इस्लामी क्रांति दूसरा क़दम- 8
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इस्लामी क्रांति के दूसरे क़दम के अंतर्गत अपने बयान में कहा कि ऐसे समय में जब दुनिया पूर्व और पश्चिम में विभाजित हो गयी थी
ऐसे में किसी को एक महा धार्मिक क्रांति का वहम भी नहीं था, ईरान की इस्लामी क्रांति ने पूरी शक्ति और भव्यता के साथ मैदान में क़दम रखा, उसने समस्त परिधियों को तोड़ दिया, दुनिया में प्रचलित प्राचीन परंपरा को धराशायी कर दिया, धर्म और संसार को एक साथ पेश किया और नये युग के आरंभ होने की घोषणा की।
जैसा कि इससे पहले आपको बताया था कि ईरान की इस्लामी क्रांति, विभिन्न आयामों से दुनिया की अन्य क्रांतियों और जनक्रांतियों से भिन्न है किन्तु इसका सबसे मुख्य अंतर, इस्लामी क्रांति की प्रवृत्ति और उसके धार्मिक होने में निहित है।
इस संसार में जहां भौतिकवाद और धार्मिक मामले पूरी तरह छाए हुए हों और धर्म एक किनारे लगा दिया गया हो और यह विषय मनुष्य का व्यक्तिगत मुद्दा बन गया हो। ईरान की महा क्रांति ने इस्लाम धर्म को, समाज और व्यक्ति के लिए लोक परलोक की उच्च आकांक्षाओं तक पहुंचने के लिए एक मुख्य मार्ग और उपाय के रूप में पेश किया।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इस्लामी क्रांति के दूसरे क़दम के अंतर्गत अपने बयान में कहा कि उस दिन जब दुनिया पूर्व और पश्चिम में विभाजित हो गयी थी और किसी को एक महा धार्मिक क्रांति का वहम भी नहीं था, ईरान की इस्लामी क्रांति ने पूरी शक्ति और भव्यता के साथ मैदान में क़दम रखा, समस्त परिधियों को तोड़ दिया, दुनिया में प्रचलित प्राचीन परंपरा को धराशायी कर दिया, धर्म और संसार को एक साथ पेश किया और नये युग के आरंभ होने की घोषणा की।
ईरान की क्रांति इस्लामी नारों और उमंगों के साथ अस्तित्व में आई और इसी आधार पर उच्च धार्मिक और अध्यात्मिक मूल्यों से संपन्न एक व्यवस्था गठित हुई यह बात पश्चिमी दुनिया के लिए दो आयाम से ख़तरनाम और असहनीय थी। इसका पहला आयाम यह कि इस क्रांति ने लिभ्रजिज़्म लेब्रइज़्म, कम्युनिज़्म और अन्य पश्चिमी भौतिक दृष्टिकोणों के मुक़ाबले में इस्लाम को एक समृद्ध और उपयोगी कार्यक्रम के रूप में पेश किया। इस्लामी क्रांति से पश्चिम के विरोध के कारण, इस्लाम के आधार पर एक सरकारी मापदंड को पेश करना है जिसने व्यवहारिक रूप से धर्म को राजनैतिक मंच पर पेश किया है।
इस प्रकार से इस्लामी गणतंत्र ईरान ने पश्चिम के वर्चस्ववादी दृष्टिकोणों को नकारते हुए दुनिया के अत्याचारग्रस्त राष्ट्रों की रक्षा का बीड़ा उठाया और एक ऐसी विचारधारा पेश की जिसने समस्त भौतिक और धर्म विरोधी दृष्टिकोणों पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया।
वास्तव में इस्लामी गणतंत्र ईरान से पश्चिमी सरकारों के विरोध का मुख्य कारण भी यही धार्मिक प्रवृत्ति और उसका अत्याचार विरोधी होना है। शत्रु का लक्ष्य इस्लामी व्यवस्था के विरुद्ध मानवाधिकारों का हनन, क्षेत्र में अशांति पैदा करने, आतंकवाद के समर्थन और परमाणु हथियारों के निर्माण जैसे निराधार आरोप लगाकर इस इस्लामी व्यवस्था को दबाव डालना है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता इस बारे में कहते हैं कि यह देश स्वाधीनता, ईमान, इस्लाम पर आस्था रखने, धरती और समाज पर ईश्वरीय धर्म की सत्ता पर आस्था रखने के कारण, दुश्मनों का एक बड़ा मोर्चा भी रखता है जो हमेशा ही षड्यंत्रों में व्यस्त रहता है।
ईसाई धर्म में भारी फेर बदलाव, अत्याचार और मध्ययुगीन काल में चर्चों में जनता के विरुद्ध घुटन का माहौल पैदा किए जाने और इसी प्रकार अन्य कारणों की वजह से कुछ शताब्दी के दौरान यूरोपीय पुनर्जागरण के बाद धर्म को कमज़ोर करने, धर्म से लोगों को अलग थलग करने या दूसरे शब्दों में लोगों के बीच से धर्म को समाप्त करने का प्रयास किया गया। उन्होंने इस विषय को इस्लाम सहित सभी धर्मों में अपनाने का प्रयास किया और यही कारण था कि ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता के समय यह सोचा जा रहा था कि धर्म पतन की ओर बढ़ रहा है। मार्क्सवाद ने धर्म को लोगों के पिछड़ेपन का काण क़रार दिया और पूर्व सोवियत संघ और कुछ देशों में इसलिए धर्म से जुड़े रहने पर रोक लगा दी गयी। पश्चिम के लेब्रल देशों में यद्यपि धर्म रखने पर कोई प्रतिबंध तो नहीं है किन्तु उसके विरुद्ध व प्रचार करते रहते हैं। व्यवहारिक रूप से धर्म उनसे अलग हो चुका है और पश्चिमी अधिकारी ईसाई धर्म की ओर रुझान में कोई रुचि नहीं रखते ।

इन हालात में धार्मिक उमंगों और नारों तथा वास्तविक इस्लम को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से इस्लामी क्रांति अस्तिव में आई और उसने भौतिकवादियों और धर्मविरोधियों की हवा निकाल दी। ईरान की इस्लामी क्रांति यद्यपि फेर बदल का शिकार ईसाई और यहूदी धर्मों और इसी प्रकार हिन्दुधर्म और बौद्धधर्म जैसे ग़ैर ईश्वरीय धर्मों की पुष्टि नहीं करती किन्तु इस्लाम जैसे व्यापक और परिपूर्ण ईश्वर धर्म रखने और मनुष्य की आवश्यकता के लिए अध्यात्म की आवश्यकता पर बल देती है।
इस महा क्रांति ने जिस इस्लाम को पेश किया वह घर और मस्जिद में व्यक्तिगत उपासना पर निर्भर नहीं है बल्कि समाज में सक्रिय और प्रभावी उपस्थिति रखता है। सैद्धांतिक रूप से इस्लाम की शिक्षाएं इस प्रकार हैं कि यहां तक कि नमाज़े जुमा, एक साथ पढ़ने वाली नमाज़ें और हज में भी व्यक्तिगत से अधिक समाजिक आयाम पाए जाते हैं।
इस प्रकार के धर्म को ईरानी जनता द्वारा पुनर्जीवित किये जाने से धर्म के विरुद्ध पश्चिम के दृष्टिकोणों और प्रोपेगैंडों पर सवाल खड़े हो गए इसके परिणाम में वे इस क्रांति के विरुद्ध उठ खड़े हुए और धर्म के इस नवीन निखार और उन्होंने विकास को समाजिक स्तर पर विफल बनाने का प्रयास किया। उनको शुरुआत से ही यह पता था कि धर्म के बारे में इस्लामी क्रांति की सर्वोच्च और उच्च शिक्षाएं बहुत शीघ्र ही दुनिया के अन्य राष्ट्रों और मुस्लिम समाजों के ध्यान का केन्द्र बन जाएंगी और इस्लाम की मुक्तिदायक शिक्षाओं से मुक़ाबले में उनका काम कठिन से कठिन हो जाएगा। उनकी यह भविष्यवाणी बहुत जल्द ही व्यवहारिक हो गयी और दुनियाभर के बहुतसे मुसलमान, ईरान की इस्लामी क्रांति की उमंगों और उसके लक्ष्यों से प्रभावित हो गये और ईरान की इस्लामी क्रांति के समर्थन में बढ़ते ही चले गये।
अमरीका के प्रसिद्ध इस्लाम विरोधी डेनियल पाइप्ज़ जो कुछ समय तक अमरीका की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सदस्य भी रहे हैं, कहते हैं कि आज दुनिया भरके मुसलमानों की नज़र ईरान पर है। वे उनको आदर्श मानते हैं। यदि यह अनुभव सफल रहा तो दुनिया के अन्य मुस्लिम देशों के मुसलमानों का दुस्साहस बढ़ जाएगा और यह हमारे लिए असहनीय है।

यहां पर इस बिन्दु का उल्लेख अति महत्वपूर्ण है कि पश्चिम वालों को उस इस्लाम से जो घरों और मस्जिदों तक सीमित हो और उसे समाज और राजनीति से कुछ लेना देना न हो, कोई लेना देना नहीं है। क्योंकि वह सऊदी अरब में सत्तासीन वहाबी इस्लाम को स्वयं के लिए ख़तर नहीं समझते बल्कि इस्लाम का भेस पहने इस इस्लामी पंथ का समर्थन भी करते हैं और इसको अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयोग भी करते हैं।
यही कारण है कि इस्लमी गणतंत्र ईरान के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी इस प्रकार के इस्लाम को अमरीकी इस्लाम की संज्ञा देते हैं किन्तु इस्लामी क्रांति ने जो इस्लाम पेश किया है वह शुद्ध इस्लाम है जो न केवल अमरीका जैसे अत्याचारियों और वर्चस्ववादियों से सांठगांठ नहीं करता बल्कि इस्लाम के क्रांतिकारी और मुख्य मूल्यों को फैलाने के लिए सरकार का गठन भी करता है।
इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था इसी प्रकार के विचारों का परिणाम है जिसे इमाम ख़ुमैनी ने इस्लामी शिक्षाओं से प्रेरित होते हुए जनता के समर्थन से बनाया है।
वास्तव में इस्लामी क्रांति से पश्चिमी सरकारों की एक अन्य समस्या यही बिन्दु है कि इस क्रांति ने इस्लामी शिक्षाओं के आधार पर एक राजनैतिक व्यवस्था का आधार रखा और दुनिया में एक नई शासन शैली की बेल रखी जो पश्चिम की लेब्रल व्यवस्था से बिल्कुल भिन्न थी। इस सरकार में सारे नियम ईश्वरीय होते हैं, अर्थात देश चलाने के लिए ईश्वरीय नियम और क़ानून लागू होते हैं। वह सारे नियम जो इस्लामी नियमों के विरुद्ध न हों लागू होते हैं। इसी के साथ जनता देश के राष्ट्रपति, सांसदों और अन्य नेताओं का चयन पूरी स्वतंत्रता से करती है और इस प्रकार से देश के संचालन में पूरी तरह से भाग लेती है।

आज ईरान की इस्लामी व्यवस्था को एक सफल सरकार के आदर्श के रूप में पूरी दुनिया में जाना जाता है। इस विषय ने पश्चिम को बहुत अधिक चिंतित कर दिया है। यही कारण है कि पश्चिमी सरकारें और उसके मीडिया शत्रुतापूर्ण प्रोपेगैंडों और निराधार दावों से इस्लामी गणतंत्र ईरान को विफल दिखाने के प्रयास में रहते हैं।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई इस्लामी क्रांति के दूसरे क़दम के अपने बयान में इस बिन्दु की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि स्वभाविक सी बात है कि अत्याचार के अगुवा क्रांति के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करते, किन्तु यह प्रतिक्रिया विफल हो गयी दक्षिणपंथ वायमपंथ तथा आदारण सभी ने, यह दिखाने का प्रयास किया कि मानो हमने यह अलग और नई आवाज़ सुनी ही नहीं, जबकि इसी आवाज़ को बंद करने के लिए विभिन्न प्रकार के व्यापक प्रयास तक, किये किन्तु वे निश्चित परिनाम तक निकट होते गये। अब इस्लामी क्रांति की सफलता को चालीस साल हो गये, क्रांति चार दशकों की हो गयी, इन दो दुश्मनों में से एक तबाह हो गया और दूसरा भी मृत्यु शय्या पर अंतिम सांसें ले रहा है, इस्लामी क्रांति अपने नारों और उमंगों की रक्षा करते हुए अपने मार्ग पर अग्रसर है। (AK)