May ०५, २०१९ १६:४५ Asia/Kolkata

कार्यक्रम का आरंभ भारत के दिवंगत राष्ट्रपति अवुल पाकिर ज़ैनुल आबेदीन अब्दुल कलाम के एक कथन से कर रहे हैं।

वह कहते हैः "अगर कोई देश भ्रष्टाचार मुक्त होकर सुंदर विचारों से संपन्न देश हो जाए तो मेरा मानना है कि ऐसा होने में उस समाज के तीन लोगों मां-बाप और टीचर का निर्णायक रोल रहा है।"

आज के दौर की एक बड़ी कड़वी सच्चाई घरेलू हिंसा है। दुनिया में घर ऐसी शरणस्थल होती है जिसमें रहने वाले सुकून का आभास करें, थकन को दूर करें और बाहर की मुश्किलों से हुयी पीड़ा को भूल जाएं, किंतु अफ़सोस की बात है कि बहुत से लोगों के लिए घर में क्रोध, हिंसा, द्वेष और बदले की आग हर अगले क्षण अधिक धधकती है। घरेलू हिंसा किसी समाज या वर्ग से विशेष नहीं है बल्कि अब दुनिया के लगभग सभी देशों में विभिन्न सामाजिक वर्ग इस समस्या से जूझ रहे हैं। आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक बदलाव के साथ यह समस्या दिन प्रतिधिन अधिक विकराल होती जा रही है।

अंतर्राष्ट्रीय आंकड़ों के अनुसार, दुनिया में 90 फ़ीसद महिलाएं और 10 प्रतिशत परुष घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं। आधुनिक और पारंपरिक समाजों के बीच या पारंपरिक स्वरूप से आधुनिक स्वरूप में बदल रहे समाजों के बीच तुलना दर्शाती है कि पारंपरिक समाजों में घरेलू हिंसा अधिक रही है और सांस्कृतिक व सामाजिक मामलों के हिंसक व्यवहार को छिपाने या उसका औचित्य पेश करने में रोल ने, घरेलू हिंसा के विषय से निपटना अधिक कठिन बना दिया है।

इसके साथ ही घरेलू हिंसा के संबंध में पश्चिमी समाज में महिलाओं के क़ानूनी संरक्षण में होने की वजह से जो विचार मन में आता है, उसके विपरीत पश्चिमी देशों में प्रकाशित होने वाले आंकड़ों पर उचटती हुयी नज़र से पता चलता है कि पश्चिम में भी घरेलू हिंसा पायी जाती है और महिलाएं कार्यालय व दफ़्तरों में यातना व यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं।

 

मिसाल के तौर पर फ़्रांस के गृह मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2017 में फ़्रांस में 100 औरतों की घरेलू हिंसा में मौत हुयी। फ़्रांसीसी पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार, 125 लोग घरेलू हिंसा में या मौजूदा जीवन साथी या पूर्व जीवन साथी के हाथों मारे गए इनमें 109 औरतें और 16 मर्द हैं जो घरेलू हिंसा का शिकार हुए।

 

ऐसा लगता है कि परिवार महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा शुरु होने की पहली जगह है। घरेलू हिंसा शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक या यौन संबंधी हो सकती है जो आम तौर पर सभी सामाजिक वर्गों में विभिन्न आयु वर्ग के बीच घटती है। इससे शायद ही कोई जाति सुरक्षित हो। यहां तक कि विक्लांग लोग भी घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं। बच्चे भी घरेलू हिंसा के नकारात्मक प्रभाव से सुरक्षित नहीं होते। चाहे घेरलू हिंसा थोड़े समय की हो या लंबे समय की। आम तौर पर देखा गया है कि हिंसक व्यवहार वाले लोग वे होते हैं जो बचपन में हिंसा की बलि चढ़े होते हैं या हिंसा को अपनी आंख से देख चुके होते हैं।

इस तरह घरेलू हिंसा किसी एक व्यक्ति तक नहीं रुकती। घरेलू हिंसा का शिकार व्यक्ति बड़े होने और परिवार गठित करने के बाद उसी व्यवहार को अपनाता है और परिवार के भीतर टकराव या तनाव की स्थिति में उसे व्यक्त करता है। घरेलू हिंसा करने वाले, जिसे समाज शास्त्री "हिंसा चक्र" का नाम देते हैं, 80 फ़ीसद अपराधी व असामाजिक तत्व हिंसक माहौल में पले होते हैं। जो लड़के हिंसक पारिवारिक माहौल में पलते हैं, उनमें दूसरे लड़कों की तुलना में बीवियों के साथ हिंसक व्यवहवार करने की संभावना 70 फ़ीसद अधिक होती है।

मोहम्मद अब्दोह का कहना हैः "जान लीजिए कि जो मर्द अपना रोब जमाने के लिए घर में बीवी पर अत्याचार करते हैं, इस बात में शक नहीं कि वे दूसरों के लिए दास को प्रशिक्षित करेंगे।"

             

घरेलू हिंसा के संबंध में एक शोचनीय बात यह है कि जो महिलाएं शारीरिक व मानसिक पीड़ा बर्दाश्त करती हैं, वे नहीं चाहतीं कि उनके जीवन का केन्द्र ढह जाए। इस तरह की कुछ औरतों के लिए हिंसा सहन करना संयुक्त जीवन की एक आदत बन चुकी है मानो उनकी ख़ामोशी ही इस तरह के व्यवहार को बढ़ावा देने का कारण है। बहुत से देशों में महिलाओं की रक्षा और घरेलू हिंसा को रोकने के लिए क़ानून बनाए गए हैं। इस संबंध में क़ानून को विभिन्न सामाजिक क्षेत्र की तरह लोगों के अधिकारों की रक्षा करने वाला होना चाहिए लेकिन लगता है जब यह क़ानून घर की चारदीवारी में पहुंचता है तो रुक जाता है। बहुत से मामलों में उस घर से कोई पूछता तक नहीं है जहां कोई महिला घरेलू हिंसा का शिकार होती है।

क़ानून विद् डॉक्टर मोहम्मद अली नजफ़ी कहते हैः "क़ानून बहुत से मामलों में मर्द और औरत में अंतर नहीं करता। अगर कोई शौहर अपनी बीवी को थप्पड़ मारता है तो उसे क़ानून के सामने उसी सीमा तक जवाबदेह होना चाहिए जिस सीमा तक वह किसी दूसरे मर्द को थप्पड़ मारने की स्थिति में जवाबदेह है, लेकिन घरेलू तत्वों की वजह से बीवी अपने शौहर के ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठाती। वास्तव में इस संबंध में सांस्कृतिक मामले ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं। बहुत सी बीवियां शिकायत के बाद पैदा होने वाली घटनाओं के डर से शिकायत न करना बेहतर समझती हैं।"

स्पष्ट है कि आधे समाज का प्रशिक्षण करने वाली बीवियां, अनुचित व्यवहार, व मनोबल और व्याकुलता की वजह से घर और समाज में अच्छा रोल नहीं अदा कर पातीं। हिंसा मनोवैज्ञानिक मुश्किलों का कारण बनती है जिससे औरत का आत्म विश्वास और मानसिक स्वास्थ्य गिर जाता है। इसी वजह से वह धीरे धीरे समाज और लोगों से दूरी बनाती जाती है।

यह ऐसी हालत में है कि ईश्वर ने पुरुष -औरत को इस तरह समान बनाया है कि दोनों एक दूसरे के अधिकार का हनन नहीं कर सकते। पवित्र क़ुरआन में शौहर पत्ती बीवी के बीच अच्छे ढंग से रहने पर बल दिया गया है और शौहरों को संबोधित किया गया है कि बीवियां तुम्हारे घर में कोमल फूल की तरह हैं जिसके साथ बहुत ही सावधानी भरे व कोमल तरीक़े से व्यवहार करना चाहिए।

इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार, शौहर व बीवी में शादी की वजह से संयुक्त अधिकारों वजूद में आते हैं। यह अधिकार एकपक्षीय नहीं हैं। शौहर बीवी अपने अपने विशेष अधिकार के साथ साथ कुछ संयुक्त ज़िम्मेदारी व कर्तव्य रखते हैं जिनमें से एक दोनों का एक दूसरे के साथ अच्छा व्यवहार है ताकि दोनों मोहब्बत भरे माहौल में ज़िन्दगी गुज़ारें।

 

इस संबंध में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई कहते हैं कि परिवार के माहौल में शौहर बीवी के स्वभाव से दोनों के बीच प्रेमपूर्ण संबंध बनते हैं। अगर इन संबंधों में बदलाव आ जाए, अगर शौहर ख़ुद को स्वामी समझे, बीवी को नौकरानी के रूप में देखे तो यह अत्याचार है, मगर अफ़सोस है कि ज़्यादातर शौहर यह अत्याचार करते हैं। परिवार के बाहर के माहौल में भी ऐसा है। अगर बीवी के पास पढ़ाई, काम करने या आराम के लिए सुरक्षा व सुकून भरी जगह न हो तो यह अत्याचार है। जो भी इस तरह का अत्याचार करे क़ानून और समाज को उससे निपटना चाहिए।

आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई कहते हैः "इस्लाम ने शौहर-बीवी को एक दरवाज़े के दोनों पाट, इंसान के चेहरे पर दो आंखों, जीवन के संघर्ष के मोर्चे पर बैठे दो सिपाही, एक दुकान के दो साझीदार की तरह क़रार दिया है। इनमें से दोनों के शारीरिक, आत्मिक, वैचारिक और भावनात्मक दृष्टि से अपना अपना स्वभाव और आदत है। अगर दोनों उन मानदंडों के आधार पर जीवन बिताएं जो इस्लाम ने निर्धारित किए हैं तो वे एक बाक़ी रहने वाले परिवार के स्वामी होंगे जो मेहरबानी बर्कत और फ़ायदे से भरा होगा।"         

रवायत में है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम अपनी बीवियों से उनके प्रति मोहब्बत व्यक्त करते थे। उनकी एक बीवी का नाम रोबाब था जिन्हें वे बहुत चाहते थे और उनके लिए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने शेर भी कहे हैं जिनका अर्थ हैः तुम्हारी जान की क़सम मैं उस घर को पसंद करता हूं जिसमें सकीना और रोबाब हों। उन दोनों को चाहता हूं और अपनी पूरी संपत्ति उन पर न्योछावर कर दूंगा।

पैग़म्बरे इस्लाम के साथी जनाब जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी ने इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम के हवाले से एक रवायत का उल्लेख किया है कि एक दिन कुछ लोग इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के घर आए तो उन्होंने इमाम के घर में बहुत ही सुंदर क़ालीन और गाव तकिये देखे। उन लोगों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से कहाः हे पैग़म्बरे इस्लाम की संतान! हम आपके घर में ऐसी चीज़ें देख रहे हैं जो हम आपके लिए उचित नहीं समझते। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः "हम शादी के बाद बीवियों को उनका मेहर देते हैं और वे जो पसंद करती हैं अपने लिए ख़रीदती हैं। जो भी चीज़ें आपने देखीं वह मेरी नहीं हैं।"

 

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