Apr २९, २०१९ १४:४३ Asia/Kolkata

हमने पहले बताया था कि इस्लाम की दृष्टि में बच्चों को विशेष अधिकार प्राप्त हैं। 

इन विशेष अधिकारों के अतरिक्त वे जो बच्चे विशेष परिस्थितियों में रहते हैं उनके लिए विशेष अधिकारों का प्रावधान है। 

इस्लाम के अनुसार अवैध बच्चे उन बच्चों को कहा जाता है जो महिला और पुरूष के अवैध संबन्धों के कारण जन्म लेते हैं।  क़ानूनी दृष्टि से जो ख़ूनी रिश्ते होते हैं वे दो लोगों के बीच प्राकृतिक रिश्ते होते हैं।  यही कारण है कि कुछ धर्मगुरूओं ने अवैध संबन्धों से पैदा होने वाले बच्चों को ख़ूनी रिश्ता मानते हैं।  शायद यही कारण है कि अवैध रूप से पैदा होने वाले बच्चों के बारे में धर्मगुरूओं के बीच मतभेद पाए जाते हैं।  इमामी फ़िक़ह में इस बारे में दो प्रकार के दृष्टिकोण पाए जाते हैं।  पहला दृष्टिकोण यह है कि अवैध रूप से पैदा होने बच्चों का संबन्ध उस महिला और पुरूष से हैं जिनके माध्यम से वे इस संसार में आए हैं।  "ज़िना" के माध्यम से जो बच्चे पैदा होते हैं उनके बारे में शिया धर्मगुरूओं के बीच दो दृष्टिकोण पाए जाते हैं।  पहला दृष्टिकोण यह है कि एसा बच्चा अपने माता और पिता से ही संबन्धित माना जाएगा और उसको केवल अपने माता एवं पिता से ही "इरस" मिलेगा।  उदाहरण स्वरूप यदि किसी व्यक्ति के किसी महिला के साथ अवैध संबन्ध हों और उससे बच्चा पैदा हो तो वह उनका ही माना जाएगा किंतु दूसरा दृष्टिकोण यह है कि वह बच्चा अपने माता और पिता से संबन्धित नहीं माना जाएगा।

*अन्तर्राष्ट्रीय केन्वेंशन में भी उनके बच्चों के अधिकारों की बात कही गई है जो अवैध रुप से जन्म लेते हैं।  मानवाधिकारों के घोषणापत्र के 25वें अनुच्छेद के आधार पर अवैध ढंग से जन्म लेने वाले बच्चे और उनकी माता को यह अधिकार है कि उनका ध्यान रखा जाए और उनकी सहायता की जाए।  इस घोषणापत्र के अनुसार बच्चा चाहे वैध या अवैध किसी भी ढंग से जन्मा हो उसे उसके अधिकार मिलने चाहिए।

 

इसी प्रकार सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा क़ानूनी अधिकारों से संबन्धित घोषणापत्र के तीसरे अध्याय के दसवें अनुच्छेद में भी बिना किसी भेदभाव के बच्चों और किशोरों के समर्थन की बात कही गई है।  इसमें बच्चों के दुरूपयोग को रोकने का भी आह्वान किया गया है।  बाल अधिकारों के अन्तर्राष्ट्रीय घोषणापत्र में सभी बच्चों को समान अधिकार देने की बात कही गई है।  इसके पहले अध्याय के दूसरे अनुच्छेद में कहा गया है कि इसके सदस्य देशों का दायित्व बनता है कि उनके यहां रहने वाले बच्चों के साथ जाति, रंग, धर्म, भाषा, राजनीतिक सोच और राष्ट्रीयता के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव न किया जाए।

मूल रूप में यह कहा जा सकता है कि जो बच्चे विशेष प्रकार की परिस्थितियों में रह रहे हैं उनके लिए विशेष समर्थन की आवश्यकता है।  इसी प्रकार समाज के सभी लोगों और सरकारों के लिए ज़रूरी है कि वे उसको व्यवहारिक बनाने में सहायता करें।  इस विषय के बारे में तीन बातें बहुत महत्वपूर्ण हैं।  पहली प्रकार के बच्चे एसे हैं जिनके माता-पिता, एक-दूसरे से अलग होना चाहते हैं या आपस में झगड़े करते रहते हैं।  दूसरे नंबर के वे बच्चे हैं जो शरणार्थी हैं।  तीसरे वे बच्चे हैं जो नाना प्रकार की हिंसा की ज़द में हैं जैसे बाल मज़दूरी, बाल तस्करी या इसी प्रकार की अन्य समस्याएं।

पारिवारिक कलह से तातपर्य एसा परिवार जहां पर माता-पिता के बीच आए दिन झगड़े होते हों और एसे झगड़े जो बाद में तलाक़ का कारण बनें।  पति और पत्नी के बीच मतभेदों को पवित्र क़ुरआन में "नुशूज़" शब्द से याद किया गया है।  पवित्र क़ुरआन की व्याख्याओं में नुशूज़ शब्द के लिए कई अर्थ बताए गए हैं जैसे आज्ञा न मानना, पाप, विरोध, अपनी बात पर अड़े रहना।  पवित्र क़ुरआन में पति तथा पत्नी के बीच मतभेदों का उल्लेख सूरे नेसा की आयत संख्या 34 और 128 में मिलता है।  इन आयतों में इस समस्या से समाधान का मार्ग भी दिखाया गया है।  पवित्र क़ुरआन के अनुसार नाशेज़ पति और नाशेज़ा पत्नी उन्हें कहा जाता है जो एक-दूसरे के प्रति अपने धार्मिक और क़ानूनी दायित्वों का निर्वाह न करते हों।

बहुत से अवसरों पर देखा गया है कि पति और पत्नी बच्चों की उपस्थिति में ही झगड़ा करना शुरू कर देते हैं।  वे लोग यह समझते हैं कि बच्चे तो छोटे हैं अतः वे इन बातों को समझ नहीं पाएंगे।  जानकारों का कहना है कि माता और पिता के बीच मतभेद चाहे किसी भी स्तर के हों उनका प्रभाव बच्चों के विकास विशेषकर मानसिक विकास पर अवश्य पड़ता है। जिन माता-पिता के बीच आए दिन झगड़े होते रहते हैं उनके बच्चे कभी-कभी तनाव में देखे जाते हैं जिसका मुख्य कारण माता-पिता का झगड़ा होता है।

जब माता और पिता के बीच मतभेद बहुत ही गंभीर हों और वे तलाक़ लेने का निर्णय कर लें तो ऐसे स्थिति में इसका प्रभाव बच्चों पर बहुत अधिक पड़ता है।  इस प्रकार के बच्चों की सबसे बड़ी मुश्किल यह होती है कि वे इस धर्मसंकट में पड़ जाते हैं कि किस ओर जाएं।  एसे बच्चों की समझ में नहीं आता की तलाक़ की स्थिति में में वे माता का साथ दें या फिर पिता के साथ जाएं।  इस प्रकार के फैसले बच्चों के लिए बहुत ही दुखद और गंभीर दुष्परिणाम वाले होते हैं।

संसार के कुछ देशों में यह क़ानून पाया जाता है कि जो माता-पिता, तलाक़ देने के इच्छुक हैं उनके तलाक़ लेने की प्रक्रिया और उसके बाद बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा को विशेष रूप से दृष्टिगत रखा गया है।  संयुक्त राज्य अमरीका के कुछ राज्यों में तलाक़ से संबन्धित क़ानून में बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के उद्देश्य से कुछ नियम निर्धारित किये गए हैं।  अमरीकी राज्यों के इस क़ानून के अनुसार जज को यह अधिकार प्राप्त है कि वह बच्चों के अधिकारों के लिए एक वकील नियुक्त करे।  इसी प्रकार से कहीं पर यह काम न्यायालय के कांधों पर डाला गया है।  इस प्रकार से कहा जा सकता है कि माता-पिता के तलाक़ लेते समय बच्चों के अधिकारों को दृष्टिगत रखना एक प्रशंसनीय काम है जो वास्तव में विशेष महत्व का स्वामी है।

 

 

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