप में ईश्वर को समर्पित कर दिया था।  ईश्वर का प्रेम उनके पूरे अस्तित्व के भीतर भरा हुआ था।  यह इतना अधिक था कि उसे नियंत्रित करने की उनके भीतर क्षमता नहीं थी।

ईश्वर की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए हल्लाज कहते हैं कि हृदय में उसे रखा नहीं जा सकता।  आखें उसको देख नहीं सकतीं।  उसे किसी स्थान पर सीमित नहीं किया जा सकता।  उसे विचारों या कल्पना में क़ैद नहीं किया जा सकता।  उसकी सारी विशेषताओं का वर्णन करना मनुष्य के बस की बात नहीं है।  ईश्वर सदा ही हमारे साथ है।  अंत में हल्लाज कहते हैं कि ईश्वर को केवल मन की दृष्टि से ही देखा जा सकता है।  ईश्वर के संबन्ध में वे कहते हैं कि हे लोगो! ईश्वर ने अपनी सृष्टि को कृपा के आधार पर बनाया है।  वह हमारी आखों से ओझल है।  वह हमको दिखाई नहीं देता किंतु हमारी हर गतिविधि पर नज़र रखता है।

हल्लाज, ईश्वर के प्रति अपने प्रेम का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि मैं अभी भी प्रेम के महासागर में डूबा हुआ हूं।  महासागर की मौजें मुझको इधर-उधर कर रही हैं।  यह मौजें कभी मुझको ऊपर ले जाती हैं तो कभी महासागर के बिल्कुल ही नीचे।  मैं उसका नाम लिए बिना ही उसको आवाज़ देता हूं।  ईश्वर के साथ प्रेम में मैंने कभी भी विश्वासघात नहीं किया।  बुराइयों के समय मैं तेरी शरण में आता हूं और बुराइयों से बचना चाहता हूं।

मंसूर हल्लाज को ईश्वर की खोज की भावना थी।  उन्हें ईश्वर से अथाह प्रेम था।  उनकी एक पुस्तक "अख़बारे हल्लाज" में एक स्थान पर ईश्वर के बारे में मिलता है कि हे ईश्वरः तेरे प्रेम में मुझको जो मिला है उसकी तुलना में मैं धरती, आकाश, पर्वत, समुद्र और इसी प्रकार की सभी चीज़ों को महत्वहीन समझता हूं।  वे कहते हैं कि यदि तू अपने प्रेम के एक क्षण के बदले में मुझको स्वर्ग भी देगा तब भी मैं उसे लेने को तैयार नहीं हूं।  हे ईश्वर अपने बंदों पर कृपा कर और मुझको भी अपनी कृपा का पात्र बना।  हे ईश्वर तू मेरे साथ जो कुछ भी करना चाहता है वैसा ही कर।