घर परिवार- 36
ड्रामा लेखक और साहित्यिक आलोचक बरनार्ड शा,,,, परिवार को स्वर्ग की संज्ञा देते और कहते हैं” एक खुशहाल व प्रसन्न परिवार शीघ्र मिलने वाले स्वर्ग के अतिरिक्त कुछ नहीं है।
तलाक़ ऐसी चीज़ है जो वर्षों से दांपत्य जीवन में होता रहा है। जब पति-पत्नी के मध्य मतभेद बहुत बढ़ जाते हैं और दोनों के मध्य संबंध बहुत तनावग्रस्त हो जाते हैं तो तलाक की नौबत आ जाती है।
एक तलाक़, अदालती होता है। यह तलाक उस समय होता है जब पति-पत्नी अदालत जाकर कानूनी रूप से एक दूसरे से अलग हो जाते हैं और एक दूसरे के प्रति किसी प्रकार के दायित्व के ज़िम्मेदार नहीं होते।
एक मौन या भावनात्मक तलाक होता है। इस प्रकार के तलाक में पति-पत्नी एक ही घर में रहते हैं परंतु उनके मध्य किसी प्रकार का संबंध नहीं होता है। इस तलाक में पति-पत्नी के मध्य जो संबंध होता है वह अपने पतन की ओर अग्रसर होता है। विभिन्न सामाजिक और मानसिक कारण होते हैं जिनकी वजह से यह तलाक अस्तित्व में आता है। शायद पति-पत्नी का एक दूसरे को सही तरह से न पहचानना, एक दूसरे पर भरोसा न करना और आर्थिक मामलों जैसे कारण इस प्रकार के तलाक की वजह बनते हैं। आज के कार्यक्रम में हम इसी तलाक और उसके परिणामों के बारे में चर्चा करेंगे।
जब पति-पत्नी के मध्य मतभेद बढ़ जाते हैं और दोनों एक दूसरे के साथ जीवन व्यतीत करने के लिए तैयार नहीं होते तो उनके बीच एक दूसरे की उपेक्षा की भावना पैदा हो जाती है और यह उनके मध्य संबंधों का अंतिम चरण होता है। पति-पत्नी एक दूसरे के साथ रहते हैं परंतु उनके शरीर एक दूसरे के साथ होते हैं जबकि उनके मध्य किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं होता है। वे केवल साथ में रहते हैं दोनों के मध्य धीरे- धीरे बात- चीत भी कम होती जाती है। पहले उनके जीवन में जो प्रफुल्लता थी उसका स्थान बेजान व क्षुब्ध संबंध ले लेते हैं और धीरे- धीरे दांपत्य जीवन की परिधि से बाहर निकल जाते हैं।
अगर पति-पत्नी एक मकान में रहते हैं तो उसकी वजह यह है कि वे चाहते हैं कि उनके बच्चों का एक परिवार हो और उन्हें माता- पिता का स्नेह प्राप्त रहे किन्तु बच्चे समस्त चीज़ों को देखते हैं, वे अपने माता- पिता के पीड़ादायक जीवन को देखते हैं कि किस प्रकार बिना प्रेम के एक दूसरे के साथ रह रहे हैं। बच्चे देखते व जानते हैं कि उनके घर प्रेम व भावनात्मक संबंध से खाली हैं।
मनोवैज्ञानिक डाक्टर मूसवी कहते हैं” अगर पति-पत्नी एक दूसरे से बात चीत करें तो कभी भी उनके बीच भावनात्मक तलाक की नौबत नहीं आयेगी। जब समस्याओं का समाधान हो जायेगा तो घर में प्रेम व स्नेह फैल जायेगा किन्तु अगर समस्याओं का समाधान न हो उनका स्थान द्वेष और प्रतिशोध ले लेगें। इस प्रकार की परिस्थिति में जीवन रणक्षेत्र में परिवर्तित बन जायेगा और कुछ समय के बाद दोनों दिन प्रतिदिन की लड़ाई- झगड़े से तंग आकर एक दूसरे से अलग हो जायेंगे।
सिद्धांतिक रूप से इंसान के पास इरादे और चयन जैसी शक्ति होती है जिसके कारण इंसान आश्चर्यचकित करने वाला प्राणी है।
समाज में जो इंसान हैं उनके इरादों में विरोधाभासों और अलग-2 रुचियों का पाया जाना इंसानों के सामाजिक संबंध में एक महत्वपूर्ण चीज़ है। इस आधार पर इस बात की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिये कि किसी भी संबंध में विरोधाभास न हो बल्कि लोगों के इरादों में सदैव विरोधाभास रहेगा क्योंकि इंसानों के हालात में भिन्नता और रुचियों का अलग- अलग होना एक स्वाभाविक व प्राकृतिक चीज़ है। जिस तरह इंसान के बचपने, नौजवानी, जवानी, अधेड़पन और बुढ़ापे में अलग -अलग इच्छाएं होती हैं उसी तरह इंसान की इच्छाएं व रुचियां बदलती भी रहती हैं। उदाहरण स्वरूप एक व्यक्ति पहले महिलाप्रेमी होता है बाद में उसकी रुचि महिलाप्रेम से हटकर पैसाप्रेम में परिवर्तित हो जाती है। इसी तरह इसके विपरीत भी हो सकता है। यह भी हो सकता है कि कोई व्यक्ति किसी से प्रेम करे किन्तु कुछ दिनों में यह भी हो सकता है कि वह इंसान उसे छोड़कर किसी दूसरे इंसान से प्रेम करने लगे। दूसरे शब्दों में समस्त इंसानों की रुचियां अलग- अलग होती हैं और रुचियों व रुजहानों में जो मतभेद होते हैं वार्ता द्वारा उन पर सहमति की जा सकती है। पति-पत्नी को चाहिये कि जीवन के आरंभ में ही एक दूसरे को पूरी तरह पहचानें और उस पहचान को एक दूसरे से वार्ता का आधार बनायें। खेद के साथ कहना पड़ता है कि कुछ महिला और पुरुष एक दूसरे के साथ रहने की योग्यता नहीं रखते हैं और दोनों की एक दूसरे से भिन्न रुचियां और रुजहान होते हैं और दोनों अपने दृष्टिकोणों को एक दूसरे पर थोपने का प्रयास करते हैं।
शायद पूरे विश्वास से कहा जा सकता है कि भावनात्मक तलाक का सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि पति-पत्नी दांपत्य जीवन के सही तरीकों से अनभिज्ञ होते हैं। प्रशिक्षा विशेषज्ञ डाक्टर कोबादियान भावनात्मक तलाक को अकारण निंदा व भर्त्सना का परिणाम मानते हैं और वह परिवार विशेषकर दांपत्य जीवन में इस प्रकार की भर्त्सना के विनाशकारी परिणामों के बारे में कहते हैं" इस बात को हमें जानना चाहिये कि तार्किक कारण के बिना निंदा व भर्त्सना का दांपत्य जीवन के संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कभी- कभी एसा भी होता है कि पति या पत्नी अपने जीवन साथी की उस काम के कारण भर्त्सना करते हैं जिसमें उसकी कोई भूमिका नहीं होती है और यह भर्त्सना दोनों के मध्य संबंधों के ठंडा होने का कारण बनती है।
अलबत्ता कुछ अवसरों व मामलों में भर्त्सना रचनात्मक होती है परंतु जिस व्यक्ति की भर्त्सना की जा रही है उसे और भर्त्सना के तरीके को पूरी तरह ध्यान में रखा जाना चाहिये। जो इंसान कटाक्ष करके दूसरों को कष्ट पहंचाता है उसे स्वयं उसी समस्या का सामना होता है। जब पति या पत्नी एक दूसरे की भर्त्सना करते हैं तो परिवार में समस्या उत्पन्न होती है और पति-पत्नी दोनों में यह आभास उत्पन्न होने लगता है कि अपने जीवन साथी के दिल में उनका कोई स्थान नहीं है। इसका नतीजा यह होता है कि परिवार में विभिन्न प्रकार की भ्रांतियों की भूमि प्रशस्त हो जाती है जबकि इस्लामी रवायतों में परिवारों के संबंध में महत्वपूर्ण सिफारिशें की गयी हैं।
खेद के साथ कहना पड़ता है कि दांपत्य जीवन में दूसरे मर्द या औरत से अवैध संबंध भी तलाक का कारण बनता है जिसमें वर्तमान समय में वृद्धि हो रही है और पति या पत्नी का दूसरे से अवैध संबंध रखने के कारण कुछ परिवारों में तलाक हो चुके हैं।
दांपत्य जीवन में पति या पत्नी कभी दूसरे व्यक्ति से अवैध संबंध होने पर पछतावा प्रकट करता है परंतु इससे परिवार को जो क्षति पहुंच चुकी होती है उसके दुष्प्रभाव वर्षों तक बाकी रहते हैं। यही नहीं इस प्रकार के संबंध से पति या पत्नी को केवल हानि नहीं पहुंचती है बल्कि दोनों तरफ के बच्चों और परिवार के दूसरे सदस्यों को भी मानसिक व ग़ैर मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
कम ईमान और धार्मिक आस्थाओं में कमज़ोरी भी तलाक का कारण बनती है। धार्मिक आस्थाओं का न होना परिवारों में अवैध संबंधों में वृद्धि का कारण बनता है जो दांपत्य जीवन के संबंधों के ठंडे होने और भावनात्मक तलाक का कारण बनता है।
भावनात्मक तलाक को रोकने के लिए इस बात को जानना चाहिये कि प्रेम वह चीज़ है जिसकी आवश्यकता हमेशा रहती है और पति-पत्नी के बीच प्रेम उस पौधे की तरह है जिसकी अगर देखभाल न की जाये तो वह सूख जायेगा। तो जीवन में एक बार प्रेम प्रकट करने को पर्याप्त नहीं समझना चाहिये बल्कि प्रतिदिन इस प्रेमरूपी पौधे की सिंचाई करनी चाहिये। पति-पत्नी दोनों को एक दूसरे की भावनाओं, इच्छाओं और ज़रूरतों को समझना और उसे पूरा करने का प्रयास करना चाहिये। इस बात को ध्यान में रखना चाहिये कि दूर से बाग़ का ध्यान रखने से वह फल नहीं देगा बल्कि उसके पास जाकर उसकी देखभाल करनी चाहिये।
ईश्वरीय धर्म इस्लाम की एक विशेषता यह है कि वह तलाक के बाद वापसी का मार्ग खुला रखता है। इस्लाम में तलाक के आदेशों में आया है कि तलाक के बाद महिला इद्दा रखे यानी महिला तीन महीनों तक किसी दूसरे मर्द से विवाह नहीं कर सकती और उसे तीन बार मासिक धर्म की प्रतीक्षा करनी होगी और इस बात को ध्यान में रखना तलाक दी गयी महिलाओं पर अनिवार्य है।
इद्दत रखने के दो रहस्य हैं। एक रहस्य पति-पत्नी के बीच संबंधों के बेहतर होने की भूमि का प्रशस्त हो जाना है। बेहतर यह है कि जिस महिला को तलाक दिया जा चुका है अगर उसे शारीरिक, आत्मिक और नैतिक भय नहीं है तो वह अपने पति के घर में रहे और अगर मर्द का रुजहान अपनी तलाक दी हुई पत्नी की तरफ हो जाये तो किसी प्रकार के तामझाम के बिना उससे विवाह करके अपने संयुक्त जीवन को दोबारा आरंभ कर देना चाहिये। इस प्रकार के तलाक को तलाक़े रज्ई कहते हैं। यानी किसी प्रकार की शर्त के बिना मर्द को अपनी पत्नी की ओर वापसी का पूरा अधिकार है। क्योंकि वह अपनी पहली पत्नी के साथ विवाह करने के लिए दूसरे मर्दों से योग्य है। अलबत्ता यह अधिकार उस समय है जब मर्द वास्तव में अपनी स्थिति से शर्मीन्दा हो और वह सच में अपने जीवन को नये सिरे से आरंभ करना चाहता है। वास्तव में मर्द को उस समय वापसी का अधिकार है जब उसका उद्देश्य पत्नी को नुकसान या कष्ट पहुंचाना न हो।
पवित्र कुरआन के सूरये बकरा की 231वीं आयत में महान ईश्वर कहता हैः जब औरतों को तलाक दो और वे इद्दत के अंतिम दिनों में पहुंच जायें या सद्व्यवहार के साथ उन्हें रख लो और या अच्छे व्यवहार के साथ उन्हें छोड़ दो और कभी भी उन्हें नुकसान पहुंचाने के लिए उनसे सुलह न करो और जो एसा करेगा वह स्वयं पर अत्याचार करेगा।"
महान ईश्वर इस आयत में साफ- साफ कह रहा है कि पति अपनी पहली पत्नी की ओर वापसी कर सकता है हां यह कार्य महिला को नुकसान पहंचाने के लक्ष्य से न हो। पवित्र कुरआन की इस आयत के आधार पर जो लोग अपनी पहली वाली पत्नियों की ओर वापसी करना चाहते हैं उन्हें इन बिन्दुओं को ध्यान में रखना चाहिये।
पहला बिन्दु यह है कि अजनबी मर्दों के मुकाबले में अपनी पत्नियों से विवाह के लिए वे सबसे अधिक योग्य हैं और दूसरा बिन्दु यह है कि दूसरी बार जो अपनी पहली पत्नी से विवाह कर रहा है वह सुधार की नियत से होना चाहिये। इस संबंध में तीसरा बिन्दु यह है कि पत्नी के अधिकारों को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिये अगर एसा हुआ तो परिवार की शांति खत्म हो जायेगी और पति-पत्नी और बच्चे मानसिक, नैतिक और आस्था के संकट के भंवर में डूब जायेंगे।